लो फिर दीपावली आ गयी। मेरे घर को हर साल इंतजार रहता है प्रकाश का, और मुझे तो प्रतिपल। पिछले साल ही तो दीपावली प्रकाश लेकर आयी थी, मैंने उसे समेट कर क्यों नहीं रखा? आखिर कहाँ चला जाता है प्रकाश? कैसे अंधकार जबरन घर में घुस आता है? मैंने तो ढेर सारे दीपक भी लगाए थे और लाइट की रोशनी भी की थी।
प्रकाश बोला कि मैं तो रोज ही सुबह-सवेरे तुम्हारे दरवाजे पर दस्तक देता हूँ। लेकिन मेरी भी नियति है, मैं शाम के धुंधलके के साथ ही कहीं और जहाँ को रोशन करने चला जाता हूँ। पीछे छोड़ जाता हूँ चाँद और तारे। लेकिन तभी प्रकाश ने प्रश्न दाग दिया। आखिर तुम क्यों दीपावली के दिन मेरा दिवस मनाते हो?
अरे तुम्हें इतना भी नहीं मालूम कि इस दिन प्रभु राम अयोध्या आए थे। पूरे 14 वर्ष वनवास काटने के बाद। अयोध्या फूली नहीं समा रही थी अपने राजा को पाकर। तो दीपकों से सजा डाला था हमने उनका राजपथ।
लेकिन राजा तो विलासी होते हैं, उनका ऐसा स्वागत? क्या प्रजा भी विलासी थी?
अरे तुम कैसी बातें कर रहे हो? राम और विलासी? वे तो त्याग की मूर्ति थे। तुम्हें पता है वे वनवास क्यों गए थे?
क्यों गए थे?
अयोध्या के राजा दशरथ के चार पुत्र थे, राम सबसे बड़े थे। राजा दशरथ ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। लेकिन उनकी दूसरी रानी कैकयी ने दशरथ को कहा कि मेरा पुत्र भरत राजा बनना चाहिए। भरत के मार्ग में कोई बाधा ना आए इसलिए राम को 14 वर्ष का वनवास भी दे दो।
तो क्या राजा दशरथ ने कैकयी की बात मान ली? एक सामर्थ्यशाली राजा का यह कैसा पतन?
नहीं राजा दशरथ ने कैकयी की बात नहीं मानी। लेकिन वे वचन से बंधे थे तो उनका राजधर्म उन्हें वचन पालन के लिए प्रेरित कर रहा था। एक तरफ राम थे और दूसरी तरफ वचन। राजा धर्मसंकट में थे, रानी हठ पकड़े बैठी थी। तभी राम ने निर्णय लिया कि मुझे पिता के वचन की लाज रखनी है और वे वन में जाने को तैयार हो गए।
यह तो बहुत बड़े त्याग की बात है। प्रकाश ने आश्चर्य के साथ कहा।
अब आगे सुनो त्याग की बात। पत्नी सीता को जब राम के वनवास जाने का समाचार प्राप्त हुआ तो वह भी वन में जाने को तैयार हो गयी। राम ने कहा कि तुम क्यों वन जाना चाहती हो? वनवास की इच्छा तो माता कैकयी ने मेरे लिए चाही है। सीता ने कहा कि नहीं पति के साथ रहना ही पत्नी का धर्म है।
ओह हो यह तो बहुत बड़े त्याग की बात कही सीता ने। प्रकाश ने फिर आश्चर्य प्रकट किया।
लेकिन अभी त्याग का प्रकरण पूरा नहीं हुआ है। लघु भ्राता लक्ष्मण को जब वनवास की भनक लगी तो वे भी वनवास जाने को तैयार हो गए। कहने लगे कि वन के अन्दर उनका एक सेवक भी होना चाहिए इसलिए मैं भाई और भाभी की सेवा के लिए जा रहा हूँ। माता सुमित्रा ने भी उन्हें आशीर्वाद दिया।
प्रकाश हैरान था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि लोग दीपावली को प्रकाश का पर्व क्यों कहते हैं? अरे यह तो त्याग का पर्व है। मनुष्यों को अपने अन्दर के प्रकाश को जगाना चाहिए जिससे उनके अन्दर सत्ता के मोह ने जो अंधकार की दीवार खडी कर रखी है, वह गिर जाए। अब प्रकाश की जिज्ञासा जाग चुकी थी। वह बोला कि मुझे भरत के बारे में भी बताओ।
तो सुनो, राम वनवास गए, उनके साथ सीता और लक्ष्मण भी गए। राजा दशरथ ने प्राण त्याग दिए। भरत उस समय अपने ननिहाल में थे। उन्हें तत्काल बुलाया गया और जब उन्हें सारा कथानक का पता लगा तो वे अपनी माता कैकयी पर आगबबूला हो गए। उन्होंने कहा कि यह राज्य राजा राम का है मैं तो केवल उनका सेवक हूँ। वे भैया राम को मनाने चले, लेकिन राम ने उन्हें वापस लौटा दिया। भरत राम की खडाऊ लेकर आए और सिंहासन पर खडाऊ को ही आसीन कर दिया।
