Thursday, December 23, 2010

लघु कथा के वर्तमान दौर में कैसे करे लेखन? – अजित गुप्‍ता


वर्तमान दौर लघुकथा लेखन का है। पूर्व में किसी भी पत्रिका में सद-विचार या चुटकुले प्राथमिकता से पठनीय होते थे। लेकिन आज इनका स्‍थान लघुकथाओं ने ले लिया है। लघुकथाएं जहाँ भारत में भी अपना स्‍थान बना रही है वहीं विदेशों में प्रतिष्‍ठापित हो चुकी है। आज इन्‍टरनेट पर विदेशी लघुकथाओं के अनुवाद प्रतिदिन पढ़ने को मिलते हैं। एक से एक बढि़या और नायाब। लेकिन जब भारत की स्थिति पर दृष्टि डालते हैं तब मायूसी ही हाथ लगती है। आज का लेखक लघुकथा का शिल्‍प जाने बिना ही लघुकथा लिख रहा है। इस कारण पाठक पर अपेक्षित प्रभाव नहीं दिखायी देता है। मैंने लघुकथा पर विद्वानों से परामर्श किया, उनके आलेख पढे और कार्यशाला भी आयोजित की। इस कार्यशाला का उल्‍लेख विकीपीडिया पर भी है।
मैं यहाँ अपनी बात सरल शब्‍दों में लिखने का प्रयास कर रही हूँ, जिससे पाठक और लेखक लघुकथा के बारे में आसानी से समझ सके। साहित्‍य में लघुकथा को परिभाषित करने के लिए मैंने गद्य में चुटकुले और पद्य में दोहे और शेर का प्रयोग किया है। यदि आप दोहे और गजल के एक शेर को देखेंगे तो पाएंगे कि एक दोहा और एक शेर अपने आपमें परिपूर्ण होता है। दोहे और शेर में चार चरण होते हैं लेकिन अन्तिम चरण सबसे उपयोगी होता है। कवि या शायर की बात अन्तिम चरण से ही स्‍पष्‍ट होती है और हमें चमत्‍कृत कर देती है। यदि दोह और शेर में चमत्‍कृत करने की क्षमता नहीं है तो फिर वह खारिज कर दिया जाता है। इसी प्रकार गद्य में हम अपनी बात चुटकुले के रूप में जब कहते हैं तब अन्तिम पंक्ति में हास्‍य उत्‍पन्‍न होता है। चुटकुले और लघुकथा में बस यही अंतर है कि चुटकुले के अन्‍त में हास्‍य पैदा होता है लेकिन लघुकथा के दर्शन से व्‍यक्ति चमत्‍कृत होता है जैसा कि दोहे और शेर में होता है।
लघुकथा में वर्णन की गुंजाइश नहीं है, जैसे चुटकुले में नहीं होती, सीधी ही केन्द्रित बात कहनी होती है। कहानी विधा में उपन्‍यास और कहानी के बाद लघुकथा प्रचलन में आयी है। उपन्‍यास में सामाजिक परिदृश्‍य विस्‍तार लिए होता है ज‍बकि कहानी में व्‍यक्ति, चरित्र, घटना जैसा कोई भी एक बिन्‍दु केन्द्रित विषय रहता है जिसमें वर्णन की प्रधानता भी रहती है लेकिन लघुकथा में दर्शन प्रमुख रहता है। लघुकथा का प्रारम्‍भ किसी व्‍यक्ति के चरित्र या घटना से होता है लेकिन अन्‍त पलट जाता है और अधिकतर सुखान्‍त होता है। व्‍यक्ति का जो चरित्र हम समझ रहे थे वह परिवर्तित हो जाता है और पाठक चमत्‍कृत हो जाता है कि इस व्‍यक्ति या समाज के चरित्र का यह एक रूप भी और विद्यमान है।  कभी-कभी लघुकथा का समापन व्‍यंग्‍य में भी होता है लेकिन इसे हास्‍य से पृथक स्‍थापित करना होगा।
मैंने कुछ उपयोगी बिन्‍दु आप सभी के लिए यहाँ प्रस्‍तुत किये हैं। लघुकथा मुझे हमेशा से ही प्रभावित करती रही हैं इसलिए जब मैंने इस विषय पर एक कार्यशाला का आयोजन किया तब संयोजक ने सभी को एक पेपर दे दिया और कहा कि अभी दस मिनट के अन्‍दर एक लघुकथा लिखनी है। मैंने इससे पूर्व कोई भी लघुकथा नहीं लिखी थी। मैं चाहती तो नहीं भी लिखती लेकिन मैंने सोचा कि इस कार्यशाला का उद्देश्‍य तभी पूर्ण होगा जब मैं भी इसमें एक लघुकथा लिखू। एकदम से कोई कथानक ध्‍यान में आना बड़ा ही कठिन विषय है। मैंने उस सुबह का चिन्‍तन किया कि सुबह क्‍या हुआ था और मुझे लघुकथा का विषय मिल गया। मैंने अपनी पहली लघुकथा लिख दी थी लेकिन डर था कि वह कही मापदण्‍डों पर खरी नहीं उतरी तो प्रतिष्‍ठा दांव पर लग जाएगी। मुझे तत्‍काल ही दूसरे कार्यक्रम में जाना था तो मैं बिना परिणाम जाने ही वहाँ से रवाना हो गयी। लेकिन मुझे सुखद आश्‍चर्य हुआ कि मेरी लघुकथा प्रथम आयी। एक बार तो मैंने समझा कि मेरे पद के कारण ऐसा हुआ है लेकिन जब मैंने अन्‍य लघुकथाएं देखी तो समझा कि नहीं पद के कारण ऐसा नहीं हुआ है। मुझे संतोष हुआ और फिर मैंने लघुकथा लिखना प्रारम्‍भ किया। उसी का परिणाम है कि मैं अपना लघुकथा संग्रह प्रकाशित करा सकी।
इसी संग्रह से एक लघुकथा प्रस्‍तुत है -
किसका नरक बड़ा

