#हिन्दी_ब्लागिंग
कल राजस्थान के जोधपुर में एक हादसा होते-होते
बचा। हवाई-जहाज से पक्षी टकराया, विमान लड़खड़ाया लेकिन पायलेट ने अपनी सूझ-बूझ से
स्थिति को सम्भाल लिया। यह खबर है सभी के लिये लेकिन इस खबर के अन्दर जो खबर है,
वह हमारा गौरव और विश्वास बढ़ाती है। महिला पायलेट ने जैसे ही पक्षी के टकराने पर
हुआ विस्फोट सुना, उसने तत्क्षण जहाज को ऊपर उड़ा दिया और इंजन बन्द करके जहाज को
उतार लिया। सभी यात्री सुरक्षित उतर गये। महिला पायलेट के नाम से मन थोड़ा तो
घबराता था ही, क्योंकि रात-दिन एक ही बात सुनी जाती है कि महिला में विश्वास और
हौंसलों की कमी होती है। हम इस झूठ को प्रतिपल सुनते हैं और अब तो सोशल मीडिया ने
सहूलियत भी कर दी है और रात-दिन एक ही बात सुनी जाती है। सभी को रात-दिन सुनी जाने
वाली बात पर पक्का यकीन हो जाता है तो
हमें भी यकीन हो गया था कि महिला में आत्मविश्वास, सूझ-बूझ कि कमी होती है लेकिन
कल महिला पायलेट की सूझ-बूझ ने नया आत्मविश्वास जगा दिया।
कल ही क्रिकेट की महिला कप्तान मिताली राज सहित
सम्पूर्ण टीम का साक्षात्कार जी न्यूज दिखा रहा था। एक पुराने प्रश्न के उत्तर पर
सभी पत्रकार आश्चर्य चकित थे। सुधीर चौधरी ने फिर पूछा कि आपसे जब यह पूछा गया था कि
क्रिकेट में आपका पसंदीदा पुरुष खिलाड़ी कौन है? तब आपने उत्तर दिया कि क्या आपने
कभी यही प्रश्न किसी पुरुष खिलाड़ी से किया है? इस उत्तर का कारण क्या था? तब
मिताली राज का उत्तर दिल को खुश करने वाला था। मिताली ने कहा कि यह प्रश्न कहीं
दूसरे समय किया जाता तो ठीक था लेकिन उस समय जब हम फाइनल खेलने की तैयारी कर रहे
हों, तब ऐसा लगा कि हमारा खेल मायने नहीं रखता। मिताली के उत्तर के बहुत गहरे
मायने थे। यह ऐसा ही प्रश्न था जैसे मोदीजी की अमेरिका यात्रा के समय एक पत्रकार
ने लोगों से पूछा था कि क्या आप का क्रेज मोदीजी को लेकर शाहरूख खान जैसा है? लोगों
ने पत्रकार को झिड़क दिया था। लोगों ने कहा कि आप मोदीजी की तुलना शाररूख से करना
चाहते हैं? असल में पत्रकार की सोच में केवल ग्लेमर बसता है, वे इससे आगे दुनिया
देख ही नहीं पाते। यही कारण है कि वे
मिताली से पूछ लेते हैं कि आपका पसंदीदा पुरुष खिलाड़ी कौन है? यह प्रश्न किसी को
भी दोयम दर्जा देने में सक्षम है और कोई भी स्वाभिमानी व्यक्ति दोयम दर्जा नहीं
पसन्द करता है।
महिला और पुरुष दोनों में ही असीम शक्ति है,
किसे अवसर कितने मिले और किसे कितने, बस इसी बात पर सब कुछ निर्भर करता है। जब हम
महिला को दोयम दर्जा दे देते हैं तब कुछ महिलाएं तो हैं जो जिद पर आ जाती हैं कि
हम दोयम नहीं हैं और वे ऐसे क्षेत्र चुनती हैं जो पुरुष क्षेत्र कहलाते हैं। महिला
अपनी यात्रा में चल पड़ी हैं, वे हमारे समाज को बता रही हैं कि अब दोयम दर्जे के
दिन लद गये। सभी जगहों से महिला की उपस्थिति की आवाज आ रही है। एक महिला जहाज के
यात्रियों को बचा लेती है और न जाने कितनी महिलाएं आत्मविश्वास से भर जाती हैं?
कितनों के हौंसले बुलन्द हो जाते हैं! हम जैसे लिख्खाड़ भी उमंग से भर जाते हैं कि
हौंसले गाली देने में नहीं है, हौंसले तो मन के है। पुरुष गाली देकर अपने बुलन्द
इरादों को बताता है, लोग कहते हैं कि जो जितना गाली देता है, वह उतना ही
बहादुर होता है। जबकि मेरी नजर में गाली
देना अपनी बुजदिली छिपाने की निशानी है। हम जब विचलित होते हैं तो चिवन्गम खाकर
अपनी परेशानी को छिपाते हैं, ऐसे ही गाली देकर भी अपनी बुजदिली को छिपाते हैं।
महिला अपने हौंसलों से, सभ्यता के साथ प्रथम दर्जा पाने में सफल हो रही हैं, मन अब
महिला पर विश्वास कायम करने लगा है। मन
खुशी से नाच उठता है और गाने लगता है – देखी तेरी चतुराई।
अब महिलओं को कतई यह साबित करने की जरूरत नहीं है, की वे पुरुषो से किसी भी मामले में कम नहीं है, बल्कि यह सारी दुनिया जानती है की आज की महिलाये पुरुषो से कई कदम आगे है|
ReplyDeleteसुन्दर लेख, आभार|
महिलाएं पहले के समय में उचित मौके नहीं मिलने की वजह से कमतर समझी गई पर आज किसी भी मायने में किसी से कम नहीं हैं, बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम
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