Thursday, August 4, 2011

रेल यात्रा में अपने सामान को छोड़कर जाने से मचा कोहराम - अजित गुप्‍ता



रेल अपनी पूर्ण गति के साथ धड़धड़ाती चले जा रही थी। सभी यात्री एकदूसरे से अनजान स्‍वयं में ही व्‍यस्‍त थे। किसी ने भी किसी का परिचय नहीं लिया था। वाराणसी स्‍टेशन से शिवगंगा ट्रेन को रवाना हुए अभी डेढ़ घण्‍टा गुजरा होगा। स्‍टेशन पर मुझसे मिलने आयी मेरी साहित्‍यकार मित्र ने एक पुस्‍तक भेंट दी थी तो मुझे उसे पढ़ने की उत्‍सुकता थी। मैं उसी पुस्‍तक में डूबी थी। मेरे पास एक सहयात्री थे, जो फोन पर कब से बतिया रहे थे। सामने ही एक माँ और बेटा बैठा था लेकिन बेटा अपनी ऊपर की बर्थ पर सोने चला गया था। सभी अपने-अपने में व्‍यस्‍त थे, तभी किसी महिला यात्री की आवाजे कान में पड़ना शुरू हुई। वह जोर-जोर से फोन पर किसी को बता रही थी कि कई बार टीसी को बुलाया लेकिन वह अभी तक भी नहीं आया है। न जाने कौन एक महिला अपना बेग रखकर घण्‍टेभर से गायब है। पता लगा कि वह अपने पति को फोन पर बता रही थी, पति रेलवे के ही अधिकारी थे। उस महिला की बातों से सभी के कान खड़े हुए। पास वाला सहयात्री भी टीसी के पास गया हुआ था। मुझे लगा कि शायद वह टीसी को बुलाने ही गया है। लेकिन कुछ ही देर में वह लौट आया। उस महिला की बातों से सनसनी फैल चुकी थी। एक सावले रंग की 30 वर्ष के लगभग एक महिला अपनी टिकट चेक कराने के बाद एक बेग छोड़कर चले गयी थी। बेग को ऊपर वाले स्‍टेण्‍ड पर रख दिया था, जिस पर अक्‍सर अटेण्‍डेड चद्दरे रखता है। सारे ही यात्री अकस्‍मात ही एक हो गए थे, जो अभी तक चुपचाप थे, सभी आपस में बतियाने लगे थे। मैंने तब तक अपने खाने का डिब्‍बा खोल लिया था। मुझे कोई सीरियस मेटर नहीं लग रहा था तो मैंने सभी से कहा कि पहले खाना खा लो, फिर साथ ही मरेंगे। कम से कम भूखे पेट तो नहीं मरेंगे।
खैर हमारे द्वितीय श्रेणी एसी के कोच में टीसी साहब अव‍तरित हो ही गए और लोग उन पर पिल पड़े कि इतनी देर से डिब्‍बे में कोहराम मचा है और आप कही महफिल सजाए बैठे हैं? कुछ देर वे चुपचाप सुनते रहे, फिर मुझे लगा कि बेकार की बहस में समय जाया हो रहा है और बेग महाशय चुपचाप अपनी जगह विराजमान ही हैं। मैंने उनसे कहा कि पहले बेग उठाओ और इसे और कहीं रख दो। टीसी बेमन से उसे उठाकर ले गया। कुछ देर बाद ही खबर आयी कि उसमें कुछ नहीं है। दो-तीन पुलिस वाले भी अपनी बंदूक लिए परिक्रमा करने चले आए थे। हम सभी ने पूछा कि आप लोग तो कभी दिखायी देते नहीं फिर अब कैसे? वे बोले कि हमारा एसी कोच में