Saturday, September 11, 2010

क्‍या आपको भी आपके दिमागी कीड़े (neurons) उकसाते हैं टिप्‍पणी करने पर


मुझे जब से आप लोगों की संगत मिली है और जैसे-जैसे दुनियादारी की समझ बढ़ी है तभी से अपने दिमाग के न्‍यूरोन्‍स से बहुत सचेत रहती हूँ। कमबख्‍त कब बगावत कर दें? अच्‍छी खासी किसी की पोस्‍ट पढ़ रही होती हूँ कि यह न्‍यूरोन्‍स रूपी कीड़ा दिमाग में कुलबुलाने लगता है और मुझे उकसाना शुरू करता है। कभी तो मैं इसके झांसे में नहीं आती हूँ लेकिन कभी यह मुझपर हावी हो ही जाता है और फिर उस पोस्‍ट पर अपनी मर्जी से टिप्‍पणी करा लेता है। अभी खुशदीपजी की पोस्‍ट पढ रही थी, मुन्‍नी बाई के गीत पर लिखी थी, उन्‍होंने कुछ पुराने गीत भी लगाए थे, जिनकी नकल से नया गीत बना है, तो मैंने अपने दिमाग के न्‍यूरोन्‍स को टटोला और पूछा कि क्‍या सुने जाएं ये बेहूदे गीत या छोड़ दिये जाएं? दिमाग बोला कि छोड़ दिए जाएं नहीं तो हमें पता नहीं कि ये अफलातून आपके न्‍यूरोन्‍स आपसे कैसी टिप्‍पणी लिखा लें? मैंने नहीं सुने और सीधी-सादी टिप्‍पणी करके उनके ब्‍लाग से लौट आयी। लेकिन आप देखिए इसका कीड़ा, यह नहीं माना और मुझे उकसाता रहा कि कुछ लिखो, और मैं सब कुछ बन्‍द करके पहले यह लिखने बैठ गयी।
मैं मुन्‍नी बाई पर नहीं लिखना चाह रही हूँ बस मैं तो दिमाग के इन कीड़ों के बारे में लिखना चाह रही हूँ जिन्‍हें विज्ञान ने नाम दिया है न्‍यूरोन्‍स का। वैज्ञानिक कहते हैं कि हमारे दिमाग में अरबों न्‍यूरोन्‍स हैं लेकिन शायद सात या आठ ही उनमें से सक्रिय रहते हैं। अब आप ही बताइए कि भगवान ने या प्रकृति ने (क्‍योंकि आजकल तो भगवान का नाम लेना कि उसने बनायी है दुनिया, पर प्रश्‍न चिन्‍ह लग गया है) जिसने भी आदमी के दिमाग को बनाया होगा वह क्‍या मूर्ख था? सक्रिय है केवल सात या आठ ( हो सकते हैं ज्‍यादा होते हों, लेकिन मुझे ऐसा ही विदित है) और बना दिए अरबों? क्‍या दिमाग और शरीर का संतुलन बनाए रखने के लिए ही इतना बड़ा दिमाग या ब्रेन बनाया गया या और कोई मामला है? मुझे तो लगता है कि आदमी नामक जीव में जितने गुण-अवगुण होते हैं सभी के परिचायक ये न्‍यूरोन्‍स हैं अब किसी के कौन सा सक्रिय तो किसी के कौन सा? किसी के झूठ का सक्रिय तो किसी के सच का। आप सत्‍यवादी से झूठ बुलवा लीजिए, कभी नहीं बोलेगा, चाहे मर जाए और झूठे से सच बुलाकर देख लीजिए।
कल ही एक पोस्‍ट पढ़ी थी, गीता के ऊपर थी, लिखा था कि व्‍यक्ति के गुणों के आधार पर भी मनुष्‍य कर्म करता है। तब मेरी न्‍यूरोन्‍स थ्‍योरी और पक्‍की हो गयी। अब मैं अपने आस-पास देखती हूँ तो मुझे इस सिद्धान्‍त की सत्‍यता पर यकीन होता है। इसके ढेर सारे मेरे पास उदाहरण भी हैं लेकिन यहाँ उदाहरण देकर पोस्‍ट को लम्‍बी नहीं करूंगी। बस आप मंथन करें और मुझे बताएं कि क्‍या आपके साथ भी ऐसा ही होता है कि आप किसी की पोस्‍ट पढें या दुनिया में कुछ देखें तो ना चाहते हुए भी प्रतिक्रिया होती है और वह भी कुछ खास विषयों पर। चाहे दुनिया में आग लग जाए हमारा दिमाग चुप बैठा रहता है लेकिन आपके न्‍यूरोन्‍स के विपरीत कोई बात आयी नहीं कि आप दुनिया को आग लगाने पर तुल जाते हैं। अब क्‍या करें? जैसे मेरे साथ होता है कोई महिलाओं को बु‍द्धिहीन बोले या अनावश्‍यक उन्‍हीं को सदुपदेश दें, अपने देश के बारे में बुराई करें या समाज में वर्ग संघर्ष को बढ़ाने वाली कोई बात करें, ऐसे कितने ही विषय हैं जिनपर मेरे न्‍यूरोन्‍स मुझे चुप नहीं रहने देते। वैसे मैं उम्र के साथ बहुत कुछ बर्दास्‍त करना सीख गयी हूँ लेकिन फिर भी ये दिमागी कीड़े मुझे उकसाते ही रहते हैं और आज मुन्‍नी बाई को बचाते हुए इस पोस्‍ट को लिखवाकर ही दम लिया है इन कमबख्‍तों ने। इसलिए इस पोस्‍ट में आपको कुछ भी बुरा लगा हो या पसन्‍द नहीं आया हो तो इसमें मेरा दोष इतना भर ही है कि मैं मेरे न्‍यूरोन्‍स के कारण मजबूर हूँ और आप अपने। गणेश चतुर्थी और ईद पर आपको शुभकामनाएं। इस पोस्‍ट के बारे में अपने विचार जरूर बताएं। 

