Tuesday, October 4, 2011

वनांचल कितने सुन्‍दर और कितने दर्द भरे?



हम अक्‍सर अपनी छुट्टिया बिताने पर्वतीय क्षेत्रों पर जाते हैं। ऊँचे-ऊँचे पहाड़, घने जंगलों की श्रृंखला, कलकल बहती नदी और झरने, मौसम में ठण्‍डक। लगता है समय यही ठहर जाए और इस प्रकृति का हम भरपूर आनन्‍द लें। ऐसे मनोरम स्‍थान पर ही रहने का मन करने लगता है। गहरे जंगल के अन्‍दर प्रवेश करोंगे तो कभी हिरण, कभी खरगोश तो कभी सर्पराज आपको मिल ही जाएंगे। राजस्‍थान को रेगिस्‍तान भी कहा जाता रहा है। लेकिन इसके विपरीत एक क्षेत्र है मेवाड़, यहाँ भरपूर जंगल, पहाड़, नदियां हैं। विश्‍व की प्राचीन अरावली पर्वत श्रृंखला भी यहीं है।  उदयपुर के समीप वनांचल है, बस कुछ किलोमीटर ही चले और जंगल प्रारम्‍भ होने लगते हैं। वही पर्वत, संकरी और घुमावदार सड़के, कलकल करती नदी(अधिकतर वर्षाकाल में), अनेक वृक्षों की भरमार। कहीं पीपल हैं, कहीं बरगद है तो कहीं पलाश और कहीं सागवान। हर ॠतु में कोई न कोई वृक्ष फल-फूल रहा होता है। कभी महुवा महकता है तो कभी नीम बौराता है। कभी पलाश खिलता है तो कभी सागवान फूलों से भरा रहता है। एक मदभरी गंध वातावरण को बौराती रहती है। महुवा जब फूलता है तब उसके नीचे चादर तान कर लेट जाइए, खुमारी सी छा जाएगी। पलाश जब फूलता है तब लगता है कि जंगल के सीने में किसी ने अपने सौंदर्य से आग लगा दी है। सुबह और शाम को चहचहाते पक्षी, आपको संगीत का रसपान करा देते हैं।
लेकिन इससे परे एक और दृश्‍य है, गरीबी का, अज्ञानता का। वहाँ के वासी अज्ञानता के साथ रह रहे हैं और स्‍वयं के विकास के प्रति विचारशून्‍य। अंग्रेजों के आने के पूर्व तक इनके कबीले थे, ये जंगल के राजा थे। इनकी वेशभूषा आकर्षक थी। गहनों के रूप में पत्‍थरों और विभिन्‍न धातुओं का भरपूर प्रयोग करते थे। पशुपालन और खेती आजीविका के मुख्‍य साधन थे। शिक्षा का महत्‍व ना ये जानते थे और ना ही इन्‍हें इसकी आवश्‍यकता थी। पूर्ण स्‍वतन्‍त्रता के साथ जीवन यापन करते थे यहाँ के वासी। लेकिन अंग्रेजों ने जंगल पर सरकार का अधिकार घोषित कर दिया और ये राजा से रंक बन गए। बस तभी से इनकी दुर्दशा के दिन प्रारम्‍भ हो गए। सोचा था कि आजादी के बाद भारत का विकास गाँव से शहर की ओर होगा लेकिन हमने विकास का आधार शहर को बनाया। परिणाम स्‍वरूप गाँव उजड़ते चले गए। जहाँ के पहाड़ों से झरने फूटते थे और नदियों से होकर पानी कलकल करता बारहों मास बहता था, अब वही पानी शहरों की ओर जाने लगा। वनांचलवासी पानी को तरसने लगे। उनके कुएं सूख गए, नदियां नालों में तब्‍दील हो गयी। शहर की आवश्‍यकताओं को पूर्ण करने के लिए जंगलों का अंधा-धुंध दोहन किया गया, परिणामत: घने जंगलों का स्‍थान वीरानों ने ले लिया।
अब सरकार और समाज को समझ आने लगा है कि हमें इन क्षेत्रों के विकास के लिए कुछ करना चाहिए। करोड़ों रूपए पानी की तरह बहाए गए लेकिन जैसे वनांचल का पानी शहर की ओर आ रहा है वैसे ही यहाँ से बहकर आता हुआ रूपया भी शहर के अधिकारियों और राजनेताओं रूपी समुद्र में आ मिला। विकास के रूप में सड़के, स्‍कूल, अस्‍पताल दिखने लगे हैं लेकिन वनांचलवासी की मनोदशा नहीं बदली। वह आज भी गरीबी में दिन गुजार रहा है।
इतने मनोरम स्‍थलों पर गरीबी देखकर लगता है कि स्‍वर्ग में गरीबी छा गयी है। क्‍या हम इन स्‍थलों को पर्यटकीय दृष्टिकोण से विकसित नहीं कर सकते? अमेरिका के जंगलों को देखने का अवसर मिला। उन्‍हें मैंने अच्‍छी प्रकार से समझा कि वहाँ और हमारे जंगलों में क्‍या अन्‍तर है। हमारे जंगल कुछ किलोमीटर जाकर ही समाप्‍त हो जाते हैं लेकिन वहाँ कभी न समाप्‍त होने वाले जंगल दिखायी देते हैं। मैं उन जंगलों की सघनता से मुग्‍ध होकर शाम की वेला में पक्षियों का इन्‍तजार कर रही थी लेकिन पक्षी नहीं आए! आश्‍चर्य का विषय था। हमारे यहाँ तो एक वृक्ष पर ही इतने पक्षी होते हैं कि उनके कलरव की गूंज से चारो दिशायें गूंज जाती है। निगाहें कुछ और खोजने लगी, कहीं फल नहीं थे और कहीं फूल नहीं खिला था। जब फल-फूल ही नहीं थे तो सुगन्‍ध तो कहाँ से होगी? केवल एक ही वृक्ष की उपस्थिति सर्वत्र देखी। ना पलाश था, ना बरगद था, ना पीपल था, ना गूलर था, ना नीम था। कुछ भी नहीं था। लेकिन पर्यटकीय आकर्षण कितना अधिक था कि विश्‍व के सारे ही पर्यटक खिंचे चले आते हैं। क्‍या हम हमारे जंगलों को जो विविधता से भरे हैं, जो महक रहे हैं, जो फल और फूल रहे हैं उनकी सुगंध से दुनिया को अवगत नहीं करा सकते? जंगलों का पर्यटन बढे़गा और हमारे वनांचलवासी का हौसला भी लौट आएगा। उसकी वेशभूषा जो कभी सतरंगी थी, जिसमें गहनों की भरमार थी, क्‍या पुन: लौटायी नहीं जा सकती? इतनी सुन्‍दरता भरी हुई हैं हमारे जंगलों में कि कोई भी यहाँ आकर बौरा जाए फिर हमने क्‍यों इन्‍हें उपेक्षित छोड़ रखा है? एक ऐसा संसार यहाँ बसा है, जिसकी कल्‍पना शायद युवापीढ़ी को नहीं है। वह शहरों में जीवन का उल्‍लास तलाश रहा है, उसने कभी प्रकृति का आनन्‍द देखा ही नहीं।
एक छोटा सा गाँव जहाँ आज एक उत्‍सव है

