Thursday, September 22, 2011

हर व्‍यक्ति जरूरी होता है - अजित गुप्‍ता



निर्मम पतझड़ का आक्रमण! हरे-भरे पत्तों का पीत-पात में परिवर्तन! कभी तने से जुड़े हुए थे और अब झड़ के अलग हो गए हैं! वातावरण में वीरानी सी छायी है। सड़कों पर पीत-पत्र फैले हैं। बेतरतीब इधर-उधर उड़े जा रहे हैं। वृक्ष मानों शर्म हया छोड़कर नग्‍न हो गए हैं। भ्रम होने लगता है कि कहीं जीवन तो विदा नहीं हो गया? ठूंठ बने वृक्ष पर कौवा आकर कॉव-कॉव करने लगता है। सूखे श्रीहीन वृक्ष पर कैसा कर्कश स्‍वर है? लेकिन य‍ही नियति है। निर्मम पतझड़ ने सबकुछ तो उजाड़ दिया है। क्‍यों किया उसने ऐसा? यह पतझड़ ही खराब है, चारों तरफ से आवाजें आने लगी हैं। हवाएं भी चीत्‍कार उठी हैं, सांय-सांय बस चलती रहती हैं। माहौल गर्मा गया, हरियाली विलोप हो गयी। आँखों का सुकून कहीं बिसरा गया। प्रकृति का ऐसा मित्र? नहीं हमें जरूरत नहीं ऐसे मित्र की। पशु-पक्षी सभी ने मुनादी घुमा दी, नहीं चाहिए हमें पतझड़।
अभी बवण्‍डर अपना रूप ले ही रहा था कि एक अंकुर फूट गया। वृक्ष पर हरीतिमा छाने लगी। नवीन कोपल मन को उल्‍लास से भरने लगी। देखते ही देखते वृक्ष लहलहा गया। इतनी सुंदरता? इतनी मोहकता? कहाँ थी यह पहले? पतझड़ ने धो-पौंछकर नवीनता ला दी। अब तो राग भी बदल गया, कौवे का स्‍थान कोयल ने ले लिया। चिड़ियाऐं भी फुदकने लगी। मधुमक्‍खी ने भी छत्ता बना डाला। पुष्‍पों से पराग सींच-सींचकर मकरन्‍द बन गया।
बहुत सुन्‍दर है प्रकृति, बहुत जरूरी है इसके सारे ही तत्‍व। सारी ही ॠतुएं। इनमें से एक भी अपना कर्तव्‍य भूल जाए तो चक्र डांवाडोल हो जाएगा। प्रकृति ही विनाश करती है और प्रकृति ही सृष्टि को पुन: रचती है। जब-जब भी विरूपता-कुरूपता का आक्रमण हुआ, प्रकृति ने नवनिर्माण किया। जब प्रकृति डोलती है तब उसकी नाराजी सहन नहीं होती। लेकिन वह तो नव-निर्माण कर रही होती है। मनुष्‍य को सावचेत कर रही होती है कि इस संसार में सभी कुछ नश्‍वर है। पुरातन के बाद ही नवीन का उदय होगा।
हमारे मन में भी अनेकानेक विचार करवट लेते रहते हैं। कभी ये विचार भूचाल ला देते हैं तो कभी सुनामी। एकबारगी तो धरती विषैली सी हो जाती है लेकिन विष के बाहर आने के बाद एकदम शान्ति। आवश्‍यक है विचारो का उर्ध्‍व-वमन, निकल जाने दो इन्‍हें बाहर। प्रकृति में विष विस्‍तार लेगा तो अमृत की भी खोज होगी। समुद्र मंथन शायद हमारे मनों में ही हुआ हो। अमृत और विष दोनों ही बाहर आ सके थे। जिसको जो लेना था, उसने वो ले लिया। य‍ह सृष्टि ऐसे ही विस्‍तार लेती है। आज की युवा-पीढ़ी कहती है सारे ही फेंडस जरूरी है। हम भी यही कहते हैं कि सारे ही व्‍यक्ति जरूरी हैं। भोजन में षडरस। यात्रा पर निकलिए, करेला कितना मधुर लगता है। तीखे अचार का तो कहना ही क्‍या। भोजन के अन्‍त में मीठा ना हो तो? सारे ही रस अपने-अपने स्‍वादों की प्रधानता को स्‍थापित करते रहेंगे। जैसे हम अपने विचारों को स्‍थापित करते रहते हैं। परिवार में सारे ही सदस्‍य भोजन की टेबल पर बैठे हैं, बच्‍चा सबसे पहले करेले जैसी सब्‍जी को बाहर निकालता है, गुस्‍से में बोलता है कि मुझे नहीं खाना करेला। तभी दादाजी घुड़का देते हैं, क्‍यों नहीं खाना करेला? लेकिन अगले ही पल वे भी बोल उठते हैं कि मुझे नहीं खाना आलू-बेसन। सभी के अपने स्‍वाद हैं, सभी की जरूरतें। मत खाइए जो आपको पसन्‍द ना हो, लेकिन दूसरे के खाने को बुरा मत कहिए। आज जो मुझे पसन्‍द नहीं, हो सकता है वही कल मेरी जरूरत बन जाए। इसलिए मित्रों हमें भी सभी की जरूरत है। बस यही कहते रहिए कि सभी मित्र, सभी व्‍यक्ति जरूरी होते हैं।  इस धरती की खूबसूरती बनाए रखने के लिए प्रत्‍येक रंग जरूरी है, कहीं काला फबता है तो कहीं सफेद, कही हरा तो कहीं लाल। कभी कौवा आवश्‍यक होता है तो कभी कोयल का मधुर राग अच्‍छा लगता है। विचित्रता में ही आनन्‍द है। लड़ाई-झगड़े भी हमारे मन के कलुष को निकालने के लिए आवश्‍यक है। सभी का सम्‍मान कीजिए, सभी को जीने का अवसर दीजिए। बस हमेशा कहते रहिए सभी प्राणी जरूरी हैं।  