37 comments:

  1. ये जरुरी तो नहीं की इस पोस्ट को पढ़ कर सब के न्यूरोंस कुलबुलाए...लेकिन मेरे कुलबुलाए तो पर किसी मुकाम पर नहीं पहुच पा रहे हैं...की कैसी आग लगाएं की टिपण्णी शानदार हो जाये..पर बहुत तेज़ी से मचल जरूर रहे है. आपने सच लिखा ये सब के साथ होता है...या फिर लगता है आप, हम जैसे बुद्धि हीन लोगों के साथ ही ज्यादा होता है...जो काबू नहीं कर सकते. विचारणीय पोस्ट.

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  2. इस पोस्‍ट में आपको कुछ भी बुरा लगा हो या पसन्‍द नहीं आया हो तो इसमें मेरा दोष इतना भर ही है कि मैं मेरे न्‍यूरोन्‍स के कारण मजबूर हूँ और आप अपने।

    बिल्कुल सही कहा, गणेश चतुर्थी एवम ईद की शुभकामनायें.

    रामराम.

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  3. हमें तो पोस्ट बढ़िया लगी जी आपकी, बुरी क्यों लगेगी?

    @ सात या आठ सक्रिय न्यूरोन्स:
    कहीं पढ़ा था कि कुदरत ने नागिन को ऐसा बनाया है कि प्रजनन के फ़ौरन बाद एक को छोड़कर अपने सभी बच्चे खा जाती है और अगर ऐसा न हो तो शायद दुनिया का हर कोना सांपों संपोलों से भरा होता। नहीं जानता कि यह कितना सच है लेकिन अरबों न्यूरोन्स में से सात या आठ सक्रिय न्यूतोन्स ही इस दुनिया में आपाधापी मचा देते हैं तो अगर सक्रिय वालों की संख्या ज्यादा होती तो? उस हिसाब से तो यह संख्या ठीक ही है जी। ये हमारा नजरिया है, कोई सहमत हो कि नहीं।
    आभार हमारे न्युरोन्स को उकसाने लायक पोस्ट लिखने के लिये।

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  4. हाँ कभी कभी तो कुलबुलाते ही हैं।

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  5. मैं मानती हूँ की दिमागी कीड़े ज़रूर होते होंगे ...लेकिन हर पोस्ट पर वो कुलबुलाते हैं या नहीं यह सोचने की बात है ....क्यों कि कभी कभी कुछ पढ़ कर कुछ भी सोचने का मन नहीं होता ..और कभी कभी कोई पोस्ट पढ़ कर दिमाग में उथल पथल मच जाति है ..जब तक उस पर अपने विचार लिख न दें तब तक शायद चैन नहीं आता ...तो जिस विषय पर दिमाग के कीड़े उत्पात मचाते हैं वो विषय आपके दिमाग में कहीं न कहीं पहले से होता है ..शायद पहले का पढ़ा हुआ ..कुछ ऐसी पोस्ट होती हैं जहाँ बस ये कीड़े कसमसा कर रह जाते हैं ..और छोटी सी टिप्पणी के रूप में शांत हो जाते हैं ...अब देखिये न आपकी पोस्ट ने मेरे दिमागी कीड़े को तो लगता है बहुत ही उकसा दिया है :):) चलिए अब शांत करती हूँ ...
    रोचक लेखन के साथ सोचने पर मजबूर करती पोस्ट ...