वनांचल की एक बालिका 
मैंने इसी शनिवार को अर्थात् 1 अक्‍टूबर को ही ऐसे क्षेत्र की यात्रा की थी। पूर्व में भी कई बार जाती रही हूँ। लेकिन वर्षा के बाद जाने का आनन्‍द तो अनूठा होता है। धरती ने हरियाली ओढ़ी होती है और पहाड़ नर्तन कर रहे होते हैं। झरने खुशी से झूम रहे होते हैं। एक अन्तिम बात और, पहाड़ी स्‍थलों पर और उदयपुर के समीप सीताफल प्रचुरता से होता है। इन दिनों सीताफल ही सीताफल दिखायी देता है। हम जिस गाँव में गए थे, वहाँ के मन्दिर में भी सीताफल का पेड़ लगा था। हमारे साथ एक नवयुवती भी थी जिसने शायद पहले कभी सीताफल नहीं देखा था। उसका कौतुक इस फल के प्रति बहुत था। मैंने कहा अभी पंद्रह दिन में पक जाएंगे, लेकिन उसने कच्‍चे ही तोड़े और कहा कि इन्‍हें ही अपने साथ लेकर जाऊँगी। आप लोग भी कभी वनाचंलों का आनन्‍द ले और भारत कितना प्रकृति से सम्‍पन्‍न है इसकी जानकारी यहाँ आकर लें। तब आप विदेश यात्राओं को भूल जाएंगे। आप भी खुश हो जाएंगे और आपके कारण यहाँ का वनांचलवासी भी सम्‍पन्‍न हो सकेगा।   

