Wednesday, July 19, 2017

सेफू! तू भी अपनी माँ की बदौलत है

#हिन्दी_ब्लागिंग
कल iifa awards का प्रसारण  हो रहा था। उत्तर भारतीय शादी में और इस कार्यक्रम में कुछ अन्तर नहीं था। हमारे यहाँ की शादी कैसी होती है? शादी का मुख्य बिन्दु है पाणिग्रहण संस्कार। लेकिन यह सबसे अधिक गौण बन गया है, सारे नाच-कूद हो जाते हैं उसके बाद समय मिलने पर या चुपके से यह संस्कार  भी करा दिया जाता है। जितने भी फिल्मों के अवार्ड फंक्शन होते हैं, उनमें भी यही होता है। अवार्ड के लिये एक मिनट और हँसी-ठिठोली के लिये दस मिनट। शादी में सप्तपदी से अधिक महिला संगीत पर फोकस रहता है, यहाँ भी कलाकारों के नृत्य पर ध्यान लगा रहता है।
आप किसी भी शादी में मेहमान बनकर जाइए, बस वहाँ सब नाचते हुए ही मिलेंगे। सारा दिन नाच की प्रेक्टिस चलती है और मेहमान कौन आया और कौन गया किसी को नहीं पता। ब्यूटी-पार्लर भी प्रमुख विषय है, दूल्हा-दुल्हन को आशीर्वाद देने की ललक तो आपके मन में रह ही जाती है, जब पूछो तब – वे पार्लर गए हैं। कल वहाँ भी ऐसा ही हुआ। अवार्ड देते-देते ध्यान आ गया कि ये जो हिरोइनें हैं, इतना सज-धज कर आयी हैं, इनकी ड्रेस की भी नुमाइश लगा ही दी जाए। बस एंकर के मन में आया और खेल शुरू, किसकी ड्रेस सुन्दर का खेल, खेल लिया गया।
अवार्ड फंक्शन में फिल्म के प्रमोशन भी होने लगे हैं, जिसकी भी नयी फिल्म आ रही है, वह स्टेज पर आता हैं और अपनी-अपनी तरह से प्रमोशन करता है। हमारे यहाँ शादियों में ऐसा खेल तो नहीं होता लेकिन नये जोड़े  बनने का खेल खूब होता है। लड़के-लड़की ने कब आँख मटक्का कर लिया पता ही नहीं  चलता या फिर माता-पिता ने कब किसके लड़के या लड़की को देखकर पसन्द कर लिया, यह हमेशा का खेल है।

इसलिये शादी केवल सप्तपदी नहीं है, बहुआयामी समारोह है, ऐसे ही अवार्ड फंक्शन केवल पुरस्कार देना नहीं है अपितु पूरा फिल्मी मनोरंजन है। कौन नया कलाकार छाने की कोशिश में है और कौन पुराना अब स्थापित होकर अपनी जगह बना चुका है, सारे ही खेल होते हैं। बस एक बात ध्यान  देने की है कि जो किसी विशेष समूह से जुड़ जाता है, वह शीघ्र  ही ऊँचाई छूने लगता है और जो नहीं जुड़ पाता वह शायद अंधेरे में खो जाता है। इसलिये कुछ लोग अपनी उपस्थिति बनाए रखते हैं। मेरी छतरी के नीचे आ जा का खेल चलता रहता है। कभी कपूर खानदान की छतरी विशाल थी अब कई छतरियाँ तन गयी हैं और ऐसे समारोह ही तय करते हैं कि किसकी छतरी में कितनी सुरक्षा है। जिसने इन छतरियों को पहचान लिया बस वह सुरक्षित हो जाता है। कल की एक बातचीत – तू अपने बाप के कारण है, वरूण धवन से कहा गया। वरूण ने पलटकर कहा कि सेफू! तू भी अपनी माँ की बदौलत है। तभी कर्ण जौहर ने स्वयं कह दिया कि मैं भी अपने  बाप की बदौलत हूँ। 

8 comments:

  1. सही लिखा आपने, सभी जगह इन छतरियों का ही खेल है. बिना चतरी फ़िल्म जगत में बिरले ही कोई टिक पाता है.
    रामराम
    #हिन्दी_ब्लॉगिंग

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " "मैं शिव हूँ ..." - ब्लॉग बुलेटिन
    , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. अवार्ड फंक्शन तो खैर अब एकदम ही बिके हुए लगते हैं. साफ़ नजर आता है कि इस बार का कार्यक्रम किसने स्पोंसर किया है.
    हाँ शादियों का हाल देखकर मुझे ऐसा लगता है कि अब इन्हें एक सार्वजनिक समारोह की जगह व्यक्तिगत बना देना चाहिए. क्या जरुरत है परिजनों को बुलाने की, इतना खर्चा करने की ? क्योंकि उनकी कोई प्रतिभागिता तो उसमें होती नहीं. आते हैं, लिफाफा पकडाते हैं, खाते हैं और चले जाते हैं. कई बार तो दूल्हा दुल्हन का चेहरा तक देखना नसीब नहीं होता.

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  4. शिखा वार्ष्णेय - एक ही शहर की शादी में तो लिफाफा पकड़ाकर चले आना, सहन हो जाता है लेकिन जब दुसरे शहर में जाते हैं तब बेगैरत की तरह दिखायी देते है, तब लगता है कि क्यों आए?

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  5. किसी फंक्शन में पारदर्शिता नहीं रह गई है, शादियाँ पारिवारिक सामारोह हैं,परिचितों को अलग कर परिवार में समारोह सीमित करें तो इतना अटपटा नहीं लगेगा शायद, और चूंकि परिवार में भी हर कोई हर समय नहीं मिल सकता तो ये समारोह आपस में जोड़े रखने में सहायक हो सकते हैं ...लेकिन खास बात ये कि तू माँ या बाप की बदौलत है ,के बजाए छोटी सी अपनी पहचान ही व्यक्ति के लिए बहुत मायने रखती है ये समझना होगा सबको ...

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  6. वाकई आजकल शादी के समारोहों में बहुत दिखावा आ गया है..समसामयिक पोस्ट !

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  7. रिष्‍तों का दिखावा और इसकी कलई खोलता लेख ... बेहद उम्‍दा तरीके से की टिप्‍पणी है ... हमें भी अपने भीतर झाांकना चाहिए बदलने के लिए .. हम सभीको ।

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