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  6. अजित जी मेरे साथ तो यह जबर दस्त होता है, इस लिये मै कई बार लोगो की पोस्ट पढता ही नही,ओर जिसे पढ लिया तो अपने विचार देने से नही रोक सकता, अगर एक बार ना दुं अपने विचार तो बार बार उस पोस्ट पर जाता हुं जेसे कोई शराबी बार बार मय खाने की ओर जाता है, ओर अपनी बात कह कर ही वापिस आता हुं, इस कारण कई अच्छॆ दोस्त भी बुरा मान जाते है, लेकिन यह कीडा तो जो शायद बुद्धि हीन ही कहलाता हो लेकिन मुझे अच्छा लगता है. धन्यवाद

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  7. आप बिल्कुल ठीक कह रही हैं, कई बार होता है कि कहना नहीं चाहते लेकिन मजबूर हो जाते हैं कहने के लिए. ये बात पोस्ट की ही नहीं है किसी भी गलत या सही बात पर होती है. प्रतिक्रिया अपने आप ही व्यक्त हो जाती है. सफर में, ऑफिस में या फिर घर में हम अपनी तरफ से सही होते हैं , लोगों को जो भी समझ आये.

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  8. हमारे न्यूरान्स अभी सो रहे हैं, हम बाद में टीपेंगे :)

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  9. हाँ कभी कभार ...
    गणेश चतुर्थी और ईद की बधाई और शुभकामनाये...

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  10. हमारे न्यूरॉन भी बहुत नौटंकी करते हैं, पता नहीं कब टिपिया दें।

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  11. आपके ब्लॉग को आज चर्चामंच पर संकलित किया है.. एक बार देखिएगा जरूर..

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  12. रुकिए जरा एक मिनट , अभी अभी मुन्नी को बताया है कि ....आखिर वो कौन सा था न्यूरोन्स....जिसने तुम्हे बदनामी के कगार पर ला दिया ........और फ़िर जब ये परेशान कर ही रहा था .....तो झंडु बाम लगा लेना चाहिए था । वैसे यदि पोस्ट और टिप्पणी कुछ लिखने को उकसाते हैं ....तो पोस्ट एक्टिव मानी जाएगी ....

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  13. हा हमेशा ही :)

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  14. कमाल है, ब्लॉगजगत के किसी चिकित्सक/जीव-वैज्ञानिक की कोई टिप्पणी नहीं आयी इस पोस्ट पर! कहाँ हैं सब के सब?

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  15. हम तो अभी तक न्युरोंस को समझने की कोशिश कर रहे हैं ।

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  16. अजित जी तौबा मेरे तो इतना कुलबुलाते हैं कि मैं याद ही कर रही थी कि आपने कई दिन से पोस्ट नही लिखी कमेन्ट कैसे दूँ सो आ गयी पोस्ट अब जा कर मन को शान्ति हुयी। इनके कुलबुलाने से ही तो रोज़ इतना टीपते है। शुक्र है कि अभी 7-8 ही काम करते हैं नहीं तो पता नही टिप्पणियों के लिये कोई ब्लाग बचता कि नहीं।

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  17. बहुत बार कुलबुलाते हैं।
    भाग आता हूं।

    आपको और आपके परिवार को तीज, गणेश चतुर्थी और ईद की हार्दिक शुभकामनाएं!
    फ़ुरसत से फ़ुरसत में … अमृता प्रीतम जी की आत्मकथा, “मनोज” पर, मनोज कुमार की प्रस्तुति पढिए!

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  18. सही कहा मैडम आपने...

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  19. जी हाँ ,आपके जैसा ही कुछ हाल मेरा भी है :-)

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  20. post padhkar to sachmuch tippani dene wale keede kulbulane lagate.... aksar aisa hi hota hai.