45 comments:

  1. अपना भारत तो इस कुदरती खजाने से भरा हुआ है बस इसे लूटा ना जाये बचा कर रख लिया जाये तो ये खजाना कभी ना समाप्त होगा।

    ReplyDelete
  2. मन से पूरे और संपन्‍न वनांचलवासी.

    ReplyDelete
  3. अजित जी
    अभी उदयपुर और आस पास के कई प्राकृतिक जगहों का भ्रमण किया किन्तु बड़ा अफसोस हुआ की हम तो वहा रेत रेगिस्तान देखने गये थे पर बरसात के मौसम के कारण हर जगह हरियाली ही दिखी :) बहुत अच्छा लगा वहा घूम कर और वहा तो काफी बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटक भी थे | आप की बात सही है की इस तरह के सभी प्रर्यटक स्थलों में रह रहे लोगों की गरीबी देख कर दुख होता है ये गरीबी वहा भी है जहा भरपूर संख्या में देशी विदेश पर्यटक आते है |

    ReplyDelete
  4. अंशुमालाजी, बहुत नाइंसाफी है। आप उदयपुर आयीं और मुझे बताया तक नहीं! उदयपुर क्षेत्र पर्वतों से घिरा है और हरा-भरा है। आपको रेगिस्‍तान देखना है तो जैसलमेर जाना होगा।

    ReplyDelete
  5. वनांचल के विषय में सही और सटीक बातें बताई.. सुन्दर आलेख.....

    ReplyDelete
  6. Bahut sahee kah rahee hain aap!

    ReplyDelete
  7. प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर हैं हमारे देश के वनांचल.... पर हम इसका दोहन अंधाधुंध तरीके से करते हैं और इस वनाचंलों की सुंदरता को बनाए रखने को लेकर सजग नहीं रह पाते... यह एक बडी विडंबना है....
    अच्‍छा लेख।
    आभार...

    ReplyDelete
  8. जंगलों और हरियाली की बातें सुन कर मन प्रसन्न हो उठता है .
    हाँ ,एक बात मध्यप्रदेश और राजस्थान में हम लोग जिसे सीताफल कहते हैं, यू.पी.वाले उसे कद्दू समझते है ,यहाँ सीताफल को शरीफ़ा कहा जाता है(मैं भी खूब बेवकूफ़ बनी हूँ इस चक्कर में) .

    ReplyDelete
  9. जंगल जितने आकर्षक होने चाहिये थे, उतना ही बदहाल बना रखा है हमने उन्हें।

    ReplyDelete
  10. सार्थक चिंतन .
    बेशक हमारे देशमे भी प्राकृतिक सम्पदा भरी पड़ी है . बस ज़रुरत है तो उसे संवारने की .

    ReplyDelete
  11. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||

    बहुत बहुत बधाई ||

    ReplyDelete
  12. आपने बिल्कुल सही कहा हम चाहे तो ऐसा कर सकते हैं……………विचारणीय और गंभीर आलेख्।

    ReplyDelete
  13. वनवासियों और प्राकृतिक सम्पदा पर मनोयोग से प्रकाश डाला है।

    एक सुन्दर चिन्तन!!

