Monday, April 19, 2010

क्‍या ब्‍लाग-जगत भी चुक गया है?

दो चार दिन से ब्‍लाग जगत में सूनापन का अनुभव कर रही हूँ। न जाने कितनी पोस्‍ट पढ़ डाली लेकिन मन है कि भरा ही नहीं। अभी कुछ दिन पहले तक ऐसी स्थिति नहीं थी। दो चार पोस्‍ट तो ऐसी होती ही थी कि दिन भर की तृप्ति दे जाती थी। किसी को सुनाने का मन भी करता था। कहीं अपनी बात कहनी होती थी तो ब्‍लाग जगत का जिक्र भी हो ही जाता था। लेकिन अब तो ऐसा हो रहा है कि बस ढूंढते ही रह जाओगे। आखिर ब्‍लाग है क्‍या? कुछ पोस्‍ट धर्म-सम्‍प्रदाय को लेकर आ रही हैं। सभी को अपनी बात अपने ब्‍लाग पर लिखने का हक है लेकिन ऐसी बाते कितना असर छोड़ पाती हैं? एकाध बार तो पढ़ी जाती है फिर आत्‍म-प्रलाप सा लगने लगता है और उन पोस्‍टों से स्‍वत: ही दूरी बन जाती है। हमारे यहाँ इतने धार्मिक नेता हैं और उन्‍हीं का काम है अपने धर्म के बारे में बताने का। लेकिन पता नहीं क्‍यों हम ब्‍लाग पर इस बारे में लिख रहे हैं और अपने अल्‍प ज्ञान से एक नयी बहस को जन्‍म दे रहे हैं।

मैं अनुभव कर रही हूँ कि हम अनावश्‍यक स्‍वयं को विद्वान सिद्ध करने में लगे रहते हैं, सहजता से कुछ नहीं लिखते। जबकि ब्‍लाग लेखन सहजता का ही दूसरा नाम है। पूर्व में पत्र-लेखन होता था, आज ब्‍लाग-लेखन है। समाज में जो हम प्रतिदिन देखते हैं, अनुभव करते हैं, जिनके बारे में हमारा मन कुछ कहता है, बस उसे ही यदि ब्‍लाग पर लिखें तो शायद बहुत सारे ऐसे विषय होंगे जिन पर आज तक किसी ने अपनी लेखनी नहीं चलायी होगी। हम रोज ही कुछ न कुछ पढ़ते हैं, ह‍में लगता है कि अरे इस बारे में हमें भी कुछ लिखना चाहिए। ऐसा ही आज मेरे साथ भी हुआ। लेखक रस्किन बॉन्‍ड का एक संस्‍मरणनुमा आलेख समाचार पत्र में प्रकाशित हुआ। उसमें उन्‍होंने किसी भी कार्यक्रम में जाकर भाषण देने का दर्द बताया। मेरा मन भी हुआ कि इस बारे में लिखना चाहिए कि मुख्‍य अतिथि का क्‍या दर्द होता है? लेकिन फिर सोचा कि उन्‍होंने अपने विचार लिखे, अब यदि इसी विचार को मैं भी लिखूंगी तो नकल जैसा हो जाएगा। लेकिन वो उनके मौलिक विचार थे, पढ़कर एक विषय ध्‍यान में आया। लेकिन मुझे लगता है कि मैं अपनी स्‍लेट को खाली ही रखूं किसी और के विचारों से उसे ना भरूं। क्‍योंकि लेखन के माध्‍यम से मैं अपने आपको जानना चाहती हूँ कि मेरी किन विषयों पर संवेदनाएं जागृत होती हैं और विचार स्‍वत: ही निकलकर बाहर आते हैं? , ब्‍लाग पढ़ना भी इसी जानने की एक प्रक्रिया है। हमें क्‍या अच्‍छा लगता है? लेकिन जब कुछ भी नया नहीं मिले तो लगता है कि क्‍या ब्‍लाग जगत भी चुक गया? हो सकता है मैं गलत हूँ, मेरी खोज अपूर्ण हो और मैं उन पोस्‍ट त‍क पहुंच ही नहीं पा रही जहाँ कुछ नया मिलता है। आप को लगता हो तो मुझे भी बताइए।

41 comments:

  1. मैडम थोड़ी देर को मेरे ब्लॉग पर आइए. एक नई कविता लगाई है हो सकता है आपको पसन्द आए.

