Thursday, October 14, 2010

ब्‍लोगिंग की कार्यशाला – अभी छाछ को बिलौना बाकी है – अजित गुप्‍ता

वर्धा का नाम आते ही महात्‍मा गाँधी और विनोबा भावे का स्‍मरण होने लगता है। यह पावन भूमि दोनों ही महापुरुषों की कर्मभूमि रही है। इसी कारण महात्‍मा गाँधी अन्‍तरराष्‍ट्रीय विश्‍वविद्यालय वर्धा में ब्‍लोगिंग पर कार्यशाला का निमंत्रण एक सुखद बात थी। साहित्‍य और पत्रकारिता के क्षेत्र में सम्‍मेलन, सेमिनार और कार्यशालाएं नित्‍य प्रति होती हैं लेकिन ब्‍लागिंग के क्षेत्र में विधिवत कार्यशालाओं का प्रारम्‍भ करने का श्रेय श्री सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी को जाता है। अभी हम जैसे कई लोग जो ब्‍लागिंग के क्षेत्र से नए जुड़े हैं, समझ नहीं पाए हैं, ब्‍लागिंग और ब्‍लागर की मानसिकता। कभी एक परिवार सा लगने लगता है तो कभी एकदम ही आभासी दुनिया मात्र। मेरे जैसा व्‍यक्ति जो नदी में डूबकर नहीं चलता बल्कि किनारे ही अपनी धुन में चलता है, के लिए एक नवीन अनुभव था।
वर्धा पहुंचने पर त्रिपाठी जी ने विश्‍वविद्यालय के बारे में बताया कि यह लगभग 300 एकड़ क्षेत्रफल में विस्‍तार लिए है और इसकी खूबसूरती इसकी पांच पहाडियों में हैं। वर्धा बेहद खूबसूरत और सादगी भरा शहर लगा। गाँधी जी की कुटिया देखना ऐसा अनुभव था जैसे हम भी उस ऐतिहासिक युग का हिस्‍सा बन गए हों। मैं जब रेल से वर्धा जा रही थी तो बजाज कम्‍पनी का एक पूर्व अधिकारी मेरे साथ ही यात्रा कर रहे थे, उन्‍होंने मुझे बताया कि किस प्रकार बजाज परिवार आज भी वर्ष में एक बार वर्धा जाते हैं और उसी सादगी के साथ रहते हुए सारी योजनाओं पर विचार होता है। विनोबा जी की पावन स्‍थली जो पवनार नदी के किनारे बसी है, एक अभूतपूर्व आनन्‍द देती है। हमने इन दोनों महापुरुषों को नहीं देखा लेकिन वहाँ जाने पर इतिहास को अपने साथ खड़े हुए पाया। मुझे वर्धा में सबसे अधिक खुशी तब हुई जब मैंने गाँधीजी के निजि सचिव महादेव भाई के नाम पर बना एक भवन देखा। गाँधीजी के बारे में पढ़ते हुए महादेव भाई सर्वाधिक प्रभावित करते रहे हैं,  लेकिन देश उनके कृतित्‍व का स्‍मरण नहीं करता। यहाँ आने पर उन्‍हें नमन करने का मन हो आया।
जैसा मैंने लिखा है कि ब्‍लागिंग का क्षेत्र अभी नवीन है और इसकी नब्‍ज कहाँ से संचालित है इसका किसी को इल्‍म नहीं है, ना ही यह समझ है कि आखिर हम लिख क्‍या रहे हैं? सब बस अपनी समझ और अपनी धुन में लिखे जा रहे हैं। यहाँ बात आचार-संहिता की करनी थी, लेकिन सभी ने किसी भी व्‍यावहारिक या सैद्धान्तिक प्रतिबन्‍धों को नकार दिया। लेकिन हमारे नकारने से तो दुनिया चलती नहीं कि हमने कह दिया कि बिल्‍ली मुझे नहीं देख रही और हम कबूतर की तरह आँख बन्‍द कर बैठ जाएंगे। बिल्‍ली तो आ चुकी