    ReplyDelete
  14. चिराग तले अँधेरा है अजीत जी ! क्या कहें..खूबसूरती तो हर कदम पर बिखरी पडी है भारत में संवारने वाला कोई नहीं बस.

    ReplyDelete
  15. वनांचल के विषय में
    सुन्दर आलेख.....

    ReplyDelete
  16. I wanted to let you know you wrote a great article.

    India is a land of many festivals, known global for its traditions, rituals, fairs and festivals. A few snaps dont belong to India, there's much more to India than this...!!!.
    Visit for India

    ReplyDelete
  17. कभी महुवा महकता है तो कभी नीम बौराता है। कभी पलाश खिलता है तो कभी सागवान फूलों से भरा रहता है। एक मदभरी गंध वातावरण को बौराती रहती है। महुवा जब फूलता है तब उसके नीचे चादर तान कर लेट जाइए, खुमारी सी छा जाएगी। पलाश जब फूलता है तब लगता है कि जंगल के सीने में किसी ने अपने सौंदर्य से आग लगा दी है। सुबह और शाम को चहचहाते पक्षी, आपको संगीत का रसपान करा देते हैं।

    प्रकारित सौंदर्य का आपने बेहद सुंदर वर्णन किया है एवं बहुत अच्छा प्रश्न उठाया है यही तो है हमारी प्राचीन सभ्यता जिसको संभालना हमारा कर्तव्य होना चाहिए मगर अफसोस की हां अपनी ही धरोहर को मिटा देने पर आमादा है।

    ReplyDelete
  18. हम आज शहर की भाग दौर में इस तरह शामिल हैं की इस ओर बिरले ही सोच पते हैं. सिर्फ पर्यावरण दिवस या किसी विशेष दिन के अलावा हमारा ध्यान नहीं जा पता. आज की युवा पीढ़ी तो शायद इससे कोई इत्तेफाक भी रखती हो !!!
    कुछ तो करना होगा ......
    एक कदम तो हर किसी को बढ़ाना होगा अपनी मिटटी का मूल चुकाने के लिए ....
    शुरुवात के लिए हर पल उपयुक्त है
    तो आज ही क्यों नहीं ?
    Sandeep Roy
    sandeep_roy@yahoo.com

    ReplyDelete
  19. पहाड़ी लोगों की दुखती रग पर हाथ रखा है आपने...हर पहाड़ी क्षेत्र की यही दास्तान है! शहरों से गाँव पिछड़े हैं, पहाड़ सबसे पिछड़े हैं. पर्वतीय प्रदेश बनने से यही फर्क पड़ा है कि पहाड़ी गांवों से पहाड़ी शहर उन्नत हो गए हैं.

    ReplyDelete
  20. बहुत सच कहा है. जरूरत है इस वन सौंदर्य को देखने की. मैंने भारत के विभिन्न वन प्रदेशों का भ्रमण किया है, लेकिन एक साधारण वन प्रेमी को वहां पहुँचने और निवास करने का कोई प्रबंध नहीं. ज़रूरत है वहां बुनियादी सुविधाओं के विकास करने की, जिससे वन प्रेमी वहां जाकर अनछुए सौंदर्य का आनंद ले सकें.

    ReplyDelete
  21. माननिये अजित जी, पता नहीं क्यों ... क्यों मैं उदयपुर नहीं आ पा रहा ... क्यों

    बाकी आपकी पोस्ट सही अर्थों में तभी समझ पायुन्गा जब ४-५ दिन वहाँ रहूँगा..


    आभार ... एक अनोखी पोस्ट के लिए.

    ReplyDelete
  22. बहुत सटीक तथ्यात्मक बात कही आपने. पीछे जो कुछ हुआ सो हुआ लेकिन अब भी सरकार की कोई इच्छा नही है, आज सरकार सिर्फ़ येन केन प्रकारेण कुर्सी बचाओ या गरीबी का स्तर कम दिखावो तक ही मतलब रखती है.

