जिस किसी भी व्यक्ति के पास या देश के पास अपना अतीत नहीं होता वह वर्तमान में ही जीता है और भविष्य की कल्पना करता है लेकिन जिसके पास अतीत होता है वह अतीत में ही डूबा रहता है। वह वर्तमान में भी नहीं जी पाता और ना ही अपना भविष्य बना पाता है। एक बच्चे के पास उसका अतीत नहीं होता, वह वर्तमान को पूरी तरह से जीना चाहता है। प्रत्येक नयी वस्तु को पाना चाहता है। उसे पता नहीं होता कि अतीत क्या होता है? लेकिन इसके विपरीत एक प्रौढ़ व्यक्ति के पास उसका अतीत होता है इसी कारण वह अतीत में ही डूबा रहता है। अतीत के अनुभव उसे भविष्य की कल्पना भी नहीं करने देते। बच्चे के सामने एक नयी चमचमाती कार है, वह उसे पाने की कोशिश करता है। उसे पता नहीं कार के पहले भी कुछ था क्या। लेकिन इसके विपरीत उसके पिता ने कार के पहले का जीवन भी देखा है, कार से होने वाली दुर्घटनाएं भी देखी हैं तो वह अपने अतीत में चले जाता है और किशोरवय पुत्र को कार से दूर रहने को कहता है। किशोर अवस्था से युवावस्था में कदम ही रखा होता है कि विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण पैदा हो जाता है। बस उसे आकर्षण का मालूम है उसका इतिहास मालूम नहीं। लेकिन उसके माता-पिता को मालूम है। वह अतीत का भय उसे दिखाते हैं। सोच समझकर कदम रखने की सलाह देते हैं। ऐसे ही कितने उदाहरण है। इसी अतीत के कारण नए और पुराने का द्वंद्व बना रहता है।
ऐसा ही देशों के साथ भी होता है। सम्प्रदायों के साथ भी होता है। भारत देश का स्वर्णिम अतीत रहा है इसलिए यहाँ के लोग केवल अतीत में ही जीते हैं। वे वर्तमान को भी उसी तराजू में तौलते हैं और भविष्य की कल्पना में भी अतीत को ही ले आते हैं। इसके विपरीत जिन देशों का अतीत नहीं है वे केवल वर्तमान में जीते हैं और भविष्य को कैसे सुखी रखे बस इसकी कल्पना करते हैं। लेकिन अतीत हमेशा हानिकारक ही नहीं होता। अतीत से अनुभव आता है और हमें सही मार्ग चुनने का रास्ता मिलता है। इसलिए दोनों पीढियां एक दूसरे का सम्मान करते हुए अपना मार्ग तय करें तो शायद हम सभी का भविष्य ज्यादा सुरक्षित रह सकता है। भारत भी यदि दूसरे देशों से वर्तमान में जीना सीख लें तो भारत का भविष्य भी ज्यादा सुखी हो सकता है। इस विषय के अनेक पहलु हैं, जब आप पढ़ेंगे तो लगेगा कि बहुत कुछ छूट गया है। मैंने चलाकर ही छोड़ा है, जिससे आप सभी अपने अनुभवों से इसे पूरा कर सकें।
( विशेष – बहुत दिनों से कोई पोस्ट नहीं लिखी थी, इसलिए यह संक्षिप्त सी पोस्ट प्रेषित कर रही हूँ )
bahut sahi baat kahi aapne...ateet hmen achha bhi sikhhata hai aur bura bhi, to use hmen apni takat banani chahiye, na ki kamzori!!
ReplyDeleteयह संक्षिप्त है ??? नहीं अजीत जी इसमें तो सारा सागर समा जाए..बहुत ही सार्थक बात कही है आपने.
ReplyDeleteKisee bhee desh ke liye ek ateet hona badee baat hai....wahee uska itihaas hai,jisse deshwasiyon ko seekhna hota hai!
ReplyDeleteसंक्षिप्त अवश्य किन्तु सार्थक. आभार ! ..... गौरवमयी अतीत होते हुए भी हम आज पिछड़ नहीं गए क्या ?...... ऐसा तो नहीं कि हम अतीत को लेकर ही डूबे रहते हैं ? इस पर मनन करना होगा अजीत जी.