मोहन काका कच्ची बस्ती में घूम रहे हैं। वे एक घर के बाहर कुछ देर बैठ जाते हैं। घर के बाहर गन्दी नाली बह रही है, उसमें सूअर लौट रहे हैं। पास ही दो कुत्ते लड़ रहे हैं। अन्दर से औरतों के झगड़ने की आवाजें आ रही हैं। एक बूढ़ा व्यक्ति खाट पर लेटा है, वह चिल्ला रहा है अरे मुझे भी तो रोटी दे दो, सुबह से शाम हो गयी, अभी तक पेट में दाना भी नहीं गया है।
तभी सुरेश सायकिल चलाता हुआ मोहन काका के पास चला आता है। उन्हें देखते ही बोलता है कि काका आप यहाँ क्या कर रहे हैं? गन्दी बस्ती में घूम रहे हैं। क्या आप पागल हो गए हैं?’
नहीं रे वापस अपनी कोठी जाने पर मुझे वहाँ का नरक भी अच्छा लगने लगे इसीलिए ही घूम रहा हूँ।

42 comments:

  1. अपने अनुभवों को हमारे साथ बांटने का शुक्रिया।

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    मोबाइल चार्ज करने की लाजवाब ट्रिक्‍स।

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  2. Bahut achhe se vivaran kiya hai aapne!

