डी.आई.जी. सुधांशु अपने कक्ष में आज अकेले बैठे हैं। तभी डी.वाय.एस.पी. शर्मा ने उनके कमरे में प्रवेश किया। शर्माजी आज बहुत खुश थे। उनकी प्रसन्नता छिपाए नहीं छिप रही थी। वे उत्साह में भरकर डी.आई.जी को बता रहे थे कि सर! आज हमें बहुत बड़ी सफलता हाथ लगी है। हमारी टीम ने दो आतंककारियों को पकड़ने में सफलता हासिल की है। इतना ही नहीं हमने उन्हें सारे सबूतों के साथ पकड़ा है।
सुधांशु एकदम से अपनी कुर्सी से खड़े हो गए। वे इतनी जोर से चिल्लाए जैसे एकदम ही फट पड़ेंगे। तुमने कैसे सिद्ध कर दिया कि वे आतंककारी हैं? किसी आतंककारी के चेहरे पर लिखा होता है क्या कि वो आतंककारी है?
लेकिन वो सर कुख्यात है और उसकी हमें कई दिनों से तलाश थी। शर्मा ने विनम्रता से अपनी बात कही।
मैं कहता हूँ कि उन्हें अभी तत्काल छोड़ दो, यह मैं तय करूंगा कि कौन आतंककारी है और कौन नहीं।
शर्मा ने फिर अपनी बात कहनी चाही लेकिन उनकी लाल सुर्ख आँखों के सामने वे कुछ नहीं बोल पाए और कक्ष से बाहर आ गए। श्रीवास्तव ने उन्हें धीरज बंधाया और कहा कि सर छोड़ दीजिए आप भी उन आतंककारियों को। क्या पता उनके पास किसी बड़े नेता को फोन आ गया हो या फिर पेटी पहुंचा दी गयी हो। सभी का यहाँ दोगला चारित्र है। दिखते कुछ है और अन्दर से कुछ और होते हैं। हम तो हमेशा सर की ही कसमें खाते थे और आज इनका भी असली चेहरा देख लिया।
अभी कुछ ही समय व्यतीत हुआ था कि पड़ौसी प्रान्त के दो अधिकारी शर्मा और श्रीवास्तव के कक्ष में उपस्थित हुए। उन्होंने पूछा कि क्या मि. सुधांशु अपने कक्ष में हैं।
शर्मा ने कहा कि वे अपने कक्ष में ही हैं लेकिन आप लोग कैसे आए हैं?
हम उन्हें गिरफ्तार करने आए हैं।
शर्मा और श्रीवास्तव दोनों ही अवाक उन अधिकारियों का मुँह तकने लग गए। वे समझ नहीं पा रहे थे कि ऐसा क्या हुआ है? फिर उन्होंने अपने आपको सम्भालते हुए प्रश्न किया कि किस कसूर में आप उन्हें गिरफ्तार करने आए हैं?
उन पुलिस अधिकारियों ने बताया कि अभी एक महिने पहले ही हमारे प्रांत की पुलिस के साथ मिलकर आपके इन डीआईजी ने दो कुख्यात आतंककारियों को एक मुठभेड़ में मार गिराया था।
तो?
उस मुठभेड़ को आतंककारियों के वकील ने नकली मुठभेड़ सिद्ध कर दिया है। अब हम क्या सुधांशु को भगवान भी नहीं बचा सकते।
बढ़िया लघु कथा, आज ही एक लेख एस आई टी प्रमुख के पी रघवंशी के तबादले से सम्बंधित पढ़ रहा था , आपकी कहानी और उसमे काफी कुछ समानता दिखी !
ReplyDeleteउस मुठभेड़ को आतंककारियों के वकील ने नकली मुठभेड़ सिद्ध कर दिया है। अब हम क्या सुधांशु को भगवान भी नहीं बचा सकते।
ReplyDeleteHamari isi lachar shashan vyawastha ke chalte आतंककारियों के hausale buland hote hain aur uska kahmiyaga aam janata bhogti hai...
Vartaman pradhrshy ka sateek lekh..
bahut shubhkamnaynen
गोदियाल जी, मैंने वह आलेख नहीं पढ़ा, उपलब्ध हो तो लिंक भेजे।
ReplyDeleteइसलिए ही तो हौसला बुलंद हैं आतंकी !
ReplyDeleteबहुत ही कडुवा सत्य लिख दिया.. साधुवाद.
ReplyDeleteअक्सर ऐसा ही तो होता है. बहुत सुन्दर. आभार
ReplyDeletehttp://jitendradiary.blogspot.com/2010/03/blog-post.html
ReplyDeleteडाक्टर अजीत गुप्ता जी, आप उपरोक्त लिंक पर के लेख को पढ़ोगी तो लगेगा कि क्या संयोग है आपके लेख के ब्लॉगजगत पर पोस्ट होने से मुस्किल से पांच मिनट पहले ही यह लेख भी पोस्ट हुआ था !
Dr.Sahiba
ReplyDelete99.9 pratishat muthbhedh nakli hi hoti hai.Kai din pahle jiska incounter karna hota hai uska apharan ker media management kiya jata aur phir usko soonsaan jagah per le jaker usko goli marker hatya ker di jati hai.Yah sach sabhi jante hai.Shri K.P.Raghuvansi doodh ke dhule hue officer nahi hai.Yadi Aay se adhik sampati kisi bhi officer ke paas hai to doodh ka dhula nahi ho sakta. Bhrashtachariyo ki ek lambi jamat hai.Jinko chaandi VA SONE KE JOOTE MAAR KER KUCHH bhi karaya ja sakta hai.NICE................
Sadar
Suman
लघुकथा अच्छी लगी । मार्मिक!
ReplyDeleteआपकी लघुकथा बहुत ही सटीक रही!
ReplyDeleteअच्छी लगी लागु कथा .....सुमन जी की बात ...बात बिल्कुल सही है
ReplyDeleteबहुत सटीक!
ReplyDeleteआदरणीय सुमन जी
ReplyDeleteआप नाइस से निकलकर बाहर आये इसके लिए आभार। आप जिन रघुवंशी की बात कर रहे हैं मैं उनके बारे में अधिक नहीं जानती। यह लघुकथा मैंने लगभग एक माह पूर्व लिखी थी। जैसा कि मैंने पूर्व में लिखा था कि मैं लघुकथा संग्रह प्रकाशित कराना चाह रही हूँ इसलिए उसी संग्रह की कुछ लघुकथाएं यहाँ प्रेषित कर रही हूँ। यह संयोग ही है कि जिसे मैने लघुकथा बनाया वो घटना हाल ही में घटित भी हुई। इसलिए आप इसे लघुकथा ही मानकर टिप्पणी करें किसी घटना विशेष से नहीं जोड़े।
बहुत सटीक लिखा आपने. आपकी लघुकथायें बहुत बडी बात कह जाती हैं.
ReplyDeleteरामराम.
क़ानून के दाव-पेच लगा कर आतंकी छूटते रहते हैं ... इसलिए जुर्म बढ़ता जाता है .. अच्छी लघु-कथा है ...
ReplyDeleteबढ़िया लघु कथा .बहुत सुन्दर.. आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लघुकथा. जो सच भी कह दे और समाज को कचोटे भी.
ReplyDelete__________
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