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  21. ह्म्म्म.. तंत्रिका तंत्र की इकाई कह सकते हैं हम न्यूरोन को.. जिसका काम शरीर में कहीं भी किसी क्रिया या किसी वस्तु इत्यादि से स्पर्श की सूचना तुरत मष्तिष्क को पहुंचाना है... मैं पोस्ट को समझ नहीं पा रहा मैम.. :(
    सन्दर्भ होते तो ज्यादा स्पष्ट होती ये पोस्ट..

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  22. ढूंढ रहा हूँ कि किस चीज का बुरा मान लूँ..:) मिल ही नहीं रहा कुछ.

    गणेश चतुर्थी और ईद की बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ.

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  23. कीडे कुलबुलाते तो हैं कभी कभी.. अच्छा लेख वैसे भी संक्रामक होता है.. एक नशे सा चढ जाआ है आप पर और न्यूरान्स को अपने कब्जे में ले लेता है..

    उस वक्त कभी कभी इंसान अच्छा भी लिख जाता है..

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  24. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

    हिन्दी, भाषा के रूप में एक सामाजिक संस्था है, संस्कृति के रूप में सामाजिक प्रतीक और साहित्य के रूप में एक जातीय परंपरा है।

    देसिल बयना – 3"जिसका काम उसी को साजे ! कोई और करे तो डंडा बाजे !!", राजभाषा हिन्दी पर करण समस्तीपुरी की प्रस्तुति, पधारें

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  25. अजित जी,
    पहले तो बधाई साफ़गोई के लिए, आपकी पोस्ट पढ़कर मेरे न्यूरॉन्स भी मचलने लगे टिप्पणी देने के लिए...न्यूरॉन्स इलेक्ट्रोकैमिकल रिएक्शन पर काम करते हैं...आपके पैर में कांटा चुभता है, तो आपको दर्द का अहसास कराने वाले ये मिस्टर न्यूरॉन ही काम करते हैं...

    रही मुन्नी बदनाम की बात तो उसमें मैंने पहले ही सावधान कर दिया था कि मुन्नी बदनाम का ओरिजनल गीत आंचलिक पुट लिए हुए है और कुछ द्विअर्थी शब्द शामिल है...और ये सिर्फ एक गीत की बात थी...आपने अच्छा किया अपने न्यूरॉन्स को सक्रिय होने से रोकने के लिए वो गीत नहीं सुना...लेकिन ऐसे गीत आपको हर भाषा के फोक में मिल जाएंगे...भोजपुरी और हरियाणवी में तो खास तौर...आप अपने परिवेश के हिसाब से ऐसे गीतों से कोसो दूर रहते हैं...लेकिन एक पत्रकार को समाज के हर वर्ग, हर अंचल की सभी गतिविधियों की जानकारी रखने के लिए हमेशा आंखें खोल कर रहना पड़ता है...अब मुन्नी बदनाम को ही लीजिए, मूल इसका कहीं से भी आया हो लेकिन आज इसने सलमान खान और उनके परिवार की तिजोरियां ठसाठस भर दी होंगी...जिसके लिए हम बात करने से भी कतरा रहे हैं, सलमान के प्रोडक्शन हाउस ने उसी को आधार बनाकर और मुन्नी बदनाम गीत को बार-बार टीवी चैनल्स और एफ एम पर बजा बजा कर अपनी फिल्म के लिए इतना हाइप खड़ा कर लिया...यानि बदनाम कुछ भी हो अपना उल्लू सीधा कर लिया...जिस चीज़ से पूरा देश प्रभावित हो वो खबर होती है...और आप मानेंगी ही कि आज मुन्नी बदनाम खबर है...

    जय हिंद...

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  26. Main samjhtaa hoon ki aabhaaseee duniyaa ke sabhee dhurandaron kaa yahee haal hai,

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  27. हमें तो बहुत पसन्द आया अजित जी आपका यह पोस्ट! न्यूरोन्स के विषय में जानकारी मिली!

    वैसे आजकल हम बहुत कम टिप्पणी करते हैं पर आपने सही लिखा है कि किसी पोस्ट को पढ़कर दिमागी कीड़े कुलबुलाने लगते हैं सो आपके इस पोस्ट को पढ़कर हमारे भी दिमागी कीड़े कुलबुलाने लगे और उसक नतीजा तो आप इस टिप्पणी के रूप में देख ही रही हैं।

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  28. टीपना और टिपियाया जाना ,दोनों ही पसंद है मुझे
    शायद न्युरान्स अधिक सक्रिय हों ।

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  29. so many comment? neurons are realy affective.