है, सायबर कानून भी बन चुके हैं और हम मनमानी के दौर से कहीं दूर जिम्‍मेदारी के दौर तक आ प‍हुंचे हैं। वो बात अलग है कि हमें अभी पता ही नहीं कि कानून का शिकंजा हम पर कस चुका है। बस अभी सुविधा यह है कि हमारी पुलिस इस कानून के बारे में ज्‍यादा कुछ जानती नहीं। श्री पवन दुग्‍गल जी ने सायबर कानूनों के बारे में बताया तो पुलिस की कार्यवाही के बारे में कुछ मजेदार तथ्‍य भी बताए। यहाँ तो घटनाओं का उल्‍लेख कर रही हूँ जो दुग्‍गल जी ने बतायी थी -
1-  अश्‍लीलता को परोस रही एक दुकान पर छापा मारा गया और वहाँ से 17 कम्‍प्‍यूटर बरामद किए गए। पुलिस वाले इसे अपनी बहुत बड़ी जीत मान रहे थे। लेकिन उन्‍हें धक्‍का जब लगा कि न्‍यायालय ने जब उनसे कम्‍प्‍यूटर मांगा। असल में वे सब मोनीटर उठा लाए थे और सीपीयू वहीं छोड़ आए थे।
2- इसी प्रकार एक जगह से पुलिस ने कुछ सीडी बरामद की। अब देखिए हमारी पुलिस। उन्‍होंने बड़े प्रेम से छेद करके उन सीडियों को फाइल कर दिया।
हमारी पुलिस अभी अज्ञानी है लेकिन कुछ ही दिनों में उसे भी कम्‍प्‍यूटर का ज्ञान हो जाएगा तब इस ब्‍लाग जगत पर प्रसारित अश्‍लीलता को कानून से नहीं बंचा पाएंगे।
कार्यशाला पर कई दृष्टिकोणों से लिखा गया, इसलिए उन सारी बातों को दोहराने का कोई अर्थ नहीं है। मुझे दुख रहा कि मैं समापन सत्र में वहाँ उपस्थित नहीं रह पायी। मुझे नागपुर में एक अन्‍य कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज करानी थी। लेकिन फिर भी वहाँ आए सभी लोगों को जानने और समझने का अवसर मिला। ब्‍लागिंग का मिजाज क्‍या है, कुछ-कुछ समझ भी पायी। यहाँ कुछ लोगों के लिए अवश्‍य लिखने का मन हो रहा है, लेकिन पोस्‍ट लम्‍बी ना हो जाए उसका डर है। लेकिन अभी तो पहली बार मिले हैं, इस सफर में न जाने कितनी बार आमने-सामने होंगे तब शायद हम जैसे अपनी धुन में चलने वाले लोग भी यहाँ के रंग-ढंगों से परिचित हो जाएं।
अन्‍त में धन्‍यवाद देना चाहती हूँ त्रिपाठी जी का, जिनके सौहार्द के कारण मेरी नवीन पुस्‍तक प्रेम का पाठ लघु कथा संग्रह का वहाँ विमोचन हो सका। जिन लोगों ने मुझे प्रभावित किया मैं उनके बारे में एक अलग पोस्‍ट लिखने का प्रयास करूंगी क्‍योंकि वह एक अलग अनुभव है। बस अन्‍त में यही कहना चाहूंगी कि ऐसे आयोजन प्रारम्‍भ हैं हमें भी अपने स्‍तर पर अकादमियों, विश्‍वविद्यालयों आदि के संसाधनों के माध्‍यम से इस पहल को निरन्‍तर रखना चाहिए जिससे हमारा लेखन सार्थक दिशा में कदम रख सके। साहित्यिक संस्‍थाओं के समान ही ब्‍लागिंग की संस्‍थाएं बनाकर इन आयोजनों को करने की पहल करनी चाहिए। अभी छाछ को बिलौना बाकी है, बस बिलोते रहिए, मक्‍खन निकल आएगा और तब छाछ भी अमृतमयी बन जाएगी और मक्‍खन भी। आपने यहाँ तक पढ़ लिया, आपका आभार।   