आना मना है। यह भी मजेदार बात है, जेसे पुलिस वालों को कह रखा हो कि आप लोग एसी डिब्‍बे में चौथ-वसूली नहीं कर सकते इसलिए आपका वहाँ जाना वर्जित है? खैर वे भी परिक्रमा पूरी करके जा चुके थे और बातों का सिलसिला फिर शुरू हो चुका था। क्‍योंकि भला बाते जब शुरू हो जाएं तो कहीं जल्‍दी से थमती हैं क्‍या? फिर चाहे डिब्‍बा एसी हो या नान एसी। एक शंका यह भी जतायी जा रही थी कि कहीं उस पेसेन्‍जर के साथ कोई दुर्घटना तो नहीं हो गयी? इसीलिए वह दो घण्‍टे से गायब है। बातों का बतरस बहते हुए आखिर इलाहाबाद आने लगा। तभी वह महिला यात्री प्रगट हो गयी। अब तो तमाशा हो गया। वह महिला 14 नम्‍बर बर्थ वाली बोली कि क्‍या मैं आपको आतंककारी दिखती हूँ? अरे भाई क्‍या आतंककारी के दो सींग लगे होते हैं? फिर उसकी अकड़ बढ़ने लगी और बोली कि मैं कहीं भी जाकर बैठूं क्‍या जरूरी है कि बताकर जाऊँ? अभी उसकी आवाज का सुर तेजी पकड़ने ही लगा था कि इलाहाबाद आ गया और गाड़ी रूकते ही धड़ाधड़ पुलिस वाले अपनी लकदक वर्दी में आने लगे। हमारी बर्थ 9 नम्‍बर थी तो पहलं वहीं से गुजरे। हमने बता दिया कि खतरे की कोई बात नहीं हैं, लड़की आ गयी है। उन्‍होंने चैन की सांस ली। अब पुलिस को देखकर लड़की की सिट्टी-पिट्टी गुम। आखिर उसके साक्षात्‍कार के साथ उसका पता-ठिकाना नोट कर लिया गया। शिकायत दर्ज कराने वाली का भी नोट कर लिया गया।
इस सारी घटना से प्रश्‍न यह उगा कि ऐसी परिस्थिति में सहयात्री क्‍या करें? अपना सामान और वह भी केवल एक बेग को छोड़कर दो घण्‍टे तक दूसरे कोच में जाकर बैठना क्‍या शक पैदा नहीं करता? उस सहयात्री की शिकायत को गम्‍भीरता से लेना चाहिए या फिर वैसे ही बात का बतंगड बनाना कह देना चाहिए। आतंक की बढ़ती घटनाओं के कारण क्‍या हम सभी यात्रियों को सावधानी नहीं रखनी चाहिए?
कई दिनों से कोई पोस्‍ट नहीं लिखी थी, कल भी पुन: दिल्‍ली जाना है तो सोचा आज इसी पोस्‍ट से काम चला लिया जाए। वैसे दो घण्‍टे तक कोच में बड़ा ही सौहार्द का वातावरण रहा। लगा कि मुसीबत में ह‍म सभी को एक होने की आदत है नहीं तो स्‍वयं के खोल से बाहर नहीं आते हैं हम। देश पर हमला होता है तो हम सब एक हो जाते हैं नहीं तो वापस से अपने-अपने कुनबे का राग गाने लगते हैं। बस एक सीख मिली है कि अपने सामान की स्‍वयं ही सुरक्षा करें और दूसरे कोच में जाने से पूर्व यह अवश्‍य सोचें कि इससे अन्‍य यात्रियों में शक उत्‍पन्‍न हो सकता है। मैं तो कम से कम अवश्‍य ध्‍यान रखूंगी, क्‍या आप भी इस बात का ध्‍यान रख पाएंगे?

