Sunday, November 13, 2016

मैं कब नये कपड़े पहनूंगा?

मैं कब नये कपड़े पहनूंगा?
70 साल से देश रो रहा है, फटेहाल सा दर-दर की ठोकरे खा रहा है। जब सारे ही देश इकठ्ठा होते हैं तब मैं अपनी फटेहाली छिपाते-छिपाते दूर जा खड़ा होता हूँ। कोई भी अन्य देश मेरे साथ भी खड़ा होना नहीं चाहता क्योंकि मेरे अन्दर गन्दगी की सड़ांध भरी है, टूटी-फूटी सड़कों से मेरा तन उघड़ा पड़ा है। मेरी संतानें भीख मांग रही हैं, मेरे युवा नशे के आदी हो रहे हैं। महिला शारीरिक शोषण की शिकार हो रही हैं। मैं न जाने कितने टुकड़ों में बँटा हूँ, मुझे भी नहीं पता कि मैं कहाँ खड़ा हूँ।
सरकारे आती हैं और जाती हैं लेकिन मुझ पर पैबंद लगाने के अलावा कुछ नहीं कर पाती हैं। मेरी जनता मुझे सजा-धजा देखना ही नहीं चाहती, जब भी मैं उससे पैसा मांगता हूँ वह नालायक बेटे की तरह आपना ही रोना रो देती है और मैं एक माता-पिता की तरह सूखी रोटी खाकर  ही गुजारा करने  पर मजबूर हो जाता  हूँ। मैं दुनिया के सामने लाईन में खड़ा रहता हूँ कि कोई मुझे दान में कुछ दे दे, आखिर कब तक मांग-मांग कर अपना पेट भरूंगा!

आज दिन आया  है जब मेरे अन्दर का जहर बाहर निकाला जा रहा है तब कुछ लोग रो रहे हैं कि नहीं जहर मत निकालो, हमे परेशानी हो रही है। हमें दर्द हो रहा है। मेरे अन्दर इतना जहर है कि उसे बाहर निकलने में कुछ दिन लगेंगे ही, तब तक मेरी जनता को सब्र तो करना ही होगा। मेरे अन्दर जब स्वस्थ रक्त बहेगा तो मेरी गंदगी दूर होगी, मेरी टूट-फूट सुधरेगी, इसे होने दो। जब मैं स्वस्थ हो जाऊंगा तब मुझे दुनिया के देशों के सामने लाईन में नहीं लगना होगा, दान के पैसे के लिये। मैं भी अन्य देशों के साथ हाथ मिलाकर खड़ा रह सकूंगा। आज दिन आया है, मेरी दीवाली मनाने का, मुझे भी मना लेने दो। यदि आज भी तुमने इन लुटेरों की ही बात सुनना जारी रखा तो मैं कब नये कपड़े पहनूंगा? अब मुझे सभ्य दिखने दो, मेरे लिये तुम सब सोचो और जब मैं सभ्य दिखूंगा तब तुम भी तो सभ्य दिखोंगे ना। इस जहर को निकल जाने दो, कुछ ही समय लगेगा, फिर तुम सदा स्वस्थ रहोगे।

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