Sunday, October 9, 2011

पुरुष की बेचारगी क्‍या और बढे़गी?



आदमी की लाचारी, उसकी बेबसी क्‍या प्रकृति प्रदत्त है? महिलाओं के प्रति उसका तीव्र आकर्षण यहाँ तक की महिला को पाने के लिए कुछ भी कर गुजरने का पागलपन! शायद कभी समाज ने इसी प्रवृत्ति को देखकर विवाह संस्‍था की नींव डाली होगी। पुरुष के चित्त में सदा महिला वास करती है। उसका सोचना महिला के इर्द-गिर्द ही होता है। पुरुषोचित साहस, दबंगता, शक्तिपुंज आदि सारे ही गुण एक इस विकार के समक्ष बौने बन जाते हैं। वह महिला को पूर्ण रूप से पाना चाहता है, उसे खोने देना नहीं चाहता। पति के रूप में वह पत्‍नी को अपनी सम्‍पत्ति मानने लगता है और इसी भ्रम में कभी वह लाचार और बेबस भी हो जाता है। महिला भी यदि दबंग हुई तो उसकी बेचारगी और बढ़ जाती है। इसलिए आदिकाल से ही पुरुष का सूत्र रहा है कि अपने से कमजोर महिला को पत्‍नी रूप में वरण करो।
पति के रूप में वह अक्‍सर कमजोर ही सिद्ध हुआ है। कुछ लोग मेरी इस बात पर आपत्ति भी कर सकते हैं। लोग कहते हैं कि पति पत्‍नी पर अत्‍याचार करता है। शराब पीकर उत्‍पात मचाता है। लेकिन व्‍यसन करना किस बात का प्रतीक है? कमजोर मन वाले लोग ही व्‍यसन का सहारा लेते हैं। कमजोर पुरुष ही हिंसा का सहारा लेते हैं। जब आपके अन्‍दर स्‍त्री के समक्ष प्रस्‍तुत होने का सामर्थ्‍य नहीं होता तब आप व्‍यसन का या हिंसा का सहारा लेते हैं। कई बार यह देखने में आता है कि इसी कमजोरी का महिलाएं फायदा भी उठाती हैं। कई बार पति बेचारा-प्राणी बनकर रह जाता है। हम स्‍त्री पर होने वाले अत्‍याचार या उसकी बेबसी की बाते तो हमेशा करते हैं, स्‍त्री को हमेशा ही कमजोर और बेबस सिद्ध करने पर तुले होते हैं लेकिन पुरुष कितना बेबस है इस बात को कोई उद्घाटित नहीं करता। इसलिए मैं कहती हूँ कि पुरुष की बेबसी, पुरुष रूप में जन्‍म लेकर ही समझी जा सकती है।
आप सोच रहे होंगे कि आज अचानक ही पुरुष पुराण मैंने क्‍यों खोल दिया है। लेकिन जब भी मैं महिलाओं को बेबस और लाचार सिद्ध करने वाला लेखन पढ़ती हूँ तब लगता है कि आखिर हम चाहते क्‍या हैं? बेबस पुरुष है और सिद्ध किया जा रहा है कि बेबस महिला है। वैसे आज मुझ पर बहुत आक्रमण होने वाले हैं। लेकिन एक घटना जो मुझे एक महिने से पीड़ित कर रही है, उसे उदाहरण के रूप में प्रस्‍तुत करना चाह रही हूँ। इस घटना का अभी अन्‍त नहीं हुआ है, ऊँट किस करवट बैठे यह भी मैं नहीं जानती। किसी सत्‍य घटनाक्रम को सार्वजनिक करना चाहिए या नहीं, बस इसी उहापोह में हूँ। नाम बदल दिये हैं, स्‍थान बदल दिया है। अब आप बताइए कि इस घटना को किस श्रेणी में रखा जाना चाहिए।
विनोद और शालिनी का प्रेम विवाह सात वर्ष पूर्व हुआ। अभी एक साल का पुत्र उनके जीवन में है। दोनों ही शिक्षित और उच्‍च पदों पर कार्यरत हैं। जीवन खूबसूरती के साथ निकल रहा था लेकिन एक माह पूर्व भूचाल आ गया। विनोद भुवनेश्‍वर का है और वहाँ एक अन्‍य महिला से परिचित है। वह महिला कुछ दिलफेंक अंदाज की है। बाते रूमानी सी करती है और आगे होकर सम्‍बन्‍ध बनाती है। विनोद जब भी भुवनेश्‍वर जाता, उससे मुलाकात हो जाती। कई बार मुम्‍बई में भी उसके फोन आ जाते। एक बार भुवनेश्‍वर में मुलाकात के दौरान एक चुम्‍बन भी हो गया। बस विनोद में अपराध-बोध ने जन्‍म ले लिया। उसे लगा कि मुझसे कुछ गलत हो रहा है और यही अपराध-बोध उसके लिए प्रायश्चित का कारण बना। उसने लगभग एक महिने पूर्व अपनी पत्‍नी शालिनी को सब कुछ सच बता दिया। उसने प्रायश्चित करना चाहा था लेकिन हो गया एकदम उल्‍टा। शालिनी के‍ लिए यह बहुत बड़ा अपराध था। तभी समझ आया कि विनोद का आत्‍मबल कितना कमजोर था और शालिनी का अहंकार कितना बड़ा। शालिनी को यह घटना स्‍वयं की हार लगी। उसका मानना था कि मैं इतनी परफेक्‍ट हूँ कि मेरा पति तो मेरे सपनों में ही खोया रहना चाहिए। किसी से बात करना भी बहुत बड़ा अपराध है। उसने प्रतिक्रिया स्‍वरूप विनोद को बहुत मारा। उसके जो भी हाथ में आया उसी से उसने मारा। विनोद बुरी तरह से घायल हो गया लेकिन बदले में उसने हाथ नहीं उठाया। मकान शालिनी के नाम था तो उसने विनोद को घर से निकल जाने को कहा। तीन दिन तक भूखा-प्‍यासा विनोद, रात को नींद भी नहीं ले पाया। आखिर मन और शरीर कब तक साथ देते, उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया। विनोद के मित्र ने उसे सम्‍भाला, डॉक्‍टर के पास लेकर गए लेकिन शालिनी को समझाना कठिन हो गया। विनोद के माता-पिता को भी बुलाया गया। लेकिन परिस्थितियों में कुछ भी सुधार नहीं हुआ। शालिनी की उग्रता कम होने का नाम ही नहीं लग रही थी। आखिर शालिनी ने तलाक का फरमान जारी कर दिया। शालिनी के पिता को भी बुलाया गया लेकिन उन्‍होंने भी अपनी बेटी को समझाने के स्‍थान पर अपने साथ भुवनेश्‍वर ले जाना ज्‍यादा उपयुक्‍त समझा। भुवनेश्‍वर जाते समय भी शालिनी चेतावनी देकर गयी कि उसका यथाशीघ्र मकान खाली कर दिया जाए।  विनोद और उसके माता-पिता ने किराये का मकान भी देख लिया और उसे एडवान्‍स भी दे दिया। लेकिन फिर शालिनी के स्‍वर बदल गए और उसने कहा कि मेरे मकान में विनोद किराएदार की हैसियत से रह सकता है।
विनोद इतना होने पर भी शालिनी को छोड़ना नहीं चाहता। उसका मानसिक संतुलन कुछ ठीक हुआ है लेकिन पूरी तरह से नहीं। उसके माता-पिता भी बेबस से अपने बेटे के भविष्‍य को देखने की कोशिश कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि बस उनका बेटा स्‍वस्‍थ हो जाए और आपसी विवाद भी समाप्‍त हो जाए। वे भी शालिनी की अभद्रता को सहन कर रहे हैं लेकिन बेटे के भविष्‍य के कारण बेबस से बने हुए हैं। कोई रास्‍ता किसी को भी दिखायी नहीं दे रहा है। लेकिन विनोद का एक वाक्‍य सभी को व्‍यथित कर रहा है, उसने अन्‍त में कहा कि मैं क्‍या करूं, यदि मुझे शालिनी अपने घर में नहीं रखती है तो मैं जिन्‍दगी को ही छोड़ दूंगा।
सारे घटनाक्रम से मन प्रतिपल दुखित है। पुरुष की बेचारगी की यह सत्‍य घटना है। परिणाम तो पता नहीं क्‍या निकलेगा, लेकिन वर्तमान इतना अजीब है कि समझ से बाहर है। जब पुरुष छोटी-छोटी बातों का बतगंड बनाता है तो हम उसे कोसते हैं, कहते हैं कि पुरुष होने का नाजायज फायदा उठा रहा है। लेकिन जब यही कृत्‍य महिला करे तो इसे क्‍या कहा जाएगा? क्‍या पुरुष वास्‍तव में इतना कमजोर है कि ऐसी दबंग महिला का सामना नहीं कर सकता?  इससे तो यही सिद्ध होता है कि जैसे-जैसे महिलाएं आत्‍मनिर्भर होती जाएंगी वैसे-वैसे पुरुष कमजोर होता जाएगा। उनकी बेचारगी समाज के सामने परिलक्षित होने लगेंगी।  मैं ना तो नारीवादी हूँ और ना ही पुरातनवादी। मैं तो परिवारवादी हूँ। परिवार में संतुलन बना रहे, बच्‍चों का विकास माता-पिता दोनों के साये में ही हो, बस यही चाह रहती है। ना पुरुष अपनी शक्ति का प्रदर्शन करे और ना ही महिला। पुरुषों की कमजोरी को घर-घर में देखा है, लेकिन इतनी विकृत रूप शायद पहली बार देखने को मिला। आप सभी लोगों के विचार होंगे, मैं जानना चाहती हूँ कि क्‍या एक दूसरे को थोड़ी भी स्‍वतंत्रता नहीं देनी चाहिए। क्‍या हम विवाह अपनी स्‍वतंत्रता खोने के लिए करते हैं? वर्तमान में अधिकतर युवक विवाह नहीं करना चाहते, वे डरे हुए हैं। तो क्‍या उनके डर को कम करना चाहिए या और बढाना चाहिए? मैं जानती हूँ कि यदि महिला से अपराध हुआ होता तो पुरुष भी ऐसा ही करता लेकिन अब महिला भी यही तरीका अपनाए? एक तरफ ह‍म आधुनिकता में जी रहे हैं और एक तरफ इतनी छोटी-छोटी बातों से अपने परिवार तोड़ रहे हैं, क्‍या ऐसा आचरण उचित है? बहुत सारे द्वन्‍द्व हैं मन में लेकिन यहीं विराम देती हूँ बस आप सभी की प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा है। 

89 comments:

  1. मैं तो हमेशा से ही कहता रहा हूँ कि पीडि़त और शोषित को सिर्फ़ पीड़ित\शोषित ही मानना चाहिये न कि उसे लिंग, जाति, धर्म के आधार पर देखना चाहिये।
    समय बदल रहा है, कल ही फ़िल्म देखी ’लाईफ़ इन अ मेट्रो’ ऐसे ही विषय को एक अलग ट्रीटमेंट। लेकिन फ़िर फ़िल्म फ़िल्म होती है और जिंदगी होती है जिंदगी - फ़िल्म से भी कहीं ज्यादा नाटकीय।
    फ़िर आयेंगे जी, आक्रमण देखने:)

    ReplyDelete
  2. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  3. अजीत जी
    क़ोई विवाहित पुरुष किसी स्त्री का चुम्बन लेता हैं { जैसा की उसने कहा } आप इसको इतनी सी बात कह रही हैं ??
    और जिस महिला का चुम्बन उसने लिया आप उसको ही दिल फेंक कह रही हैं ?? और आप का आलेख पूरी तरह से उसको चरित्र हीन कहता लग रहा हैं .
    शादी के बाद की सीमा विवाहित पुरुष इतनी जल्दी कैसे भूल जाते हैं आप का आलेख पढ़ कर सीधा समझ आ रहा हैं क्युकी उनका हर कृत्य महज एक गलती हैं जिसकी माफ़ी परिवार के नाम पर उसको मिल ही जानी चाहिये

    क्या जितने दावे से आप एक स्त्री होते हुए भी एक अन्य स्त्री को दिल फेंक कह रही आप दावे से कह सकती हैं बात केवल चुम्बन तक ही सिमित रही होगी और अगर पति की जगह पत्नी ये कृत्य करती तो उसके अपराध बोध को मान लेने से उसको वही रुतबा उसकी ससुराल में मिलता