32 comments:

  1. आजकल के हालातों को देखते हुए सावधानी तो बरतनी ही होगी. हम भी दूद्रों के लिए परेशानी का सबब न बनें. सुन्दर ज्ञानवर्धक पोस्ट.

    ReplyDelete
  2. अजीत गुप्ता जी, नमस्कार
    मुझे लगता है इस शिव गंगा ट्रेन में ही कुछ गडबड है, मार्च में जब हम इसी ट्रेन से वापस आ रहा था तो किसी फ़्रांस की लडकी का बैग चोरी हो गया था।

    ReplyDelete
  3. Badee rochaktaa se aapne prasang bayaan kiya hai. Bag ya any koyee bhee saman chhod ke kisee bhee yatrre ne is tarah jana nahee chahiye...aaj kal man me aisa wyavhaar,shak zaroor paida kar deta hai.

    ReplyDelete
  4. आजकल तो बातावरण ही ऐसा बन गया है कि लाबारिस सामान को देखकर दिल धड़कने लगता है!

    ReplyDelete
  5. सावधानी तो ज़रूरी है..... अच्छी सीख मिली आपकी पोस्ट से .....

    ReplyDelete
  6. rochak v shikshaprad aalekh .aabhar

    ReplyDelete
  7. कुछ लोग वास्तव में बड़े मूर्ख होते हैं । सामान छोड़कर गई और उल्टा अकड़ भी रही है ।
    आजकल सावधानी बरतना तो आवश्यक है ।

    ReplyDelete
  8. आजकल इस तरह की घटनाएं इतनी ज्यादा होने लगी हैं...सावधान रहना जरूरी है...

    मुसीबत के वक़्त एक होनेवाली बात बहुत सही कही है...मुंबई में एक बिल्डिंग में रहते हुए भी लोग महीनो नहीं मिलते लेकिन किसी तरह की...या किसी पर भी कोई मुसीबत आई तो सब एक जुट हो कर उसके समाधान में जुट जाते हैं. ( luckily मेरे अनुभव ऐसे ही हैं)

    ReplyDelete
  9. अगर हम अकेले हैं, और साथ में सामान है तो उसे छोड़ कर जाना समझ में आता ही नहीं है....
    अगर साथ में कोई व्यक्ति है (जो सामान के पास हो ) तो हम दूसरे कोच या कहीं भी जाएँ कोई समस्या ही नहीं होगी
    लोजिकल बात तो यही है ऐसी परिस्थिति (जो पोस्ट में बतायी है ) में सामान्य आदमी शक करने पर मजबूर होगा ही

    ReplyDelete
  10. सतर्क होना तो जरुरी है क्योकि किसी के चेहरे पर नहीं लिखा होता है की कौन क्या है | पर अक्सर अकेले जाने वाले भी जब अपनी सीट छोड़ कर जाते है तो पास वाले को कुछ ना कुछ बता कर जाते है की फला सीट मेरी है या ये समान मेरा है ध्यान दीजियेगा मै अभी आ रही हूं |

    ReplyDelete
  11. सावधानी ज़रुरी है ... वैसे आज कल सामान सुरक्षित रह जाता है वरना इतनी देर तक यूँ ही लावारिस स पड़ा सामान तो कोई भी उठा कर चल पड़े ..

    विप्पति में ही सही पर एक जुट तो होते हैं लोंग ...

    ReplyDelete
  12. मुसीबत में ह‍म सभी को एक होने की आदत है नहीं तो स्‍वयं के खोल से बाहर नहीं आते हैं हम। देश पर हमला होता है तो हम सब एक हो जाते हैं नहीं तो वापस से अपने-अपने कुनबे का राग गाने लगते हैं।
    @ अच्छा तो इसी कारण सरकार आतंकियों से मिली रहती है ... ... प्रशासन/पुलिस भी समाज में मुसीबत को आमंत्रित करते रहते हैं कि देश में एकता बरकरार रहे .. आपस में प्रेम बना रहे आमजनता का . :)

    ReplyDelete
  13. अजित जी,
    उस विदेशी मैडम ने बाद में क्या किया जो दिल्ली से वाराणसी जाते वक्त आपके कोच में पैर पटक रही थी और एजेंट को बार-बार फोन कर हड़का रही थी कि साइड वाली और परिवार के सदस्यों को अलग-अलग सीट क्यों दी...

    आशा है आप की वाराणसी यात्रा सुखद रही होगी...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  14. आजकल के हालातों को देखते हुए सावधानी तो बरतनी ही पड़ती है ..लाबारिस सामान को देखकर सभी डरते है..अच्छी शिक्षा मिली हम सब को धन्यबाद...

