बहुत दिनों बाद पोस्ट लिखने का समय मिला है। आज अपनी पसंदीदा ब्लोग्स को पहले पढ़ा फिर सोचा कि इस पोस्ट के माध्यम से अपनी उपस्थिति भी दर्ज करा ही दूं। कल ही बेटा वापस अमेरिका रवाना हुआ है, बहुत दिनों का भरा-भरा घर सूना सा हो गया है। वापस वे ही एकान्त के दिन लौट आए हैं। कहते हैं कि भारत में मानसून चतुर्मासा होता है लेकिन हमें तो उसकी फुहारे साल या दो साल में कुछ दिनों के लिए ही भिगो पाती हैं। खैर यह सब तो हमारी पीढ़ी का कटु सत्य है और इसी में खुश भी हैं। मुझे लगता है कि प्रेम ऐसी वस्तु है जो सभी कुछ भुला देती है। भगवान यदि हर व्यक्ति को प्रेम से सरोबार कर दे तो वह शायद कुछ और करे ही ना! जब दिल चुक जाता है तो दीमाग सक्रिय होने लगता है। बहुत ढेर सारे अनुभव भी हैं इन दिनों के लेकिन अभी तो इस पोस्ट के माध्यम से केवल अपनी उपस्थिति ही दर्ज करा रही हूँ। क्योंकि मुझे कल ही वाराणसी के लिए निकलना है। इस बार 30 और 2 अगस्त को दिल्ली भी रहना होगा और 31 एवं 1 अगस्त को वाराणसी में। किसी से मिलने का योग बनता है या नहीं, यह नहीं जानती। अब वाराणसी से आकर मिलती हूँ, तब तक के लिए राम राम।
कितना खाली लगता है घर.... बस केवल यादें रह जाती हैं और इन्हीं के सहारे दो साल और काटने होंगे पुनःमिलन के लिए!
ReplyDeleteintjaar rahega,
ReplyDeletejay raam ji ki
घूम आओ जी काशी,
ReplyDeleteमैं तो महाशिवरात्रि के अवसर पर वहीं था।
सब कुछ देखने की कोशिश करना।
अपनों के बीच सुखद समय यादगार बन जाता है, बनारस और दिल्ली यात्रा के लिये शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम
यात्रा के लिए शुभकामनायें....
ReplyDeleteलगता है दिल्ली तो ट्रांसिट पॉइंट रहेगा ।
ReplyDeleteशुभकामनायें जी ।
आपकी यात्रा मंगलमय हो!
ReplyDeleteयात्रा के लिए शुभकामनायें!
ReplyDeleteआओ जी दिल्ली में आपका स्वागत है।
ReplyDeleteDua kartee hun,aapka safar khushnuma rahe!
ReplyDeleteहाँ खाली खाली तो लगेगा ही घर|
ReplyDeleteमैं भी पिछले सात वर्षों से अकेला हे रह रहा हूँ| आपने अपने परिवार के साथ एक अच्छा समय बिताया, अब उसी को याद रखें| आपको ये पल सदैव ख़ुशी देंगे|
आपकी यात्रा मंगलमय हो|
अपने तो अपने होते हैं, बाकी सब सपने होते हैं...
ReplyDeleteश्रावण मास में भोले की नगरी की यात्रा के संयोग से ही पता चलता है कि भोले की आप पर
कितनी कृपा है...
जय हिंद...
... पंख तो होते ही उड़ान के लिए हैं.
ReplyDeleteबस घोंसले हैं कि नाहक ज़िद कर बैठते हैं मोहब्बत की...
पंकज उधास ने जब गाया था '...अपने घर भी है रोटी...' भला सा लगा था.
साहित्य साधना से अपना एकान्त दूर कीजिये।
ReplyDeleteकितने भी हो विशाल शक्तिशाली पंख मगर, अन्ततः आसरा तो घोसला ही होता है।
ReplyDeleteस्नेहपूर्ण संस्मरण के साथ अब आपका यात्रा वृतांत भी पढने को मिलेगा!!
शुभ-यात्रा मंगलमय हो!!
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ReplyDelete.
ReplyDeleteजब दिल चुक जाता है तो दीमाग सक्रिय होने लगता है। ....How beautifully stated the fact . It happens exactly the way you have described . Wish you happy journey .
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यात्रा के लिए शुभकामनायें....
ReplyDeleteआपकी यात्रा के लिए शुभकामनाएं.....
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