    परिवार का अर्थ ही क्या हैं ? अनैतिक आचरण करना और समाज को दूषित करना और परिवार के नाम पर समाज में गंदगी परोसना .
    ऐसे परिवार के बच्चे क्या करेगे , क्या सीखेगे ऐसे पिता के साये में
    और अब तो वो एक मकान में रह ही रहे हैं तो बच्चों को पिता का साया मिल ही रहा हैं
    किसी पत्नी की अस्मिता को नष्ट करने से अगर परिवार बच जाए तो परिवार नहीं होता हैं
    अजीब पोस्ट हैं ये जिसका मंतव्य शायद समाज में अनैतिक आचरण करने वालों को हमेशा माफ़ी का प्रावधान होना चाहिये सजा का नहीं

    बहुत अफ़सोस हुआ इस प्रकार का चिंतन देख कर जो एक दम रुढ़िवादी हैं

    ReplyDelete
  4. प्रकृति ने पुरुष के शरीर को तो कठोर बनाया है पर उसमें सहनशक्ति कुछ कम है.
    रचना जी के कमेन्ट से कुछ सीमा तक सहमत हूँ. विनोद के चरित्र में दृढ़ता की कुछ कमी दिख रही है. बात यूं ही चुम्बन तक नहीं पहुँच जाती.
    बिना परिणाम सोचे विचारे सच बताना भी बहुत बड़ा ब्लंडर है. पत्रिकाओं में पाठकों की समस्याएँ हल करने वाले तथाकथित विशेषज्ञ सच बता देने की घातक सलाह देकर बहुत से परिवार उजाड़ चुके हैं.
    जो हो चका है उसे पूरी तरह बिसराकर आगे बढ़ना ही बेहतर नीति है. विवाह से पहले या बाद में भी आजकल कई लोगों के सम्बन्ध बन जाते हैं. ऐसे में स्त्रियों को विशेष सावधानी की ज़रुरत है की वे भलमनसाहत में आकर उनकी जानकारी अपने पति या भावी पति से शेयर नहीं करें. क्योंकि शक का कीड़ा जब काट लेता है तो उसका इलाज़ मुश्किल होता है. बहुत खुलेपन के बावजूद समाज अभी बहुत कुछ ऐसा है की पुरुषों के सौ गुनाह माफ़ होते हैं पर स्त्रियों की एक चूक भारी पड़ती है.
    क्या हम आज के जमाने में व्यक्तियों से शील-सत्य-सदाचार की अपेक्षा कर सकते हैं? अब भले या बुरे आचरण की बात करना ही पिछड़े होने की निशानी है. अब लोग उसे सही मानते हैं जिससे ख़ुशी मिले.

    ReplyDelete
  5. @स्‍त्री को हमेशा ही कमजोर और बेबस सिद्ध करने पर तुले होते हैं लेकिन पुरुष कितना बेबस है इस बात को कोई उद्घाटित नहीं करता।

    आपके निष्पक्ष चिन्तन को नमन करता हूँ

    ReplyDelete
  6. थोड़ी देर के लिए विनोद की जगह शालिनी को और शालिनी की जगह विनोद को रख के देखें, स्टोरी वही रहने दीजिये , स्त्री को पीड़ा में देखते ही सब लोग कहेंगे "देखो, स्त्री है ना ....इसलिए ऐसा हुआ "


    note: अपराध बोध होना उस पुरुष के सतचरित्र को दर्शाता लगते है

    ReplyDelete
  7. देश का शहरी और अब तो ग्रामीण समाज भी एक बहुत बडे परिवर्तन से गुजर रहा है , नई परंपराएं जन्म ले रही हैं, पुरानी मान्यताएं , संस्थाएं और वर्जनाएं टूट रही हैं या तोडी जा रही हैं । ये बहुत ही संवेदनशील समय है और आज का संचालक विचार प्रवाह ही कल के समाज की दिशा और दशा भी तय करेगा । बांकी नज़रिए तो अभी आ ही रहे हैं और हम भी पढ रहे हैं ।

    ReplyDelete
  8. 1.जब आपके अन्‍दर स्‍त्री के समक्ष प्रस्‍तुत होने का सामर्थ्‍य नहीं होता तब आप व्‍यसन का या हिंसा का सहारा लेते हैं। कई बार यह देखने में आता है कि इसी कमजोरी का महिलाएं फायदा भी उठाती हैं।
    2.पुरुष की बेबसी, पुरुष रूप में जन्‍म लेकर ही समझी जा सकती है।
    3.जैसे-जैसे महिलाएं आत्‍मनिर्भर होती जाएंगी वैसे-वैसे पुरुष कमजोर होता जाएगा। उनकी बेचारगी समाज के सामने परिलक्षित होने लगेंगी।
    4.मैं तो परिवारवादी हूँ। परिवार में संतुलन बना रहे, बच्‍चों का विकास माता-पिता दोनों के साये में ही हो, बस यही चाह रहती है। ना पुरुष अपनी शक्ति का प्रदर्शन करे और ना ही महिला।
    5.और एक तरफ इतनी छोटी-छोटी बातों से अपने परिवार तोड़ रहे हैं ||

    खूबसूरत प्रस्तुति ||
    बधाई ||

    परिवार | परिवार | परिवार ||

    ReplyDelete
  9. बाकी यहाँ पब्लिक ओपिनियन से यही नतीजा निकलेगा की "गुनाह करो .....पर स्वीकार मत करो" भारतीय समाज है ना ? :))
    इस समाज की हिसाब से "कुछ भी करो पर पकड़ में मत आओ , तब तक बचे रहोगे"

    पुरुष हो तो कुछ विशेष विचारधारा वाले आकर घेर लेंगे स्त्री हो तो छोटी सोच वाले घेर लेंगे
    तो बस ...... गलती करो लेकिन स्वीकार मत करो |

    ReplyDelete
  10. एक बात कहनी रहगयी थी वो भी लिख रही हूँ
    नैतिक पतन समाज का इसी सोच से हुआ हैं की शादी एक प्रकार का लाइसेंसे हैं अनैतिक आचरण करने का और परिवार की सूली पर नैतिकता की बलि सदियों से दी जा रही हैं .
    अगर बात नैतिकता की होगी परिवार अपने आप सुरक्षित होते जायेगे .
    समय तेजी से बदलाव ला रहा हैं और बदलाव में अगर ये बदलाव आये की नैतिकता जरुरी हैं हर कृत्य में तो बड़ी बड़ी बाते सही लगती हैं

    ReplyDelete
  11. आपकी कुछ बातों से सहमत हूँ पर कुछ से नहीं. शोषण को कृत्य के आधार पर बांटा जाना चाहिए न कि लिंग के आधार पर.आपने एक उदाहरण दिया यदि उसे मान भी लिया जाये ( हालाँकि यहाँ रचना जी कि इस बात से मैं सहमत हूँ कि यदि यही चुम्बन उसकी बीबी ने किया होता और इसी तरह बताया होता तो पति या उसके घरवालों का रिएक्शन क्या यही "छोटी सी बात " होता? )तो भी जो रोज स्त्रियों के साथ अन्य होता है उसकी तुलना में कुछ भी नहीं.
    हाँ आपके लेख की आखिरी कुछ पंक्तियों से सहमति है.

    ReplyDelete
  12. आदमी की लाचारी, उसकी बेबसी क्‍या प्रकृति प्रदत्त है?

    जी हम तो कहेंगे प्रकृति प्रदत नहीं .... लाचारी पत्नी प्रदत होती है..:)

    ReplyDelete
  13. @ गौरव...

    बात पब्लिक ओपिनियन की नहीं है. सब जानते हैं कि बहुमत हमेशा सही नहीं होता.
    गलती नहीं करना समझदारी है लेकिन यहाँ चंद रुपये-पैसे की गलतियों की बात नहीं हो रही है जिसका निपटारा सरल है. यहाँ जीते-जागते मनुष्य हैं जिनमें बेशुमार कमजोरियां हैं.
    सही व्यक्ति वह है जो गलती नहीं करे, और वह भी जो गलती से सबक ले और दोबारा गलती न करे. मेरी एक परिचित विवाह के बाद भूल से अपने पति को अपना एक पुराना मामूली प्रसंग बता बैठीं, उसे भी उनके पति ने बहुत कुरेदकर पूछा था. बीते प्रसंग का पता चलने पर पतिदेव का व्यवहार पूरा बदल गया. उनका घर टूटते-टूटते बचा है लेकिन भीतरी बिखराव तो अभी भी मौजूद है ही.
    इसीलिए मैं सभी को सलाह देता हूँ कि वे ज़ख्मों को छुपाये रखें. खुले जख्म कभी भी कुरेदे जा सकते हैं.

    ReplyDelete
  14. अजित जी , यहाँ पुरुषों की नहीं , एक पुरुष की कमज़ोरी नज़र आ रही है । ऐसे पुरुष भी होते हैं , लेकिन बहुत कम ।
    शालिनी की प्रतिक्रिया ज़रुरत से ज्यादा थी ।

    ReplyDelete
  15. Galatee to Vinod se huee....Shalini bhee apnee jagah sahee hai,jab usne udham macha diya! Uske liye bardasht ke bahar thee wo ghatana..

    ReplyDelete
  16. प्रिय मित्र निशांत,
    एक नजरिये से आपकी बात सही है लेकिन मेरे कहने का मतलब था की जो होना चुका है वो तो लेख में है ही और अब सारे कमेंट्स में पढने पर उस पुरुष की मानसिकता के सकारात्मक पक्ष के बारे में पढने को नहीं मिल पायेगा, इससे कोई भी यही सीख लेगा की गलती करो लेकिन स्वीकार मत करो

    ReplyDelete
  17. पुरानी यादों को यथासम्भव बिसरा देना चाहिये या फिर यदि दोनों ओर से तैयारी हो, मानसिक रूप से सुदृढ़ता सुनिश्चित हों, आपसी विश्वास हो तो ही शेयर करना चाहिये वरना पुरानी बातों के स्याह पन्ने वर्तमान को भी स्याह कर देंगे।

    और फिर स्याह पन्ना किसके जिन्दगी में नहीं होता। कुछ न कुछ तो बिखरा अनसुलझा रहता ही है। हंस में छपी एक बात को कोट करना चाहूंगा -
    राजेन्द्र यादव लिखते हैं -

    "किसका गरेबान नहीं फटा.....किसकी अलमारी में कंकाल नहीं रखे.....और किस पुरूष में हर खूबसूरत लडकी के साथ सोनेवाला गुहा मानव नहीं बैठा ? लेकिन वह सब कहीं लिखा जाता है ? अपने गन्दे लिनिन चौराहे पर धोने में क्या लाभ ? …..आखिर लेखक की एक सामाजिक प्रतिष्ठा है, उसके नाते रिश्तेदार हैं, हर नायिका के चित्रण पर आँखे तरेरती पत्नी है...सभी कुछ लिखेगा तो लोग क्या कहेंगे ? बेटे-बेटी किसके आगे मुँह दिखाएँगे ? कौन उसे अपने घर बुलाकर चाय पिलायेगा ? हम मध्यवर्गीय संस्कारों और सामन्ती नैतिकता के शिकार, रूसो की आत्मस्वीकृतियों जैसा साहस कहाँ से लाएंगे ? और जो आज ऐसा कर रहे हैं, उनकी मिर्गी के दौरे जैसी चेहरे की विकृति को कौन अपना कहना चाहेगा" ?

    यहां गुहा मानव पुरूष भी हो सकता है, स्त्री भी। जरूरत वर्तमान और भविष्य को बनाये रखने की है न कि पुराने को ढोने और चित्कारते हुए जीवन बिताने की।

    ReplyDelete
  18. वैसे सच बोलना मुझे इसलिए भी जरूरी लगता है क्योंकि ....
    कईं बार दुर्भावनावश "छोटे से सच" को "बड़े झूठ" के रूप में दिखाया जा सकता है, ऐसा होने पर घर टूटने से बचना नामुमकिन हो जाता है, सच बताने के लिए टाइमिंग बहुत सही होनी चाहिए |

    ReplyDelete
  19. इस प्रविष्टि में इतने मुद्दे जुड़े हैं कि मेरी टिप्पणी में कई बातें अधूरी रह जाने या छूट जाने का डर है, फिर भी:

    किसी व्यक्ति या घटना विशेष के आधार पर मैं एक वर्ग, जाति या जेंडर को ब्रैण्ड नहीं करूंगा मगर ऐसा निष्कर्ष निकालने वाले भी कोई कारण अवश्य देख रहे हैं जिसे मैं नहीं देख पा रहा।

    विनोद से ग़लती हुई है इसमें कोई शक नहीं है परंतु क्या इससे शालिनी की डोमेस्टिक वायोलेंस सही ठहराई जा सकती है? क्या यह जाँच हुई कि विनोद की भूल के मूल में भी शालिनी का क्रूर व्यवहार ही रहा है? क्या विनोद अपनी पत्नी के दुर्व्यवहार से कमज़ोर हुआ? कम से कम उसमें इतना साहस तो है कि अपनी ग़लती को स्वीकार किया और उसके परिणामों की अति और हिंसक व्यवहार को भी चुपचाप स्वीकार किया। यह उसके साहस और सहनशीलता ही दिखा रहे हैं। यदि अपना घर भी उसने पत्नी के नाम किया हुआ है तो यह पक्ष भी उसका बड़प्पन ही दिखाता है।

    मैं इस सम्बन्ध का कोई भविष्य नहीं देखता। यदि उनके बच्चे नहीं हैं तो तुरंत तलाक़ लेना चाहिये और यदि हैं तो विशेषज्ञों (अधकचरे सलाहकार नहीं) की सलाह मानकर बच्चों के लिये हितकर हल निकाला जाना चाहिये

    ReplyDelete
  20. "इससे तो यही सिद्ध होता है कि जैसे-जैसे महिलाएं आत्‍मनिर्भर होती जाएंगी वैसे-वैसे पुरुष कमजोर होता जाएगा। उनकी बेचारगी समाज के सामने परिलक्षित होने लगेंगी।"

    It is always easy to hurt others until the table is turned. Aap kaisi baat kar rahi hain? Aatmnirbhar hona aur Atmsamman ke sath jeena do alag baaten hain. Yahan usse bhi badhkar ek relationship ki baat hai jisme trust and respect hona ati avshyak hai.

