हर व्यक्ति के पास इतना ज्ञान आ गया है कि वह ज्ञान देने के लिये लोग ढूंढ रहा
है, बस जैसे ही अपने लोग मिले कि ज्ञान की पोटली खुलने लगती है और बचपन मासूम सा
बनकर कोने में जा खड़ा होता है।
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (01-09-2016) को "अनुशासन के अनुशीलन" (चर्चा अंक-2452) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार।
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