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  3. अजित जी

    लघु कथा के बारे में बताने के लिए धन्यवाद |

    एक अपनी बात कहना चाहूंगी | ब्लॉग जगत में मैंने कई लघु कथाये पढ़ी उन्हें पढ़ने के बाद वैसा ही कुछ विचार दिमाग में आया और मैंने लिख दिया उसके बारे और कुछ सोचा नहीं बस जैसे विचार आये थे उन्हें वैसे ही उतार दिया | लिखते समय ये भी नहीं सोचा की ये लघु कथा जैसा कुछ है ये तो आप जैसा कोई जानकार ही बता सकता है की क्या वो लघु कथा की श्रेणी में है या नहीं , चुकी साहित्य से मेरा जुड़ाव नहीं रहा है इसलिए उस बारे में सोचा नहीं की साहित्य की दृष्टी ये किस रूप में है | फिर भी यदि आप मार्ग दर्शन करेंगी तो मै अपनी गलतिया सुधार कर अपनी लेखनी को अच्छा कर सकती हु |

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  4. सही कहा , आजकल लघु कथाएं ज्यादा प्रचलित हैं ।
    वैसे भी आजकल हर चीज़ में शोर्ट कट का ज़माना है ।

    लघु कथा बड़ी बात बता गई ।

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  5. अंशुमालाजी,आप जब भी सहयोग मांगेगी मेरा सहयोग हमेशा आपके साथ है।

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  6. लघु कथा के लेखन के बारे में आपकी पोस्ट के माध्यम से गहराई से जाना है | आभार |

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  7. बहुत ही काम की बातें बता दीं,आपने...लघु कथा के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला.

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  8. अजित जी
    बहुत अच्छी पोस्ट है...एक छोटी-सी लघुकथा बहुत बड़ी बात कह देती है...

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  9. अजित जी बहुत बहुत शुक्रिया कि आपने एक ऐसे वि‍षय को लिया जिस पर जरूर ही बात होनी चाहिए।
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    1982 के आसपास जब लघुकथा आंदोलन बहुत जोरों पर था मैं भी उससे जुड़ा था। मैंने भी लघुकथाएं लिखीं।
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    लघुकथा वास्‍तव में मुद्दे की बात कहती है। उसमें लेखक को अपनी भाषा का कौशल दिखाने का मौका तो होता है,लेकिन अन्‍य कौशल दिखाने का अवसर नहीं होता है। अपने भाव,अपने भावों की गहन अभिव्‍यक्ति, बातों को कहने का अंदाज आदि सब कुछ कहने के लिए लेखक को कहानी या उपन्‍यास लिखना चाहिए। लेकिन यही बात अभी भी बहस में है। कुछ लघुकथाकार इस सबको शामिल करके ही लघुकथा लिख रहे हैं। उससे लघुकथा कमजोर पड़ती है।
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    आपकी प्रस्‍तुत लघुकथा के कथ्‍य पर टिप्‍पणी नहीं करुंगा। लेकिन एक बात कहना चाहूंगा कि लघुकथा में दृश्‍य का वर्णन नहीं बल्कि दृश्‍य घटता हुआ होना चाहिए। आपकी इस लघुकथा में यह दृश्‍य दोष है।

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  10. आदरणीय अजित जी
    नमस्कार !
    ..........बहुत ही काम की बातें बता दीं

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  11. लघुकथा के विषय में सुन्दर आलेख!!!
    सार्थक लघुकथा!

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  12. राजेश जी, आपने बहुत अच्‍छा बिन्‍दु निकाला है। लेकिन जिस दृश्‍य की आप बात कर रहे हैं क्‍या वह घटता हुआ प्रतीत नहीं हो रहा है?
    "घर के बाहर गन्दी नाली बह रही है, उसमें सूअर लौट रहे हैं। पास ही दो कुत्ते लड़ रहे हैं। अन्दर से औरतों के झगड़ने की आवाजें आ रही हैं। एक बूढ़ा व्यक्ति खाट पर लेटा है, वह चिल्ला रहा है ‘अरे मुझे भी तो रोटी दे दो, सुबह से शाम हो गयी, अभी तक पेट में दाना भी नहीं गया है।"
    यदि पाठक को घटना में बहाव नहीं नजर आ रहा है तो मैं इस बात को ध्‍यान में रखूंगी। लघुकथा के बारे में और भी कुछ बिन्‍दु हो तो आप मुझे अवश्‍य अवगत कराएं। आपका आभार।

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  13. हाज़िर हूँ अजित मैम !