    "विनोद जब भी भुवनेश्‍वर जाता, उससे मुलाकात हो जाती। कई बार मुम्‍बई में भी उसके फोन आ जाते। एक बार भुवनेश्‍वर में मुलाकात के दौरान एक चुम्‍बन भी हो गया।"

    This is height of character! Mulakaten ho rahi hai, phone aa rahe hain aur aap kahti hain ek baar chumban ho gaya aur being a woman you are supporting such chumban! Aise kaise chumban ho jayega? So you feel sympathy for men who can't control themselves? I still can't sympathize and say 'oohh poor man got ripped off', but I begin to sympathize with Shalini.

    "उसने प्रतिक्रिया स्‍वरूप विनोद को बहुत मारा। उसके जो भी हाथ में आया उसी से उसने मारा। विनोद बुरी तरह से घायल हो गया लेकिन बदले में उसने हाथ नहीं उठाया। मकान शालिनी के नाम था तो उसने विनोद को घर से निकल जाने को कहा। "

    I don't like ye maar peet, isse achcha alag ho jao. Trust jab toot jata hai to dard hoti hai, gussa aata hai aur koi bhi insan krodhvash koi bhi step le leta hai. Aur agar Vinod ke jagah Shalini rahti to shayad abtak vinod dusra vivah kar liya hota aur shalini ke parents ko farmana bhej diya hota yah kahkar ki "Aapki beti characterless hai, isliye ab main aapki beti ko swatantra(divorce) karta hun" Tab aapka kya vichar hoga?


    Yet, he could have controlled himself when interacting with other girl. And how do you say that he loves his wife so much, if its so he would have not done such mistake. Why the double standard?

    Further, if anybody breaks the 'law of trust', then no, your own regret and guilty feelings, if you even had any, are not punishment enough. The fact that our sympathy can't bring trust back for her. you can't change a man!

    ReplyDelete
  21. गलती तो हो गयी पर राह ऐसी निकले जिसमें सबका भला हो।

    ReplyDelete
  22. उल्लेखित प्रकरण मुझे तो अपवादस्वरुप ही लग रहा है क्योंकि मानवीय कमजोरी के ऐसे किस्से समाज में चारों ओर देखने को मिलते रहते हैं लेकिन अधिकांश मामलों में न तो पत्नि इतनी उग्र होती दिखाई देती है और न ही पति इतना बेचारा ।

    ReplyDelete
  23. पत्‍नी को पूरी बात समझनी चाहिए..... यदि उसका पति अपनी एक गलती को लेकर उसे बताकर प्रायश्चित करना चाहता है तो उसे माफ कर देना चाहिए और यदि यह गलती पत्‍नी करती और पति को बताकर प्रायश्चित करती तो उसे भी माफ करना चाहिए... ये नहीं भूलना चाहिए कि उसने खुद होकर इस बात को बताया है वरना यदि उसके मन में पाप होता तो बात को छुपाया भी जा सकता था....
    किसी एक से महानता की उम्‍मीद करने की बात नहीं... पर जहां पर बच्‍चों के भविष्‍य की बात है.. कुछ समझौते यदि किए जाएं तो ये गलत नहीं होगा.....

    ReplyDelete
  24. स्त्री विमर्श के इस युग में पुरुष के हित में बात करना आग में चलने के बराबर है और फिर वह भी किसी स्त्री का ऐसा करना! तौबा तौबा :) परिवार का अर्थ स्त्री-पुरुष की खाई नहीं, उसे पाटना है, परिवार का अर्थ परी पव वार नहीं ॥

    ReplyDelete
  25. बड़ी विकट स्थिति है।
    किसी पक्ष से बोलना ग़लत लग रहा है। इस कथा में यदि पुरुष पात्र ने ग़लती की तो महिला पात्र ने भी क़ानून अपने हाथ में लिया।

    ReplyDelete
  26. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  27. शालिनी जैसी महिलाएँ अपवाद होती हैं...इस तरह की मार-पीट पत्नी करे और पति चुपचाप पिटता रहे..ऐसा बिरले ही होता है...हिंसा कोई भी पक्ष करे...वो स्वीकार्य नहीं होनी चाहिए.

    ऐसा नहीं है कि जैसे-जैसे महिलाएं आत्‍मनिर्भर होती जाएंगी वैसे-वैसे पुरुष कमजोर होता जाएगा। एक शालिनी के उदाहरण से इस मसले का साधारणीकरण नहीं किया जा सकता,

    जो भी हुआ बहुत दुखद हुआ...पर विनोद की भी ये कैसी जिद है..कि शालिनी के साथ ही रहेगा....कई बार ये प्यार या समर्पण नहीं होता.. एक जिद होती है..कि मुझे कोई कैसे ठुकरा सकता है...

    जब सम्बन्ध अच्छे होंगे...विनोद ने शालिनी के नाम अपना मकान कर दिया. पर उसकी चारित्रिक दुर्बलता की वजह से अब शालिनी को विनोद के साथ रहना गवारा नहीं है...तो क्या वो मकान वापस कर देगी??.....या इसलिए कि मकान विनोद ने उसके नाम कर दिया है...इसलिए विनोद के extra marital affairs सहती रहे.और जहाँ तक मुझे लगता है...जब शालिनी भी अच्छी नौकरी में है तो उसके पैसे भी जरूर लगे होंगे मकान बनवाने में.

    जब सम्बन्ध इस तरह बिगड़ गए हैं...तो उनका अलग हो जाना ही ठीक है...विनोद ने भी अब जो गलती की...उसे स्वीकार कर खुद को समेट कर नई जिंदगी शुरू करनी चाहिए. सिर्फ बच्चे की वजह से ऐसे दम्पत्तियों का साथ रहना...जहाँ पूरे समय वे एक दूसरे को भला-बुरा कहते रहें..बच्चे के स्वस्थ विकास के लिए भी ठीक नहीं है.

    ReplyDelete
  28. ऐसी घटनाओं में अक्सर प्रतिक्रियां बहुत त्वरित होती है .... महिला हो या पुरुष कुछ समय बाद कई बार अपने किये निर्णयों पर अफ़सोस जताते नज़र आते हैं..... बहुत सोच समझकर परिस्थिति का विश्लेषण ज़रूरी है.....

    ReplyDelete
  29. यदि स्त्री दिलफेंक थी तो पुरुष को सयंमित होना चाहिए था ...स्त्री हो या पुरुष , नैतिकता के मापदंड तो दोनों के लिए समान ही होने चाहिए!

    हाँ , यह जरुर है कि परिवार में छोटी- छोटी गलतियों को माफ़ करना/बिसराना होता है क्योंकि यहाँ सवाल सिर्फ दो जिंदगियों का नही ,पूरे परिवार का होता है . यदि विनोद अपने कृत्य पर शर्मिंदा है और भविष्य में इस प्रकार की गलती नहीं होने के लिए संकल्पबद्ध है तो उसे माफ़ी मिलनी चाहिए!
    और उसे शालिनी द्वारा ऐसी गलती किये जाने पर अपनी संभावित प्रतिक्रिया पर भी गौर करना चाहिए !

    ReplyDelete
  30. इस तरह की बातों पर कोई भी सर्वसम्मत निर्णय/राय होना मुश्किल बात है। वैसे मैं डा.दराल की टिप्पणी से सहमत हूं।

    ReplyDelete
  31. विनोद से जो गलती हुई, वह वाकई गंभीर है, उसने अपनी पत्नी को बता कर थोडा जो किया, मैं उसे भी सही मानता हूँ, क्योंकि उसकी गलती शादी से पहले की नहीं बल्कि शादी के बाद की है. और इस अपनी इस गलती से उसने अपनी पत्नी का हक मारा है. अब उसकी इस गलती को माफ़ करना या सज़ा देने का हक भी उसकी पत्नी का ही है. हालाँकि उसने गुस्से में कदम उठाया और हिंसा का रास्ता तो ना पुरुष के लिए सही है और ना ही महिला के लिए. लेकिन मेरे विचार से उसको अपने हक के मारे जाने का बदला लेने का हक बनता है, हालाँकि हमेशा ही क्षमा एक सबसे अच्छा विकल्प है, लेकिन यह भी सच है कि कह देना बहुत आसान है और करना बहुत ही मुश्किल.

    लेकिन अक्सर घर को चलाने के लिए मन को मार कर भी बहुत से काम करने पड़ते हैं, वहीँ अगर कोई हमारे प्रति जवाबदेह है और अपनी गलती को खुद आगे बढ़कर प्रायश्चित करने को तैयार है तो वह निसंदेह क्षमा के लायक है और ऐसे में कठोरता से बचना ही सबसे बेहतर विकल्प है. फिर भी फैसला तो उन दोनों को ही करना चाहिए.

    ReplyDelete
  32. आप सभी का अभिनन्‍दन। विमर्श किसी नतीजे पर पहुंचे और पीड़ित परिवार को हम परामर्श दे सकें इसलिए घटनाक्रम से जुड़ी परिस्थितियों को स्‍पष्‍ट कर देती हूँ।
    1 पोस्‍ट में एक अन्‍य महिला के बारे में लिखा है जिसे मैंने दिलफेंक टाइप की कहा है। मैंने इसलिए लिखा कि उक्‍त महिला के बारे में मैंने जब जानकारी चाही तब यह विदित हुआ कि वह भी एक बच्‍चे की माँ है और उसकी यह आदत है। उसके परिवार वालों को भी उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। मैंने भी अपने जीवन काल में ऐसी कितनी ही महिलाओं को देखा है और चाहे कैसा भी पति और पत्‍नी में प्रगाढ़ रिश्‍ता हो, ऐसे लुभावने तरीके का शिकार व्‍यक्ति हो ही जाता है। इसका अर्थ यह कदापि नहीं होता कि वह अपने जीवनसाथी से धोखा कर रहा है। आप भी देखना अपने आसपास तो ऐसे चरित्र दिखायी दे जाएंगे।
    2 मकान शालिनी के नाम है, और इसमें कोई विवाद नहीं है। क्‍योंकि उन दोनों का ही एक मकान भुवनेश्‍वर में भी है। उन दोनों की सहमति है कि यह मकान शालिनी का ही रहेगा।
    3 जब विनोद अपना मानसिक संतुलन खो बैठा तब शालिनी को बहुत समझाया गया कि कम से कम मानवता के नाते विनोद के पूर्ण स्‍वस्‍थ होने तक इस प्रकरण को तूल ना दें। इसके बाद शान्ति पूर्वक अपने जीवन का निर्णय करें।
    4 पूरे घटनाक्रम को देखते हुए यह अनुभव हुआ कि विनोद बेहद ही कमजोर व्‍यक्ति है। जब इसकी पड़ताल की गयी तो शालिनी का व्‍यवहार समझ में आया। उसने उसे कभी भी स्‍वतंत्र रूप से सांस तक लेने का अवसर नहीं दिया। शालिनी का व्‍यवहार उसके माता-पिता के प्रति भी बेहद आपत्तिजनक रहा। लेकिन वे भी अपने बेटे का परिवार बचाने के लिए गिडगिडाते ही रहे।
    5 आज विनोद बेहद डरा हुआ है, उसका मानसिक संतुलन अभी भी पूर्ण रूप से ठीक नहीं हुआ है। वह शालिनी के बिना जीवन की कल्‍पना नहीं कर पा रहा है और इसीलिए जीवन को छोड़ने की बात दुखी मन से कर रहा है।
    6 अब ऐसे में तलाक का सुझाव देना या नहीं देना कठिन समस्‍या है। हम भी तलाक का ही सुझाव दे रहे हैं।
    7 मैं भी महिला हूँ और महिला होने पर मुझे हमेशा गर्व रहा है। मैं नारी की बेचारगी को सहन नहीं कर सकती। क्‍योंकि नारी बेचारी नहीं है। लेकिन हम उसे हमेशा ही शोषित बताते रहे हैं। आज कि पढ़ी-लिखी नारी भी शोषिता होने का गर्व करे तो मुझे यह मान्‍य नहीं। मेरा तो यह मानना है कि महिला के सामने पुरुष शक्तिहीन है, बस उसी हीनबोध के कारण महिला पर अत्‍याचार करता है। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि महिला भी अत्‍याचार को ही अपना अस्‍त्र बना ले।
    आप सभी के विचारों का खुले मन से स्‍वागत है। क्‍योंकि इसी से एक मार्ग निकलेगा और हम उस परिवार को सही दिशा दे सकेंगे। आप सभी ने इस विमर्श में भाग लिया इसके लिए आभारी हूँ। क्‍योंकि कहानी अभी शेष है, सब कुछ बिखरेगा या फिर बिखरने से बचेगा यह भविष्‍य के गर्भ में छिपा है।

