बाते करना किसे नहीं भाता? कैसा भी चुप्पा टाइप का इंसान हो, उसे भी एक दिन बातों के लिए तड़पना ही पड़ता है। बचपन तो खेलने-कूदने और पढ़ने-लिखने में बीत जाता है, उस समय घर-परिवार में, स्कूल में, मौहल्ले में बाते करने वाले ढेर सारे लोग होते हैं। लेकिन युवावस्था आपकी परीक्षा लेकर आती है। अभी प्रेम के कीड़े ने दंश मारा ही था कि चहचहाते पक्षी की बोलती बन्द हो जाती है। अपने अन्दर ही बातों के गुंताले बुनता दिखायी दे जाएगा। लेकिन कभी प्रेम का मार्ग दिखायी दे जाता है तब जैसे गूंगे को जबान आ गयी हो वही हाल होता है। चाहे कोई सुनने वाला मिले या नहीं, आकाश तो है, बस बोलते रहिए और बोलते रहिए। प्रेम की धारा जैसे बोलने से ही अपने गंतव्य तक पहुंचेगी। लेकिन युवावस्था के बाद गृहस्थाश्रम तो सर्वाधिक कठिन आश्रम है। पत्नी बोलने वाली और पति महाशय वैज्ञानिकों की तरह मौनी बाबा! तो आप क्या करेंगे? या फिर पति बोलने वाला और पत्नी गूंगी गुडिया! हमारे यहाँ तुर्रा यह भी कि पति और पत्नी का साथ सात जन्मों का। अब आप बताइए कि कैसे निर्वाह हो? बचपन में जब हम बोलते थे तो पिताजी अक्सर टोकते थे कि तुम लोग इतना क्यों बोलते हो? मेरा एक ही उत्तर होता था कि यदि इस जन्म में नहीं बोले तो भगवान अगले जन्म में गूंगा बना देगा, कहेगा कि मैंने तुम्हें जुबान भी और तुमने काम ही नहीं ली।
जो पति और पत्नी युवावस्था में गुटर-गूं नहीं करते, उनका बुढ़ापा भी कठिनाई में पड़ जाता है। मौनी बाबा के साथ रहते रहते आप भी मूक प्राणी बन जाते हैं। जुबान पर स्वत: ही ताले पड़ जाते हैं। लेकिन जो खूब चहकते हैं उन्हें विपरीत परिस्थिति भी डगा नहीं पाती है। दुनिया जहान की बाते वे कर लेते हैं और मन को सदैव प्रसन्न रखते हैं। जो बाते नहीं करता हमारे यहाँ उसे घुन्ना कहा जाता है। कहते हैं कि इसके पेट में दाढ़ी है, अपनी बात बताता ही नहीं। लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो छल-कपट रहित होते हैं और उन्हें बात करना आता ही नहीं है। लेकिन ऐसे लोगों की संख्या कम ही होती है। कुछ ऐसे भी होते हैं, जिन्हें बातें करने से डर लगता है, कि कहीं उल्टा-सीधा कुछ ना निकल जाए, मुँह से। इस समस्या के शिकार अक्सर पति होते हैं, वे न जाने क्यों पत्नियों के सामने लड़खड़ा से जाते हैं। कहते हैं कि बचपन और युवावस्था तो पंख लगाकर उड़ जाते हैं लेकिन वृद्धावस्था काटे नहीं कटती है। तब सहारा होता है केवल जीवन-साथी। और इन दोनों का सहारा होता है कभी समाप्त न होने वाली बातें। यदि दम्पत्ती गाँव से आकर शहर में बसे हैं तो देखो चार आने सेर के घी से लेकर तीस हजार रूपए तोले के सोने की बात हो जाएगी। आज से पचास साल पहले स्वर्गवासी हुए दीनूकाका की बाते याद कर कभी पत्नी हँस देगी तो कभी पति दुखी हो जाएगा। कैसे नदी पर नहाने जाते थे, कैसे चक्की से आटा पीसते थे, कैसे शाम पड़े चबुतरे पर बैठकर हरे चने छीलते हुए सारे जहान की बाते कर लिया करते थे। बचपन में गिल्ली डंडा कब तक खेला था और हमारी गिल्ली से किस का सर फूटा था, सारी ही बाते हो जाती हैं।
