भारतीय रेल, दुनिया की सबसे विशाल परियोजना है। लाखों यात्री प्रतिदिन एक शहर से दूसरे शहर और छोटे-छोटे गाँवों तक रेल के द्वारा ही यात्रा करते हैं। वर्तमान में महिलाओं के लिए 58 और पुरुषों के लिए 60 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के व्यक्तियों के लिए रियायती दरों पर यात्रा का प्रावधान है। कुछ वर्ष पूर्व घोषणा हुई थी कि पचास वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं को शयनयान डिब्बों में नीचे की शय्या मिलेगी। लेकिन यह घोषणा पूर्णतया लागू नहीं हो सकी। इस माह मुझे कई बार रेल-यात्रा का अवसर मिला, कई बुजुर्गों को कठिनाई का सामना करते हुए देखा।
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Tabiyat theek nahee hai....honepe zaroor padhungee! Mere heart attack ke bareme apne blogpe likh rahee hun.....zaroor padhen!
ReplyDeleteक्षमाजी, मैंने आपका संदेश पढ़ लिया था और उस पर टिप्पणी भी की थी। आप अभी पूर्ण आराम करें।
ReplyDeleteइस विषय में रेलवे से ज्यादा मानवीय व्यवहार में संशोधन ज़रूरी है । युवाओं को वृद्धों को जगह देनी चाहिए । यह तो कॉमन सेन्स की बात है लेकिन पालन बहुत कम किया जाता है ।
ReplyDeleteक्या कहें अजीत जी ! कितनी योजनायें निकलती हैं पर क्रियान्वित कहाँ होती हैं.
ReplyDeleteआपने जो कहा वो होना तो चाहिए मगर होता नहीं है। क्यूंकी अपने यहाँ हर कानून का तोड़ है। बाकी तो डॉ दराल जी की बात से सहमत हूँ।
ReplyDeleteयह कठिनाई ज़रूर दूर की जानी चाहिए।
ReplyDeleteअपनी बात वहीँ कह आया हूँ डॉक्टर दी!!
ReplyDeleteबहुत ही जरूरी समस्या की तरफ ध्यान आकर्षित किया है...अगर किसी अव्यवस्था की आशंका है तो टिकट चेकर को ही यह अधिकार दिया जा सकता है कि वह किसी नौजवान को उपरी बर्थ पर जाने का निर्देश दे और बुजुर्ग को लोअर बर्थ आवंटित कर सके.
ReplyDeleteअब नवयुवकों में वो बुजुर्गों के सम्मान की पहले वाली भावना नहीं रह गयी है...वे भी कई बार अपनी बर्थ छोड़ने से इनकार कर देते हैं...रेलवे को इस समस्या पर गंभीरता से विचार करना चाहिए.
अच्छा सुझाव दिया है आपने!
ReplyDeleteआरक्षण आवेदन पात्र में ६०-६५ आयु वर्ग भरने पर लोवर बर्थ खुद बा खुद मिलती है .आरक्षित कोटे से सीट प्राप्त करने पर कई मर्तबा यह नहीं भी हो पाता .एसी बतु में एक मर्तबा मेरे साथ ऐसा ही हुआ था .डिफेन्स कोटे से बर्थ मिली लेकिन वह ऊपरली थी जिसे एक युवा साथी ने सहर्ष बदल लिया मेरे साथ .अमूमन ऐसा नहीं ही होता है .
ReplyDeleteआरक्षण आवेदन पत्र में ६०-६५ आयु वर्ग भरने पर लोवर बर्थ खुद बा खुद मिलती है .आरक्षित कोटे से सीट प्राप्त करने पर कई मर्तबा यह नहीं भी हो पाता .एसी टू में एक मर्तबा मेरे साथ ऐसा ही हुआ था .डिफेन्स कोटे से बर्थ मिली लेकिन वह ऊपरली थी जिसे एक युवा साथी ने सहर्ष बदल लिया मेरे साथ .अमूमन ऐसा नहीं ही होता है .लोग शक्की निकलतें हैं .दिल्ली मेट्रो में बुजुर्गों को पूर्ण सहयोग मिल रहा है लोग सीट दे देतें हैं बुजुर्गों को वाकिंग स्टिक वालों को .
ReplyDeletePadh liya aalekh aapka....pooree tarah se sahmat hun!
ReplyDeleteयह दिक्कत है अभी... समय पर आरक्षण करने पर लोअर बर्थ मिलता है.... सीट भर जाने के बाद संभव नहीं हो पता.... बाकी गाडी में युवाओं को सहयोग करना चाहिए...
ReplyDeleteबहुत कम लोगों का ध्यान बड़ी उम्र के लिए जाता है ....
ReplyDeleteआभार आपका !
