#हिन्दी_ब्लागिंग
मुझे आज तक समझ नहीं आया कि – a2 + b2 = 2ab इसका
हमारे जीवन में क्या महत्व है? यह फार्मूला हमने रट लिया था, पता नहीं अब ठीक
से लिखा गया भी है या नहीं। बीजगणित हमारे जागतिक संसार में कभी काम नहीं आयी।
लेकिन खूब पढ़ी और मनोयोग से पढ़ी। ऐसी ही न जाने कितनी शिक्षा हमपर थोप दी गयी।
हम रटते गये और पास होते गये, बस। शिक्षा
की आड़ में हमारा ज्ञान नष्ट होने लगा। रामायण, महाभारत या अनेक पौराणिक ग्रन्थ
हमसे दूर हो गये और हम जीवन के व्यावहारिक ज्ञान से दूर हो गये। चरित्र निर्माण की
पाठशाला होती है, ऐतिहासिक चरित्रों को पढ़ना। सदियों से हमारे पुरखों ने राम और
कृष्ण जैसे चरित्रों को पढ़कर ही समाज का चरित्र निर्माण किया था। बचपन में हम सभी
नाटकों का मंचन करते थे और उनके पात्र हमारे पौराणिक पात्र ही होते थे, हमें स्वाभाविक
रूप से ज्ञान मिलता था और इसी ज्ञान के माध्यम से दुनिया को जानने की रुचि जागृत
होती थी। जैसे ही रुचि जागृत हुई व्यक्ति स्वत: ही शिक्षित होने लगता था।
फिर उसे रटने की जरूरत नहीं होती थी। लेकिन हम पर थोपी हुई शिक्षा हमारे ज्ञान को
भी नष्ट कर देती है। हम एक विषय के जानकार अवश्य हो जाते हैं लेकिन शेष विषयों में
ज्ञान शून्य रह जाते हैं।
मुझे याद नहीं की मैंने विधिवत शिक्षा का कब
प्रारम्भ किया, बस कुछ दिन तीसरी कक्षा के याद हैं तो कुछ माह पांचवी कक्षा के।
छठी कक्षा से ही पढ़ाई प्रारम्भ हुई और जब तक ज्ञान प्राप्ति की। मैं आज भी सफल व्यक्तियों के जीवन
चरित्र को प्राथमिकता से पढ़ती हूँ। आप गाँव में जाइए, बच्चे बकरी के बच्चों के
साथ खेलते मिल जाएंगे लेकिन स्कूल में दिखायी नहीं देंगे। उन्हें बोझ लगती है यह
पढ़ाई। जैसे हमें समझ नहीं आ रहा कि बीज गणित का हमारे जीवन में क्या लाभ है, वैसे
ही वे भी नहीं समझ पा रहे कि इस इतिहास-भूगोल का उनके जीवन में क्या लाभ है! यदि
हम सात साल तक केवल पौराणिक कथानकों को ही मौखिक पढ़ाते रहें और उनका मंचन कराते
रहें तो फिर बच्चों को शिक्षा की ललक जगेगी। शिक्षा उतनी ही होनी चाहिये जितनी
हमें आवश्यक है, लेकिन ज्ञान की कोई सीमा नहीं होनी चाहिए। आज शिक्षक दिवस पर यदि
हम ऐसे प्रयोग कर लें तो हमारे देश का स्वरूप बदल जाएगा। कोई भी बच्चा किताबों के
तले दबकर आत्महत्या नहीं करेगा ना अपने दिमाग का संतुलन खोएगा। बहुत हो चुका घिसापिटा प्रयोग, अब नवीन सोच की जरूरत
है। देखे किस युग में हम नवीनता की पहल करेंगे?
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, बिन गुरु ज्ञान कहाँ से पाऊँ - शिक्षक दिवस की ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज बुधवार (06-09-2017) को
ReplyDeleteतरु-शाखा कमजोर, पर, गुरु-पर, पर है नाज; चर्चामंच 2719
पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
बहुत ही सारगर्भित लेख लिखा है आपने......
ReplyDeleteहाँ आज की शिक्षा में चरित्र निर्माण वाली बात कहाँँ...आज के विद्यार्थी चरित्र जैसे विषयों को जानते भी नहीं...बस आवश्यकता को सर्वोपरि रखकर वही करते है...चारित्रिक पतन रोकने के लिए और व्यावहारिक शिक्षा के लिए ठोस कदम उठाने होंगे.....
सुधाजी आभार आपका।
ReplyDeleteब्लाग बुलेटिन और शास्त्रीजी का भी आभार।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है आपने
ReplyDelete