हमारे यहाँ कहावत है कि दिन में कहानी सुनोंगे तो
मामा घर भूल जाएगा! यहाँ मामा का रिश्ता तो सबसे प्यारा होता है, भला कौन बच्चा
चाहेगा कि मामा ही घर का रास्ता भूल जाए! माँ जब
बच्चों से कहती है, तब बच्चे जिद नहीं करते और रात को ही आकर कहानी सुनते
हैं लेकिन यह जुकरबर्ग ने तो हमें कठिनाई में डाल दिया! फेसबुक की हमारी दीवार पर
लोगों की कहानी चिपका दी। अब दिन उगते ही हमें स्टोरी याने की कहानी पढ़नी पड़ती
है। एक को सरकाओ तो दूसरी तैयार है, कब तक सरकाओगे! जुकरबर्ग कह रहा है कि मैं
मामा का रास्ता बन्द कराकर ही रहूंगा। भला
यह भी कोई बात हुई! तुम्हारा मामा तुम्हें प्यार नहीं करता होगा, हमारे देश में तो
शकुनी मामा तक भानजे से प्यार करता था। हमने जिद ठान ली कि हम कहानी दिन में नहीं
पढ़ेंगे, जुकरवा ने अब हमारे ऊपर एक अदद कमरा तान दिया! यह फेसबुक है या कमरा
बनाने की जगह! कमरा बन्द कर लेंगे और चाबी खो जाएगी तो क्या होगा? कोई जोर
जबरदस्ती है क्या कि कहानी भी पढ़ो और कमरे में भी झांको!
हमने आजतक किसी के कमरे में ताक-झांक नहीं की। अब
सरेआम कहा जा रहा है कि कमरे में जाओ! अपनी फोटो चिपकाकर कहानी से पेट नहीं भरा जो
कमरा छान दिया हमारी दीवार पर! सुबह उठकर हम प्रभु को प्रणाम तो कर नहीं पाते लेकिन
यहाँ जरूर करना पड़ता है। एक अदद मेसेंजर से ही दुखी थे और ऊपर से यह और लाद दिया
हमारे ऊपर! ऐसा लग रहा है जैसे यूआईटी वाले कह दें कि खाली छतों पर आप अपना कमरा
बना लीजिये। कर लो बात! छत मेरी और कमरा तेरा! किस-किस पर ताला लगाएं, जहाँ भी
खुला रह जाता है, वहीं दूसरे के कब्जे होने का डर बना रहता है। सारे ही हमारी वॉल पर
लिखने को टेग करते ही रहते हैं, अब कमरा और तान दिया! एक कोरोना से परेशान है कि
वह मौका तलाश रहा है, हमारे शरीर में अपना खूंटा गाड़ने के लिये। जरा सी नाक खुली
रह जाए तो वह घुस जाता है, फिर तो उसी का
राज हो जाता है। दूसरी तरफ फेसबुक का आतंक है कि चारों तरफ से आक्रमण हो रहे हैं। किले
को चारों तरफ से घेर लिया है, चारों तरफ की दीवारे देखी जा रही हैं, जाँच पड़ताल
जारी है कि कहाँ से घुसा जाए! एक तरफ मेसेन्जर की दीवार है, यह सबसे कच्ची है.
यहाँ आराम से घुसा जा सकता है, दूसरी टेग की दीवार है, यहाँ थोड़ी सी अड़चन है। अब
स्टोरी की जगह देने से इस दीवार में भी
रास्ता निकल सकता है और कमरे को भी भेदकर
घुसा जा सकता है! याने कि किला चारों तरफ से असुरक्षित है! हे मेरे जुकरबर्ग! हमारी इस मुखपुस्तिका को
थोड़ा सा सुरक्षित कर दो। हम तो अपना कीमती सामान मन्दिर के खजाने में सुरक्षित
समझकर रख रहे हैं और आप हैं कि हमें चारों और से बेपर्दा कर रहे हैं।
हटा दीजिए ना हमारे ऊपर से ये कमरें और कहानी की दीवार।
हम वैसे ही पढ़ाकू टाइप के लोग हैं, पढ़ ही लेंगे। क्यों हमारे घर पर आकर ही
सत्यनारायण की कथा करनी है! ढ़ोल- मंजीरे अपने घर पर ही बजा लीजिये। हमें कुछ
शान्ति चाहिये। हमारी बात आपको समझ आए तो सुन लीजिये, नहीं तो हम भला क्या कर सकते
हैं!
शानदार
ReplyDeleteओंकार जी आभार।
ReplyDeleteऋषभ शुक्ला जी आभारी हूँ।
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