    ReplyDelete
  15. खुशदीपजी, उस महिला के बारे में भी लिखने का मन है। शायद अगली कड़ी में वो ही हो। शिखा जी का कार्यक्रम पता लगा क्‍या?

    ReplyDelete
  16. .

    राम भरोसे चल रहे देश में हमारी "सुरक्षित यात्रा " भी राम भरोसे ही रहती है . जिन्दा बचे तो अगली यात्रा होगी अन्यथा अनंत-यात्रा का टिकट कट जाएगा !

    सावधानी बेहद जरूरी है . ऐसी स्थिति उत्पन्न होने पर सहयात्रियों की सम्मति से लावारिस वस्तु उठाकर फेंक देनी चाहिए ! टिकट-कलेक्टर की कारवाई तो aam janta की जान जाने के १० वर्षों बाद तक चलती रहेगी !

    .

    ReplyDelete
  17. soch ki baat hai...darr ab soch me bas gaya hai...


    http://teri-galatfahmi.blogspot.com/

    ReplyDelete
  18. बहुत अच्छी सलाह दी है आपने अपने इस संस्मरण के द्वारा। निश्चित रूप से भविष्य में इस बात का ख्याल रखा जाएगा कि जाने से पूर्व अपने सहयात्री को अपने सामानों के बारे में सूचित करके जाया करूं।

    ReplyDelete
  19. बहुत अच्छा लेख ..
    बधाई

    आभार

    विजय

    कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

    ReplyDelete
  20. ऐसा ही एक बार तब हुआ जब मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। भीड होने के कारण मैंने आपातकालीन खिडकी से अपना बैग अन्दर पकडा दिया। खिडकी के पास वाले बोले कि हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी। मैंने कहा कि यार, तुम्हारी कोई जिम्मेदारी नहीं है, बैग को जहां मन करे, डाल दो, लखनऊ पहुंचने पर मैं खुद ढूंढ लूंगा। और मैं दरवाजे पर लटक लिया।
    थोडी देर में डिब्बे में शोर मचा कि कोई एक बैग छोड गया है, बैग छोडकर पता नहीं कहां चला गया। दरवाजा आपातकालीन खिडकी से दूर होता है, मेरे पास खबर तब आई, जब कुछ लोग दरवाजे के ही रास्ते बैग को बाहर फेंकने की तैयारी कर रहे थे। मैंने उन्हें बताया कि यह तो मेरा बैग है, तो वे मुझ पर ही बरस पडे।
    तो जी, सफर में यह होता है। आतंक की घटनाओं के कारण सभी लोग शक करते ही हैं।

    ReplyDelete
  21. हर समय तम से कम इस बात की सावधानी तो रखी जाये।

    ReplyDelete
  22. हाँ .यही कह जातीं -मेरा सामान यहाँ रक्खा है,ज़रा जा रही हूँ .
    सहयात्रियों को अपनी खोज-खबर तो दे कर जाना चाहिये था .

    ReplyDelete
  23. ट्रेन की यात्रा हमेशा ही यादगार साबित होती है ! हम तो इसके आदी है ! बश सतर्क और सावधानी जरुरी है ! ऐसी परिस्थितियों में आप सभी को ट्रेन गार्ड या लोको पायलट की मदद जल्द मिल सकती है !आजमा के देंखे !