    ReplyDelete
  33. अजित जी

    पूरा विवाद पढ़ कर ये पता चला की पुरुष आप के करीबी है और आप ने केवल इस विवाद में उनका ही पक्ष सुना है आप ने अभी पत्नी के मुंह से उसका पक्ष नहीं सुना है क्या पता जब आप उससे पूरे विवाद को सुने तो एक अलग ही बात निकल कर सामने आये | जब भी व्यक्ति अपना पक्ष रखता है तो बड़ी आसानी से अपनी की गलतियों को छुपा ले जाता है या उन्हें इतना छोटा और बेमतलब का बताता है की सामने वाले को लगे की वाकई उस बेचारे की तो कोई गलती ही नहीं है असल बात तो हम तभी समझ सकते है जब दोनों पक्षों को सुने और फिर अंदाजा लग सकता है की कौन कितना सही है और कितना गलत | क्योकि ये भी संभव है की पति भी दिल फेक रहा हो पत्नी बच्चे परिवार के नाम पर बर्दास्त करती रही हो किन्तु एक दिन जब रंगे हाथ पकड़ लिया हो तो उसने अब इसे यही ख़त्म करने का सोच लिया हो और चुकी पत्नी ने इस बार सबूतों क साथ रंगे हाथ कपड लिया है सो पति को भी हर किसी के सामने उसे स्वीकार करना मजबूरी है पर इस तरह से सबसे कहा जाये की वो भी छोटा दिखे | इसलिए इस विवाद में फैसला देने जैसा कुछ नहीं कहा जा सकता है |

    १- फिर भी कुछ बाते सामान्य रूप से कही जा सकती है की पति पत्नी के बिच एक विश्वास का रिश्ता होता है उसकी नीव ही विश्वास होती है यदि वो ही कोई एक पक्ष हिला दे तो उसे छोटी बात नहीं कही जा सकती है विश्वास की हत्या करना मेरी नजर में छोटी बात नहीं होती है |

    २- कोई अपनी गलती मान ले इसलिए वो महान नहीं हो जाता और न ही सजा से बच सकता है | हम बच्चो को ये सिखा सकते है की अपनी गलती मान लो तो कोई सजा नहीं मिलेगी पर ये बात बड़ो के साथ लागु नहीं होता है |

    ३- क़ानूनी रूप से यदि पति अपना मकान पत्नी के नाम लिख दे तो वो पत्नी का नहीं हो जाता है जैसा की रश्मि जी ने कहा की पत्नी कम रही थी तो उसका काफी पैसा उसमे लगा होगा और ये भी संभव है की पूरा माकन ही उसका हो वरना कोई इतना भी सीधा नहीं होता है खुद अपना घर छोड़ दे | और अब जबकि पत्नी पति को उस मकान में रहने की इजाजत दे रही है तो मान कर चलिए की उसने पति को आधा माफ़ कर दिया है थोडा और समय लगेगा वो पति को पूरा माफ़ कर देगी |

    ४- पुरुष हमेसा से ही नारी के मुकाबले कमजोर ही रहा है किन्तु महिलाओ को कभी अपनी हिम्मत दिखाने का मौका नहीं दिया गया उसे हमेसा ये समझाया गया की वो कमजोर है | आज की नारी दबंग नहीं है आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने के बाद उसने सहना छोड़ दिया है उसने पुरुषो के सहारे जीने की भावना छोड़ दिया है अब उसमे इतनी हिम्मत आ गई है की वो अकेले अपने बच्चो को अच्छी परवरिश कर सके | अब तो पुरुष को समझना है की उसे क्या करना है, वही पहले की तरह बिना इन्सान माने नारी के साथ रहना है या उसे भी इन्सान मान कर उसी प्यार और सम्मान के साथ रहना है जो वो नारी से पाता है |

    ReplyDelete
  34. अब अजीत जी का कमेन्ट पढ़ कर मुझे श्वेता तिवारी और राजा चोधरी याद आ रहे हैं . वहाँ श्वेता तिवारी ने मेंटल अस्पताल का खर्च भी उठाया था जबकि उनका डाइवोर्स चल रहा था क्युकी राजा चोधरी के पास पैसा नहीं था और उनके माता पिता ने मानवता का हवाला दिया था .
    इस घटना में एक क़ानूनी पक्ष भी हैं क्या मकान पति पत्नी दोनों का पहले से था या इस घटना को दबाने के लिये वो सब ने मिल कर पत्नी के नाम कर दिया .
    पत्नी का माकन पर क़ोई क़ानूनी हक़ नाम कर देने से भी नहीं होगा पूरी तरह अगर पति की माँ कोर्ट में अर्जी दे दे . उनका हिस्सा उनको मिलना चाहिये तो मिलेगा
    लेकिन बहुत केस में अपने बेटे के कुकर्मो को छिपाने के लिया माँ - पिता खुद बहू को संपत्ति देते हैं और बेटे को विक्षिप्त करार दिलवा देते हैं .
    अब अगर विक्षिप्त बेटे का डाइवोर्स होगा तो क़ोई अलिमनी नहीं देनी होगी

    अजीत जी
    महिला अगर मार पीट करती हैं तो कानून हैं उसका खिलाफ भी और मानसिक रोगी उसको भी बना कर ससुराल से मायके भेज दिया जाता हैं . लेकिन ये केस इतना सीधा नहीं हैं क्युकी बहुदा ऐसे केस में पति को जान कर विक्षिप्त और बीमार कहा जाता हैं
    दूसरी महिला के विषय में आप ने जो लिखा मुझे उस पर सख्त आपत्ति हैं क्युकी पुरुष की गलती का ठीकरा सदियों से ये समाज पहली दूसरी तीसरी महिला के सिर पर फोड़ता आया हैं . ये मानसिक और सामाजिक कंडिशनिंग का नतीजा हैं की हम किसी की गलती के लिये किसी और जिम्मेदार मानते हैं . और अगर वो महिला और उनका परिवार इस बात में क़ोई बुरी नहीं देखता तो इसमे कहीं ना दोनों परिवारों के रहन सहन और सोच में अंतर हैं .
    ये दम्पती प्रेम विवाह कर चुके हैं इस लिये ये अपने कामो के लिये खुद जिम्मेदार हैं . और क्युकी इनके अपने बच्चे भी हैं इस लिये इनको पता होना चाहिये था ये क्या कर रहे हैं
    चलिये इस दंपत्ति के पास तो माँ पिता हैं जिनके नहीं होते वो क्या करते इस सिलसिले में

    ReplyDelete
  35. अंशुमालाजी और रचना जी
    इस सम्‍पूर्ण घटना के सारे ही पक्ष हमारे सामने उजागर हैं। ऐसा कोई भी बिन्‍दु नहीं है, जो छिपा हुआ हो। जब कोई परिवार आपके इतने करीब हो और उसका झगड़ा और समझाइश हर मिनट आपके घर आकर ही हो रहा हो तब आप असलियत समझ ही जाते हैं। अपने करीबी परिवार के झगड़े में चाहत भी यही रहती है कि झगड़ा समाप्‍त हो जाए। अब इस विकट मोड़ पर आकर खड़ा है कि इसका अन्‍त क्‍या होगा, कहना आसान नहीं है। किसी भी लड़के के इतने सभ्‍य और डरे हुए माता-पिता कभी नहीं देखे।
    मकान तो कोई मुद्दा ही नहीं है, मैं यह बारबार कह रही हूँ। चूंकि मक‍ान शालिनी का है इसलिए उसने नोटिस दे दिया है कि वे तुरन्‍त मेरा घर खाली करे। जब उन्‍होंने दूसरा घर किराये पर तय कर लिया तब शालिनी ने कहा कि केवल विनोद मेरे घर पर किराएदार के रूप में रह सकता है। क्‍योंकि वह सबकुछ छोड़कर अपने मायके जा रही है। अभी गयी हुई भी है। उसके पीछे शालिनी की क्‍या मानसिकता है अभी यह स्‍पष्‍ट नहीं है। हम तो उसकी मानसिकता भली प्रकार से समझ भी गए हैं लेकिन यहाँ लिखने का अर्थ अभी नहीं होगा।

    ReplyDelete
  36. अजित जी

    पूरा लेख पढ़ा है और आप कि टिप्पणिया भी पर मुझे कही भी वो पक्ष पढ़ने को नहीं मिला जिसमे पत्नी ने अपनी तरफ कि बात कही हो | ये ठीक है की बहुत सारे लोगो के घरो में क्या चल रहा है वो हम जानते है क्योकि लोग आ कर बताते है किन्तु सभी बस अपना पक्ष ही बताते है कोई भी अपनी गलती कही भी नहीं बताता है कई बार हम कभी दुसरे पक्ष को नहीं सुन पते है और एक पक्ष की बाते सुन सुन कर दुसरे के प्रति एक गलत भावना बना लेते है | खुद मैंने भी इस बात को देखा और सुना है जब तक हम किसी एक को पति/पत्नी सुनते है तो लगता है की वही सही है जब मैंने ही दुसरे की बात सुनी तब समझ आया की ये व्यक्ति क्यों इस तरह का व्यवहार कर रहा था जिसे मई हमेसा गलत समझती रही वो उतना गलत भी नहीं है इन व्यवहारों के लिए दूसरा पक्ष भी दोषी है जो बड़ी चालाकी से मुझे अपनी गलतियों को छुपाता रहा ओए मई उसके साथ अपनी करीबी संबंधो के कर्ण उसे ही सही समझती रही |

    ReplyDelete
  37. कुछ हद तक आपकी बात सही हो सकती है मगर यदि देखा जाये तो अगर वो ही काम स्त्री करती तो उसे अपमानित और प्रताडित किया जाता और आज भी ऐसा ही हो रहा है ये तो अपवाद स्वरूप कुछ उदाहरण हैं वरना आज भी स्त्री की दशा कहाँ इतनी बदली है मगर जब आज स्त्री ने पुरुषवादी स्वरूप अख्तियार कर लिया है तो उसे दोषी कहा जा रहा है मगर इस जगह अगर स्त्री होती तो उसे घर से निकालने मे वो पुरुष या ये समाज एक पल भी नही लगाता……………बेशक बदलाव आ रहा है और आना भी चाहिये और सही ढंग से आना चाहिये और इसका दोनो मे से कोई भी पक्ष फ़ायदा ना उठाये बल्कि विचारो मे इतनी स्वछदता रखे कि अगर एक से कोई गलती हो जाती है और वो यदि सच्चे मन से उसे स्वीकारता है तो दूसरे को भी माफ़ करने की हिम्मत रखनी चाहिये वो भी तब जब दोनो चाह्ते हो कि ये रिश्ता बना रहे और गृहस्थी की गाडी चलती रहे लेकिन यदि वो ही रिश्ता बोझ लगने लगे और अविश्वास की फ़सल लहराने लगे तो ज़बरदस्ती उसे ढोने से कोई फ़ायदा नही।

    ReplyDelete
  38. Exactly, and husband and wife ke riston mei respect aur trust jaruri hai, aur agar wo hi na rahe to jabardasti relation ko dhona katai jaruri nahi hai. And Ajeetji, bina girls side sune how could you say him a "bechara"!

    Dekhiye dusri ladki kaisi hai ya uska charitra kaisa hai, iska judgement dekar Vinod ke charitra ko justify nahi kiya ja sakta hai.

    Wo kaisi hai, isse Shalini ko koi matlab nahi hona chahiye. Uska pati kaisa hai use isse hi matlab hona chahiye.