42 comments:

  1. आपके लघु कथा संग्रह "प्रेम का पाठ" के विमोचन पर बधाई!

    ReplyDelete
  2. वाह-वाह अजित गुप्ता जी आपने एकदम अलग और सार्थक पोस्ट लिख डाली ..आभार आपका इस संगोष्ठी में भाग लेने तथा हमसब से अपनापन भरा स्नेह बाँटने के लिए .......आपकी रचना प्रेम का पाठ के लिए एक बार आपको फिर बधाई ...

    ReplyDelete
  3. वर्धा के अनुभव के बारे में सबसे पहली पोस्ट देख रहा हूँ. ब्लोगिंग जगत में सिर्फ ६ महीने हुए हैं पर हाँ कई अच्छे लेखकों और कवियों से परिचय हुआ इस ब्लोगिंग के ज़रिये, जो शायद बिना इसके संभव भी नहीं हो पाता.

    आपके बिल्कुल ठीक कहा है की हम अब ज़िम्मेदारी वाली स्टेज पर हैं और शीघ्र ही साइबर कानून की समझ पुलिस तथा अन्य एजंसियों को भी हो जायेगी. अगर सब लोग इस जिम्मदारी को निभाएंगे तो शायद किसी अचार संहिता या फिर सेंसर की ज़रूरत ही ना पड़े.

    आपकी रचनायें पढ़ने का मन होता है. कहाँ प्राप्त हो सकती हैं बताईएगा.

    मनोज खत्री
    manojkhatri.blogspot.com

    ReplyDelete
  4. आपने तो विषय प्रवर्तन ही किया था -और जो कुछ भी हुआ हो मगर प्रवर्तित विषय ही भलीभांति विवेचित नहीं हो सका सारी रिपोर्टें यही बताती हैं ......बस छिछला सा निर्वाह .....बस जुमले दागे गए .....
    और आपने यह बड़े मार्के की बात कही की बिल्ली शिकार को तैयार है कबूतर झपकी ले रहे हैं ...... :)

    ReplyDelete
  5. Wardha ke sammelan kee zalak see dikhaee aapne. wistrut charch hogee shayad bad men. Aapke pustak ke wimochan par baut badhaee.

    ReplyDelete
  6. सही दिशा में इंगित करती आपकी पोस्ट ...अभी तक नहीं समझ आ रहा था की आचार संहिता क्यों और कैसे बनेगी ? जब नियम होंगे तो पालन करना ही होगा ...आपकी पोस्ट से सम्मलेन की सार्थकता का अंदाजा हुआ ...लघु कथा संग्रह के विमोचन के लिए हार्दिक बधाई

    ReplyDelete
  7. सारांश की दिशा इंगित करती पोस्ट!!
    बिलौना अभी बाकी है।

    ReplyDelete
  8. आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा ।

    ReplyDelete
  9. आप बिलौना कीजिए माखन खाईये ,छाछ हमारे हिस्से छोड़ दीजिए | पुस्तक विमोचन की बधाई |

    ReplyDelete
  10. राठौर जी की टीप से मैं सहमत हूँ ... हम जैसे छोटे ब्लागरों के लिए छांछ ही अच्छी है ... कम से कम इसमें मीन मेख तो नहीं निकलते हैं ....आभार

    ReplyDelete
  11. आभार आपका इस संगोष्ठी में भाग लेने तथा हमसब से अपनापन भरा स्नेह बाँटने के लिए .......

    ReplyDelete
  12. बहुत सुंदर लगी आप्की कार्यशाला धन्यवाद

    ReplyDelete
  13. प्रेम का पाठ ट्रेन में ही पूरी पढ़ डाली। बहुत अच्छी लगी। आप ने इस कार्यशाला के वो पहलू उजागर किए जो अभी होने बाकी थे। आभार, आप से मिलना बहुत सुखद रहा, आशा है जल्द ही दोबारा मुलाकात होगी

    ReplyDelete
  14. बढ़िया पोस्ट लगे है अजीत जी ! और बाकी रहा छाछ बिलोना ..बिलो ही रहे हैं कभी तो मक्खन निकलेगा :).अगली पोस्ट का इंतज़ार है.

    ReplyDelete
  15. अच्छा लग रहा है, सब के अनुभव जानना. दूसरों के कैमरे के पीछे छिपी आँख से जैसे किसी चित्र को देखना ..
    वैसे विवेक को केवल आपसे मिलकर अच्छा लगा यह तो प्रमाणित हो गया.
    आगे के वृतांत की प्रतीक्षा व्यग्र कर रही है. अनीता जी बाजी मार ले गईं पुस्तक पढने में, मुझे तो अभी महीना-भर प्रतीक्षा करनी है...

    http://hindibharat.blogspot.com/2010/10/blog-post_13.html

    http://vaagartha.blogspot.com/2010/10/blog-post.html

    ReplyDelete
  16. हमारी समूह चर्चा मुझे याद रहेगी…

    ReplyDelete
  17. @ कविता जी,

    इनसे मिलकर बहुत अच्छा लगा और आपसे मिलकर तो जितना अच्छा लगा उसकी तो अभी नापतौल नहीं कर पाया हूँ वाकई !

    ReplyDelete
  18. निश्चय ही यह पोस्ट कई अनछुए पहलुओं को भी पिरोती है.

    ReplyDelete
  19. .