    ReplyDelete
  24. सही कहा आपने...
    मई मानता हूँ कि हमे ऐसी हरकतें नहीं करनी चाहिए जिससे दूसरों को कोई परेशानी हो|
    ऐसा ही एक किस्सा मेरे साथ भी घटित हो चूका है|
    करीब दो वर्ष पहले मैं अपने दो दोस्तों के साथ, वैष्णो देवी व श्रीनगर की यात्रा पर गया था| रात करीब १२ बजे हम कटरा पहुंचे| मेरे एक दोस्त के पैर में कुछ चोट आ जाने की वजह से वह उस दिन ठीक से चल नहीं पा रहा था| अत: सारा सामन हम बाकी दो दोस्तों ने उठा लिया| उसे केवल एक छोटा सा बैग थमा दिया| किन्तु वह भी तो सरदार ठहरा न| पता नहीं कैसे उसने वह बैग कटरा के एक चौराहे पर छोड़ दिया| होटल जा कर देखा तो बैग नहीं था| हम दोनों बाहर बैग ढूँढने निकले कि शायद चौराहे पर कहीं रख दिया हो| जाकर देखा तो वहां बम विरोधी दस्ता खोजी कुत्तों के साथ आ पहुंचा था| ऐसी संवेदनशील जगह पर ऐसा ही होता है| पूछताछ करने पर पुलिस ने हमसे कुछ सवाल किये| जब पुलिस को विश्वास हो गया कि बैग हमारा ही है तो एक पुलिस अधिकारी ने हमें हड़का दिया| उसने गरज कर कहा कि तुम्हारी छोटी सी लापरवाही की वजह से यहाँ हमे कितनी परेशानी हुई?

    अत: अब हर जगह इसका ध्यान रखता हूँ|

    ReplyDelete
  25. अकेले यात्रा पर हों तो वजनी बैग के साथ समस्या हो ही जाती है.

    एक बार ऐसा ही वाकया मेरे साथ हुआ.

    एक यात्रा में एक सहयात्री से परिचय हो गया. हम दोनों एक स्टेशन पर उतरे और आगे जाने के लिए अपनी अपनी ट्रेन का इंतजार करने लगे.

    इस बीच मैंने सहयात्री से कहा कि मेरे बैग को देखना मैं टॉयलेट से आता हूं. और जब मैं वापस आया तो पाया कि सहयात्री तो ग़ायब था, परंतु बैग को चार पुलिसिये घेर कर खड़े थे.

    दरअसल सहयात्री की ट्रेन आ गई थी.

    ReplyDelete
  26. आजकल तो लावारिस सामान ही सर्वाधिक सुरक्षित है :) किसी को कुछ बता कर जाने की भी ज़रूरत नहीं.

    ReplyDelete
  27. काम चलाऊ पोस्ट तो बिलकुल नही है यह.हमें तो लगा हम भी कोच में सवार हैं और घटना के चश्मदीद गवाह हैं...और यह आपकी किस्सागोई की बदौलत ही है!!

    ReplyDelete
  28. हम कहीं भी सुरक्षित नहीं रह गए हैं. हल्ला ज़रूर मच गया पर यदि वास्तव में उस बैग में कुछ होता तो ?
    एक बार बनारस रेलवे स्टेशन के प्लेटफ़ार्म पर मैं ट्रेन की प्रतीक्षा में था.यह तब की बात है जब खालिस्तान के कारण पूरे देश में असुरक्षा का वातावरण बन गया था. बेंच की अंतिम सीट पर पुराने पेंट का सिला हुआ एक थैला रखा था . थोड़ी देर बाद एक पुलिस अंकल ने आकर थैले के बारे में मुझसे और अन्य लोगों से पूछ-ताछ की. फिर वह चला गया. थोड़ी देर बाद तीन-चार पुलिस अंकल १७-१८ वर्ष के एक लडके को पकड़ कर पीटते हुए ले आये और उससे थैले का सामान निकालने को कहा. थैले का सामान निकलते ही सब लोग दंग रह गए. उसमें पुराने कपड़ों के नीचे विदेशी घड़ियाँ और कैमरे भरे थे.

    ReplyDelete
  29. चलिए मान लेते है उसमें कुछ नहीं था | लेकिन एक जागरूक यात्री के कारण कुछ चेतना तो जगी |
    पुलिस का २एसी में बसूली का हक़ नहीं है :)

    ReplyDelete
  30. अच्छी सीख मिली आपकी पोस्ट से .....
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

    ReplyDelete
  31. अब तो अपने साए से भी लोग घबराने लगे हैं :(

    ReplyDelete