कुछ लोगों की बातों में अपना परिवार, अपना बचपन शामिल होता है। बस ऐसे दम्पत्ती सबसे सुखी होते हैं और इनकी बातों का कभी अन्त नहीं होता। कथा अनन्ता की तरह चलता ही रहता है पुराण। अच्छे से अच्छे मनोविश्लेषक भी मन को इतना नहीं जान पाते जितना इनकी बातों से प्रत्येक मन की तह पता लग जाती है। लेकिन कुछ लोग बचपन को अछूत सा बना देते हैं, कभी भूले भटके भी याद नहीं करते और बस पिले रहते हैं अमेरिका, यूरोप आदि अन्तरराष्ट्रीय समस्याओं पर। उन्हें चिन्ता सता रही होती है कि ओबामा अब अफगानिस्तान में क्या करेंगे लेकिन उनकी चिन्ता का विषय नहीं है कि मेरा पोता मुझे प्यार से बात करेगा या नहीं! कुछ लोगों की एक और समस्या है, वे अन्तरराष्ट्रीय समस्याओं को सुलझाने में इतने तल्लीन रहते हैं कि उन्हें अपने सुझाव बताने के लिए किसी शिकार की खोज रहती है। अक्सर ऐसे विचारकों से उनकी पत्नियां दूर ही रहती हैं और वे निकल पड़ते हैं शिकार की खोज में। हमारे भी ऐसे कई परिचित हैं। उन्हें विद्वान श्रोता चाहिए जो उनकी हाँ में हाँ मिला सके और अपने ज्ञान की जुगाली कर सकें। एक ऐसे ही हमारे परिचित हैं, गाहे-बगाहे चले आते हैं। अभी अपनी तशरीफ का टोकरा सोफे पर रखते भी नहीं हैं कि उनका रेडियो ऑन हो जाता है। इसके पहले वे सावधानी भी बरत लेते हैं और जल्दी ही कह देते हैं कि चाय भी पीनी है। अब चाय पीनी है तो आधा घण्टा तो आपको उन्हें सुनना ही होगा। हम तो अतिथि देवो भव: वाले देश के तो मना भी नहीं कर सकते है। वे जानते भी हैं कि मुझे ऐसा कौन सा तीर छोड़ना है जिससे ये मजबूर हो जाएं कुछ टिप्पणी करने के लिए। बस आपने उनका प्रतिवाद किया नहीं की बहस अपने परवान चढ़ने लगती है। उनकी मन की इच्छा पूर्ण और आप चाय पिलाकर भी मायूस। वे चाय पीकर भी रिक्त और हम उनकी सुनकर पस्त। लेकिन उनकी दिनभर की चित हो गयी।
अभी दो-तीन वर्ष पुरानी बात है। मैं अमेरिका गयी हुई थी। मुझसे मिलने मेरी पुत्री की सहेली आ गयी। अभी उसने कमरे में पैर रखा ही था कि उसका टेप चालू हो गया। वह बिना कोमा, फुलस्टाप लगाए बोले जा रही थी, हम सब उसे केवल निहार रहे थे। कुछ देर बाद उसे समझ आ गया कि बोलना शायद ज्यादा हो गया है। तो वह बड़ी मासूमियत के साथ बोली कि आण्टी प्लीज मुझे रोको मत। यहाँ अमेरिका में तीन महिने से कोई बोलने वाला मिला नहीं है तो जुबान पर दही जम गया है। उसका पति एक कोने में चुपचाप बैठा था, मैं उसकी हालत समझ सकती थी। इसलिए बाते करने का सुख मौनी लोग नहीं समझ सकते। यह दुनिया का सबसे बड़ा सुख है, जिसके पास यह कला नहीं है समझो उसके पास जीवन में कुछ नहीं