    काफी अच्छा लगा आपका मिलन समारोह का विवरण। लेकिन बहुत ही संक्षिप्त लिखा है आपने। अगली पोस्ट में थोडा विस्तार से लिखियेगा। आपके अनुभवों से मैं भी रसास्वादन करना चाहती हूँ , मिलन के उन सुखद पलों को।

    आपकी नयी पुस्तक विमोचन के लिए आपको बधाई।

    .

    ReplyDelete
  20. अच्छा लग रहा है, अलग-अलग नजरिये से सम्मलेन का विवरण जानना...हमने तो मिस कर दिया, आप सबों से मिलने का मौका भी चूक गया.....पर सबकी रिपोर्ट पढ़ कर लग रहा है...हमने भी सब देख -सुन लिया.
    नई पुस्तक के विमोचन की बधाई

    ReplyDelete
  21. रोचक के साथ विचारोत्तेजक भी.

    आपकी रिपोर्ट आपके व्यक्तित्व का दर्पण लगी.

    ReplyDelete
  22. लघु कथा संग्रह के विमोचन के लिए हार्दिक बधाई .....बहुत अच्छी पोस्ट के लिए धन्यवाद !

    ReplyDelete
  23. "प्रेम का पाठ" के विमोचन पर बधाई...


    यह एक अलग तरह की रिपोर्ट रही.

    ReplyDelete
  24. पुलिस का साईबर ज्ञान इतना बचकाना ...आश्चर्य ...
    आचार संहिता होनी तो चाहिए मगर सबसे जरुरी है स्वविवेक का इस्तेमाल ...वरना कानून तो कैसे -कैसे बने हुए हैं और किस तरह उनका पालन होता है , हम सभी जानते हैं ...

    " प्रेम का पाठ " के लिए बहुत बधाई ...
    वर्धा सम्मलेन की रिपोर्ट के लिए बहुत आभार!

    ReplyDelete
  25. पहले तो 'प्रेम का पाठ' के विमोचन पर बधाई और शुभकामनाएं मैम.. आपकी नज़र से सम्मलेन को देखा और जाना.. मजेदार रहा और सार्थक सम्मलेन रहा ये जानकर ख़ुशी हुई..

    ReplyDelete
  26. अजित जी,'प्रेम का पाठ' पुस्तक के विमोचन हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
    कार्यशाला की चर्चा सार्थक एवं रोचक रही .बिलोने की बात चली है तो सार-तत्व भी कभी सामने होगा .
    जानकारी के लिए आभार !

    ReplyDelete
  27. आपसे ना मिल पाने का अफ़सोस हो रहा है !!

    ReplyDelete
  28. aapke dwara vardha sansmaran sukoon de raha hai. aapke sangrah ke vimochan ke liye bahut bahut badhayi.

    ReplyDelete
  29. बहुत कम शब्दों में बहुत काम की बातें बताई हैं. अभी पढ़ा. अच्छा लगा.
    शुक्रिया.
    यशवंत

    ReplyDelete
  30. महिला लेखिकाओ को छिनाल कहने वाले से आप भी अपनी किताब का विमोचन करा आयी बधाई ।

    ReplyDelete
  31. प्रेम का पाठ पढाते रहिए... बधाई॥

    ReplyDelete
  32. एक प्रश्‍न बेनामी जी की तरफ से उठाया गया है, यह मेरे मन में भी था। पुस्‍तक का विमोचन किससे हो और किससे नहीं, यह विषय भी नहीं था। मैं तो अनौपचारिक रूप से ही आलोक धन्‍वाजी से करवाना चाह रही थी लेकिन उन्‍होंने कहा कि मंच पर ही होना चाहिए। हमने सिद्धार्थजी को अपनी पुस्‍तक पकड़ा दी और जो भी मंच पर था उसी से विमोचन हुआ। जब सारी ही कार्यशाला कुलपति जी के नेतृत्‍व में हो रही थी तब भला मुझे क्‍या आपत्ति हो सकती थी? रही बात महिलाओं को छिनाल बताने की तो उन्‍होंने यह नहीं कहा कि महिलाएं छिनाल हैं, वे बोले थे कि महिलाएं छिनाल दिखने पर उतारू क्‍यों हैं? मुझे स्‍वयं को इस शब्‍द से आपत्ति है लेकिन शब्‍द किस संदर्भ में कहा गया है, उसे भी समझना चाहिए। फिर भी आपकी भावना उनके खिलाफ है तो उसे जरूर रखिए। मैं विमोचन जैसी बात को बहुत बड़ा मानती भी नहीं हूँ। बस एक परिचय की प्रक्रिया भर है।