    Ok fine, chalo Shalini ne use maaf kar diya but if she doesn't want to live him, she shouldn't...I would suggest shalini to take divorce.

    ReplyDelete
  39. रेवाजी,
    शालिनी ने उसे माफ नहीं किया है। केवल अपने मकान की सुरक्षा के लिए उसे किराएदार बना रही है। उसने तो बड़ी खुशी के साथ (स्‍माइली लगाकर) फेसबुक पर लिखा कि मैंने सबकुछ समाप्‍त कर दिया है।
    मैंने यह प्रसंग यहाँ इसलिए उठाया था कि मैं जानना चाहती हूँ कि क्‍या कोई पुरुष या कोई नारी इस प्रकार के प्रसंगों में हिंसा पर उतर जाए और नौबत तलाक तक जा पहुंचे तो क्‍या समाज के लिए हितकर होगा? कल तक हम पुरुष की इसी आचरण के लिए निंदा करते रहे हैं और आज य‍ही आचरण एक नारी कर रही है तो क्‍या ऐसा परिवर्तन समाज के हित में होगा? हम नारी का केवल इसलिए पक्ष लें क्‍योंकि वह नारी है। यदि कल विनोद आत्‍महत्‍या कर लेता है, जैसा कि उसकी मानसिकता से लग रहा है तो क्‍या यह एक परिवार के हित में होगा? क्‍या ऐसे प्रकरणों को नारी और पुरुष से परे हटकर परिवार हित में नहीं सोचना चाहिए?
    क्‍योंकि यह घटना हमारे सामने काँच की तरह स्‍पष्‍ट है। इसलिए आप लोगों से परामर्श लेने का मन हुआ। हमारा परिवार भी उनका अभिन्‍न मित्र है इसलिए विगत एक माह से हम सबकी भी नींद उड़ी हुई है। हम तो यह समझ लें कि ऐसे प्रकरणों में आम लोगों की क्‍या सोच रहती है और हमें भी क्‍या कदम उठाना चाहिए। नहीं तो मन पर बोझ रहेगा कि हमने उचित परामर्श नहीं दिया। एक परिवार हमारे सामने ही बिखर गया।

    ReplyDelete
  40. मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ बहुत ही balanced लेख लिखा है आपने साथ ही मैं सजाय जी की बात से भी पूरी तरह सहमत हूँ पीड़ित को केवल पीड़ी समझना चाहिए न की यह देखना चाहिए की वो औरत है या मर्द एस ही विषय पर मैं भी एक पोस्ट लिखी है यदि आप वहाँ आकार खासकर मेरी उस पोस्ट पर आकर मुझे अपने बहुम्ल्य विचारों से अनुग्रहित करेंगी तो मुझे बहुत खुशी होगी
    समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/2011/10/blog-post_05.html

    ReplyDelete
  41. बहुत ही विचारणीय आलेख. पीड़ित केवल स्त्रियाँ ही नहीं होतीं, पुरुषों की पीड़ा पर सब का ध्यान कम जाता है. आपने जो घटना बताई उसमें पुरुष का अपराध केवल चुम्बन लेना, जिसको वह स्वयं ही अपने आप अपनी पत्नी को बताता है, किसी तरह से इतना गंभीर नहीं कहा जा सकता कि जिसकी वजह से परिवार तोड़ दिया जाए. एक दूसरे पर विश्वास इतना कमजोर नहीं होना चाहिए कि वह केवल एक चुम्बन की वजह से टूट जाये. अगर पुरुष इस बारे में नहीं बताता तो कुछ नहीं होता. यहाँ पुरुष की शराफत ही उसके दुखों का कारण बन् गयी. पत्नी का व्यवहार किसी तरह उचित नहीं कहा जा सकता, विशेषतः जब पुरुष ने अपराध बोध के कारण स्वयं ही उसको स्वीकार किया.

    ReplyDelete
  42. baat agar morality ki ho to bahut kuchh galat hai...par sadharantaya jeendagi me kuchh baaten us se upar tak jati hai..!!

    aapni jindagi ki sachchai ko jeeya hai, isiye iss post me wo dikh rahi hai...

    abhar!

    ReplyDelete
  43. यहाँ सिर्फ पक्ष और विपक्ष मुखर हैं अपना अपना दामन बचाकर सब बाते हो रही हैं ! सामान्य मानवीय कमजोरियों के होते यह सब सामान्य है ...इन दोनों के बीच समझौता आसानी से कराया जा सकता है यदि आग में घी डालने वाले न हों !
    शुभकामनायें आपको !

    ReplyDelete
  44. ऐसा कईयों के साथ होता है जब उन्होने अपने पार्टनर को अपने संबंधों के बारे में बता दिया कभी अपराधबोध के कारण तो कभी कुरेदे जाने के कारण ये सोचकर कि सामने वाला कुछ दिन नाराज रहने के बाद उन्हें स्वीकार कर लेगा.लेकिन ज्यादातर संबंध सामान्य नहीं रह पाते.कुछ मामलों में पुरुषों के साथ भी ऐसा होता है .किसी भी मनोविशेषज्ञ से मिलकर ये बात कंफर्म की जा सकती है.उनके पास ऐसे केस खूब आते है हालाँकि जैसा अजित जी ने बताया वैसा कम ही होता है.विनोद को भी ऐसी प्रतिक्रीया की उम्मीद नहीं होगी लेकिन यदि महिला ताकतवर है तो इस हद तक भी जा सकती है .
    यहाँ अजित जी ने पूछा है कि जो अभी तक पुरुषों के लिए गलत कहा जा रहा था वही यदि स्त्री करे तो इसे गलत क्यों न कहा जाए?हालाँकि इस पर तो किसीने फैसला नहीं सुनाया हाँ ये फैसला जरूर सुना दिया कि अजित जी को दूसरे पक्ष के बारे में नहीं पता(बिना इस संबंध में अजित जी का पक्ष सुने).वैसे ये सलाह बिल्कुल ठीक है कि दूसरे पक्ष को सुना जाएँ मैं इससे सहमत हूँ.लेकिन एक जिज्ञासा है यदि पोस्ट में पात्रों का क्रम बदला हुआ होता और यहाँ पुरुष भी दूसरे पक्ष को सुनने की सलाह से आगे बढकर इस तरह के कयास लगा रहे होते जैसे शालिनी झूठ बोल रही है या बात चुंबन से आगे भी गई होगी या रंगे हाथ पकडे गई होगी या पागलपन का नाटक कर रही होगी तब क्या इस पर कोई प्रतिक्रिया होती या इसे महिलाओं द्वारा सहज प्रश्नों के रूप में लिया जाता?
    मुझे तो लगता है इस पर बवाल हो गया होता (थोडा कयास हम भी लगा लें)

    ReplyDelete
  45. ऊपर वाला कमेंट रचना जी व अंशुमाला जी के लिए

    ReplyDelete
  46. aaderniya ajit ji..blog jagat se rishta jyada purana nahi hai..aaj pahli baar aapke blog per aana hua..aapne is kahani ke madhyam se ek ajiborgarib ki sthti paida kar di hai..aapka lekh jahan ek taraf sambedna ki baat karta hai wahin dusri taraf manav prajati ko bhavishya ke liye agah karta hai..yadi bhool ho jaaye aaur na batai jaaye to bhi tohmat aaur bata di to aapke kahani ke patra jaisa anjaam...pahli tappadi sanjay bhai sab ki hai bilkul nayay sangat baat karte hue dikh rahe hain..baat bahut umda hai...jaise jaise bahas aage badhti hai striyan striyon ke paksh me dikhti hain..mera apna manna hai ki purush patra ne sachmuch apradh kiya hai ..use saja jarur milni chahiye.saja mili bhi..lekin har jurm per saja-e- maut hi mukrrar nahi ki jaati..hamara vyaktitava genetic hai..progesteron or testosteron jaise harmone ya kahen chemical hamare vyaktitva ke nirdharan me mahtwapurna bhmika ada karte hain..chumban, prem, anay riston ke bishay me kai baar hamari soch hame satya se pare bhi le jaati hai..manushya apni sahjaat prabittiyon ke sath hi jeeta hai..samaj ke niyam sach hai jaruri hai per kabhi kabhi ham inhi rasayno ke bashibhoot hokar samanya purush athawa stri ho jaate hain..inhi rasayno ke prabhav se kabhi striyan purushon jaise aaur purus striyon jaisa vartav karte rahte hain..dharm shastra gawah hain ki parunik patron se bhi is tarah ki glati hui ..rishi muni isse banchit nahi rah paaye..per naari ki sahansheelta ki mishal maana jaat hai..purush agar jewan me kahin jhuka hai to maa swarupa naari ke samne hi ..bahan ke saamne hi..kahani ka purush patra apni patni se saccha prem karta hoga isliiye use apradh bodh hua.jahan saccha prem hain wahin apradh bodh bhi...warna udisa jaakar chupchaap dohri jindagi jeeta rahta ..apradh bodh nahi hota to parinaamon se bhi nahi darta ..ladai ya bahas me ek paksh tabhi ugra se ugratar hota jaata hai jab dusra paksh shant rahtha hai..ya ek murkh ho parinaamon ki chinta na karne wala ho..aaur dusra parinaamon se bhaybheet..ajit ji aapka yah lekh manav prajati ke bishay me koi rai banane ke liye kiye gaye kisi prayog ki sampling ka ek hissa hai..sankhyiki ke bidyardhi jaante hain ki kisi satya ke pratipadan ke liye prayog kai kai baaar kai kai logon athw jaanwaron per kiya jaata hai..bibhin paristhitiyon, bibhin bhaugolik sthitiyon, bibhinnn prayog bidhiyon se..tarah tarah se...har ghatna per faisla vyakti bishesh ki apni rai ho sakti hai..sudharne ka mauka sabhi ko abashya milna chahiye..saja kafi mil chuki hai..ek chor ne sone ke beej banaye..bone ke liye pure rajya me ailan kiya ki beej wo boye jisne kabhi chori na ki ho..koi aisa nahi mila....ravan ne kaha mere putle ka dahan wo kare jo swyam ram ho ..ram na ho to kam se kam mujh jaisa vidwan hi ho ..pure desh me koi nahi mila..darasal ravan hi ravan ka putla jala rahe hain.. aaderniya ajit jee ka lekh halanki mujhe lagta hai ek hi pahloo ko choota hai per aise bhi anjaamon se agah kar raha hai..taki bhabishya me shadi shuda bishesh dhyan rakhe..lakshman rekha paar na kare anytha aisa na ho jeewan bhar pashchataap hi karna pade

    ReplyDelete
  47. rajan ji kae liyae mera jawaab http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2011/09/blog-post_04.html

    ReplyDelete
  48. बासु भट्टाचार्य की फिल्म आस्था याद आ गई...यहां जो गलती विनोद से हुई, फिल्म में वो गलती रेखा से हुई थी...और वो गलती चुंबन से कहीं बड़ी थी...ओम पुरी रेखा के पति बने हैं...नवीन निश्चल बड़े बिजनेसमैन...नवीन निश्चल को फिल्म में अजीब ग्रंथि से ग्रस्त दिखाया था...शादीशुदा औरतों से संबंध बनाना...ओम पुरी फिल्म में प्रोफेसर बने हैं...ओम पुरी को सच पता चल जाता है...फिर क्या होता है...क्लाइमेक्स यहां मैं खोलना नहीं चाहता...इसके लिए जिन्होंने वो फिल्म नहीं देखी, देखने की सलाह दूंगा...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  49. मैंने केवल पोस्ट पढी है कमेंट्स नहीं ताकि मेरी टिप्पणी की मौलिकता प्रभावित न हो ...
    मैंने तो जीवन में ऐसी कर्कशा नारियों को ही बहुत देखा है ....और पुरुषों की बेचारगी देखी है ..
    और ब्लॉग जगत में भी यही है ....मगर मैं नारी हिंसा के विरुद्ध हूँ भले ही पुरुषों को पिटते हुए
    देख यही मन कहता है और मारो गधे को यह इसी लायक है ....
    आपसे सहमत हूँ कर्कशा नारी का कोई मुकाबला नहीं -मैं नारी बीटर तो नहीं मगर इन्हें माफ़ नहीं करता ..
    मेरे लिए ऐसी नारियां घोर उपेक्षा की वस्तु हैं ..,.

