चटपटी खबरों से मैं दूर होती जा रही हूँ, डीडी न्यूज के
अतिरिक्त कोई दूसरी न्यूज नहीं देखती तो मसाला भला कहाँ से मिलेगा। आप लोग कहेंगे
कि नहीं, दूसरे
न्यूज चैनल भी देखने चाहिये लेकिन मैं नहीं देखती। शायद यह मेरी कमजोरी है कि
अनावश्यक नुक्ताचीनी मैं देख नहीं पाती। आप कभी अंधड़ में खड़े हो जाइए, कितना ही सर
और चेहरे को कपड़े से ढक लें लेकिन कुछ ना कुछ धूल तो आपके शरीर पर चिपक ही जाएगी, यही बात झूठ
का प्रसार करती दुनिया के साथ है। किसी न किसी बिन्दू को तो आप सच मान ही बैठेंगे
और झूठ फैलाने वाले का काम हो गया। सोशल मीडिया पर भी यही है, हम विपरीत सोच
वालों को तो नजर-अंदाज कर देते हैं लेकिन जब अपना ही कोई व्यक्ति अनावश्यक
नुक्ताचीनी करने लगे तो कहीं ना कहीं असर जरूर होता है, आप अपने लोगों
के ही दुश्मन बनने लगते हैं। देश में ढेरों बुराइयाँ हैं, यह बुराइयाँ
देश की नहीं है अपितु हम व्यक्तियों की बुराई है। हम अपने ऊपर कम लेकिन दूसरे पर
अधिक ध्यान देते हैं, दूसरे
की बुराई को तूल देने में एक क्षण का भी विलम्ब नहीं करते फिर चाहे वह बुराई हम
में भी हो।
मेरे फ्लश का नल खराब हो गया, अपने प्लम्बर
के बुलाया, उसकी
समझ में कुछ नहीं आया, फिर
दूसरे को बुलाया वह भी सीट पर बैठकर ताकता ही रहा, लेकिन कुछ देर बाद हाथ खड़े कर
दिये। तभी मेरे दीमाग ने झटका खाया कि कम्पनी में फोन करो। टोल-फ्री नम्बर ढूंढकर
फोन किया, व्यक्ति
आया और 100 रू. में सबकुछ दुरस्त। तब से निश्चय कर लिया है कि कुछ भी कठिनाई हो, कम्पनी में
फोन करो। जो जिसका प्रोडक्ट है, उसे ही पूछो ना बाबा! इन दिनों राजस्थान की चिन्ता
करने वाले कई लोग सोशल मीडिया पर दिखायी दे रहे हैं, वे कभी राजस्थान में आकर दस दिन
नहीं रहे होंगे लेकिन दूर-परदेश में बैठकर नुक्ताचीनी करते हैं। माना कि आपका अधिकार
बनता है नुक्ताचीनी का लेकिन बिना कोई जाँच-पड़ताल किये आप पूरे फ्लश सिस्टम को
खोलकर बैठ जाएंगे क्या? एक
पाना और एक पेचकस लेकर सारे ही प्लम्बर बने बैठे हैं। किसी के बारे में कुछ भी लिख
रहे हैं! वे सोचते हैं कि हमने सिद्ध कर दिया कि हम विद्वान है और दूर बैठकर भी खबरों की पकड़ रखते हैं लेकिन
उन्हें यह नहीं पता कि आपकी जो छवि पाठकों के
बीच थी वह एक गलत पोस्ट से धूमिल हो गयी है। चटपटी खबरे परोसने का शौक कई
बार बहुत महंगा पड़ता है, आपकी
बरसों की साधना एक ही झटके में नेस्तनाबूद हो जाती है। मैं जब भी दूर खड़े होकर
रोटी सेकने वालों की ऐसी ही नुक्ताचीनी की खबर पढ़ती हूँ तब सोचती हूँ कि इसने जो
आजतक लिखा है, उसमें
भी शायद ऐसा ही चटपटापन हो और मैं उन सारी पोस्ट को एक ही क्षण में अपने मन से डिलिट
कर देती हूँ। इसलिये ही मैं चटपटी खबरों से दूर रहती हूँ क्योंकि चटपटी के चक्कर में
मेरा ही विश्वास खतरे में पड़ जाता है। मैं भ्रमित हो जाती हूँ कि किसके सत्य को
सत्य मानूँ? तब
चुपचाप डीडी न्यूज से काम चलाती हूँ और सोशल मीडिया पर ऐसे नुक्ताचीनी वाले
खबरचियों से दूरी बनाकर रखती हूँ। मुझे लगता है कि हम अपने दीमाग से सोचें ना कि
किसी के भ्रमित करने से झांसे में आएं। लिक्खाड़ बनने की चाह में कहीं हम
अविश्वसनीय ना बन जाए, इस
बात की चिन्ता अवश्य करनी चाहिये। पाठकों का खजाना जो हमारे पास है, वह पलक झपकते
ही हमसे दूर हो जाता है, जब
विश्वास नहीं रहता। इसलिये सावधान! अनावश्यक नुक्ताचीनी से बचो।
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आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 100वां जन्म दिवस - नेल्सन मंडेला और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteआभार हर्षवर्द्धन जी।
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