    ReplyDelete
  33. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..बधाई

    ReplyDelete
  34. Main to intjaar kar hi raha tha , vardha main hui sangosthi ke lekhon ka , aap sabhi ke lrkh dil ko bhane wale hain , or bloging ke bare main sarthak vichar bnane main sahayak hai
    Shukriya

    ReplyDelete
  35. आप सम्मलेन में गई , बधाई ।
    अच्छा लगा आपके विचार पढ़कर । सही बातें कहीं हैं ।

    ReplyDelete
  36. वाह आपका लघु कथा संग्रह छपा और आपने बताया नही। बहुत बहुत बधाई। ये मिलेगा कहाँसे? पूरा पता दें। वर्धा सम्मेलन के लिये बधाई।

    ReplyDelete
  37. पुस्तक के विमोचन के लिए बधाई। बेनामी जी का प्रश्न सही ही लग रहा है, आपका उत्तर भी।
    किन्तु एक बात फिर भी है.. सोचिए, कोई मुझसे पूछे कि मैं डायन जैसा लगना क्यों चाहती हूँ या चोर जैसी या कखग जैसी तो इसका अर्थ क्या होगा? क्या यह एक मासूम प्रश्न भर होगा या यह इंगित कर रहा होगा कि मैं डायन, चोर या कखग हूँ या होने के कगार पर हूँ।
    जो भी हो, जब मैं यह प्रश्न करने वाले की बगल में खड़ी हो जाऊँ, वह भी किसी विवशतावश नहीं, चुनाव करके, तो मैं उनकी बात को व उन्हें 'कोई बात नहीं, सबकुछ ठीक है, यह सब तो चलता रहता है, कह भी दिया तो क्या हुआ’आदि जैसा संदेश दे रही होती हूँ, न केवल उन्हें, उनकी बात को, किन्तु भविष्य में भी हमें ऐसी बात कहने वाले को भी वैध घोषित कर रही हूँ।
    मेरा कहना कोई विशेष महत्व नहीं रखता क्योंकि यह खट्टे अंगूरों की सी बात होगी। यदि कोई महान हस्ती बुलाए जाने पर न जाती तो शायद आधिक बात बनती। यदि वह यह बात कहती तब भी बात बनती।
    वैसे भी मैं स्वयं सोचे जा रही हूँ कि क्या मैं मिलने पर निमन्त्रंण ठुकरा पाती? या यह सोचती कि पर्याप्त प्रायश्चित हो गया या ऐसा ही कुछ और।
    rationalisation (परिमेयकरण ) भी कुछ होता है।
    मैं स्वयं भ्रमित हूँ।
    घुघूती बासूती
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete
  38. ajit mem
    pranam !
    laghu katha sangrah ke liye aap ko badhai ,
    sunder aalekh ke liye sadhuwad .
    saadar

    ReplyDelete
  39. लघु कथा संग्रह "प्रेम का पाठ" के विमोचन पर हार्दिक शुभकामनाएं.

    दुर्गा नवमी एवम दशहरा पर्व की हार्दिक बधाई एवम शुभकामनाएं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  40. यहाँ एक गैरजरूरी बहस दिखायी दे रही है। इस प्रकरण पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है, प्रताड़ना दी जा चुकी है और माफ़ीनामा भी लिया जा चुका है। सक्षम शक्तियों द्वारा इसका समुचित प्रतिकार भी किया जा चुका है। अब उससे आगे बढ़ने का समय है।

    किसी के व्यक्तित्व और कृतित्व का मूल्यांकन सिर्फ़ एक शब्द से कर लेना कहाँ की बौद्धिकता है? संपूर्णता में देखने पर पूरी तस्वीर इसकी उलट दिखायी देगी।

    ReplyDelete
  41. निर्मला जी, आपका आभार। मेरी पुस्‍तक - प्रेम का पाठ, साहित्‍यागार जयपुर से प्रकाशित है, आप किसी भी प्रकाशक से कहेंगी तो वह उपलब्‍ध करा देगा। और यदि उदयपुर आना हुआ तो फिर तो आपको तो मैं ही दूंगी ना, इसलिए उदयपुर ही आ जाएं।
    आज एक पोस्‍ट और लिखी है ब्‍लागिंग की कार्यशाला पर इसे भी देखें।

    ReplyDelete
  42. Priti sagar..That fraud lady will coordinate the blogging in wardha..who has been declared Literary writer without any creative work..who has got prepared fake icard of non existing employee..surprising

    ReplyDelete