है। अब इसके फायदे भी कितने हैं! बच्चों से गप्प लगाओ और उनके अन्दर की बाते जान लो, आपको अपना मित्र समझकर सब कुछ बताएंगे और आप उन्हें सही मार्ग पर चलना आसान करा देंगे। पति और पत्नी बातों के द्वारा एक-दूसरे के कितने करीब आ जाते हैं! मित्रता तो होती ही बातों के लिए है। आजकल तो लोग सुबह और शाम बाग-बगीचों में घूमते हुए मिल जाएंगे। अपना-अपना झुण्ड बना लेंगे और फिर घर-परिवार से लेकर दुनिया जहान की बातें बहने लगती हैं। घर जाते हैं तब तृप्त होकर जैसे छककर अमृत पी लिया हो। बस अब मृत्यु आ जाए कोई गम नहीं, हमने अपने मन की बात कह ली है। लेकिन जो अपने मन की बात कभी नहीं कह पाते? वे क्या करते होंगे? कैसे जीते होंगे? क्या उनके मन में कुछ है ही नहीं या जो अन्दर है उसे बाहर निकालने का साहस ही नहीं है? शायद यह भी लेखन की तरह ही है कि कुछ लोग लिखने से ऐसा डरते हैं मानों कलम की जगह हाथ ने साँप पकड़ लिया हो। मन की अभिव्यक्ति होती ही नहीं और मन प्यास का प्यासा रह जाता है। या फिर कुछ लोगों को प्यास लगती ही नहीं?
बहुत आवश्यक है अपने मन की बात कह पाना और अगर जीवनसाथी ही न सुने तो जीवन का आनंद ही नगण्य रह जाता है !
ReplyDeleteभावनाएं व्यक्त न कर पाना ही कुंठा को जन्म देता है !
शुभकामनाएं आपको !
अजित जी
ReplyDeleteसबसे पहले धन्यवाद हम जैसी पत्नियों का दुखड़ा समझने के लिए मै तो समझ ही नहीं पाती की ये जन्म कटना मुश्किल हो रहा है बाकि के छ: कैसे कटेंगे :) सच तो ये है की कोई कोई पति आफिस में ही इतना बतिया लेते है की घर आ कर कहने के लिए कुछ बचाता ही नहीं है , और कुछ के मन में तो इतनी शुन्यता होती है की कुछ बात आती ही नहीं है, कुछ अन्य बातो पर विचार ही नहीं करते तो बात कहा से आये | शुरू में तो अकेले रहने के कारण चुप रहते रहते मुंह ही दुखने लगता था और घर जा कर बाते करने पर बातो से मुंह दुखने लगता था चार छ महीनो में इतनी बाते जो इकठ्ठा हो जाती थी करने के लिए | अब जब बिटिया आ गई है तो कभी कभी उसे ही कहना पड़ता है की कितना बोलती हो थोडा देर चुप रहा करो , क्या करे दस सालो में उधर का असर इधर आ गया है | बहुत ही अच्छी लगी पोस्ट |
'कुछ लोगों की एक और समस्या है, वे अन्तरराष्ट्रीय समस्याओं को सुलझाने में इतने तल्लीन रहते हैं कि उन्हें अपने सुझाव बताने के लिए किसी शिकार की खोज रहती है।'
ReplyDeleteबढि़या व्यंग्य... पति-पत्नी में बातें तो होनी ही चाहिए
हिन्दी कॉमेडी
रचना चर्चा-मंच पर, शोभित सब उत्कृष्ट |
ReplyDeleteसंग में परिचय-श्रृंखला, करती हैं आकृष्ट |
शुक्रवारीय चर्चा मंच
http://charchamanch.blogspot.com/
मेरा बोलना तो सामने वाले के ख़ुशी से झेलने की क्षमता पर निर्भर है
ReplyDelete__________
आदरणीय सतीश जी ने बिलकुल सही कहा
"भावनाएं व्यक्त न कर पाना ही कुंठा को जन्म देता है !"