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  2. सच कहा आपने....अभी अभी ब्लोग्स पढते हुए मायूसी हाथ लगती है..पर किसी के आत्म प्रलाप को भी बहुत साहारा मिल जाता है जब कोई उसे पढ़ हौसला देता है...
    आज की पोस्ट विचारणीय है..

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  3. blog kee duniya bahuuuuut badee hai, kahin to pure din kee samagree mil hi jayegi, ek se ek maharathi hain yahan.... jinko padhker dil gata hai- dil abhi bhara nahi ...
    bas udaan bharti rahen

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  4. सही कह रहीं हैं आप मुझे भी ऐसा ही कुछ लग रहा है एकाध दिन से ..

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  5. जी मै समझ सकता हूँ!आप यहाँ... पधारे,शायद कुछ मन बदल जाएँ!

    कुंवर जी,

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  6. आपकी बात से पूर्णतः सहमत नहीं हूं। कभी-कभी ही ऐसा होता है अन्यथा यहां विविधता बहुत है।

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  7. लगातार चिंतन और खोज करते रहें .. इस महासागर में बहुत से मोती मिलेंगे ...

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  8. मैडम,
    पढ़ना चाहेंगी तो अच्छी सामग्री मिल ही जाएगी, न पढ़ने वालों के लिए बहुत बहाने हैं ....आजकल परिकल्पना पर ब्लोगोतसव चल रहा है ....जाकर देखिए बहुत मज़ा आएगा ....हिन्दी के तमाम हस्ताक्षर से साक्षात्कार कॅया अवसर मिल रहा है वहाँ ...!

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  9. यह समस्या दिन पर दिन बढ़ती जा रही है। अब सबसे अच्छा तरीका है कि सीधे अपनी पसन्द के ब्लॉग्स पर जाकर उन्हें पढ़ा जाए। एग्रीगेटर्स का उपयोग यूँ ही विचरण करने कुछ नया ढूँढने को किया जा सकता है। वैसे भी अधिक पढ़े गए व अधिक पसन्द किए गए में तो प्रायः मेरा धर्म तेरे से अच्छा कहने वाले ब्लॉग ही दिखते हैं। सो सीधे सबस्क्राइब करना ही बेहतर है।
    घुघूती बासूती

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  10. माला जी विल्कुल सही कहा आपने आजकर पूरा टैफिक उसी ओर है मैं भी देख रही हून लगातार ब्लोगोतसव ..

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  11. मीनू खरे जी, आपके ब्‍लाग पर तो कई बार प्रयास किये लेकिन मेरा सिस्‍टम ही हेल्‍डअप हो जाता है। शाम को प्रयास करूंगी।
    मालाजी, आपने ब्‍लोगोत्‍सव के लिए लिखा है, उस पर अभी गयी भी थी, अभी पूरा पढ़ती हूँ।
    आप सभी को धन्‍यवाद। ब्‍लागवाणी की हॉट-सूची में तो धार्मिक और विवादित ही पोस्‍ट अधिक हैं। क्‍या करें?

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  12. आपका प्रश्न विचारणीय है………………॥ऐसा होता है मगर हमें उसी मे से अपने मतलब की सामग्री ढूँढनी पड्ती है……………………मेरे ब्लोग पर आपका स्वागत है।
    http://ekprayas-vandana.blogspot.com
    http://vandana-zindagi.blogspot.com
    http://redrose-vandana.blogspot.com

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  13. ब्लोगजगत तो एक वाटिका है जहाँ भाँति-भाँति के फूल खिलते हैं (यह अलग बात है कि फूल के साथ साथ काँटे भी मिलते हैं)। खोज कर देखिये कोई ना कोई पसंद का फूल मिल ही जायेगा।

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  14. चार मौसम है डाक्टर अजित जी, Famous poet PB Shelley said 'If winter comes spring is not far away'

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  15. एग्रीगेटर्स पर निर्भर रहेंगी तो ऐसा ही महसूस होता रहेगा

    आपके ब्लॉग-पोस्ट-शीर्षक का सीधा उत्तर है -नहीं

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  16. एहसास मरते नहीं थोड़े थम से जाते है. आहट ऐसी कि आहट ही न हो. खैर ब्लागजगत चुका नहीं है. अपरिमित सम्भावनाएं हैं खंगालने में चूक हो गयी होगी.