    ReplyDelete
  50. @और सच कहती हैं पौरुष ही पूजनीय है -वीर भोग्या वसुंधरा ....
    जो नारी के समक्ष ठीक से प्रस्तुत नहीं हो पाते उन्हें तो पिटना ही और ऐसे ही बेचारगी का दामन पकड़ बैठते है ...
    गावों में तो जिस पुरुष की औरत बड़ी बिगडैल होती है उसकी सारी जिम्मेदारी लोग पुरुषों पर ही डालते हैं .....और मेरा खुद का अध्ययन है कि यह सही बात है -समर्थ और पौरुष सम्पन्न पुरुष से नारी संतुलित रहती है ....जैविक कारण स्पष्ट हैं !
    आपकी यह पोस्ट एक लैंडमार्क पोस्ट है बुकमार्क कर रहा हूँ क्योकि यह मेरे निष्कर्ष की ही पुष्टि करता है ..आभार !

    ReplyDelete
  51. अजित जी, यदि शालिनी और विनोद के स्थान बदल दिए जाते - तब आप उसी गलती और उसी reaction के लिए - क्या शालिनी को बेचारी कहतीं ? जैसा कि आपने विनोद जी को कहा ? कि "बेचारी " शालिनी से एक चुम्बन की गलती हो गयी और "क्रूर" विनोद उसे माफ़ नहीं कर रहा ?

    शायद नहीं - बल्कि "दिलफेंक" कहतीं - जैसा आपने उस स्त्री को कहा, जिसने exactly वही किया जो विनोद ने - अर्थात पर-पुरुष / स्त्री से भावनात्मक जुडाव / चुम्बन/ लगातार और जानते बूझते मुलाकातें | और शायद तब यह कहा जाता - कि पत्नी ने ऐसा किया - तब तो पति का उस पर हाथ उठाना जस्टिफाइड है, लाजिमी है | स्त्री और पुरुष के लिए दो अलग मापदंड क्यों ?

    तलाक - उस पत्नी का निजी निर्णय है - उसकी स्थिति वही जानती होगी | वैसे - जब स्थिति इतनी बुरी है, और सच ही मार पीट आदि होती है - तो तलाक होने में क्या बुराई है ? यदि सच ही पत्नी इतनी बुरी है कि पति को बाहर affairs के लिए मजबूर होना पड़ रहा हो - तो फिर वह "बेचारा" पति पत्नी की इच्छा के अनुसार तलाक क्यों नहीं चाह रहा ?

    ReplyDelete
  52. आधी ही टिप्पणी पेस्ट हो पायी - बाकी भाग फिर से पेस्ट कर रही हूँ -

    आदरणीय अजित जी, पहले तो यह कहूँगी कि इस बारे में बोलने का हम सब को कोई अधिकार ही नहीं है | आप उस परिवार की शायद निकट की मित्र हैं - तो आपको शायद यह अधिकार है - पर हम पाठकों को बिल्कुल नहीं | बल्कि मुझे तो यह भी लग रहा है - कि जो बात उस परिवार ने आपके साथ share की - उसे ब्लॉग पोस्ट बनाना भी क्या एक सही निर्णय है ? हम अनजान लोगों से शेयर करना ? फिर भी - यह पोस्ट पढ़ कर कुछ सवाल ज़रूर हैं मन में - तो पूछ रही हूँ (ऊपर की टिप्पणी में पूछे हैं ) |

    ReplyDelete
  53. शिल्‍पा जी परिवार के मसले आक्रोश से नहीं सुलझते। मैं हमेशा स्‍त्री के साथ खड़ी हूं। मैं उसे बेचारी कभी नहीं मानती। वह माँ का स्‍वरूप है। बस मेरा तो इतना ही आग्रह है कि आप समाज की वास्‍तविकता को जाने तब आक्रोश करें। न जाने कितने घर मैंने देखे हैं जहाँ स्‍त्री की खुली बगावत के बाद भी परिवार ने ना मारपीट की और ना ही उसे घर से निकाला। परिवार बचाने के लिए सब कुछ सहन किया। आज यदि आप सर्वे करेंगी तो पाएंगी कि अधिकतर पुरुष ही खामोश रहते हैं क्‍योंकि उन्‍हें लगता है कि समाज में उनकी ही जग-हँसायी होगी। और परिवार टूटेगा वह अलग।
    अब आप इस केस को ऐसे लें कि यह आपके घर का मामला है। तब क्‍या आप नहीं चाहेंगी कि परिवार सुरक्षित रहे। एक बात इस केस में मैं लिखने से चूक गयी या शायद उसे मैंने आवश्‍यक नहीं माना था। विनोद धर्मान्‍तरित ईसाई परिवार का है और उनके यहाँ प्रायश्चित करने का प्रावधान है। इसी कारण उसने ऐसा किया।
    यहाँ लड़ाई अहम् की है। जैसा आजकल अधिकतर घरों में देखने को मिल रहा है।

    ReplyDelete
  54. शिल्‍पा जी, आप सही कह रही हैं, मैंने इसे लिखा भी है कि इस मुद्दे को यहाँ लिखना चाहिए या नहीं, लेकिन एक माह से हमारा परिवार जिस घटना का हर पल का साक्षी हो, और कहीं रास्‍ता नहीं सूझ रहा तब लगा कि शायद लोगों की मानसिकता क्‍या है, इस बारे में जान लिया जाए। लेकिन मेरे इस प्रश्‍न का उत्तर कम ही मिला कि क्‍या पुरुष की बेचारगी और बढेगी? शालिनी ने एक नहीं कई बार स्‍वीकार किया कि उससे गलती हुई है लेकिन कुछ ही घण्‍टों बाद उसका वही रौद्र स्‍वरूप प्रकट हो जाता है। उसने यह भी कहा कि मुझे मानसिक चिकित्‍सक की आवश्‍यकता प्रतीत होती है। लेकिन यहाँ भी उसका अहम् आड़े आ गया।
    समाज में इस तरह की पहली घटना नहीं है, मैंने कई बार देखी हैं। हम शालिनी को कह रहे हैं कि शान्ति से कुछ दिनों के लिए अलग हो जाओ, उसके बाद भी लगे कि अलग रहने का निर्णय ही उचित है तो ठीक है। इस तरह से पूरे मोहल्‍ले को प्रतिदिन एकत्र करना कहाँ तक उचित है?

    ReplyDelete
  55. जी अजित जी - शायद आपको ठीक लगता हो |
    तलाक के पक्ष में मैं भी नहीं हूँ | परन्तु यह पति पत्नी के संबंधों और उनके निर्णय पर है |
    इस बारे में - माफ़ कीजियेगा - मैं आपसे सहमत नहीं हो सकूंगी |

    उस स्त्री और उस पुरुष - दोनों पर ही क्या गुज़र रही है - ये वही जान और समझ सकते हैं | हम लोगों में से अधिकतर के लिए यह एक चटपटी बात ही होगी, जिस पर भाँती भाँती के कमेन्ट हम कर लेंगे - परन्तु यह निर्णय उन दोनों का, और यदि उनके बच्चे हैं, तो उन बच्चों के भविष्य को सोच कर लिया जाना चाहिए | आप निकट मित्र हैं - आपका सोचना और बोलना सही है - परन्तु हम अनजाने लोगों को इसमें नहीं बोलना चाहिए - ऐसा मुझे लगता है | मैं गलत हो सकती हूँ |

    ReplyDelete
  56. विनोद धर्मान्‍तरित ईसाई परिवार का है और उनके यहाँ प्रायश्चित करने का प्रावधान है।
    now this is the most valid point
    which i pointed out in my comment और अगर वो महिला और उनका परिवार इस बात में क़ोई बुरी नहीं देखता तो इसमे कहीं ना दोनों परिवारों के रहन सहन और सोच में अंतर हैं .

    there are several cultural issues and inter religion marriages creat a lot of problems


    similarly from early stages of this marriage there must have been cultural problems and the daughter in law might have been called a "conservative" and slowly such things boom rang

    and its not a ego issue problem its a problem of accepting the daughter in law in a inter religion marriage

    also
    i have repeated many a times before also that
    now girls are more mature when they get married in age so mind set is already there and adjustment is difficult then before

    now girls are better educated and economically independent and LIVING ALONE IS NO MORE A TABOO
    so to compromise is also difficult

    but
    my question is why should couples have to compromise at all , why cant they live a moralistic life and be faithful to each other

    why should married couples be given immunity from punishment if they are indulge in immoral activities just because they are married and have children

    and
    why crucify unmarried people and call them flirts and characterless when they indulge in sex before marriage

    just because some one is married , whether man or woman they are allowed to pollute the society ????

    indian society is becoming immoralistic because of this attitude only because we dont have same rules for all

    ReplyDelete
  57. जमालो तो आग लगा कर दूर खड़ी हो गईँ -निपटना पति-पत्नी को है.यहाँ कानून ,धर्म कोई काम नहीं कर पायेगा .
    सबसे बड़ी बात तो पहले ही चेत जाना था जब दूसरी ओर से कदम बढ़ाये जा रहे थे .(क्यापता उकसाये जाने पर) पति से गलती हुई,और उसने,चुपचाप स्वीकार की ,दंड काफ़ी दे लिया.अब क्षमा कर सकें तो साथ रहें.
    ,अन्यथा एकाध वर्ष अलग रह कर भी देख लें- लेकिन उत्तेजना में निर्णय न करें .संतान के भविष्य पर भी विचार करें .
    इस समय पत्नी का रोल अधिक महत्वपूर्ण है -बात उसी पर टिकी है.
    रोज़ के तमाशों से कोई फ़ायदा नहीं.घरवालों को भी व्यर्थ में घसीटा जा रहा है.


    .

    ReplyDelete
  58. @ उस स्त्री और उस पुरुष - दोनों पर ही क्या गुज़र रही है - ये वही जान और समझ सकते हैं |

    शिल्पा जी के इस बात से सहमत की कई बार हम दूसरो की परिस्तितियो को ठीक से नहीं समझ पाते है या हमें साडी बाते बता नहीं होती है जो उस जगह होता है वही उसे अच्छे से समझता है |

    अजित जी जैसा की आप ने अब कहा की पत्नी को इस तरह का व्यवहार करने की आदत है तो मतलब की ये व्यवहार एक पत्नी का पति पर नहीं है ये एक बीमार व्यक्ति का व्यवहार है उसे पत्नी से न जोड़े मुझे ऐसा लगता है , हो सकता है की वो सभी के साथ ऐसा ही व्यवहार करती हो | इस दशा में बात का रुख बदल जाता है |

    रचना जी की बात भी सही है कई बार सामजिक धार्मिक परिवेश में अंतर के कारण भी एक बात जो किसी को सामान्य लग सकती है वो दूसरो के लिए बड़ी हो सकती है |

    राजन जी

    जहा तक एक दुसरे को मारने का सवाल है तो मैंने एक पोस्ट पर कहा था की पति पत्नी क्या मै तो बच्चो को भी मारना गलत मानती हूँ | उस पोस्ट पर आप भी थे शायद |

    ReplyDelete
  59. "उसने तो बड़ी खुशी के साथ (स्‍माइली लगाकर) फेसबुक पर लिखा कि मैंने सबकुछ समाप्‍त कर दिया है।"

    Ajitji, maine kaha ki kuch time ke liye maan lo ki 'agar wo maaf kar bhi deti hai but wo agar uske sath nahi rahna chahti hai to kya jabardasti hai. Ek baat bataiye aap, wo FB per ya kahin kya kar/kah rahi hai isse kisi ko kyun pareshani ho rahi hai?

    Use swantantra jeene ka adhikar hai, aur use positively jo karne ka dil kare use karne dijiye. Ab agar Vinod nahi rah sakta hai uske bina to ye uski problem hai...use pahle hi sochna chahiye tha.

    Finally main itna hi kah sakti hun ki is relationship mein ab kuch nahi bacha hai shivay samjhauta ke aur samjhaute se puri zindagi pati-patni jaise relation ko nibhai nahi ja sakti hai.

    rgds.

    ReplyDelete
  60. @ये व्यवहार एक पत्नी का पति पर नहीं है ये एक बीमार व्यक्ति का व्यवहार है उसे पत्नी से न जोड़े मुझे ऐसा लगता है , हो सकता है की वो सभी के साथ ऐसा ही व्यवहार करती हो |

    अंशुमाला जी,
    काश, कभी पुरुषों के बारे में भी इसी तरह सोचा जाए , वैसे क्या हम इस तरह सूक्ष्म विश्लेषण से गलत बात को जस्टिफाई करना चाहते हैं ?

    ReplyDelete
  61. मेरे ख़याल कईं जगहों पर ब्लोगर मित्र कहानी के बाहर की बात करके / अंदाजे लगा के मुद्दे को भटका रहे हैं / भटकाने की कोशिश कर रहे हैं
    [क्योंकि इस मामले में पुरुष साफ़ तौर पर पीड़ित नजर आ रहा है]

    आपने पूछा है
    "पुरुष की बेचारगी क्‍या और बढे़गी?"

