घर की दुनिया कितनी अपनी सी है। घर का कोना-कोना आपका
होता है, दीवारें लगता है जैसे आपको बाहों में लेने के लिए आतुर हों। इस अपने घर
में पूर्ण स्वतंत्र हैं, चाहे नाचिए, चाहे गाइए या फिर धमाचौकड़ी मचाइए, सब कुछ
आपका है। बाहर की दुनिया में ऐसा सम्भव नहीं है। इस पोस्ट को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%98%E0%A4%B0-%E0%A4%A4%E0%A4%95/
आभार शास्त्री जी।
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