Sunday, February 17, 2013

तीन पीढ़ी का बचपन : कौन सही कौन गलत?

कहते हैं बचपन की कसक जीवन भर सालती है। बचपन के अभाव जिन्‍दगी की दिशा तय करते हैं। कभी अभाव मिलते हैं और कभी अभावों का भ्रम बन जाता है। कभी प्रेम नहीं मिलता तो कभी प्रेम का अतिरेक प्रेम को विकृत कर देता है। हमारी पीढ़ी के समक्ष तीन पीढ़ियां हैं। 
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4 comments:

  1. युग कहें या काल कोई भी हो उनकी सोच में अलगपन होना स्वाभाविक है क्योकि मुंडे मुंडे मतिर भिन्ना कुंडे कुंडे नवम पयः की स्थिति सदैव होती है .काल के साथ पात्र अर्थात पीढ़ी की सोच कहें या सम सामयिक मांग का प्रभाव सदैव परिलक्षित होता है ...वह धनात्मक या रिनात्मक कुछ भी हो सकता है ...

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  2. हैं बचपन की कसक जीवन भर सालती है।...सच कहा...यही एक वाक्य आकर्षित कर रहा है हर लिंक को क्लिक करने को....

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  3. उडन तस्‍तरी जी आभार आपका।

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