हमारे पास अधिकार के कुछ नम्बर होते हैं, रात 2 बजे
भी उन्हीं नम्बरों पर हम डायल करके उनकी बाँहों को आमन्त्रित कर लेते हैं। वे भी
तुरन्त ही बिना विलम्ब किए आ जाते हैं और आश्वस्त कर देते हैं कि हम अकेले
नहीं है।
पोस्ट की लिंक - http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%9F-%E0%A4%9C%E0%A4%AC-%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%A4-%E0%A4%B9%E0%A5%8B-%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%8F-%E0%A4%A4%E0%A4%AC/
पोस्ट की लिंक - http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%9F-%E0%A4%9C%E0%A4%AC-%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%A4-%E0%A4%B9%E0%A5%8B-%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%8F-%E0%A4%A4%E0%A4%AC/
बढ़िया प्रस्तुति ...
ReplyDeleteबढ़िया
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (19-04-2015) को "अपनापन ही रिक्तता को भरता है" (चर्चा - 1950) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
शास्त्रीजी, कविताजी, सुमन जी आपका आभार।
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
ReplyDeleteशुभकामनाएँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।