47 comments:

  1. बहुत सार्थक लेख ,पढकर बहुत अच्छा लगा . एक सन्देश देता हुआ लेख है आभार इस रचना के लिये .

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  2. सुन्दर सन्देश देता हुआ लेख. बधाई.

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  3. सार्थक सन्देश देती उत्कृष्ट प्रस्तुति। आभार।

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  4. लेख के मूल भाव से सहमत हूँ। सामंजस्य सृष्टि के स्वभाव में निहित है।

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  5. इस धरती की खूबसूरती बनाए रखने के लिए प्रत्‍येक रंग जरूरी है, कहीं काला फबता है तो कहीं सफेद, कही हरा तो कहीं लाल। कभी कौवा आवश्‍यक होता है तो कभी कोयल का मधुर राग अच्‍छा लगता है। विचित्रता में ही आनन्‍द है।

    आहा, आज तो साक्षात परमात्मा आपकी लेखनी से बोल रहा है, अति सुंदरतम आलेख. काश इसके लेशमात्र को भी कोई अपना ले तो जीवन आनंद मय हो जाये.

    रामराम.

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  6. गुलदस्ते की शोभा तरह-तरह के फूलों से ही होती है...

    जय हिंद...

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  7. प्रकृति के अनेक रूपों के साथ मानव मन में स्थित विचारों को जोड़ कर सार्थक सन्देश दिया है ..सच हर प्राणी ज़रुरी है ...

    सुन्दर लेख

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  8. दिव्‍या,
    स्‍वागत है, नयी, धुली और पवित्र सुबह के लिए।

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  9. गंभीर बात को बडी सरलता से कह दिया……………संदेशपरक सार्थक आलेख्।

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  10. सार्थक,सुन्दर सन्देश देता हुआ लेख. बधाई

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  11. अक्सर इस तरह की सद्भावना पूर्ण पोस्ट को हमारे देश के विचारशील[?] युवा "प्रवचन" श्रेणी में डाल देते हैं
    [राज की बात : ये लेखक/लेखिका के नाम पर निर्भर है ]

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  12. सत्य को प्रभावशाली तरीके के प्रस्तुत किया है..

    शुभकामनायें.

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  13. बहुत सच कहा है...बहुत सार्थक आलेख

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  14. बस उसे अपना महत्व दिखाने का अवसर मिले।

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  15. यह लेख है या कविता ?? काव्य का सा रस और सन्देश देता सार्थक लेख.

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  16. बहुत अच्छी बात कही है आपने ।
    लेकिन शुक्र है , पतझड़ के बाद बहार भी आती है ।

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  17. आपकी नियमित उपस्थिति के बावजूद भी हम बहुत कम ही आ पाए आपके इस ब्लॉग पर..मगर अब नहीं.. क्योंकि देर ने हमारा ही नुकसान किया है.. आपके इतने प्रेरक विचारों से वंचित रखकर..
    इतनी अच्छी और प्रेरक बातें सुनकर पाता चला कि क्यों प्रकृति को माँ कहते हैं!!
    आभार आपका!!

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  18. सन्देश देता हुआ सार्थक प्रस्तुति। पढकर बहुत अच्छा लगा . आभार....

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  19. शुरुआत की पंक्तियों में तो मैं खो सी गयी....इतना मोहक वर्णन किया है प्रकृति का
    बेहद सुन्दर संदेश के साथ एक सार्थक पोस्ट

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  20. aaj bahut dino baad aap ki post ki shuruaat me nayapan laga. lekin sundar aur saras tha.

    ant ki bate man me sawal utha rahi hain...ummeed hai aap samajh rahi hongi.