नियम का पालन ओर सहयोग दोनों ही आवश्यक हैं ... ओर अक्सर लोग बुजुर्गों का सामान करते हुवे सीट अपने आप ही दे देते हैं ...
ReplyDeleteसही बात। हमारी सोच में परिवर्तन आना चाहिये। रेलों, अन्य परिवहन व अस्पतालों तथा कार्यालयों, बैंकों आदि में ऐसी व्यवस्था भी होनी चाहिये कि वरिष्ठ नागरिकों को सीढियाँ भी चढनी पड़ें।
ReplyDeleteसीनियर सिटिजन में हमेशा लोवर बर्थ ही मिलती है,लेट रिजर्वेश्सन कराने पर
ReplyDeleteहो सकता है लोवर बर्थ ना मिले,मगर ऐसा
बहुत कॉम होता है,....
MY NEW POST...आज के नेता...
आपकी बात से पूर्णत: सहमत हूँ ... इस ओर गंभीरता से ध्यान देना आवश्यक है ... आभार ।
ReplyDeleteये तो रेलवे ने जब सीनियर सिटिजन को उम्र के साथ जो सुविधा दी है इसके साथ ही इसको भी लागू करना चाहिए खास तौर पर महिलाओं के लिए तो बहुत ही जरूरी है. उचित विषय पर लिखा लेकिन रेलवे तक पहुंचेगा तब तो.
ReplyDeleteभी होता है लेकिन मांगने पर जो कुछ हाथ आता है उसपर बैठने में अस्थि पंजर हिल जातें हैं टूटी फूटी वील चेयर मिलती है .हेल्प लाइन वाले तब आतें हैं केबीज़ जब यात्री प्लेटफोर्म छोड़ चुके होतें हैं गाडी के टर्मिनेट होने के बाद .यह आलम है अपने यहाँ सुविधाओं का .
ReplyDeleteआपकी ब्लॉग उपस्थिति उत्साह बढ़ा गई कृपया 'ओस्टियो नेक्रोसिस 'पढ़ें और लिखें .
स्टेशनों पर यूं विकलांगों के लिए वील चेयर का प्रावधान भी होता है लेकिन मांगने पर जो कुछ हाथ आता है उसपर बैठने में अस्थि पंजर हिल जातें हैं टूटी फूटी वील चेयर मिलती है .हेल्प लाइन वाले तब आतें हैं, केबीज़, जब यात्री प्लेटफोर्म छोड़ चुके होतें हैं गाडी के टर्मिनेट होने के बाद .यह आलम है अपने यहाँ सुविधाओं का .
ReplyDeleteआपकी ब्लॉग उपस्थिति उत्साह बढ़ा गई कृपया 'ओस्टियो नेक्रोसिस 'पढ़ें और लिखें .
सार्थक पोस्ट । मेरे पोस्ट "भगवती चरण वर्मा" पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteअच्छा सुझाव!!
ReplyDeletebahut hi umda sujhaaw hai aap ka,kaash is par amal bhi ho
ReplyDeleteअजित जी,
ReplyDeleteसहमत, सीनियर सिटीजंस के लिए ये सुविधा होनी ही चाहिए...
कभी सुबह या शाम के वक्त हापुड़-गाज़ियाबाद से होकर दिल्ली आने-जाने वाली गाड़ियों में कोई सफ़र करके देखे...यहां डेली पैसेंजर्स का आतंक चलता है...रिज़र्व या एसी डब्बों का होना यहां कोई मायने नहीं रखता...अगर कोई विरोध करे तो सब एकजुट होकर मरने-मारने को तैयार हो जाते हैं...इनका इतना खौफ़ या सेटिंग है कि रेलवे स्टाफ भी इनसे उलझने में कतराता है...रेलवे को इस ओर भी गंभीरता से ध्यान देना चाहिए...
जय हिंद...
shyd koi sun le in unchi diwaro me rehne wale
ReplyDeleteअच्छा सुझाव,...
ReplyDeleteNEW POST ...काव्यान्जलि ...होली में...
बहुत बेहतरीन....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
होली पर आपको तथा परिवार को हार्दिक शुभकामनायें ..
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♥ होली ऐसी खेलिए, प्रेम पाए विस्तार ! ♥
♥ मरुथल मन में बह उठे… मृदु शीतल जल-धार !! ♥
आपको सपरिवार
होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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जी बुजुर्गों को लोवर बर्थ मिलनी ही चाहिए, कई बार उपलब्धता ना होने पर नहीं मिल पाता है।
ReplyDeleteवैसे आपकी बात बिल्कुल सही है कि बुजुर्गो को अगर ऊपर की बर्थ मिल जाती है तो दिक्कत होती ही है।
bahut achha sujhav lekin sunne walen samajh sakte to phir rona kis baat ka tha...
ReplyDeletesarthak prastuti hetu aabhar!