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  17. चुन चुन कर स्व विवेक से जो अच्छा लगे बस वो पढ़िये.

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  18. ब्लोगवाणी पर तो अक्सर निराशा ही हाथ लगती है..
    हाँ, सीधा अपनी पसंद के ब्लोग्स पर जाकर पढने पर कुछ संतुष्टि मिलती है..
    वैसे आप मेरी कहानियाँ तो पढ़ती ही नहीं....और दूसरे ब्लॉग पर भी अपने चरण रज नहीं बिखेरे :)..जबकि पहले आप नियमित रूप से आती थीं.....एक संस्मरण लिखा है...शायद आप को पसंद आए,पढ़ कर देखिये.
    www.rashmiravija.blogspot.com

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  19. कभी कभी ऐसा भी होता है. गर्मी के मारे हमारा भी मूड नही हो रहा है. जैसे मौसम में सांय सांय सनाटा है ऐसे ही ब्लाग जगत में है, अभी तो ब्लागिंग छोडने पकडने का सीजन चल रहा है.:)

    रामराम.

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  20. बहुत बढ़िया ताउजी की बात से सहमत हूँ ....

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  21. कहीं हमारी नशे वाली पोस्ट का असर तो नहीं हो गया ।
    वैसे ऐसे बुरे हालात भी नहीं हैं जी ।

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  22. मुझे प्रेमचंद (!) की बात याद आती है जिनका कहना था कि लेखक कोई भी बन सकता है, बशर्ते उसके पास कहने के लिए कुछ हो.

    सिर्फ़ लिखने के लिए लिखने से रस नहीं ही आएगा.

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  23. अजीत जी,

    हम तो खुशी के मारे उछले जा रहे हैं कि आप हमारी पोस्ट से खुश हो गयीं। जर्रा नवाजी आपकी :)

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  24. जी हाँ!
    कुछ दिन से हम भी ऐसा ही अनुभव कर रहे हैं!

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  25. ब्लॉग-जगत चुका नहीं है बस ऐसा संयोग होता होगा कि नजर सामने आने से रह जाती होंगी।
    ब्लॉग जगत में एक से एक बेहतरीन पोस्टें मौजूद हैं जो शायद आप पढ़ न पायीं। अभी जो नियमित लिख रहे हैं उनकी पुरानी पोस्टें देखिये। शायद आपको अपने मन माफ़िक पढ़ने को मिले।

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  26. दूसरों की टांग खिंचाई और अपनी बड़ाई से फुर्सत मिले तभी तो इस तरफ सोचें.............
    जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

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  27. ये लो.. जो मैं कहने आया था वो बड़े लोग (घुघूती जी) विस्तार से कह गए हैं.. :)

    अग्रीगेटर छोडिये और विचरण करते रहिये, अपनी फीड बनाइये.. फिर आपको अच्छी चीजों कि कमी कभी नहीं होगी.. :)

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  28. अगर आप ब्लोगवाणी पर देखेंगी तो निराश होने की सम्भावना है...
    ब्लॉग जगत आगाध है ..बस ढूंढना पड़ता है...
    अपने पसंद के लोगों के ब्लोग्स पर निःसंदेह कुछ अच्छी बातें मिल जायेंगीं ....
    माहौल में बदलाव तो है ही इसमें कोई शक भी नहीं है.....जो कल था आज नहीं है...
    फिर भी अच्छी बातें हैं...
    और फिर हम तो हैं हीं...आप ब्लॉग पर आयें कि न आयें ...हुकुम कीजिये अभी फुनवा घुमाते हैं...
    हाँ नहीं तो...

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  29. मैम, यहाँ कई लोग हैं जो सिर्फ एक विद्यार्थी की तरह सीख-सीख कर आगे बढ़ रहे हैं.. जैसे मैं खुद आपसे और कुछ वरिष्ठ और अच्छे साहित्यकार जिनमे आपका भी नाम है से कुछ ना कुछ सीख ही रहा हूँ. आप ही ऐसा लिखेंगीं तो और लोगों का हौसला टूटेगा. रश्मिप्रभा जी, वर्मा जी, अनूप शुक्ल जी, रश्मि रविजा दी, समीर जी और अदा दी की बातों पर ध्यान दीजिए... यहाँ मुझे वो चिडिया के बच्चे की सोच पर लिखी कविता भी याद आती सी लगती है 'बस इतना सा है संसार'

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  30. डा. साहिबा , इतने सारे लोग इतना कुछ कह गए हैं मुझे लगता है कि आपकी शिकायत का कुछ थोडा बहुत समाधान तो हो ही गया होगा । वैसे शुष्कता का ये दौर आता जाता रहता है

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  31. अजित जी,
    ये सब छोड़िए, मेरी मानिए, फिलहाल तो यू-ट्यूब पर जाकर धर्मेंद्र-हेमा मालिनी की फिल्म दिल्लगी में लता मंगेशकर का गाया ये गीत सुनिए...