    देर से आने के लिए क्षमा चाहता हूँ ...लघुकथा हो या सामान्य कथा मुझे तो बिलकुल नहीं आती ! मगर आपका यह पाठ पढने के बाद अब आसानी से लिख लूँगा और हो सकता है आप सबसे अच्छे नंबर मुझे ही दें !


    मैम ...आपके सैंडिल पर पालिश करा लाऊँ ..वह पालिश वाला आज फ्री पालिश कर रहा है ??

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  14. अजित्त जी लघुकथा के फलक का आपने बिस्तृत वर्णन किया ........... काफी अच्छी लगी आपकी पोस्ट....... लघुकथा भी बहुत कम शब्दों में बहुत कुछ कहती हुई......जिन भावों को लिखने के लिए पुरे कहानी का पटल चाहिए था उतने ही को आपने चंद शब्दों में समेटकर सुंदर लघुकथा बना दिया है........

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  15. ajit ji bahut bahut shukriya jo is gyan ganga me hame bhi dubki lagane ka mauka mila...aapki aur rajesh ji ke comments padhe aur man utsaahit hua kuch koshish karne ko..dekhti hun kab tak kaamyaab hoti hun.

    ek bar fir se shukriya.

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  16. लघुकथा के बारे में जानकारी देने का बहुत शुक्रिया.अभी कुछ दिन पहले ही मुझे एक मेल आया कि आपके आलेख पढ़े आप लघुकथा लिखा कीजिये और हमें भेजिए.मैं हैरान परेशां कि लघुकथा का क ख ग भी नहीं आता मुझे.अब आपके सहयोग से कोशिश तो की ही जा सकती है .
    आभार..

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  17. लघुकथा पर आलेख और लघुकथा दोनों प्रस्तुति अच्छी लगी। लघुकथा अपनी संक्षिप्तता, सूक्ष्मता एवं सांकेतिकता में जीवन की व्याख्या को नहीं वरन् व्यंजना को समेट कर चली है।

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  18. जीवन की आपाधापी शायद महाकाव्यों को उपन्यास में, उपन्यास को कहानी और कहानी को लघुकथा में shrink करती चली आई है... आने वाले कल में हो सकता है कि हाइकु एक शब्द में और शब्द बस खाली जगह में ही बदल कर जाए...

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  19. लघुकथाओं पर अच्छा विश्लेषण। अनुभवों को सघन कर लिखना पड़ता है इसमें।

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  20. बहुत सही बात बताई आप ने लघु कथा के बारे ओर आप की लघू कथा ढेर सा दर्द लिये हे, धन्यवाद

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  21. लघुव कथाएँ अच्छी लगती हैं ,पर कभी लिखी नहीं .आपने शिल्प और विशेषताओं से परिचित कराया ,शायद कभी मैं भी लिखूँ .
    लिखूँगी तो सबसे पहले आप ही को दिखाऊँगी -एक और झंझट आपके लिए .
    लेकिन मैं आभारी हूँ .

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  22. बहुत ही ज्ञान वर्धक पोस्ट है ....उदहारण सहित लघुकथा की सही जानकारी देने के लिए धन्यवाद .