अंशुमाला जी की टिप्पणी पढ़ना अच्छा लगा
मन के भावों को व्यक्त करने से काफी सारी दुविधाएं समाप्त हो जाती हैं।
ReplyDeleteमन ही मन में कुढने से बेहतर हैं कह देना.....
अच्छी प्रस्तुति....
कितना बोल लेती हो, अजित दीदी?, लेकिन बोलने पर जो भी बोली वस्तुपरक और सार्थक बोली। ऐसा बोलना भला किसको नहीं सुहाता? देखो न हम भी कुछ तो बोलने पर विवश हो ही गए।
ReplyDeleteलेकिन सुनने वाला शिकार तो सभी को ढ़ूढ़ना ही पडता है।
कभी मनोस्थिति अनुकूल नहीं होती। कभी विषय सुनने वाले का प्रिय नहीं होता। कभी सुनाने वाले को शीघ्रता होती है तो कभी सुनने वाले के पास समय नहीं होता।
सुज्ञ जी, विवाह के बाद तो ताले ही पड गए हैं जुबान पर, बस आप लोगों का ही सहारा है। हा हा हा हा।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर आलेख. वैसे आजकाल हम भी मौनी बाबा बने पड़े हैं. अर्धांगिनी अल्ला को प्यारी हो गयी और घर पर अक्सर अकेले ही होते हैं. समाज सेवा का लुक लिए कभी कभार वृद्धाश्रम चले जाते हैं. उनकी सुनने और अपनी भी सुनाने.
ReplyDeleteसरल सहज शब्द और मन की बातें व्यक्त ..बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteस्वागत है दीदी, समझो कि आपके बैठक कक्ष में हूँ, आप चाय रखवा दिजिए……
ReplyDeleteसुन्दर सीख, संवाद बना रहेगा तो बुढ़ापे में आराम रहेगा।
ReplyDeleteजय हो जय हो जय हो आज तो अजीत जी कमाल का आलेख लिखा है…………मज़ा आ गया…………सभी को ये तरीका आजमाना चाहिये अपने भविष्य के लिये। तभी सभी ब्लोगर यहाँ अपनी खुन्नस निकालते हैं………हा हा हा जस्ट किडिंग्……तभी तो कहा गया है संवाद से मसले सुलझ जाते हैं मौनी बाबा क्या करेंगे ना खुद कुछ कहेंगे और ना ही कोई हल निकलेगा और कुंठा अन्दर ही अन्दर जन्म ले लेगी वो अलग्……………बेहतरीन पोस्ट्।
ReplyDeletesatis ji ke vicharon se sahamat hun ....abhaar
ReplyDeleteवाह आज तो सबके मन की बात लिख दी.
ReplyDeleteबातें तरह तरह की..और सब सच सच.
मजा आ गया.
मन की बातें तो कहीं न कहीं निकालनी ही पड़ती हैं ...आपने तो आज दुखती रग पर हाथ धर दिया :):)
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट
अच्छी रचना ...........
ReplyDeletewel come
http://vijaypalkurdiya.blogspot.com
डॉक्टर दी,
ReplyDeleteप्लेटो के 'संवाद' को कौन भूल सकता है... एक ऐसा माध्यम, जिससे उन्होंने दर्शन जैसे गूढ़ विषय को सरलता से समझा दिया..
यह संवाद ही तो सम्पूर्ण जगत की वास्तविक ऊर्जा है... बहुत ही अच्छा विषय और उससे भी अधिक सुन्दर आपकी अभिव्यक्ति!! आभार!!
aaj ke bhoutikwad ki daudti bhaagti zindgi me to ye antarzal aur blog hi bahut sahayak hai hamari bakar-bakar sunne ko. kyuki logo ko vahi dar satata hai ki kuchh bolu to mayne galat na laga liye jaye ya koi bura na maan jaye.