    जवाब है

    "हाँ" ..... सज्जन पुरुषों की बेचारगी अभी और बढ़ेगी

    ReplyDelete
  62. @MO-SUM BHAIJI

    idhar kinare baithe hain aapke liye

    sahmati-asahmati ke gilli-danda khel
    me hum apna mat......apke mat se sahmat hoke dene ki katar me hain....

    mai-bap ek doosre se sahirdyata aur samarpan rakhen bachhe kuch nahi to
    manusyta sikh hi lega......

    adhikar se pahle kartavya ka path padh len........

    pranam.

    ReplyDelete
  63. @ गौरव जी
    of course इस तरह से पुरुषों के विषय में भी सोचा जाता है - और माफ़ भी किया जाता है | वह भी एक नहीं - कई कई बार माफ़ किया जाता है !!!! और वह माफ़ी इतनी दिल से दी गयी होती है कि ढिंढोरा भी नहीं पीटा जाता - तो किसी को पता ही नहीं चलता कि इस स्त्री के साथ इसके पति ने ऐसा किया और इसने माफ़ कर दिया |

    "माफ़ न करना" पत्नी द्वारा पति को इतना rare है कि उस पर चर्चाएं होने लगती हैं public मंच पर | उसी तरह से पति पत्नी को माफ़ कर दें - यह भी उतना ही rare है , और ऐसे माफ़ कर देने वाले पति "देवता" बन जाते हैं /कहलाने लगते हैं |

    मैं अपनी खुद की पहचान से कह रही हूँ - एक ex - collegue हैं - जिनके कम से कम १० affairs तो publicly known हैं, और उनकी पत्नी किसी से फ़ोन पर बात करने लगीं थी कुछ सालों की उपेक्षा के बाद - तब उन्होंने इतना हंगामा किया था समाज में कि पूछिए मत | पूरी बिरादरी के सामने माफ़ी मांगी थी पत्नी ने - तब उन "पतिदेवता" जी ने "माफ़" किया था (क्योंकि बेटा माँ से अलग रहने को राजी नहीं था और घर वाले घर के चिराग को जाने नहीं देना चाहते थे |

    @ क्या हम इस तरह सूक्ष्म विश्लेषण से गलत बात को जस्टिफाई करना चाहते हैं ?
    नहीं - जो गलत है - वह लीपा पोती करने से भी गलत ही रहेगा, और जो सही है - वह सही ही रहेगा |

    ReplyDelete
  64. रचना जी,यहाँ दोनों बातों का घालमेल करने का कोई मतलब नहीं है.उस पोस्ट पर सबके विचार स्पष्ट है(आपने दूसरे पक्ष को नहीं सुना हो तब भी).मैं यहाँ कम्फर्ट जोन में रहने की वकालत नहीं कर रहा हूँ बल्कि आपकी पोस्ट और इस मसले में बहुत अंतर है.यहाँ विनोद ने माफी माँगी है जबकि वहाँ ऐसा कुछ नहीं है.इसके अलावा मानसिक स्वास्थ, मकान और मारपीट वगेरह है.अजित जी ने भी यूँ ही बिना सारी बात जाने ये सब नहीं लिख दिया होगा.शालिनी से जो मोहलत माँगी है वो उसे देनी चाहिऐ इसके बाद जो उसे उचित लगे वो करे.इसमें कहाँ दिक्कत है. वैसे यदि इस लिंक को मेरा जवाब माना जाए तो आप वहाँ ये बता रही है कि जुल्म सहने वाली महिला गलत है.इस हिसाब से यदि विनोद और शालिनी ऐक दूसरे की जगह होते तो भी आप ये ही कहती न कि जुल्म सहकर शालिनी गलत कर रही है,समाज को प्रदूषित कर रही है,लेकिन आप माने न माने इस तरह के मामलों में शब्द चाहें महिला के खिलाफ लगते हों लेकिन सहानूभूति उसीके साथ होती है जबकि पुरूष जुल्म करने वाला माना ही जाता है.महिला के मामले में शब्द बदल कैसे जाते है जैसे अभी शालिनी जो कर रही है उसे महिला का अपनी शर्तों पर जीना,यहा तक कि सशक्तिकरण वगेरह माना जा रहा है.यानी एक तरफ ब्लैक ही ब्लैक तो दूसरी तरफ बिल्कुल व्हाईट.very good.विनोद की जगह शालिनी हो तो ऐसा हो सकता है कि जितनी भी महिलाओं के कमेंट आए उसके सकारात्मक पक्ष (गलती मान लेने) के बारे में कोई बात ही न हों? बल्कि मेरा तो मानना है कि तब सबस ज्यादा फोकस ही इसी बात पर होता. फिर भी मैंने ये नहीं पूछा कि यदि पात्रौं का स्थान बदल दिया जाए तो आप लोग कयास (इन्ही तेवरों के साथ)लगाएगे या नहीं बल्कि ये पूछा है कि यदि पुरुष ये करे तो आपका क्या रिएक्शन होगा जैसा होगा ये बता दीजिए मैं मान लूँगा मुझ समेत बाकी लोगों की शंका का भी समाधान होगा.और आप दोनों से ही इसलिए पूछा कि मुझे दोनों से ही कुछ उम्मीद है.और नारी ब्लॉग पर ही मेरी आप दोनों से ही इस बारे में बहस हो चुकी है कि जब महिलाओं की गलती(थोडे से मामलों में ही सही) की तरफ इशारा किया जाता है तो इतनी बहानेबाजी क्यों होती है.इसलिऐ मेरा ये सवाल कोई नया नहीं है इसे आप अन्यथा न लें.
    और हाँ सबसे जरुरी बात आप मुझे राजन ही कहें तो मुझे ज्यादा अच्छा लगेगा.

    ReplyDelete
  65. @शिल्पा जी

    @"माफ़ न करना" पत्नी द्वारा पति को इतना rare है कि उस पर चर्चाएं होने लगती हैं public मंच पर |.....

    या फिर स्त्री सशक्तिकरण के प्रचार के नाम पर स्त्री को इतना ज्यादा कमजोर और पीड़ित दिखा दिया है की इस तरह की बातें सचमुच चर्चा पर मजबूर कर देती हैं

    @मैं अपनी खुद की पहचान से कह रही हूँ .....
    इस बार में कुछ नहीं कहूँगा , मेरी परेशानी ये है की मैं कभी रियल लाइफ के कोई एक्जाम्पल ना दूँ यही मेरी कोशिश रहती है

    आप बताइये क्या आपने ये कभी महसूस नहीं किया की ......
    जब जब किसी लेख में / न्यूज में पुरुष पीड़ित नजर आता है तो लोग दोनों पक्षों की जांच की बात करते हैं , जबकि एक न्यूज पेपर की न्यूज के आधार पर जिसमें स्त्री पीड़ित हो तुरंत फैसला सुना दिया जाता है ??????????????

    ReplyDelete
  66. सबसे पहले वाले संजय जी से सहमत.

    ReplyDelete
  67. घरेलू हिंसा पुरुष करे या स्त्री दोनों के लिये कानून में सजा हैं .
    पर राजन जी कानून की बात कौन सुनता हैं
    स्त्रियों का बोलना अपच होता हैं
    क्युकी वो सदियों से मौन ही रहती हैं
    शालिनी जो कर रही हैं उसका व्यवहार और स्त्रियों से अलग हैं अन्यथा पत्नियां कोम्फोर्ट जोने में रहती हैं . क्या आप को लगता हैं जिस मोहल्ले में शालिनी हैं उस मोहल्ले में उसके चरित्र और व्यवहार को ले कर क़ोई बात नहीं होती होगी
    पति अगर पत्नी को मारे तो अधिकार हैं उसका
    पत्नी अगर पति को मारे तो नारीवादी हैं , प्रगतिशील हैं ये सब तमगे इसी समाज की देन हैं
    पति किसी को चूम ले और माफ़ी मांगे ले और पत्नी ना करे तो ये एक नोर्मल बात भी हो सकती हैं की नहीं

    ReplyDelete
  68. @ जब जब किसी लेख में / न्यूज में पुरुष पीड़ित नजर आता है तो लोग दोनों पक्षों की जांच की बात करते हैं , जबकि एक न्यूज पेपर की न्यूज के आधार पर जिसमें स्त्री पीड़ित हो तुरंत फैसला सुना दिया जाता है ??????????????

    कुछेक लोगों द्वारा ही गौरव जी ... in general इसका उल्टा ही देखा जाता है | मुझे लगता है - कि सही सही ही है और गलत गलत ही है - चाहे वह पति द्वारा किया जा रहा हो या पत्नी द्वारा , पुरुष द्वारा या स्त्री द्वारा, ( तथाकथित) ताकतवर द्वारा या ( तथाकथित) कमज़ोर द्वारा | आपके comments ज्यादातर निष्पक्ष ही लगते हैं मुझे - जो समक्ष सत्य प्रतीत हो रहा हो - उसके साथ ही :) | किन्तु - जो प्रतीत होता है - वह सत्य ही है - ऐसा आवश्यक नहीं होता |
    यह देखिये - http://in.news.yahoo.com/wealthy-up-family-parades-dalit-woman-naked.html - किसे सही या गलत कहेंगे हम? सामने रखी जानकारी के आधार पर ही न निर्णय देते हैं हम सब ? कितनी जांच करते हैं ? - यही मैंने अपने ऊपर के comments में कहा है - कि हम सब सिर्फ टिप्पणीकर्ता हैं यहाँ - उन दोनों पति पत्नी का दर्द (और यदि उनके बच्चे हैं तो उन बच्चों का भी ) हम नहीं जान समझ सकते | तो ऐसे में हमें अपनी राय उन पर थोपने का कोई अधिकार नहीं बनता |

    ReplyDelete
  69. gaurav ji - aapke profile par aapke blog ka link nahi hai - kya bataa sakte hain ?

    सच की परिभाषा क्या है ?
    गीता में (२.१६) कहा गया है "नासतो विद्यते भावो, नाभावो विद्यते सतः "

    अर्थात - असत का अस्तित्व नहीं है, जबकि सत्य का अभाव नहीं है |

    चुप रह जाने से, संयमित रहने से, व्यंग्य बाण न चलाने से - सत्य हार नहीं जाता | उसी तरह से , चीखने से, चिल्लाने से, डराने से, धमकाने से, असत्य सत्य नहीं बन जाता | चाहे सत्य अकेला खड़ा हो और असत्य भीड़ को साथ लिए चले, या फिर इसका उलट हो रहा हो, दोनों ही स्थितियों में अंततः , सत्य ही विजयी रहेगा |

    ReplyDelete
  70. यह बात यूँ सुनकर तय करना या सलाह देना न सही है न सम्भव है। आप कहती हैं कि पति के माता पिता भी बहुत लाचार व बेचारे लग रहे हैं। शायद कारण उनका वह धर्म है जिसमें तलाक सरलता से मिलता ही नहीं। हमारे एक बेचारे पत्नी से बिनपिटे किन्तु धर्म से पिटे मित्र को तलाक मिलने में २० वर्ष लगे थे। अधिकतर तलाक केवल विवाहेतर सम्बन्धों के कारण ही लिया जा सकता है। हमारी एक अन्य सहेली का भी तलाक लेकर नया जीवन शुरू करने में बुरा हाल हो गया था। तलाक विवाहेतर सम्बन्धों के आधार पर ही मिला था। सो शायद माता पिता की अदबंगाई व बेचारगी का कारण भी यह ज्ञान है कि बेटे का नया जीवन शुरू करना लगभग असम्भव है।
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete
  71. ग्लोबल अग्रवाल जी

    जहा से आप ने मेरी टिपण्णी उठाई है वही पर निचे मैंने ये भी लिखा है |

    @ जहा तक एक दुसरे को मारने का सवाल है तो मैंने एक पोस्ट पर कहा था की पति पत्नी क्या मै तो बच्चो को भी मारना गलत मानती हूँ |

    इसलिए आप ये नहीं कह सकते है की मै पत्नी के पति को पिटे जाने को सही कह रही हूँ | रही बात पुरषों की बेचारगी की बात तो उससे मै पहले ही सहमत हूँ पहली ही टिपण्णी में मैंने पुरुष को कमजोर कहा है नारी के मुकाबले | एक और बात जोड़ दू यदि उसका रवैया नारी के प्रति ऐसा ही रहा तो वो अपने अस्तित्व के लिए भी संघर्ष करता नजर आएगा |