ReplyDeleteसंक्षिप्त किन्तु सार्थक
ReplyDeleteवर्तमान से आँख नहीं हटाना चाहिये...
ReplyDeleteसहमत हैं जी
ReplyDeleteसंक्षिप्त परन्तु सार्थक.
अतीत और वर्तमान का सही संतुलन जरूरी है...जैसे गाड़ी चलाते वक़्त रियर व्यू में भी झांकते रहना पर नज़र सामने सड़क पर रखनी पड़ती है...वही आगे ले कर जाएगी
ReplyDeleteसुखद वर्तमान के लिए अतीत से सबक आवश्यक है !
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
हम अतीत पर गौरवान्वित हो सकते हैं पर उसे ढो नहीं सकते! इसलिए जीना तो वर्तमान में ही होता है भविष्य के उज्जवल समय की आस में॥
ReplyDeleteहम अतीत पर गौरवान्वित हो सकते हैं पर उसे ढो नहीं सकते! इसलिए जीना तो वर्तमान में ही होता है भविष्य के उज्जवल समय की आस में॥
ReplyDeleteबहुत पहले इसी विषय पर एक आलेख पढ़ा था, शायद ’प्रभाष जोशी’ का लिखा था। यह भूत, वर्तमान, भविष्य वाली मानसिकता हमारे चेतन अवचेतन मस्तिष्क पर बहुत प्रभाव डालती है। हमारी जीवन शैली पर इस बात का बहुत प्रभाव होता है। सिर्फ़ वर्तमान जीवन का महत्वपूर्ण होना ’येन-केन-प्रकारेण’ अपना मतलब पूरा करने की मानसिकता भी दिखाता है।
ReplyDeleteसार्थक आलेख!
ReplyDeleteमनन योग्य बहुत सुंदर सार्थक प्रस्तुति,बेहतरीन
ReplyDeletewelcome to new post...वाह रे मंहगाई
इतिहास की गलतियों से वर्तमान में सुधार करना ज़रुरी है ..अतीत याद तो आता है पर चलना तो आगे की ओर ही है ..वर्तमान को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता .. और न ही अतीत में जिया जा सकता है .अतीत से सीख वर्तमान को प्रभावी बनाना चाहिए .
ReplyDeleteyh bat to hai.
ReplyDeleteहाँ ,सुदूर अतीत की सुनहरी यादों का जुगाली करने की आदत पड़ गई है . उचित यह होगा कि हम अपने विगत की जिन ग़लतियों का ख़ामियाज़ा भुगत रहे हैं उन्हें सुधारने की कोशिश वर्तमान में करें तभी भविष्य उज्ज्वल हो सकता है . .
ReplyDeleteदोनों पीढियां एक दूसरे का सम्मान करते हुए अपना मार्ग तय करें तो शायद हम सभी का भविष्य ज्यादा सुरक्षित रह सकता है।
ReplyDeleteअकाटय सत्य है ………………:)
bahut sahi baat uthayee hain......
ReplyDeleteबहुत ही सटीक और भावपूर्ण रचना। धन्यवाद।
ReplyDeleteसार्थक बात
ReplyDeleteआपकी यह पोस्ट संक्षिप्त ज़रूर है मागर सार्थक भी है बहुत सही और सच लिखा है आपने मैं आपकी बातों से पूर्णतः सहमत हूँ। मगर जैसा की आपने कहा "दोनों पीढियां एक दूसरे का सम्मान करते हुए अपना मार्ग तय करें तो शायद हम सभी का भविष्य ज्यादा सुरक्षित रह सकता है।" मगर ऐसा हो कहाँ पाता है...ना देश के मामले मे और ना ही व्यक्तिगत तौर पर क्या यह संभव है?
ReplyDeletebaat sahi hai ...ateet se seekh le kar aage badh jana chahiye ...
ReplyDeleteवर्तमान में जीना ही व्यवहारिक है,परंतु वर्तमान कहीं ना कहीं,हमारे भूत से ही जुडा है.
ReplyDeleteआपने सही कहा भूत हमारी पाठशाला है.
सब का कोई न कोई अतीत होता है . लेकिन जीना तो वर्तमान में ही चाहिए .
ReplyDeleteहालाँकि अतीत से सीखने को भी मिलता है .