    उदयपुर और आसपास का क्षेत्र तो खैर शुरू से ही वनाच्छादित रहा है औए अनेकों बार घूमे भी हैं. मुझे अरूणाचल प्रदेश घूमने के कई बार मौके मिले हैं, मेरी समझ से इतने सघन वन मैने भारत में तो कहीं नही देखे, जंगल क्या होता है ये वहां जाकर पता लगता है. हां वहां बर्फ़ का रेगिस्तान भी उतना ही जबरदस्त है.:)

    रामराम.

    ReplyDelete
  23. अब जंगल तो शायद केवल भ्रमण के लिये ही बचे हैं।

    ReplyDelete
  24. वनों की इस बदहाली के जिम्मेदार हम ही हैं..... अब भी समझ जाये तो अच्छा है..... सार्थक आलेख

    ReplyDelete
  25. खूबसूरत वर्णन हमें भी ले गया अपने साथ इन सुरम्य वादियों में ...
    कल ही अजमेर रोड पर देखा , पीपल - बड़ आदि के पेड जड़ से खुदे हुए , सड़कें चौड़ी करने के लिए हटाना ज़रूरी था , सड़कें बनने के बाद मुश्किल से ही हरियाली हुई थी , फिर से वही वीरान ...ऐसे में इस लेख को पढने से लगता है कि अच्छा है कि वहा के लोंग अशिक्षित हैं , सुविधाएँ कम है , कम से कम प्रकृति की रक्षा करना तो जतने हैं !
    अच्छी पोस्ट!

    ReplyDelete
  26. वनांचल हो या जंगल महल...इस देश में अगर किसी तबके के साथ सबसे ज़्यादा नाइंसाफ़ी हुई है तो वो आदिवासी ही हैं...और ये इसलिए हुआ कि क्योंकि इन बेचारों को औरों की तरह छद्म रूप धारण कर राजनीति को दोहने का हुनर नहीं आता...और न ही राष्ट्रीय स्तर पर इनके हक़ की बात करने वाला कोई मजबूत नेतृत्व खड़ा हो सका...

    महुआ और पलाश के अद्भुत मेल के लिए आपकी लेखनी को सलाम...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  27. दीपक बाबा
    कभी उदयपुर आइए और यहाँ की आत्‍मा, यहाँ के वनांचलों की सैर कीजिए। उदयपुर में पर्यटक आते हैं और शहर को देखकर चले जाते हैं। पर्यटन की दृष्‍टी से कुछ स्‍थान मशहूर हो जाते हैं, बस सारा ध्‍यान उन्‍हीं पर रहता है। लेकिन अगर आप यहाँ के सुदूर बसे गाँवों को देखेंगे तो बहुत कुछ अपने साथ लेकर जाएंगे।

    ReplyDelete
  28. @ कैलाश शर्मा जी
    वैसे वनांचल को देखने और जीने के लिए झोपड़े में ही रहने से वहाँ की परिस्थिति समझ आती है। लेकिन फिर भी शहर वालों को कुछ आवश्‍यक सुविधाएं चाहिए ही होती हैं। इसके लिए गेस्‍ट हाउस आदि हैं और सबसे अच्‍छी बात तो यह है कि अब लोगों ने बड़े अच्‍छे होटल बना दिये हैं। होटल में रुकिए और सारा दिन वनांचल में घूमिए।

    ReplyDelete
  29. आपका यह आलेख सरस शैली और मनोरम चित्रों से सजा है। आपका काव्य रूप देखा। और आज का यह आलेख ने उस रूप को समाहित किए हुए है।

    ReplyDelete
  30. अजित जी
    अगली बार उदयपुर आई तो निश्चित रूप से आप से मिलूंगी इस बार तो इतने कम समय के लिए जाना हुआ की बस भागमभाग मची थी और रेत रेगिस्तान देखने जैसलमेर भी नहीं जा सके बहुत मन होने के बाद भी |