ReplyDeletesunder prastuti.
हाय! हम तोता मैना क्यों न हुए, बुढापा गुटरगूं करते गुज़र जाता :)
ReplyDeleteबहुत बढ़िया आलेख सच मज़ा आगया पढ़कर बहुत दिनों बाद कुछ हटकर पढ़ने को मिला... शुभकामनायें
ReplyDeleteलगभग सभी पत्नियों के मन की बात लिख दी है , वैसे तो कुंवारे भी चाह्ते ही होंगे खूब बातचीत करना ...
ReplyDeleteक्या ख्याल है , मगर क्या किया जाए , कुछ लोंग इतना बात करते हैं कि वे दूसरों की बात सुनते ही नहीं , और कुछ लोंग सिर्फ घर से बहार बात करते हैं , कुछ सिर्फ रोने धोने की करते हैं , किसिम किसिम के लोंग!
आपकी बात समझ सकती हूँ , अभी बच्चे छोटे हैं तो उनके साथ खूब गपशप हो जाती है , ये सब अपनी रह चलेंगे , तो जाने क्या होगा रे :)...एक असोसिएअशन बना ली जाय बात करने वालों की , क्योंकि इस हाल से तो बुढ़ापा मुश्किल गुजरेगा ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
यहाँ पर ब्रॉडबैंड की कोई केबिल खराब हो गई है इसलिए नेट की स्पीड बहत स्लो है।
सुना है बैंगलौर से केबिल लेकर तकनीनिशियन आयेंगे तभी नेट सही चलेगा।
तब तक जितने ब्लॉग खुलेंगे उन पर तो धीरे-धीरे जाऊँगा ही!
कहीं पढ़ा था, दुनिया का सबसे हैरतअंगेज़ कारनामा...
ReplyDeleteएक जगह दो सहेलियां मौजूद थीं...और वहां एक घंटे तक कोई शब्द नहीं सुना गया...
जय हिंद...
hasi hasi me bahut kuch saarthak kah diya. kaisi hain aap shubhakamanayen
ReplyDeletehasi hasi me bahut kuch saarthak kah diya. kaisi hain aap shubhakamanayen
ReplyDeletebatolebaji ke apne hi maje hai aunty.aj aapne sach me khoob batein ki aur jitni ki sab badi pyari lagi....ye vyatha meri bhi hai.mere pati ko bolna nahi bhata na sunna .:)
ReplyDeleteबहुत अच्छा। बिल्कुल मन की बात॥
ReplyDeleteइसीलिए तो ब्लॉगिंग रास आता है कि यहां तो जो मन में आए लिख सकते हैं।
एक गीत याद आ गया
“मन को पिंजड़े में मत डालो।
मन का कहना मत टालो।”
बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट।
लेकिन हर किसीसे हम बातें नहीं कर सकते. उन लोगों से बातें करना बडा बोझिल लगता है जिनके पास कोई विषय तो होता नहीं फिर भी जबरदस्ती बातें कर कर के पका देते है.मेरे सामने तब बडी मुश्किल होती है जब सामने वाला और सुनाओ,और सुनाओ करके पीछे ही पड जाता है.खासकर फोन पर तो थोडी सी बात करो फिर...
ReplyDeleteऔर सुनाओ
फिर थोडी बात करो
और सुनाओ
किसी तरह थोडा और खींचो लेकिन फिर भी
और सुनाओ
सामने वाले को पता भी है कि अगला इस पर क्या कहेगा लेकिन फिर भी
और सुनाओ
अरे भाई कितनी और सुनोगे.
चलिए आप इसी बात पर एक चुटकुला सुनिए.
टीचर बच्चे से-बेटा मंथस् के नाम सुनाओ.