यह भी बहुत ही बड़े त्याग की बात है। किसी को राज मिल जाए और त्याग कर दे? आजकल तो ऐसा नहीं देखा जाता। अब तुम यह बताओ कि राम ने 14 वर्ष वहाँ कैसे बिताए? प्रकाश ने फिर प्रश्न कर दिया।
राम अपने वनवास काल में जंगल-जंगल घूमकर अपना वनवास काट रहे थे और जब उनका वनवास समाप्त होने ही वाला था तभी एक घटना घट गयी। लंका का राजा रावण सीता का हरण करके लंका ले गया। राम और लक्ष्मण के दुखों का कोई अन्त नहीं। उस समय वहाँ के वनचर एकत्र हुए और उन्होंने राम की योजना से लंका पर आक्रमण किया और रावण का वध कर दिया।
तब तो लंका पर भी राम का शासन स्थापित हो गया होगा। और वे सोने की लंका को पाकर बेहद खुश हुए होंगे।
यही तो राम का चरित्र है कि उन्होंने यहाँ भी त्याग का साथ नहीं छोड़ा। उन्होंने कहा कि मेरी जन्मभूमि ही स्वर्ग से बढ़कर है। उन्होंने रावण के छोटे भाई विभीषण का राजतिलक किया और अयोध्या वापस लौट आए।
प्रकाश ने कहा कि धन्य है यह भारत भूमि जहाँ ऐसे त्यागी राजा भी हुए। मैं तो सम्पूर्ण दुनिया के देशों में रोज ही घूमता हूँ मुझे तो आज तक ऐसा एक भी त्यागी राजा नहीं मिला। लेकिन एक बात और बताओ कि इस देश में आज इतना भोगवाद क्यों है? हम जब श्रीराम को आदर्श मानते हैं तो हमारा आदर्श त्याग होना चाहिए था लेकिन मैं तो यहाँ भोगवाद के ही दर्शन कर रहा हूँ। दीपावली पर यही कहा जाता है कि प्रकाश का पर्व है, रोशनी का पर्व है। मैंने तो कभी नहीं सुना कि किसी ने कहा हो कि त्याग का पर्व है।
यही तो रोना है इस देश का, हमारे अन्दर भोगवाद प्रवेश लेता जा रहा है और हमने अपनी सुविधा से और भोगवाद को प्रश्रय देने के लिए त्योहारों की परिभाषा बदल दी है। दीपावली के दिन हमें मन के अंधकार को भगाने की बात करनी चाहिए और हम रोशनी और पटाखों की बात करते हैं। सत्ता का मोह हमारे अन्दर ऐसे प्रवेश कर गया है जैसे माता के मन में संतान का मोह। राजनीति से लेकर धर्मनीति तक में सत्ता का मद चढ़ा हुआ है। संन्यासी भी अपनी गद्दी के लिए लड़ रहे हैं और राजनेता भी। दीपावली के दिन शायद ही किसी के घर में श्रीराम की पूजा होती हो, वहाँ तो लक्ष्मीजी आ विराजी हैं।
अब तो लग रहा है कि यह देश राम को भूलता जा रहा है। बस मैं तो तुम पर ही आशा लगाए बैठी हूँ कि तुम लोगों के जीवन में प्रकाश करोगे। उन्हें पारिवारिक प्रेम के दर्शन कराओगे और त्याग से ही लोगों के दिलों पर राज किया जाता है, यह सिखलाओगे। तो आओ हम भी दीपावली मनाए। अपने दिलों से बैर-भाव निकाले और राम और भरत जैसे भाइयों के प्रेम का स्मरण करें। लक्ष्मण और सीता के त्याग को भी नमन करें। तभी हम कहेंगे कि दीपावली सभी के लिए शुभ हो।
वाह ..बहुत रोचक ढंग से प्रकाश पर्व को त्याग का पर्व समझाया ...सच है दीपावली पर सब जगह लक्ष्मी जी की पूजा होती है ...इस कडवी सच्चाई को मीठी गोली बना कर खिला दिया ....बहुत अच्छी पोस्ट विचारणीय ...
ReplyDeleteएक बेहतरीन पोस्ट्……………बस आज इंसान यही महत्त्व भूल गया है……………काश इस दीपावली सच मे कुछ ह्रदयों मे ये प्रकाश अपना स्थान बना सके।
ReplyDeleteशुभ दीपावली !
ReplyDeleteराम के त्याग का स्मरण ...इतनी सुन्दरता से आपने इसे व्यक्त किया जिसे आज सब भूलते जा रहे है....यह प्रकाश पर्व इस बार कुछ ऐसा ही कर जाये ....सुन्दर लेखन के लिये आभार ।
ReplyDeleteदीपावली की अग्रिम शुभकामनाएं॥
ReplyDeleteत्याग की सर्वोच्छ प्रतिमा, मर्यादापुरूषोत्तम का स्तूत्य स्मरण!! साधुवाद!!