    ReplyDelete
  31. वनांचल पर आपकी कलम खूब चली बहुत ही सुन्‍दरता से आपने प्रकृति और उसके मनोरम दृश्‍यों का वर्णन किया है ...आभार ।

    ReplyDelete
  32. वनक्षेत्र के बारे में बहुत भी प्रभावी तरीके आपने जानकारी दी है। वैसे हम भले यहां घूम कर चले आएं, पर इस क्षेत्र के लोगों की मुश्किलों से कभी वास्ता नहीं रखते।

    ReplyDelete
  33. जितने सुंदर उतने दर्द भरे।

    ReplyDelete
  34. धन्यवाद् अपना वक़्त निकल कर मेरे ब्लॉग पर टिपण्णी करने के लिए, आपका ब्लॉग काफी अच्छा है, आशा है की इसी तरह कुछ बेहतरीन पढ़ने मिलेगा आपके ब्लॉग से,

    Girls & Guys these days have gone wild for uploading a picture on Face book .
    Take a look here facebook profile pick

    ReplyDelete
  35. अजित जी ,अभी हाल में शेखावटी के गाँव नवलगढ़ ,मंडावा जाना हुआ शहरी राजस्थान से बिलकुल भिन्न ,अनूठी दुनिया हाँ बारिश ने राजस्थान में भी हरियाली के साथ फूल खिला रखे थे और इन जगहों पर लोगों की इमानदारी ने ख़ास प्रभावित किया ,जल्द ही उदैपुर आना है आपसे पक्का मिलूंगी :-)

    ReplyDelete
  36. इतनी खूबसूरती से वर्णन किया है कि लगा हमने भी देख लिया....अपने देश में बिखरी खूबसूरती का कोई मुकाबला नहीं...पर वही आसानी से सुलभ है..इसलिए उसकी कद्र नहीं.

    ReplyDelete
  37. किसी आधुनिक शहर की बजाय घूमने जाने के लिये अपनी सूची में ऐसे ही स्थान सर्वोपरि हैं, बात मौका लगने की है।
    आपने आँखों के सामने सब सजीव दिखा दिया है।

    ReplyDelete
  38. ‘लगता है, स्वर्ग में गरीबी छा गई है‘, भारत के वनांचलों की दशा की व्याख्या करने के लिए इससे बेहतर वाक्य और कोई दूसरा नहीं हो सकता। आपके सुझाव अमल में लाने योग्य हैं।

    ReplyDelete
  39. यदि सरकार और तथाकथित समाज यहां पहुंच गया तो समझो कि इसका सौंदर्य नष्ट होते देर नहीं है॥

    ReplyDelete
  40. bahut acchhi jankari di aapne is lekh k dwara.

    hamare ye kudrati khajane aseemit aur kabhi na khatam hone wale hain. lekin ye sach hai ki inke bare me na to sabko gyan hai na sarkar ko iski parwah hai.

    sarthak lekhan k liye aabhar.

    ReplyDelete
  41. NICE.
    --
    Happy Dushara.
    VIJAYA-DASHMI KEE SHUBHKAMNAYEN.
    --
    MOBILE SE TIPPANI DE RAHA HU.
    ISLIYE ROMAN ME COMMENT DE RAHA HU.
    Net nahi chal raha hai.

    ReplyDelete
  42. पर्यावरण को बचाए रखते हुए भी पर्यटन को विकसित करने की हमारे पास अपार संभावनाएं हैं, मगर शायद खूबसूरती को देखने और संभालने की वह दृष्टि नहीं जो यूरोप या अमेरिका में है...

    ReplyDelete
  43. वनांचल के लोग सरलमना है। यही कारण है कि उनकी निश्छलता उनके शोषण का कारण रही है. शायद फिर से श्रीराम आयें तो उनका उद्धार हो। विजयदशमी के अवसर पर मैने श्री राम के चरणों में एक छोटी भेंट मैं राम हूँ । प्रस्तुत किया है, कृपया अवश्य पधारें।

    ReplyDelete