अतीत की सीख से वर्तमान सुधारा जा सकता है ...और अच्छे वर्तमान से अच्छे भविष्य की नींव पड़ती है ....???
ReplyDeleteअतीत से सीख लेकर वर्तमान में कर्म कर भविष्य बनाया जा सकता है.....पर अतीत पर ही केन्द्रित रहना किसी दृष्टि से ठीक नहीं।
ReplyDeleteसार्थक और चिंतनपरक पोस्ट।
सटीक अतीत से सीखने को मिलता है
ReplyDeleteपल्लवी जी, मैं यही कहने की कोशिश कर रही हूं कि नयी पीढी के पास अतीत नहीं है इसलिए वह केवल वर्तमान में ही जीता है और पुरातन पीढी के पास अतीत है तो वह वर्तमान में ही जी नहीं सकता। यही विडम्बना है, इसी कारण मतभेद हैं। और शायद यही अंतर हर युग में बना रहता है इसी कारण जब हम बच्चे थे तो कुछ और थे और आज कुछ और हैं।
ReplyDeleteसही कहा है आपने कि अतीत के अनुभवों का इस्तेमाल वर्तमान तथा भविष्य से भय नहीं बल्कि इन्हें और बेहतर बनाने के लिए किया जाना चाहिए.
ReplyDeleteजैसी पोस्ट पढ़ते रहे हैं वैसा ही चिंतनशील आलेख...एक बार फिर!
ReplyDeleteआपकी किसी पोस्ट की चर्चा है नयी पुरानी हलचल पर कल शनिवार 21/1/2012 को। कृपया पधारें और अपने अनमोल विचार ज़रूर दें।
ReplyDeleteविचारणीय बातें ..... संक्षिप्त पर सार्थक पोस्ट
ReplyDeleteबेहतरीन...
ReplyDeleteबीता हमारे साथ चलता है..बीतता नहीं कभी.
सादर.
संक्षिप्त सी पोस्ट यूं जैसे गागर में सागर ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति आभार ।
ReplyDeleteजिस किसी भी व्यक्ति के पास या देश के पास अपना अतीत नहीं होता वह वर्तमान में ही जीता है। पोस्ट अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद .
ReplyDeleteसार्थक आलेख। अतीत न हो तो वर्तमान के सुख दुख को कैसे समझ सकेंगे--- अतीत की सीख ही हमे आगे ले जाती है। अजित जी किसी ब्लाग पे बहुत दिन से आ नही पाई लेकिन आपको बहुत याद किया। आशा है अब रोज मुलाकात होगी। शुभकामनायें।
ReplyDeleteनिर्मलाजी, अभी आपको याद ही कर रही थी कि आप की टिप्पणी मिल गयी। आपका स्वास्थ्य कैसा है?
ReplyDeleteबात बड़े संदर्भ में है इसलिए व्यक्तिगत जीवन से हट कर कहूं तो हमारे देश का वर्तमान और भविष्य दोनो ही बेहतर होना चाहिए था...पर है नहीं..हां ज्यादा निराशा या ज्यादा आशावादी नहीं हैं....न ही वर्तमान न ही भविष्य....हमसे मुश्किल ये हुई कि सतत आगे बढ़ते रहने को प्रेरित करने वाले अतीत को भूल चुके हैं ..औऱ केवल अतीत के गौरव को ही आज भी ढो रहे हैं...हम सनातन क्यों थे....ये भूल कर हम वर्तमान को बदलकर जीना चाहते हैं..परंतु मुश्किल ये है कि अतीत अब भी निरंतर होकर वर्तमान में नही तब्दील हो रहा बल्कि लाश के बेताल की तरह हमारे कंधों पर सवार है और सिर के टुकड़े होने के डर से हम वेताल को उतार कर उसे सनातन यानि निरंतर नूतन की तरह इस्तेमाल नहीं कर रहे....कहीं भी हमारा अतीत ये नहीं कहता था कि कर्म को छोड़कर जीवन जिओ..बस हम यही कर रहे हैं....
ReplyDeletebehad prabhavshali post gupta ji ....sadar abhar.
ReplyDeleteजरूरी नहीं है की अतीत न होने पे देश या काल के लोग नया ही सोचते हैं ... पाकिस्तान इसका उधाहरण है ... उका कोई इतिहास नहीं पर वो कुछ भी नया पुराना नहीं सोच पाते ...