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  23. jजैसा कि दराल साहिब ने कहा है कि आजकल शार्ट कट का जमाना है ऐसे मे वर्तमान मे लघु कथा का उपयोग और भी बढ जाता है। आपके अनुभव सब के काम आयेंगे। आपकी लघु कथा भी चंद शब्दों मे बहुत कुछ कह गयी। बधाई और धन्यवाद।

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  24. हमें तो भविष्य SMS का लगता है, हालाकि लगता नहीं की कोई ब्रांड लेखक इसे शैली के रूप में विकसित करेगा, पर कुछ बेनामी लोगो की खुराफातों से ये वर्ग हमेशा ही फलता फूलता रहेगा.
    रही बात लेखन की, तो बतौर पाठक हमें या तो शुद्ध हास्य पसंद आता है, या फिर कुछ सकारात्मक सन्देश देती रचना. हालत पेश करना, वो भी दुखांत के साथ, ये काम तो रिपोर्टर भी कर सकते है. हमारे हिसाब से सार्थक लेखन वो है जो समस्या के साथ साथ अपने सुझाव भी पेश करे, और आशावादी नज़रिया रखे. तकनीक सही नहीं भी तो ज्यादा हर्ज़ नहीं ...
    लिखते रहिये ...

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  25. काजल कुमार जी,
    आपने यह नहीं लिखा कि अन्‍त में कार्टून में। सच है आज सब से अधिक प्रभावित कार्टून ही करते हैं। एक ही लाइन या कुछ शब्‍दों में सारी बात आ जाती है।

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  26. मजाल जी
    लघुकथा यथासम्‍भव सुखान्‍त ही होती है और होनी भी चाहिए। लेकिन वर्तमान में कुछ लोग दुखान्‍त भी कर देते हैं। व्‍यक्ति के दर्शन में उसका समाधान छिपा होता है। जैसे मेरी लघुकथा में समाधान ही था कि आप अपने घर के नरक को कैसे सहन करें? आप जब दुनिया की विद्रूपताएं देख लेते हैं तब अपना दुख कम लगने लगता है।

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  27. लघुकथा के बारे में जानकारी अच्छी लगी ...

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  28. लघुकथा के बारे में आपकी यह जानकारी ..बहुत ही अच्‍छी लगी ..आभार इस सुन्‍दर लेखन के लिये ।

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  29. किसका नरक बड़ा……………सही कहा आज के सच को चरितार्थ कर दिया।

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  30. लघु कथा के बारे में पढ़कर अच्छा लगा। लिखना कभी होगा या नहीं क्या पता!

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  31. @अजित जी आपकी लघुकथा का एक संपादित रूप प्रस्‍तुत है। (धृष्‍टता के लिए क्षमा याचना सहित।)
    *
    अपने अपने नरक

    मोहन काका कच्ची बस्ती में घूम रहे थे। थक कर सुस्ताने के लिए एक घर के बाहर कुछ देर के लिए बैठ गए। पास ही गन्दी नाली में सूअर लोट रहे थे। कुछ दूर दो कुत्ते बेवजह एक-दूसरे पर गुर्रा रहे थे। अन्दर से औरतों के झगड़ने की आवाजें आ रही थीं। एक बूढ़ा व्यक्ति जमीन से लगती खाट पर लेटा चिल्ला रहा था, ‘अरे मुझे भी तो रोटी दे दो, सुबह से शाम हो गयी, अभी तक पेट में दाना भी नहीं गया है।‘

    सायकिल पर जा रहा सुरेश मोहन काका को देखकर रूक गया। ‘काका आप यहाँ...यहां इस नरक में क्या कर रहे हैं?
    काका ने मोहन को उड़ती नजर से देखा।
    ‘क्या आप पागल हो गए हैं?’ मोहन ने अगला सवाल किया।
    ‘नहीं रे वापस अपनी कोठी जाने पर मुझे वहाँ का नरक अच्छा लगने लगे इसका अभ्यास कर रहा हूं।‘

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  32. राजेश जी
    आपने इतना परिश्रम किया इसके लिए आभार। यदि हम ऐसे ही एक दूसरे का हाथ पकडेंगे तो साहित्‍य के लिए बहुत बड़ा उपकार होगा। पुन: आभार।

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  33. laghukatha ki yatra achhi lgi aursabhi ke kment padhkar bhi gyanvardhn hua .
    abhar

