Thursday, July 28, 2011

कल वाराणसी जा रही हूँ, आकर मिलती हूँ - अजित गुप्‍ता

बहुत दिनों बाद पोस्‍ट लिखने का समय मिला है। आज अपनी पसंदीदा ब्‍लोग्स को पहले पढ़ा फिर सोचा कि इस पोस्‍ट के माध्‍यम से अपनी उपस्थिति भी दर्ज करा ही दूं। कल ही बेटा वापस अमेरिका रवाना हुआ है, बहुत दिनों का भरा-भरा घर सूना सा हो गया है। वापस वे ही एकान्‍त के दिन लौट आए हैं। कहते हैं कि भारत में मानसून चतुर्मासा होता है लेकिन हमें तो उसकी फुहारे साल या दो साल  में कुछ दिनों के लिए ही भिगो पाती हैं। खैर यह सब तो हमारी पीढ़ी का कटु सत्‍य है और इसी में खुश भी हैं। मुझे लगता है कि प्रेम ऐसी वस्‍तु है जो सभी कुछ भुला देती है। भगवान यदि हर व्‍यक्ति को प्रेम से सरोबार कर दे तो वह शायद कुछ और करे ही ना! जब दिल चुक जाता है तो दीमाग सक्रिय होने लगता है। बहुत ढेर सारे अनुभव भी हैं इन दिनों के लेकिन अभी तो इस पोस्‍ट के माध्‍यम से केवल अपनी उपस्थिति ही दर्ज करा रही हूँ। क्‍योंकि मुझे कल ही वाराणसी के लिए निकलना है। इस बार 30 और 2 अगस्‍त को दिल्‍ली भी रहना होगा और 31 एवं 1 अगस्‍त को वाराणसी में। किसी से मिलने का योग बनता है या नहीं, यह नहीं जानती। अब वाराणसी से आकर मिलती हूँ, तब तक के लिए राम राम। 

19 comments:

  1. कितना खाली लगता है घर.... बस केवल यादें रह जाती हैं और इन्हीं के सहारे दो साल और काटने होंगे पुनःमिलन के लिए!

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  2. घूम आओ जी काशी,
    मैं तो महाशिवरात्रि के अवसर पर वहीं था।
    सब कुछ देखने की कोशिश करना।

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  3. अपनों के बीच सुखद समय यादगार बन जाता है, बनारस और दिल्ली यात्रा के लिये शुभकामनाएं.

    रामराम

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  4. यात्रा के लिए शुभकामनायें....

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  5. लगता है दिल्ली तो ट्रांसिट पॉइंट रहेगा ।
    शुभकामनायें जी ।

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  6. यात्रा के लिए शुभकामनायें!

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  7. आओ जी दिल्ली में आपका स्वागत है।

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  8. Dua kartee hun,aapka safar khushnuma rahe!

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  9. हाँ खाली खाली तो लगेगा ही घर|
    मैं भी पिछले सात वर्षों से अकेला हे रह रहा हूँ| आपने अपने परिवार के साथ एक अच्छा समय बिताया, अब उसी को याद रखें| आपको ये पल सदैव ख़ुशी देंगे|
    आपकी यात्रा मंगलमय हो|

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  10. अपने तो अपने होते हैं, बाकी सब सपने होते हैं...

    श्रावण मास में भोले की नगरी की यात्रा के संयोग से ही पता चलता है कि भोले की आप पर
    कितनी कृपा है...

    जय हिंद...

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  11. ... पंख तो होते ही उड़ान के लिए हैं.
    बस घोंसले हैं कि नाहक ज़िद कर बैठते हैं मोहब्बत की...

    पंकज उधास ने जब गाया था '...अपने घर भी है रोटी...' भला सा लगा था.

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  12. साहित्य साधना से अपना एकान्त दूर कीजिये।

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  13. कितने भी हो विशाल शक्तिशाली पंख मगर, अन्ततः आसरा तो घोसला ही होता है।

    स्नेहपूर्ण संस्मरण के साथ अब आपका यात्रा वृतांत भी पढने को मिलेगा!!

    शुभ-यात्रा मंगलमय हो!!

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  15. .

    जब दिल चुक जाता है तो दीमाग सक्रिय होने लगता है। ....How beautifully stated the fact . It happens exactly the way you have described . Wish you happy journey .

    .

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  16. यात्रा के लिए शुभकामनायें....

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  17. आपकी यात्रा के लिए शुभकामनाएं.....

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