ReplyDeleteअतीत का होना जरूरी है और नयी सोच को ग्रहण करना भी जरूरी है जिसके लिए खुली सोच जरूरी है जो हमारे देश में पैदा नहीं हो प रही ....
देवानंद साहब के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए...जिन्होंने कभी रुकना नहीं सीखा...तमाम असफलताओं के बावजूद अपनी पुरानी किसी फिल्म का रीमेक नहीं बनाया..88 साल का उम्र में भी युवकों से भी ज़्यादा जोश उनमें आने वाले कल की योजनाओं के लिए रहता था...किसी ने उनसे कहा था कि आप की फिल्में पिटती है, मुनाफा नहीं देती, आप फिर भी फिल्में क्यों बनाते रहते हैं...उनका जवाब था जब मैं मुंबई आया था तो मेरी ज़ेब में दो रुपये, आठ आने थे...और जब तक वो मेरी ज़ेब में हैं, मैं मुनाफ़े में हूं...
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व्यस्तता के चलते ब्लागिंग में अनियमित हूं....माफ़ी चाहता हूं....
जय हिंद...
भले अतीत मार्ग दर्शक बने .गर्व करें उस पर .लेकिन वतमान को सँवारे अतीत के अच्छे तत्व लेके ,भविष्य वर्तमान से ही प्रसवित होता है .जो भी है बस यही एक पल है नखलिस्तान है .आप ब्लॉग पर आईं,हमारा भी हौसला बढ़ा .
ReplyDeleteकुछ के लिए अतीत ही वर्तमान हो जाता है।
ReplyDeleteबहुत सार्थक सटीक अभिव्यक्ति, बेहतरीन पोस्ट....
ReplyDeletenew post...वाह रे मंहगाई...
आपके इस संक्षिप्त से पोस्ट का फलक विस्तृत है।
ReplyDeleteसहज और संक्षिप्त - किन्तु यथार्थ परक पोस्ट ! दिल छु गया ! इसमे एक कसक भी है !
ReplyDelete.
ReplyDelete"अतीत हमेशा हानिकारक ही नहीं होता।
अतीत से अनुभव आता है और हमें सही मार्ग चुनने का रास्ता मिलता है।
इसलिए दोनों पीढियां एक दूसरे का सम्मान करते हुए अपना मार्ग तय करें तो शायद हम सभी का भविष्य ज्यादा सुरक्षित रह सकता है।"
सच कहा आपने ।
इस विषय पर व्यापक फ़लक पर जिरह-बहस की अनेक संभावनाएं हैं । लेकिन एक बात तो तय है कि वर्तमान से संतुष्ट पाए जाने वालों की संख्या नाममात्र ही होगी…
बहरहाल,
सारगर्भित - सार्थक लघु आलेख के लिए आभार !
शुभ कामनाओं सहित…
बहुत सच कहा है. सर्वांगीण विकास और सम्रद्धि के लिये अतीत और वर्तमान का उचित सामंजस्य जरूरी है. बहुत सारगर्भित आलेख ..आभार
ReplyDeleteमेडम ये सारा सिलसिला मुस्लिम तुष्टिकरण का मिस्त्र अन क्लीन ने शुरू किया था .पहले शाहबानो फिर शैतान की आयातों पर पाबंदी फिर mandir का taalaa kholaa tabhi se yah domino prabhaav zaari hai .
ReplyDeleteकोंग्रेस का अतीत उसका पिंड नहीं छोड़ रहा है .
very thoughtful and to the point
ReplyDeleteexcellent
yes India has not learned to stay in present and look for future
भारत भी यदि दूसरे देशों से वर्तमान में जीना सीख लें तो भारत का भविष्य भी ज्यादा सुखी हो सकता है...ekdam sahi baat kahi aapne..
ReplyDeletesaarthak chintanyukt post..
बहुत ही सार्थक चिंतन!!
ReplyDeleteअतीत गौरव से मात्र सीख लेते हुए चरित्र निर्माण का पुरूषार्थ होना चाहिए। अतीत गौरव को नशे की तरह जीना, और मदहोश पडे रहना दुर्भाग्य है। प्रमादियों के साथ दुर्भाग्य जुड़ा ही होता है।