एक घना और फलदार वृक्ष था, उसमें सैंकड़ों पक्षी अपना
बसेरा बनाए हुए थे। उसमें इतने फल लगते थे कि उन सभी पक्षियों का पेट भर जाता था।
पास में ही एक नदी बहती थी, वृक्ष की जड़े उसी नदी से पानी लेती थी और पेड़ को हरा-भरा
रखती थी। नदी जिस शहर से होकर गुजरती थी, वहाँ एक रसायन उत्पाद करने वाला कारखाना
था। उस कारखाने का रसायन युक्त पानी उसी नदी में आकर मिलता था। शहर की अन्य सारी
गन्दगी भी उसी नदी में समाती थी। पेड़ उसी नदी का पानी लेने को मजबूर था।
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आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (21-04-2013) के चर्चा मंच 1220 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteआज की ब्लॉग बुलेटिन क्यों न जाए 'ज़ौक़' अब दिल्ली की गलियाँ छोड़ कर - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteआज जरूरत है समाज में पल रहे कामी भेड़ियों को मारने की।
ReplyDelete--
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
साझा करने के लिए आभार...!
इन भेदियों को एक एक कर ख़तम करना हॉग और यह काम जनता ही कर सकती है
ReplyDeleteकालीपद जी आपका मेरे ब्लाग पर स्वागत है। आपके अमूल्य सुझाव आगे भी मिलते रहेंगे, ऐसी आशा है।
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