हम बड़े हैं, हम बड़े हैं यही तो! फोर्ड गाडी का
विज्ञापन देखा ही होगा। सदियों से हमारी रग-रग में बसा है कि हम बड़े हैं, कोई
उम्र से बड़ा है, कोई ज्ञान से बड़ा है, कोई पैसे से बड़ा है और कोई जाति से बड़ा
है। बड़े होने का बहाना हर किसी के पास है। इस दौर में राजनेता कहते हैं – हम बड़े
हैं, इसपर कानून के पहरेदार कहते हैं कि हम बड़े हैं। इन सबको पीछे धकेलते हुए पत्रकार
कहते हैं कि हम बड़े हैं। जनता तो सबसे बड़ी है ही। बड़े होने का दर्प सभी को है
लेकिन बड़े होने का उत्तरदायित्व किसी के पास नहीं है। मैं टीवी पर डीडी समाचार के
अतिरिक्त दूसरे समाचार नहीं देखती हूँ, जागते रहो जैसी सनसनी फैलाने वाले समाचार
बरसाती नालों की तरह होते हैं। कुछ दिन उफनते हैं फिर मिट्टी में मिल जाते हैं।
लेकिन अपनी गन्दगी का प्रभाव छोड़ जाते हैं। मीडिया हाऊस केवल यह सिद्ध करने में
लगे हैं कि हम बड़े हैं, हमारे पास शक्ति है, हमारी गाडी बड़ी है, हमें सारे
अधिकार प्राप्त हैं। दो-तीन दिन से जो थूका-फजीती चल रही है उसके विपरीत कल डीडी
न्यूज में एक समाचार था। कुछ मीडिया पर्सन विदेशों में जाकर भारत की किरकिरी कर
रहे हैं, झूठ का आडम्बर रच रहे हैं। प्रसार भारती के अध्यक्ष सूर्य प्रकाश ने कल
जमकर मीडिया कर्मियों को लताड़ा। देश में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहा है, संघ
का एजेण्डा चल रहा है, सुप्रीम कोर्ट के जज तक संघ से ट्रेनिंग लेते हैं, आदि आदि।
सारी दुनिया में कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी और पत्रकार स्वयं को बड़ा सिद्ध करने में लगे हैं। बड़ा होना क्या
होता है, यह इन्हें नहीं मालूम!
सदियों से इस देश की सबसे बड़ी समस्या यही रही
है, हर वर्ग में बड़े होने की होड़ मची है, कोई ना कोई किसी ना किसी से बड़ा बन
रहा है और नीचा दिखाने की मारकाट मचाने की जिद पर अड़ा है। अब तो सोशल मीडिया भी
बड़ा बनता जा रहा है, अपना बड़प्पन दिखाने के स्थान पर बड़े होने की जिद इसे भी
सवार है। किस समाचार को कितना दिखाना, कितनी प्रतिक्रिया करना, सोशल मीडिया भी
भूलता जा रहा है। लग रहा है कि दो गाडियों की रेस है, दोनों एक दूसरे से आगे निकल
जाने की होड़ में है। एक गाडी दूसरी को कट मारकर आगे निकल जाती है तो दूसरे का
बन्दा चिल्लाता है कि वह कैसे हमें कट मार गया, हम बड़े हैं, उसे तू ने कैसे आगे
निकलने दिया? बस हम भी ऐसे ही लगे हैं। तभी दूसरा विज्ञापन आता है, गाडी वाला घायल
व्यक्ति को उठाकर गाडी में बैठाता है। हम घायल को वही छोड़ रहे हैं, समाज की समस्या
का समाधान कैसे हो, कोई नहीं सोच रहा है बस बड़ा कौन है, सब यही सिद्ध करने में
लगे हैं।
आजादी के बाद कुछ लोगों ने बड़े होने का सर्टिफिकेट जारी करवा लिया, धीरे-धीरे
वे किनारे होने लगे और 2014 के बाद काफी हद तक किनारे हो गये, बस सारा उत्पात यही
से शुरू हुआ। क्या देश और क्या विदेश एक ही राग गाया जा रहा है कि देश बर्बाद हो
रहा है। 20 करोड़ अल्पसंख्यकों पर जुर्म हो रहे हैं! कल सूर्य प्रकाश कहते हैं कि
10 साल तक देश में एक अल्पसंख्यक प्रधानमंत्री था और उन्हें चलाने वाला रिमोट भी
अल्पसंख्यक ही था, फिर कैसे अत्याचार हो गया? वे आगे कहते हैं कि भारत में एक
अल्पसंख्यक वर्ग के प्रति अत्याचार की बात करने वाले यह नहीं समझा पा रहे हैं कि
दुनिया में इतने मुस्लिम देश होते हुए भी कैसे रोहिंग्या और बांगलादेशी भारत में
ही शरण क्यों लेना चाह रहे हैं? यहाँ अत्याचार हैं तो शरण क्यों? हमने चूहों के
लिये बिल्ली पाली, अब बिल्ली के लिये कुत्ता पाल रहे हैं। लोकतंत्र की रक्षा के
लिये मी-लार्ड बिठाये, फिर मीडिया बनाया, लेकिन ना मी-लार्ड न्याय दे पाएं और ना
ही मीडिया तटस्थ रह पायी। अब सोशल माडिया के रूप में एक और रक्षक तैनात किया है
लेकिन वह भी अराजकता फैलाने में माहिर हो गया है। सब बड़े बन गये हैं, कोई बड़प्पन
नहीं दिखा रहा है।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-07-2019) को "बड़े होने का बहाना हर किसी के पास है" (चर्चा अंक- 3398) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार शास्त्री जी।
ReplyDeleteवाकई सब अपनी अपनी ढपली अपना अपना राग सुना रहे हैं..कोई किसी की सुनने को तैयार नहीं है
ReplyDeleteफोर्ड का यह विज्ञापन बड़ा होना क्या होता है यह भी बतलाता है !
ReplyDeleteगुरु पर्व की शुभकामनाएं
अनिता जी आभार।
ReplyDeleteगगन शर्मा जी आभार।
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