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  34. बहुत जरूरत थी इस तरह के आलेख की मैम और सच में यह एक दिशा देता हुआ सा है.. खासकर जबकि मैं आजकल लघुकथा पर ही काम कर रहा हूँ तब.. जल्द ही संग्रह सामने आएगा. पर ये बात भी पूरी तरह सही नहीं लगती कि हिन्दी लघुकथाएं अन्य भाषाओं(खासकर अंग्रेज़ी) की तुलना में अच्छी नहीं. बल्कि हिन्दी लघुकथाकारों की कई रचनाओं के आगे अंग्रेजी लघुकथाएं दोयम दर्जे की लगती हैं. उनका शिल्प भी बहुत अलग है. एक उदाहरण के तौर पर अनिल जनविजय जी या असगर वजाहत सर को ही देख सकते हैं. और भी कई नाम हैं. :)

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  35. दीपक मशाल जी
    आप भी सही कह रहे हैं लेकिन जब हम नेट पर और पत्रिकाओं में अनुवादित लघुकथाएं पढते हैं तो बहुत ही श्रेष्‍
    ठ होती हैं लेकिन जब हम हिन्‍दी भाषी पढते हैं तब वह उनके मुकाबले टिकती नहीं हैं। लेकिन यह भी एक तथ्‍य है कि भारतीय लघुकथाओं का अधिक प्रचार नहीं हुआ है इसलिए देखने को कम मिलती है जबकि विदेशी लघुकथाएं प्रचुरता से देखने को मिलती है।

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  36. लघु कथा पर बेहतरीन जानकारी उपलब्ध कराई आपने। हिंदी भाषा में इस विधा के विकास की आवश्यकता है।
    आभार अजित जी।

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  37. laghu katha aur saath ki baaten donon hi bahut achchi lagin.

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  38. वाकई चमत्कृत कर देने वाला अंत।
    आप से इस विषय में बहुत कुछ सीखना शेष है।

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  39. आपकी इस विषय पर दी गई टिप्स से ज्ञानवर्धन हुआ। अपने साथ एक विडम्बना है कि लघुकथा, शेर, गज़ल अच्छे तो लगते हैं और लिखने वालों के प्रति श्रद्धा भी उपजती है(ईर्ष्या सहित), लेकिन हम तो टिप्पणी भी लिखना चाहें तो वो भी कई बार अनावश्यक विस्तार ले लेती हैं। कम शब्दों में अपनी बात कहना, एक बहुत बड़ा गुण है। हम जैसे भी कुछ तो लाभान्वित होंगे ही।
    आभार।

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  40. डॉ. अजीत गुप्त जीः
    बहुत अच्छी जानकारी और बहुत अच्छा विवेचन. जिन तीनों विधाओं की आपने चर्चा की है उनमें एक समानता है… कम से कम शब्दों में गहरी से गहरी बात कहना. इतना ही नहीं, वह गहरी बात ऐसे अवसर पर प्रकट हो कि पढने वाला कुछ भी कहने की स्थिति में न रहे और उसके मस्तिष्क में एक ऐसी ऊर्जा का प्रवाह हो जो लिखने वाले से सीधा जोड़ दे उसको. शेर का पहला मिसरा, या किसी दोहे की पहली पंक्ति एक रह्स्य का सृजन करती है, और दूसरा मिसरा/पंक्ति जब उस रह्स्य को उद्घाटित करती है तो एक विचार शून्य सी स्थिति रह जाती है.
    लघुकथा में भी यही बात होती है. पाठक को तुरत बाँध लेना और जब सम्मोहन अपने चरम पर पहुँच जाए तो तुरत पटाक्षेप. सारी कला इसी पटाक्षेप में निहित है. अफसोस यह कला मुझमें नहीं है, इसलिये न ढ़ंग से ग़ज़ल कह पाया, न दोहे लिखे और लघुकथा तो कभी नहीं.
    आपकी लघुकथा इस पूरे मेयार पर खरी है.

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