#हिन्दी_ब्लागिंग
विवेकानन्द
के पास क्या था? उनके पास थे मानवीय मूल्य। इन्हीं मानवीय मूल्यों ( human
vallues) के
आधार पर उन्होंने दुनिया को अपना बना लिया था। लेकिन एक होती है nuisance
value (उपद्रव
मूल्य) जो अपराधियों के पास होती है, उस काल में डाकुओं के पास उपद्रव मूल्य था।
सत्ता के पास दोनों ही मूल्य होते हैं, वे कभी मानवीय मूल्यों के आधार पर शासन
करते हैं तो कभी उपद्रव मूल्य पर भी शासन करते हैं। अंग्रेजों ने यही किया था। यदि आज के संदर्भ में देखे तो देश के
प्रधानमंत्री मानवीय मूल्यों पर शासन कर रहे हैं और मीडिया के पास उपद्रव मूल्य या
न्यूसेंस वेल्यू है। मीडिया अपनी इसी ताकत के बल पर किसी ने किसी उपद्रवकारी को
पैदा करता रहता है और देश के विपक्षी-दल इन उपद्रवकारियों को हवा देते रहते हैं।
कांग्रेस के इतिहास में इन न्यूसेंस कारकों का योगदान बहुत है, कभी-कभी तो लगता है
कि उनका शासन न्यूसेंस वेल्यूज को सिद्धान्त पर ही चला। कभी भिण्डरावाला को पैदा
कर दिया तो कभी 1984 में सिखों का कत्लेआम कर दिया। वर्तमान में राहुल गांधी हर उस
जगह पहुंच जाते हैं जहाँ न्यूसेंस वेल्यू की उम्मीद हो। केजरीवाल ने तो अपना राजनैतिक
केरियर इसी सिद्धान्त पर खड़ा किया था। लेकिन जब पंजाब में जीती हुई बाजी हार गये
तब लगा कि केवल न्यूसेंस वेल्यू से काम नहीं चलता। कम से कम राजनीति में तो नहीं
चलता, हाँ डाकू या आतंकी बनना है तो खूब
चलता है। और उस बन्दे ने सबक सीखा, चुप रहना सीखा। परिणाम भी मिला, दिल्ली में
बवाना सीट जीत गये।
वर्तमान
में मोदीजी पूर्णतया मानवीय मूल्यों के आधार पर शासन कर रहे हैं लेकिन विपक्ष और
अधिकांश मीडिया उपद्रव मूल्यों पर डटे हैं। ये सारे मिलकर देश में सनसनी तो फैला
देते हैं लेकिन हासिल कुछ नहीं होता। कुछ
अतिवादी हिन्दू भी उपद्रव मूल्य हासिल करना चाहते हैं, जैसे शिवसेना ने किया है।
अब गोवंश के नाम पर करने का प्रयास रहता है। दोनों मूल्य आमने-सामने खड़े है, जब
उपद्रव मूल्य हावी हो जाते हैं तब मारकाट
मचती है, लेकिन तभी लोगों के अन्दर के मानवीय मूल्य जागृत होने लगते हैं और शान्ति
स्थापित होती है। लेकिन यह भी सच है कि यदि केवल मानवीय मूल्य ही एकत्र हो जाएं और
उपद्रव-मूल्य ना हो तो मनुष्य बचेगा भी नहीं, क्योंकि प्रकृति तो कहती है कि बलवान
ही शेष रहेगा। इसलिये किसके पास कितना हो, यह हम सभी को निर्धारित करना होगा। समाज
के पास कितने मानवीय मूल्य और कितने
उपद्रव-मूल्य हों तथा शासन के पास कितने
हो, यह बहुत ही समझदारी का विषय है। आज के संदर्भ में हमें इस बात पर गौर करना ही
पड़ेगा।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-09-2017) को गली गली गाओ नहीं, दिल का दर्द हुजूर :चर्चामंच 2725 पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
दिनांक 12/09/2017 को...
ReplyDeleteआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आप का वैचारिक पक्ष बेहद चिंतनशील है . समय के काले और उजाले आयामों को समझने के और उसे अभिव्यक्त के लिए आप बधाई की पात्र हैं आदरणीया अजित गुप्ता जी . साधुवाद .
ReplyDeleteविचारणीय आलेख।
ReplyDeleteशास्त्री जी और कुलदीप जी आपका आभार।
ReplyDeleteअपर्णा वाजपेयी जी - आपकी सहृदयता के लिये आभार।
ReplyDeleteज्योति देहीवाल जी, आभार।
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’हिन्दी ध्वजा फहराने का, दिल में एक अरमान रहे - ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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