अभी एशिया कप क्रिकेट हो रहा है, स्थान है
संयुक्त अरब अमीरात। दुबई के प्रसिद्ध स्टेडियम पर मैच चल रहा है, कैमरामैन
रह-रहकर पाकिस्तानी सुन्दर लड़कियों पर सभी का ध्यान खींचता है। लोग सी-सी कर उठते
हैं, कोई कह रहा है कि ये हमारे मुल्क में क्यों नहीं हुई, कोई कह रहा है कि काश
देश का विभाजन नहीं हुआ होता। मेरी भी दृष्टि गयी, लेकिन मेरी नजर सुन्दरता के साथ
उनके पहनावे पर भी गयी। पाकिस्तानी लड़कियों में एक भी बुर्का पहने नहीं दिखायी दी
अपितु आधुनिक वेश में ही वे थीं। लग ही नहीं रहा था कि हम दुबई जैसे शहर को देख
रहे हैं, क्योंकि हमने तो सुना था कि लड़कियां यहाँ बुर्के में रहती हैं। खैर
मुद्दा यह भी नहीं हैं मेरा। मुद्दा यह है कि पाकिस्तान, हिन्दुस्थान की मुस्लिम
महिलाओं के लिये भी कानून बताता है और यहाँ के मुल्ला-मौलवी यह कहकर उसे स्वीकारते
हैं कि ऐसा मुस्लिम धर्म में कहा है। कश्मीर में हम देखते हैं कि अलगाववादी नेताओं
के बच्चे विदेश में पढ़ रहे हैं और कश्मीर के स्कूलों में उनके द्वारा ताले लगा
दिये गये हैं। एक तरफ मुस्लिम समुदाय का वह वर्ग है जो सम्पूर्ण आधुनिकता के साथ
रहता है, उनकी महिलाओं को सम्पूर्ण आजादी है, उनके बच्चे विदेश में पढ़ रहे हैं और
दूसरी तरफ वह वर्ग है जिसे किसी भी प्रकार की आजादी नहीं है, उनके बच्चों की
शिक्षा का अधिकार भी धर्म के नाम पर छीन लिया गया है। यदि इनका प्रतिशत निकालें तो
शायद 10 और 90 प्रतिशत होगा।
ये 10 प्रतिशत शानोशौकत से रहने वाले लोग किसी
धार्मिक बातों से बंधे हुए नहीं हैं, वे मानो स्वयं धर्म हैं लेकिन शेष 90 प्रतिशत
लोगों के लिये सारी बंदिशें हैं। ऐसा नहीं है कि यह मुस्लिम समाज में ही हो रहा
है, यह सभी वर्गों में हो रहा है। जो सम्पन्न हैं उनके लिये धर्म की कोई भी
बंदिशें नहीं है लेकिन जो विपन्न है, उनके लिये सारी ही बंदिशें हैं। धर्म के
पैरोकार इस तबके को डराकर रखता है, दोजख का वास्ता देता है और धर्म की आड़ में
शोषण करता है। विपन्न वर्ग में भी अनजाना डर समाया हुआ है, वह भी डर की आड़ में
शोषण का आदि हो गया है। अभी 150 साल पहले तक यूरोप में महिला चर्च से मुक्त नहीं
थी, पादरी उसकी देह का शोषण करते थे इसलिये यूरोप में महिला मुक्ति का आन्दोलन
चला। हालात यहाँ तक थी कि यदि कोई महिला चर्च के शोषण के खिलाफ आवाज उठाती थी तो
उसे डायन घोषित कर दिया जाता था। यह डायन प्रथा हमारे देश में भी वहीं से आयी है।
यूरोप में महिला संघर्ष को जीत मिली और महिला चर्च के शोषण से मुक्त हुई। अभी हाल
ही में केरल में हुई ननों के साथ बलात्कार की घटना इस ओर इशारा करती है कि आज भी पादरी
ननों को अपना शिकार बना रहे हैं और इसे धार्मिक कृत्य बताने की कोशिश कर रहे हैं।
सारी दुनिया में यह खेल चल रहा है, 10 प्रतिशत
लोग निरंकुश हैं लेकिन शेष 90 प्रतिशत लोग धार्मिक गुलाम हैं। ये ही 10 प्रतिशत
लोग दुनिया पर राज कर रहे हैं। वे पूर्ण स्वतंत्र लोग हैं इनपर दुनिया के किसी भी
धर्म का कोई कानून लागू नहीं होता है, यह स्वयं कानून हैं। इसलिये इन लोगों को
देखकर जनता को मुक्त होने की ओर कदम बढ़ाना चाहिये। जब पाकिस्तान की उन आधुनिक
लड़कियों को पूर्ण स्वतंत्रता है तो शेष लड़कियों को क्यों नहीं? ये प्रश्न सभी को
करना चाहिये। हम भी इन कर्मकाण्डों और आडम्बरों से जितना मुक्त होने की कोशिश
करेंगे उतने ही उन्नत होते जाएंगे। हिम्मत जुटाइए और मुक्ति की ओर कदम बढ़ाइए। इस
दुनिया के हर फूल को खिलने का अधिकार है तो दुनिया की हर लड़की को भी खिलने का
अधिकार है, इसे पर्दे में रखकर अत्याचार करने का हमें कोई हक नहीं है।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन एकात्म मानववाद के प्रणेता को सादर नमन : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
ReplyDeleteआभार सेंगर जी।
ReplyDeleteहम भी इन कर्मकाण्डों और आडम्बरों से जितना मुक्त होने की कोशिश करेंगे उतने ही उन्नत होते जाएंगे। हिम्मत जुटाइए और मुक्ति की ओर कदम बढ़ाइए।
ReplyDeleteजी, बिलकुल सही बात की है आपने। हिम्मत जुटाएंगे तो सही सवाल कर पाएंगे और आज़ादी की ज़िन्दगी जी पाएंगे।
विकास नैनवाल जी आभार।
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