Saturday, September 5, 2015

मैंने माँ-पिता से क्‍या सीखा?

प्रथम गुरु माँ होती है। मैंने माँ से क्‍या सीखा? माँ के बाद पिता गुरु होते हैं। मैंने पिता से क्‍या सीखा? देखें आज आकलन करें। मेरे पिता दृढ़ निश्‍चयी थे, उन्‍हें मोह-ममता छूते नहीं थे। हर कीमत पर अपनी बात मनवाना उनकी आदत में शुमार था। घर में उनका एक छत्र राज था। माँ उनके स्‍वभाव को सहजता से लेती थी। लेकिन घर में क्‍लेश ना हो इस बात से डरती भी थी। हम से बात बात में कहती थी कि तेरे पिता क्‍लेश करेंगे तो तुम थोड़ा डरो। हर पल हमें इस डर का हवाला दिया जाता था। तो हमने हमारी माँ से डरना सीखा।
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3 comments:

  1. बहुत ही उम्दा भावाभिव्यक्ति....
    आभार!
    इसी प्रकार अपने अमूल्य विचारोँ से अवगत कराते रहेँ।
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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