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  30. .
    अजित जी,
    कुबुलाते तो हर ब्लॉगर के दीमाग में हैं, लेकिन हैरत की बात ये है की कुछ लोग इन कुलबुलाते कीड़ों को शांत कैसे कर लेते हैं, और बिना प्रतिक्रिया दिए , खिसक लेते हैं।

    सुन्दर पोस्ट ...बधाई !
    .

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  31. मैंने चर्चा के‍ लिए एक विचार आपके सामने प्रस्‍तुत किया था आप सभी ने अपनी-अपनी प्रतिक्रिया दी और विचार को आगे बढाया इसके लिए मैं आभारी हूँ। 1 निर्मलाजी, मैंने इससे एक दिन पूर्व भी पोस्‍ट लिखी थी शायद आपकी नजर से छूट गयी थी।
    2 दीपक, मेरा मंतव्‍य तो गोपनीय नहीं था फिर तुम्‍हें क्‍यों नहीं समझ आया? मैं तो इतना कहना चाह रही थी कि हमारा दिमाग अपनी तरीके से प्रतिक्रिया करता है, सभी बातों पर नहीं करके केवल जो गुण उसके पास होते हैं उन्‍हीं के अनुसार प्रतिक्रिया करके टिप्‍पणी लिखता है। इसलिए यह जरूरी नहीं कि हम सभी पर अपनी प्रतिक्रिया करें। लेकिन जब कोई विषय आपके मन को छू जाता है तब आपका दिमाग बिना प्रतिक्रिया करे रह नहीं सकता।
    3 खुशदीप जी
    आपकी पोस्‍ट नि:संदेह अच्‍छी और जानकारी परक थी बस मैंने इसलिए उन गानों को नहीं सुना था कि पता नहीं मेरे स्‍त्री-विमर्श वाले न्‍यूरोन मुझ पर हावी हो जाएं और मैं कोई उपदेश दे डालूं। बात को गम्‍भीरता से नहीं लेकर हल्‍का ले लो प्‍लीज। जो व्‍यापार करते हैं वे तो तिजोरी भरने की कला जानते ही हैं तो भरने दो उन्‍हें तिजोरियां। वे तिजोरी से खुश और हम ज्ञान बांटने से।
    आप सभी का पुन: आभार।

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  32. अजित जी एक बहुत अच्छी पोस्ट. ये कीड़े तो सबके दिम्माग में ही कुलबुलाते होंगे. मेरे तो केवल न्युरोंस ही नहीं देनद्रोंस और एक्सोंस भी शोर करते है और काफी हद तक वश में कर लेती हूँ पर ये बात जरुर है की अगर मैं किसी के भी ब्लॉग पर जाती हूँ तो अपनी पूरी हदों में रह कर प्रतिक्रिया जरुर देती हूँ न की पोस्ट पढ़कर वापस आ जाऊं

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  33. @अजित जी,
    आपको ये हल्का-गंभीर का अहसास कैसे हुआ...आप नहीं जानतीं कि आपका लिखा पढ़ने के बाद कितना अच्छा महसूस करता हूं...आपको आदेश देने का पूरा अधिकार है...बड़ों के अनुभवों से ही छोटों को सीखने का मौका मिलता है...मैंने कमेंट में बस अपने पेशे की व्यावहारिकता को रखने की कोशिश की है...और यही तो असली ब्लॉगिंग है...सिर्फ बढ़िया और तारीफ़ करते रहने से विमर्श आगे नहीं बढ़ता...किसी के बौद्धिक विकास के लिए प्रशंसा से ज़्यादा आलोचना को आत्मसात कर खुद को बेहतर बनाना अहम होता है...वैसे मेरी कोशिश ये भी रहती है कि खुद को रिपीट न करूं और ज़्यादा से ज़्यादा मुद्दों की सही तस्वीर जानूं और फिर अपने लेखन में उतारूं...और मैं जानता हूं कि आपका आशीर्वाद हमेशा मेरे साथ है....

    जय हिंद...

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  34. sach kahun to hame pata hi nahi tha, aisa kuchh hota hai......jankaari ke liye shukriya!! waise bhi sayad mere nuerons me itni taakat nahi ki aap jaiso ki baat ko kaat sake..:)

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  35. सही कहा ... विपरीत विचार पर ज़रूर लिखने का मन करता है ....

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  36. बिलकुल सही बात कही...दिमागी कीड़े तो कई बार मन की सुनते ही नहीं और टिप्पणी करवा जाते हैं...

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  37. इनका कुलबुलाना भी महँगा पड़ जाता है कभी कभी .

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