Friday, December 21, 2018

दरबार में कितने रत्न?


बिना घुमावदार घाटियों पर घुमाए अपनी  बात को सीधे ही कहती हूँ, एक टीवी सीरीयल आ रहा है – चन्द्रगुप्त मौर्य, उसमें चाणक्य है, धनानन्द है और हैं चन्द्रगुप्त। इतिहास की दृष्टि से विवादित है लेकिन एक बात जिसने मेरा ध्यान खेंचा और लिखने पर मजबूर किया वह है – चन्द्रगुप्त 15 वर्षीय युवक है, चपल, तीक्ष्ण बुद्धिवान, साहसी आदि सारे गुण उसमें है। चाणक्य की खोज है वह, मगध के सिंहासन के लिये। धनानन्द भी चन्द्रगुप्त को अपने महल में सेवक बना देता है इसपर प्रश्न उठता है कि इस उदण्ड बालक को इतना महत्व क्यों? धनानन्द का उत्तर सुनने और समझने लायक है, धनानन्द कहता है कि मेरे पास दो विकल्प थे, एक इसे मृत्युदण्ड देना और दूसरा अपने समीप रखना। मृत्युदण्ड देता तो मैं देश से प्रतिभा को नष्ट करने का दोषी बनता इसलिये मैंने इसे अपने साथ रखने का मार्ग चुना। क्यों चुना यह मार्ग? क्योंकि यह प्रतिभा सम्पन्न है, यह हीरा है, यदि मैं अपने पास रखूंगा तो यह मेरे लिये कार्य करेगा और यदि नहीं रखूगा तो मेरे शत्रु के लिये कार्य करेगा। क्योंकि इसकी प्रतिभा को तो कोई ना कोई उपयोग में लेगा ही। राजनीति का यह सबसे बड़ा चिन्तन है। प्रबुद्ध लोगों को अपने लिये उपयोगी बनाना और अपने पास सम्मान सहित रखना। यह आप पर निर्भर करता है कि आप उसकी प्रतिभा को अपने लिये उपयोगी बनाते हैं या फिर उसका सम्मान ना करते हुए उसे शत्रु के लिये सौंप देते हैं।
देश की राजनीति में यही होता आया है, अक्सर धनानन्द जैसे क्रूर शासक ऐसे रत्नों को अपने पास येन-केन-प्रकारेण रख लेते हैं और अमात्य राक्षस की सहायता से सफलतापूर्वक  शासन करते हैं। अकबर के पास नौ रत्न थे, वह भी महान बन गया था। मेरे कहने से पूर्व ही आप समझ गये हैं कि मेरा इशारा किस ओर  है? भारतीय राजनीति का एक दल है जिसके पास 90 प्रतिशत ऐसे प्रबुद्ध लोग  हैं और दूसरे दल के पास मात्र 10 प्रतिशत। लोग आपके कार्य से प्रभावित होते हैं और आपके पास आते हैं लेकिन आप उन्हें सम्मान नहीं देते और ना ही उन्हें कोई उचित कार्य दे पाते हैं। व्यक्ति का हाल यह होता है कि वह मन से तो देश का कार्य करने के लिये सज्ज हो गया लेकिन उसे कोई घास ही नहीं डाल रहा, यदि घास डाल भी दे तो काम नहीं और काम भी दे दें तो सम्मान नहीं। एक बार हमने जनजातीय क्षेत्र में कुछ काम खड़ा किया, अनेक युवक व युवतियाँ निकलकर बाहर आयीं लेकिन अचानक ही काम बन्द करवा दिया गया। देखते क्या हैं कि वे सारे ही युवा मिशनरीज के साथ जुड़ गये। भँवरे ने खिलाया फूल, फूल को ले गया राजकुँवर। मेरे पास ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जब केवल शिक्षित करके हमने नौजवान पीढ़ी को उसके हाल पर छोड़ दिया। शिक्षित हम करते हैं और उसका उपयोग हमारे शत्रु करते हैं। इसलिये प्रबुद्ध वर्ग की आजीवन देखरेख करनी पड़ती है, उसकी बुद्धि का उपयोग अपने लिये करते रहना पड़ता है। ढील दी नहीं कि पतंग दूसरे ने काट डाली। आज जो हाहाकार मचा है, वह प्रबुद्ध लोगों की अनदेखी के कारण ही मचा है। मैंने देखें हैं कि लोग हाथ जोड़कर आपके दर पर महिनों तक पड़े हैं लेकिन आपने कहा कि हम ऐसे प्रबुद्ध लोगों को सम्भाल नहीं सकते। धीरे-धीरे सारे ही कमअक्ल लोग आपकी झोली में आ गये और दूसरे की झोली भर गयी। अभी फिर समय आया है, सोशलमीडिया के माध्यम से, जब अनेक प्रबुद्ध व्यक्ति आपके साथ जुड़ना चाहते हैं, तो लपक लीजिये उनको। कहीं ऐसा ना हो कि देर हो जाए और आप संघर्ष ही करते रह जाएं। देश प्रेम की भावना भर देने मात्र से ही कोई व्यक्ति केवल देश के लिये नहीं सोचता है, व्यक्ति पहले अपने सम्मान और उपयोग के लिये सोचता है। यदि ऐसा नहीं होता तो लाखों-करोड़ों लोग विदेश जाकर सम्मानित जिन्दगी का चयन नहीं करते? हम तो आपको सुझाव दे सकते हैं क्योंकि अब केवल सुझाव देने के ही दिन शेष हैं। जो हमारे सुझाव मान लेगा वह चन्द्रगुप्त सरीखे हीरों को अपने पास रख लेगा और उनके प्रकाश से खुद को भी प्रकाशित करता रहेगा और राजनीति को भी। कांग्रेस के लिये गाँधी परिवार केवल एक साधन है, प्रबुद्ध लोग उस परिवार के माध्यम से शासन को चुनते हैं लेकिन भाजपा के लिये मोदी ही एकमात्र सहारा है। मोदी नहीं तो कुछ भी नहीं। इसलिये भाजपा को तय करना है कि उसके दरबार में भी रत्नों का ढेर हो या नहीं? देश के उच्च पदों के लिये हम ऐसे ही खोज जारी रखेंगे या अपनी झोली से हीरे निकालकर देश को देंगे? आज लड़ाई राजनैतिक दल नहीं अपितु प्रबुद्ध वर्ग लड़ रहा है, वह अपने सम्मान का नमक अदा कर रहा है।

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