Friday, March 9, 2012

कविता के नाम पर फूहड़बाजी को कब तक बर्दास्‍त करें?

कविता के नाम पर फूहड़बाजी को कब तक बर्दास्‍त करें?
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13 comments:

  1. दोनों तरह के लोग मौजूद है, एक जो वाकई साहित्य का सम्मान करते है और एक वो जो साहित्य के नाम पर ठगी !

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  2. तो गोदियाल जी, क्‍या इन ठगों पर कोई कार्यवाही नहीं होनी चाहिए। क्‍या ये जनता को सरेआम लूटते रहेंगे और साहित्‍य को ऐसे ही बदनाम करते रहेंगे?

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  3. बिलकुल कार्यवाही होनी चाहिए जो साहित्य के नाम पे संस्कृति के नाम पे गन्दगी करते फिरते हैं ...

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  4. बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
    शुभकामनाएँ

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  5. आदरणीया!श्रोताओं में जब कूली से लेकर कुलपति तक शामिल हों तब आयोजक को मजबूरन एक ही मंच पर नीरज जी और बालकवि बैरागी जी जैसे शब्द साधकों के साथ चंद चुटकुलेबाज़ कवियों को भी बिठाना पड़ता है -आयोजक पहले तय करें कि कवि सम्मलेन किस वर्ग के श्रोताओं के बीच है,उसी हिसाब से टीम बनाये, ताकि दोनों वर्ग एक दुसरे को झेलने कि पीड़ा से बच सकें और कविता सिर्फ कविता रहे,विवाद का विषय न बने-कविता'किरण'

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  6. सच ही है - यदि ऐसा ही कुछ plan हो - तब नाम "laughter manch " जैसा ही कुछ रखना चाहिए - कवि सम्मलेन बिलकुल नहीं !!

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  7. बहुत ही बेहतरीन रचना....
    मेरे ब्लॉग

    'विचार बोध'
    पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  8. .

    छद्म कवियों / चुटकुलेबाजों का खुलेआम विरोध हो तो मुझ जैसे सच्चे सृजन-साधकों सरस्वती-सुतों के काव्य लेखन-वाचन से आम पाठक-श्रोता लाभान्वित-आनंदित ही होंगे …


    लेकिन श्रेष्ठ सृजकों का गला काटने वाले, अकादमियों और सेठ-साहूकारों से पैसा ऐंठने वाले दलाल-बिचौलिये इस फूहड़बाज़ी को कभी बंद नहीं होने देंगे …

    समाज के दुर्भाग्य पर दुख होता है , जब अकादमियों के आयोजनों में भी गुणी घर बैठे होते हैं , और भांड-मसखरे और चोट्टे चुटकुलेबाज़ कुछ बिचौलियों की सांठ-गांठ से मंचों पर बेशर्मी से सड़े चुटकुले पेल कर दलालों का हिस्सा दे'कर मोटी रकमें ऐंठ कर ले जाते हैं …

    आप अकादमी अध्यक्ष रह चुकी हैं , भविष्य में गुणी रचनाकारों के अधिकार के लिए कोई अवसर तलाशिएगा …

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  9. विरोध होना चाहिए।

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  10. kya kaha jaye..chinta ka vishay to hai.

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  11. कवि सम्मेलनों में जिस तरह को फूहड़पन दिखाई देने लगा है वह सर्व विदित है..याद् आते हैं वे दिन जब कविसम्मेलनों में उच्च स्तर के कवि आते थे और जिनको सुनने के लिये ठण्ड में भी आधी रात तक बैठे रहते थे. आज के हालात का बहुत सुंदर विश्लेषण...कई बार तो लगता है कि कुछ कवि हर कवि सम्मलेन में अपनी वही फूहड़ रचनाएँ हर बार सुनाते हैं और तालियाँ बटोरते हैं.

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  12. नव संवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें !

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