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  21. सार्थक सन्देश देता हुआ उच्च कोटि का आलेख आभार

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  22. सभी का सम्‍मान कीजिए, सभी को जीने का अवसर दीजिए। बस हमेशा कहते रहिए – सभी प्राणी जरूरी हैं।
    --
    सार्थक सन्देश देता हुआ उपयोगी आलेख!

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  23. नाक्षरं मंत्ररहीतं नमूलंनौषधिम्|
    अयोग्य पुरूषं नास्ति योजकस्तत्रदुर्लभ:||

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  24. तभी तो कहते हैं- वेराइटी इज़ द स्पाइस ऑफ़ लाइफ़:)

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  25. पोस्ट ने सतरंगी सत्ता की अहमियत को बताया तो सभी ने एक रंग में कहा...वाह!

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  26. सभी प्राणी जरूरी हैं।.....

    बहुत सुंदर हर एक के जीवन का महत्व बताती पोस्ट......

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  27. सही कहा है आपने, काला है तभी तो सफ़ेद भी है। कालिख न हो तो उजले की महिमा कौन जानेगा?

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  28. डॉक्टर साहब!
    ये हुआ सही प्रेस्क्रिप्शन।
    अब देखिए न हमें यह प्रस्तुति अच्छी लगी तो हम तो यही न लिखेंगे कि “बहुत अच्छी प्रस्तुति!”
    इस पर भी कुछ लोगों को खुजली होने लगे तो इलाज तो डॉक्टर के पास ही होगा, हम क्या बताएं।

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  29. सच कहा।
    सब की अपनी जरूरतें और सबकी अपनी पसंद होती हैं।
    सबका ख्‍याल रखना चाहिए।
    अच्‍छा लेख।
    आभार।

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  30. एक बेहतरीन सार्थक लेख, जिसे समझना आवश्यक है ....
    शुभकामनायें आपको !

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  31. जैव-विविधता के साथ मत-भिन्‍नता से ही दुनिया खूबसूरत है.

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  32. शिखा जी
    आपने इस आलेख को कविता का नाम दिया है, मैंने इसे ललित निबन्‍ध शैली में लिखने का प्रयास किया है। पता नहीं कितना सफल हो पायी?

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  33. अनामिका
    मेरा यही प्रयास रहता है कि सभी को साथ लेकर चला जाए लेकिन पता नहीं क्‍यों लोगों को विश्‍वास नहीं होता। बस इतना अवश्‍य ध्‍यान रखती हूँ कि सभी अपनी मर्यादा में रहें और मैं भी अपनी मर्यादा में ही रहूं। प्रकृति यदि अपनी मर्यादा तोड़ती है तो विनाश ही होता है, विकास नहीं। हम सब प्रकृति से बहुत प्रेम करते हैं, उसके लिए मन में हमेशा प्रेम बना ही रहता है लेकिन जब यही प्रकृति अति करती है तब कहाँ हम प्रेम कर पाते हैं? शायद तुम्‍हारे प्रश्‍न का उत्तर मिल गया होगा।

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  34. हम ही हम हैं तो क्या हम है तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो हम सब मिल कर ही गुलदस्ते को खूब्सूरत बनाते हैं

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  35. सुन्दर सन्देश देता हुआ आलेख ...

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  36. बढिया और सार्थक लेख.
    काश संदेश पर लोग अमल भी करें

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  37. हर आज के लिए जरुरी है ये शाश्वत विचार |
    बहुत सुन्दर संदेस देती जीवंत पोस्ट |

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  38. प्रकृति की कोई भी चीज व्यर्थ नहीं है। धूल का तुच्छ कण भी प्रकृति की व्यवस्था को संतुलित बनाए रखने में सहायक है। इसी तरह समाज में संतुलन के लिए प्रकृति ने हर तरह के मनुष्य का निर्माण किया है।

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  39. हर चीज़ का अपना महत्व है -जो समय आने पर ही पता लगता है ।

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  40. बिलकुल सही कहा आपने।

    लेकिन अक्‍सर एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है और उसका खामियाजा सबको भुगतना पडता है। इसलिए जरूरी है कि उसकी पहचान की जाए, ताकि आगे से ऐसी स्थिति न आने पाए।

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    मनुष्‍य के लिए खतरा।
    ...खींच लो जुबान उसकी।

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  41. पतझड़ के बाद वसंत का शुभागमन होता है किन्तु चौमाषे में पतझड़ की कल्पना आशातीत . कविता मय निबंध अति सुंदर.

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  42. ' विचित्रता में ही आनन्‍द है। लड़ाई-झगड़े भी हमारे मन के कलुष को निकालने के लिए आवश्‍यक है। सभी का सम्‍मान कीजिए, सभी को जीने का अवसर दीजिए। बस हमेशा कहते रहिए – सभी प्राणी जरूरी हैं। " - बहुत सतरंगी प्रेरणा

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  43. ek sandesh, ek sarthak prayaas...achha laga apke blog per a ker...mere blog per bhi aapka swagat hai..

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