    मैं कौन सा गीत सुनाऊं,
    क्या गाऊं, बस जाऊं, तेरे मन-मंदिर में....

    जय हिंद...

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  32. ब्लॉग एग्रीगेटर से पढने पर ऐसी दिक्कत महसूस होती ही है .....

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  33. क्या लिखूं और कैसे लिखूं... बस इतना लिख सकता हूं कि जो लोग अच्छा लिखते हैं वे अपने आसपास हमेशा कुछ अच्छा घटते देखना चाहते हैं। आपकी पीड़ा आपकी नहीं वरन् आपके भीतर बैठे हुए एक श्रेष्ठ रचनाकार की पीड़ा है। कुछ और ज्यादा इसलिए नहीं कह सकता कि आपका तर्जुबा मुझसे ज्यादा है। बस इतना कह सकता हूं कि हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती। आपकी टिप्पणी मैंने अपने ब्लाग पर देखी है.. मै ही आपके ब्लाग पर देर से पहुंचा इसके लिए भी क्षमा चाहता हूं।

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  34. पता है, मैं भी ये धर्म वगैरह पर लिखी पोस्टें देखकर परेशान हो जाती हूँ...एग्रीगेटर का उपयोग कम ही करती हूँ...ब्लॉग से ब्लॉग पर जाती हूँ. इसीलिये नियमित किसी को पढ़ नहीं पाती, कुछ को छोडकर...
    इस विषय में घुघूती बासूती जी की बात से मैं भी सहमत हूँ, जो लोग फालतू की बात पर सिरफुटौवल कर रहे हैं, उन्हें करने दिया जाये और हम आपस में एक-दूसरे को फॉलो करके पढ़ें बस.
    @ मीनू खरे जी, आपके ब्लॉग को मैंने फॉलो कर रखा है,लेकिन बीते कुछ दिनों से उसे खोलने पर मालवेयर ई वार्निंग आ जाती है...मैंने शायद किसी और के ब्लॉग पर पहले भी ये बात पूछी थी कि किसी और को ये समस्या आ रही है क्या? आपने लिखा तो मुझे लगा कि फिर से ये बात उठानी चाहिये.

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  35. Aapne sahi likha hai. maine to jab se blogvani padhna start kiya hai, siway dusre dharm ke khilaf lekho ke kuchh aur dikhai hi nehi deta hai.

    Ha, ek-do post zaroor apwaad hai.

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  36. ममा ....बिलकुल सही आपने.... अब यह चुका हुआ ही लग रहा है....

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  37. लिखा तो आपने सही है, लेकिन फिर भी यह कहना कि अब ब्लॉग में कुछ अच्छा नहीं है । गलत है क्योंकि यदि आपने सर्च किया होता तो जागरण जंक्शन पर भाईजी कहिन ब्लॉग निस्संदेह ऐसा है जिसकी प्रत्येक पोस्ट पर चर्चा की जा सकती है । आपकी सुविधा के लिए लिंक प्रस्तुत है http://bhaijikahin.jagranjunction.com

    विभू

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  38. पिछले कुछ दिनो से हमारे साथ भी कुछ ऎसा ही हो रहा है....जब भी आनलाईन होते है तो बस हर तरफ खाली खाली सा लगने लगता है...कहीं कुछ मन मुताबिक पढने को नहीं मिल रहा...हो सकता है कि शायद गर्मी का असर हो या फिर अपने मनमाफिक को हम ही न खोज पा रहे हों...

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  39. यह हमारे पसंद पर भी निर्भर करता है कई बार बहुत अच्छा भी पढ़ने को मिलता है।

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  40. लगा जैसे आप सब के मन की बात अपनी ज़ुबान से कह रही...अच्छा लगा...बधाई...।

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