बच्चा-जनवरी फरवरी मार्च अप्रेल
टीचर-और सुनाओ
बच्चा-और सब ठीक सर,आप सुनाओ.
हा हा हा हा हा
अभी कुछ दिन पहले एक शोध देखा था जिसमें विश्लेषण किया गया था कि जिन बातों को निंदा, चुगली आदि आदि कहकर बदनाम किया जाता है, वे दरअसल मन की भड़ास निकालने के लिये सेफ़्टी-वॉल्व का काम करती हैं।
ReplyDeleteमुझे भी लगता है कि सबके लिये न सही लेकिन जिनके पास करने को कुछ सार्थक काम नहीं है, उनके लिये यह विश्लेषण सही है।
अपनी बेटी की सहेली का जो उदाहरण आपने दिया है, वो बिल्कुल उचित है। अपनी भावनायें व्यक्त करना बहुत जरूरी है और सामने वाला यदि बराबर मानसिक\बौद्धिक स्तर का हो तो फ़िर तो क्या कहना..।
सुन्दर अभिव्यक्ति अजिता जी
ReplyDeleteसचमुच बातों में है बडे बडे गुण .. बात न होने से समस्याएं उलझ जाती है .. बात होने से सुलझती हैं !!
ReplyDeleteशीर्षक बड़ा लुभावना है और सौ फीसदी सही भी...आजकल हम तीन चार पुरानी सहेलियों का जितना घूमना होता है उससे कहीं ज़्यादा गप्पबाज़ी होती है..खूब हँसना और बोलना दिल और दिमाग दोनों को तरो ताज़ा कर देता है...
ReplyDeleteआदरणीय अजीत जी, आज की पोस्ट तो वास्तव में प्रेरणादायक है....
ReplyDeleteछोटी छोटी बातों में बड़े बड़े गुण.
बहुत सुंदर.........
ReplyDeleteसुन्दर सृजन , प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteसमय- समय पर मिले आपके स्नेह, शुभकामनाओं तथा समर्थन का आभारी हूँ.
प्रकाश पर्व( दीपावली ) की आप तथा आप के परिजनों को मंगल कामनाएं.
Bahut achha vyangya. Aapko evm aapke pariwar ko dipawali ki hardik subhkamna.
ReplyDeleteबाते करने का सुख मौनी लोग नहीं समझ सकते।
ReplyDeleteबिल्कुल सही........बहुत अच्छी लगी पोस्ट
Great site and nice design. Such interesting sites are really worth comment.
ReplyDeleteIn a Hindi saying, If people call you stupid, they will say, does not open your mouth and prove it. But several people who make extraordinary efforts to prove that he is stupid.Take a look here How True
बहुत सटीक और सार्थक आलेख ....दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteआपको दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनायें....
ReplyDeleteपञ्च दिवसीय दीपोत्सव पर आप को हार्दिक शुभकामनाएं ! ईश्वर आपको और आपके कुटुंब को संपन्न व स्वस्थ रखें !
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"आइये प्रदुषण मुक्त दिवाली मनाएं, पटाखे ना चलायें"
आदरणीय अजित जी, आपको, आपके मित्रों और परिजनों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeletebahut maza aaya......sahi aur saral baaten padhkar.
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* आप सबको दीवाली की रामराम !*
*~* भाईदूज की बधाई और मंगलकामनाएं !*~*
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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अच्छा विषय..बढिया लेख।
ReplyDelete...कहीं एक चुटकुला पढ़ा कि जिसमें एक छोटा बच्चा कह रहा था -'जब बोलना नहीं आता था तो सभी कहते थे कि ये बोलो वो बोलो, अब बोलते हैं तो कहते हैं चुप हो जाओ, आख़िर ये लोग चाहते क्या हैं'
ReplyDeleteवाकई बातों से कई समस्याओं का समाधान संभव है, मगर हम इसका सही इस्तेमाल नहीं कर पाते. कई पहलुओं को तो आपने समेट ही दिया है.
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