प्रत्येक शहर का अपना दस्तूर होता है, त्योहार से
लेकर मृत्यु तक में ऊसका अपना रंग भरा होता है। सभी शहरों के अपने कर्मकाण्ड
हैं। मृत्यु एक ऐसा पक्ष है जिसमें व्यक्ति की संवेदनाएं जुड़ी रहती हैं इसलिए इस
समय होने वाले कर्मकाण्डों पर अक्सर कोई टीका-टिप्पणी नहीं करता है। भारत इतना
विशाल देश हैं, यहाँ परम्पराएं और कर्मकाण्ड शायद हर पाँच कोस पर ही बदल जाते
हैं वहाँ किसी एक परम्परा की बात करना बेमानी सा ही हो जाता है।
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रजनीश जी आभार।
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