Wednesday, August 24, 2016

हम से अब पराया केक खाया नहीं जाएगा

अपने गाँव-देहात में कभी रसोइये के हाथ में 500 रूपये धरती तो कभी मेहतरानी के हाथ में पचास रूपये धर कर खुश हो लेती और दान के भाव को बनाकर अपने स्वाभिमान को सहेजकर रख लेती घर की दादी अब उलझन में झूलने लगी। क्या-क्या बिसरा दूँ?
पोस्ट को पढ़ने के लिये इस लिंक पर क्लिक करें - http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%B9%E0%A4%AE-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%85%E0%A4%AC-%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%95-%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80/ 

No comments:

Post a Comment