सेतुपति से मिलने से पूर्व मद्रास के मन्मथ बाबू के
साथ स्वामी रामेश्वरम् की यात्रा के लिए निकले लेकिन मन्मथ बाबू को सरकारी काम
से नागरकोइल तक जाना था। नागरकोइल पहुंचकर मन्मथबाबू ने स्वामीजी को कहा कि यहाँ
से कन्याकुमारी मात्र 12मील है। स्वामीजी ने कन्याकुमारी जाने का निश्चय किया। पोस्ट को पूरा पढ़ने के लिए इस लिंक पर जाएं -
http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%9A%E0%A4%A4%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A5-%E0%A4%96%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%A1-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%80-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5/
http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%9A%E0%A4%A4%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A5-%E0%A4%96%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%A1-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%80-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5/
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (29-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
लेकिन दुखद यह है कि विवेकानन्द भारत के गौरव को बढ़ाने वाले रहे है, फिर भी उनके ऊपर लिखे आलेख को कोई पढ़ने वाला नहीं। क्या हम केवल भारत को धूल धूसरित ही देखना चाहते हैं?
ReplyDeleteविवेकानंद जी के बारे में इस लेख को पढ कर खुशी हुई, कि कोई तो है जो उनके बारे में सोचता है पढता है उन्हें ।
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