हम सभी के बचपन की यादों में नानी का घर है। जैसे ही
गर्मियों की शुरुआत हुई, स्कूल-कॉलेज बन्द हुए और चल पड़े नानी के घर। एक महिना
या दो महिना, बस सारी ही नानियों के घर आबाद रहते थे। मामा के बच्चे, मौसी के बच्चे
सभी मिलकर एक-दो महिना जो धूमधड़ाका करते थे वह यादें किसी के भी जेहन से जाती
नहीं। भरी गर्मी में ना पंखे थे और ना ही कूलर, एसी क्या होता है तब तक नाम भी
नहीं पैदा हुआ था।
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.सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति मन को छू गयी आभार . हम हिंदी चिट्ठाकार हैं.
ReplyDeleteनानी के घर या मामा घर आना मेरे लिए सदा मज़ेदार रहा ९ मामा और दो भांजों में अकेला मेरा रहना बहुत सुखद किन्तु घर और ननिहाल परनानी पिलीदाई से ताम्बे का पैसा पाना और मुर्रा के सोलह लड्डू मुगलानी के लड्डू बचपन जी उठा ....
ReplyDeleteआभार शिखा जी।
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