    दूसरी बात की आप इसे कहानी समझ रहे है जब की हम सब इसे कही से भी कहानी नहीं मान रहे है इसलिए बात के दुसरे पहलुओ की भी समझ रहे है उन भावनाओ और पति पत्नी और वैवाहिक जीवन की कुछ परिस्थितियों को भी समझ रहे है जो संभवतः आप अभी नहीं समझ पाएंगे | और रही मानसिक बीमार कहने वाली बात तो खुद अजित जी ने लिखा है की पत्नी को भी एक मानसिक चिकित्सक की आवश्यकता महसूस हो रही थी किन्तु अहम् के कारण वो नहीं गई | जब की मै इस बात से सहमत नहीं हूँ की न जाने का कारण अहम् रहा होगा आज भी हमारे समाज में किसी को कौंसलर के पास या इस तरह के किसी भी डाक्टर के पास जाने के लिए कहा जाता है तो लोग बुरा मान जाते है और सोचते है की लोग उन्हें पागल समझ रहे है | लोग अब भी समझ नहीं पाते है की कौंसलर पागलो का डाक्टर नहीं होता है |

    अजित जी
    जानती हूँ की ऐसे केसों में ये होना थोडा मुस्किल होता है किन्तु यदि आप प्रयास करके उन्हें मैरिज कौंसलर के पास भेज सके तो वो भी अच्छा होगा | वो बहुत प्रोफेसनल होते है और इस तरह के कामो में विशेषज्ञ भी उनका दक्षता ही इस तरह के मामलों को सुलझाने में होती है | ( ये भी संभव है की ये विकल्प अब तक अपनाया जा चूका हो और फेल हो चूका हो | )

    ReplyDelete
  72. घुघुती जी, आपकी बात में दम नजर आ रहा है। यह सच है कि विनोद इतना डरा हुआ है कि वह अकेले की कल्‍पना भी नहीं कर पा रहा है इसीलिए उसने दुनिया छोड़ने की बात की है। यदि उनका तलाक इतनी आसानी से नहीं हो सकता तो फिर शालिनी भी स्‍वतंत्र नहीं हो पाएगी। ऐसे केसेज कैसे निपटाए जाते हैं? जरा बताएं। हमें भी एक मार्ग मिलेगा। लेकिन कोर्ट तो तलाक दे ही सकता है ना? आप स्‍पष्‍ट करें।

    ReplyDelete
  73. अंशूमाला जी, आपका सुझाव अच्‍छा है। अभी तो परिवार के मध्‍य ही काउसलिंग चल रही थी। सबसे ज्‍यादा चिन्‍ता का विषय था एक नौजवान का मानसिक संतुलन। इसलिए सभी का ध्‍यान उसकी चिकित्‍सा पर था। यदि सम्‍भव हुआ तो इस दिशा में कोशिश की जाएगी। वैसे शालिनी अपने पीयर गयी हुई है और आज उसके वापस आने का है। इसके बाद उसका क्‍या निर्णय रहता है, सब कुछ इसी बात पर निर्भर है।

    ReplyDelete
  74. court kabhie bhi talak ki baat nahin karaegaa agar dono me sae koi bhi vikshipt haen

    lekin phir jo parti vikshipt honae kaa davaa karaegi usko puraa ilaaj bhi karnaa hogaa

    pati agar aarthik rup sae kamjor haen to ab aarthik rup sae majboot patni ko bhi harjana daena pad saktaa haen

    domestic voilence agar patni kartee haen to bhi kanunan apraadh haen

    marriage councellor sae bhi better option haen kisi manochikitsak sae baat karna aur yae nishchit karvaana ki vikshipt haen kaun pati yaa patni

    ReplyDelete
  75. अंशुमाला जी,

    मेरी आपत्ति साफ़ है ......
    पत्नी पर हाथ उठाने वाला , उसे हमेशा बंधन में रखने वाला , अन्य अत्याचार करने वाला आदमी भी मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं हो सकता
    लेकिन हमारे समाज में उस "बीमार व्यक्ति" को "पुरुष" शब्द की इमेज से जोड़ा जाता है , अगर समाज यही रवैया रहा तो सभी पुरुष ऐसे ही होने लगेंगे

    अक्सर मैंने देखा एक लेखक /लेखिका ने एक सत्य घटना की कुछ आउट लाइन लेख में डाली जिसमें पुरुष पीड़ा दे रहा हो तो उसके मानसिक स्वास्थ्य की डिटेल कोई नहीं माँगता

    रही बात कहानी शब्द की तो की मेरे लिए भी ये कहानी नहीं है कृपया शब्द के पीछे छिपी भावनाओं को भी पढ़ें [कहानी शब्द का प्रयोग एक बार अजित जी ने भी किया है]

    आप खुद ही अपने आप से इमानदारी से पूछे की क्या इस लेख में अगर स्त्री पीड़ित होती तो क्या इतनी संभावनाओं की तलाश की जाती ?

    @ उन भावनाओ और पति पत्नी और वैवाहिक जीवन की कुछ परिस्थितियों को भी समझ रहे है जो संभवतः आप अभी नहीं समझ पाएंगे |

    हा ..हा .... यहाँ पर तो चर्चा ही समाप्त हो गयी , वैसे क्या यहाँ कमेन्ट कर रहे सभी ब्लोगर विवाहित हैं ? या आप के कहने मतलब कुछ और था ? :)

    ReplyDelete
  76. समस्या थोडी बहुत हमेशा रही है. बस आज के जमाने मे बहुत कॉम्प्लेक्स है. क्योर बस एक है - विवाह और परिवार संस्था का खात्मा जिससे एक दूजे का एक्स्प्लायटेशन खत्म हो. जब तक मर्जी हो साथ रहें वरना अलग अलग. बच्चे हों तो स्टेट पाले. रिटायर होने के बाद पेंश्न और ओल्ड एज होम.
    इस बहस से कुछ हेल्प मिले
    http://benamee.blogspot.com/2010/03/blog-post_27.html

    ReplyDelete
  77. @कुछेक लोगों द्वारा ही गौरव जी ... in general इसका उल्टा ही देखा जाता है

    शिल्पा जी ,
    अगर हम समाज के सामने खुली अभिव्यक्ति की बात करें तो लोग सच की जगह सुविधा जनक झूठ काम में लेने में यकीन रखते हैं , मतलब मेरे लिए सुविधाजनक होता की मैं पुरुष को गलत साबित करने या महिला को सही साबित करने में जुट जाता

    अगर हम घरेलु हिंसा आदि की बात है तो :

    महिलाओं द्वारा किये अपराध [बिना नैतिक वजह के या आवश्यक कारण के ] से परिवार के विनाश की बहुत सी ख़बरें पढने को मिलती हैं , पता नहीं क्यों ब्लोग्स पर इस तरह ख़बरें नहीं आती [कृपया मेरी इस बात को आपके दिए लिंक से तुलना ना समझने ]

    अगर हम घरेलु हिंसा आदि की बात है तो कृपया इन लिंक्स को देखें

    नकली आंकड़े

    इस तरह के मामले भारत में हुए हैं [इस वक्त मेरे पास लिनक्स मौजूद नहीं हैं ]

    ये भी पढ़ें
    एकपक्षीय फैसले क्यों

    ReplyDelete
  78. पिछला लिंक खुल नहीं रहा इस लिए दुबारा दे रहा हूँ ....

    एकपक्षीय फैसले क्यों

    http://in.jagran.yahoo.com/sakhi/?page=article&articleid=3950&category=6&edition=200711

    ReplyDelete
  79. @ गौरव जी - क्या आपके ब्लॉग का लिंक मिलेगा ?

    मैं बिल्कुल सहमत हूँ कि दोनों ही ओर से गलत काम होते हैं - और दोनों की गलत बातों की भर्त्सना होनी चाहिए - बराबरी से | किन्तु ऐसा देखने में आता नहीं

    ReplyDelete
  80. gupta ji 20 se 40/45 ki umra badi hi najuk aur lalachi hoti hai chahe purush ho ya mahila !dono is samaj ke ek ang hai ! kisi ek ko dos nahi diya ja sakata ! samay ke sath samanjashy banate huye --jivan me aage badhana aur sahi kadam badhana - dono ke liye bahut jaruri hai !anyatha....ant.

    ReplyDelete
  81. बाप रे ............ बात छोटी हो या बड़ी , यदि सच्चे मन से कह दिया , वक़्त रहते कह दिया तो परिणाम इतना भयानक नहीं होना चाहिए , फिर प्रायश्चित का क्या अर्थ !

    ReplyDelete
  82. अंशुमाला जी,
    विश्वास कर सकें तो कर लें कि मुझे याद नहीं आप किस पोस्ट की बात कर रही है.लेकिन आपका कह देना ही पर्याप्त है.पर आपको इस बारे में पहले लिखना चाहिये था.

    ReplyDelete
  83. सांच कहूँ तो मारन धावा,
    झूठ कहूँ तो जग पतिआवा

    ReplyDelete
  84. लोग स्वछंदता में जीत-सुख के अभिलाषी हो गए है। शान्तिप्रिय जीवन की मनोकामना से वंचित है। सत्ता का अहंकार-लोभ सुखकर जीवन को बाधित कर रहा है। कुटुम्ब भावना का सर्वनाश है यह। परिवार भावना में समर्पण को हार और बंधन की दृष्टि से देख रहे है। यह नारी-पुरूष अपने अलग अलग किले बना रहे है। अभिमान को स्वाभिमान नाम देकर अपने अपने किले की दीवारे उंची उठाने में लगे है। समरसता का गुण त्याग कर अपने अपने घेरे के बाहर गहरी खाईयां खोदने में व्यस्त है ताकि प्रतिपक्षी उसमें गिर कर समाप्त ही हो जाय। सहजीवन सहायक की जगह शत्रु ही मान लिया गया है, एक दूसरे पर आक्रमण का कोई भी मौका नहीं चुकना चाहते।

    मानव मन के सदाचार, पश्चाताप और प्रायश्चित को संदेहास्पद बनाकर, माफ़ी और क्षमा की उपयोगिता को ही नष्ट करने पर उतारू है। आज लोगों को द्वेष, घृणा और क्रोधमय जीवन स्वीकार है। सुखमय जीवन के लिए इन दुर्गुणों को दूर करने में कत्तई रूचि नहीं है। बदले की मानसिकता में जीना है और मौका आने पर प्रतिशोध ही लेना है। भले यह बदले का कुचक्र जीवन भर चलता रहे या जीवन और परिवारों को बर्बाद ही क्यों न कर दे। हर गलती का निराकरण प्रायश्चित ही होता है। कोई भी सज़ा फिर चाहे वह घृणा, मारपीट, या कानूनी सज़ा ही क्यों न हो, किसी भी ‘गलती’ को ‘सही बात’ में बदल देनें में समर्थ नहीं। पश्चाताप, प्रायश्चित और क्षमा ही अन्तिम निदान होता है। जो लोग मामले को क्षमा पर खत्म नहीं करते अन्ततः जीवन बर्बाद ही करते है।

    ReplyDelete
  85. ----निपट मूर्ख, अज्ञानी पुरुष था ....यदि जान बूझ कर गलती की थी तो ... कसम खालेता कि अब आगे नहीं करूँगा ......यदि परिस्थितिवश घटना हुई थी तो पुनः एसी परिस्थिति न आने देने का संकल्प करता ..... किसी को बताने की क्या आवश्यकता थी |
    ---जाने कितने चालाक-कुशल स्त्री-पुरुष इन कलापों में रत रहते हैं किसी को कानों कान खबर भी नहीं होती....
    ----पुरुष को या तो राम की भांति होना चाहिए ....या फिर कृष्ण की भांति सर्व-समर्थ नारियों को नियमित रखने वाला.........
    ----मेरे विचार से निश्चय ही पत्नी ने यह इतना कठोर कदम सिर्फ इसी घटना से नहीं उठाया होगा, कुछ अन्य कारण भी रहे होंगे , हो सकता है विनोद स्वयं पहले भी यह आदतन करता रहा हो...और इस घटना से अति होगई हो...
    --- हो सकता है इस घटनाक्रम में पत्नी का कोई अर्थपूर्ण इंटरेस्ट हो...वह पहले से ही किसी अन्य से संबद्ध रही हो और तात्कालिक प्रसंग का लाभ उठाना चाहती हो ....
    ---- यदि विनोद सही है और यह पहली घटना है तो उसे पिटने की बजाय प्रतिवाद करना चाहिए...लड़-झगड कर मामला सुलाता लेना चाहिए .....
    ---अंतिम उपाय तो सद-आचरण ही है स्त्री-पुरुष दोनों के द्वारा ..

    ReplyDelete
  86. इस पोएट पे तो बहुत चर्चा हो रही है ब्लॉग जगत में ... सही विषय उठाया है आपने ... मैं तो बस पढ़ के ज्ञान अर्जित करने का प्रयास कर रहा हूँ ...

    ReplyDelete
  87. आपसे सहमत हूँ, पुरुष की वाकई दुर्बलता ही है जो उसे अनावश्यक आक्रामक बनाये रखती है.

    ReplyDelete
  88. Very Interesting Kahani Shared by You. Thank You For Sharing.

    ReplyDelete