Wednesday, December 26, 2012

क्‍या करेंगे ये चार करोड़ लोग?

क्‍या करेंगे ये चार करोड़ लोग?

स्‍त्री-पुरुष जनसंख्‍या में चार करोड़ का अन्‍तर। पुरुषों के मुकाबले चार करोड़ स्त्रियां कम। जाँच-परख कर और चुन-चुन कर मारा है हमने कन्‍या को। सभी को चाहिए अपने घर में एक पुरुष।
पोस्‍ट को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - 
http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%95%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%87-%E0%A4%AF%E0%A5%87-%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A1%E0%A4%BC/

6 comments:

  1. भयानक स्थिति , जब समस्या बढ़ जाएगी तो ये लोग खड़ताल मंजीरा बजायेंगे

    ReplyDelete
  2. शानदार लेखन,
    जारी रहिये,
    बधाई !!!

    ReplyDelete
  3. वाकई..1000 का तुलना में 933 का अनुपात बड़ा छोटा लगता है पर जब व्यापक स्तर पर जाकर विचार करो तो असली खाई का अंदाजा होता है...

    नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।।।

    ReplyDelete
  4. अंकुर, स्थिति बह‍ुत ही भयावह है इसे हमारा समाज समझ नहीं पा रहा है।

    ReplyDelete


  5. ♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
    ♥नव वर्ष मंगबलमय हो !♥
    ♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥




    स्‍त्री-पुरुष जनसंख्‍या में चार करोड़ का अन्‍तर !
    पुरुषों के मुकाबले चार करोड़ स्त्रियां कम !
    जाँच-परख कर और चुन-चुन कर मारा है हमने कन्‍या को...

    बहुत भयावह स्थिति है !
    सिहरन होती है सोच कर ...
    आदरणीया डॉ. अजित गुप्‍ता जी

    पुरुष-नारी के बढ़ते आनुपातिक अंतर का सूक्ष्म विवेचन और समाज पर पड़ने वाले दुष्परिणाम का बहुत गहराई से खाका खींचा है आपने
    लड़कियों के लिए भी यह धंधा सम्‍मान का हो गया और ऐसे कलाकारों की संख्‍या बढ़ने लगी। कभी बार-बालाओं के रूप में तो कभी काल-गर्ल्‍स के रूप में और अब तो खेलों में भी चीयर-लीडरर्स के नाम पर धंधा खूब चल पड़ा।
    पूरा लेख रोंगटे खड़े करने वाला है ...
    अब भी नहीं संभले तो परिणाम और भी भयावह होते चले जाएंगे ।
    युवापीढ़ी क्रान्ति का बिगुल बजा रही है, लेकिन उसे पथ का मालूम होना चाहिए, पाथेय भी मिलना चाहिए और मंजिल का ठिकाना भी। नहीं तो यह युवाशक्ति भी एक अनियंत्रित भीड़ में बदल जाएगी।

    बहुत कुछ ऐसा घट रहा है , जिसकी अनदेखी संभव नहीं ...
    फिर भी आशा का दामन नहीं छोड़ना चाहिए


    वर्ष २०१२ की विदा-वेला में मैं अपनी ओर से नव वर्ष के स्वागत में कहता हूं-
    ले आ नया हर्ष , नव वर्ष आ !

    आजा तू मुरली की तान लिये ' आ !
    अधरों पर मीठी मुस्कान लिये ' आ !
    विगत में जो आहत हुए , क्षत हुए ,
    उन्हीं कंठ हृदयों में गान लिये ' आ !



    हम सबकी ,सम्पूर्ण मानव समाज की आशाएं जीवित रहनी ही चाहिए …

    नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित…
    राजेन्द्र स्वर्णकार
    ◄▼▲▼▲▼▲▼▲▼▲▼▲▼▲▼▲▼▲▼►

    ReplyDelete
  6. आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी। मेरे नए पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रिया की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी। नव वर्ष 2013 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। धन्यवाद सहित

    ReplyDelete