ReplyDeleteदीपावली की अग्रिम शुभकामनाएं॥
श्री राम के पावन स्मरण से सबका हृदय प्रकाशित हो।...शुभकामनाएं।
ReplyDeleteअजित जी आप के लेख की जितनी भी तारीफ़ की जाये कम हे, आप ने बहुत सुंदर ढंग से सही को सच्ची बात लिख दी, यह भी सच हे आज लोग राम को भुल कर सिर्फ़ लक्ष्मी की ही पुजा करते हे, धन्यवाद इस अति सुंदर अलेख के लिये.
ReplyDeleteराम तो मर्यादा के प्रतीक हैं, उनका त्याग भी अनुकरणीय है।
ReplyDeleteदीवाली को मनाने का कारण रोचक ढंग बताने के लिए धन्यवाद और अंत में सन्देश भी बहुत सुंदर बधाई
ReplyDeleteनमन इस आलेख के लिए, आपको।
ReplyDeleteयह रचना हमें नवचेतना प्रदान करती है और नकारात्मक सोच से दूर सकारात्मक सोच के क़रीब ले जाती है।
तमसो मा जोतिर्गमय..
बहुत ही बुद्धिमत्ता से आपने, इस त्याग के सन्देश को समझाया है...सच ही तो है...कितने सारे त्याग की कहानियाँ जुड़ी हुई हैं इस प्रकाश के पर्व से लेकिन हमें बस चमक ही दिखती है उसके अंदर का निहित सत्य नहीं.
ReplyDeleteएक सराहनीय पोस्ट
श्री राम आज भी प्रासंगिक हैं.
ReplyDeleteआपने बहुत ही सुन्दर तरीके से प्रकाश पर्व के नए अर्थ समझाए.
धन्यवाद
आपकी सोच को नमन और दीपावली की ढेर सारी शुभ कामनाये..एक प्रेरणादायक लेख पढाने के लिए बहुत आभारी हूँ. और मनन करुँगी आपकी बात का की इस त्यौहार को त्याग पर्व की तरह मनाये जाने के लिए.
ReplyDeleteसच में ही ये बात विचारणीय है की राम जी की जगह लक्ष्मी जी की पूजा होती है.
शुक्रिया इस लेख को हम तक पहुँचाने के लिए.
Nice post .
ReplyDeletehttp://vedquran.blogspot.com/2010/11/truth-lies-in-every-soul-anwer-jamal.html
सही कहा अजित जी । दीवाली त्याग का प्रतीक है ।
ReplyDeleteबस आजकल यह त्याग करने वाला न कोई राम है , न लक्ष्मण, न सीता ।
प्रकाश पर्व के अनछुए पहलू को उजागर करने लिए आभार
ReplyDeleteBehad khoobsoorteese likha hai! Sach hai...apna antar prashmay ho jaye!
ReplyDeleteAapko bhee is tyohar kee anekanek shubhkamnayen!
बहुत सुन्दर प्रस्तुतिकरण के माध्यम से सुन्दर व सार्थक सन्देश दिया आपने ...आभार !
ReplyDeleteमर्यादा पुरुषोत्तम राम के त्याग का खूबसूरत संस्मरण....हम सबके लिए अनुकरणीय है .....आपको भी दिवाली की शुभकामनायें
ReplyDeleteराम चरित के इस सुपाठ पर बधाई.
ReplyDeleteज्योतिपर्व मंगलमय हो!
सबको सन्मति दे भगवान !
ReplyDelete*
दीपावली मंगलमय हो 1
राम कथा की बहुत ही भावपूर्ण ,सुन्दर ,सामयिक और विशिष्ट प्रस्तुति -कहते हैं रामायण सत कोटि अपारा....एक छोटा मगर अतुलनीय योगदान यह भी!
ReplyDeleteसच कहती हैं दरअसल दीपावली त्याग से अर्जित प्रकाश पुंज के आलोक/आभा मंडल का त्यौहार है !
@दीपावली के दिन हमें मन के अंधकार को भगाने की बात करनी चाहिए और हम रोशनी और पटाखों की बात करते हैं
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने , ये एक ही वाक्य सबकुछ कहने की क्षमता रखता है
बताशों की जगह मिठाई
सात्विक रौशनी की जगह तामसिक धमाके
शाकाहारी खाद्य की जगह मांसाहारी चांदी का वर्क
घी के दीयों की जगह इलेक्ट्रोनिक उजाले
सब कुछ बदल दिया हमने
मैंने एक लेख लिखा है अनुरोध है एक बार जरूर पढ़ें
शीर्षक है
"शुभ दीपावली தீபாவளி દિવાળી दिवाळी ದೀಪಾವಳಿ"
ajit गुप्ता जी@ बहुत अच्छा लगा साफ़ सुथरे ढंग से धर्म की नायब बातें पढके. आवश्यकता है ऐसी ही ब्लोगेर की जो धर्म का ज्ञान बाँट सके. आप सबको दिवाली की शुभ कामनाएं आज आवश्यकता है यह विचार करने की के हम हैं कौन?
ReplyDeleteआज कल सबसे बड़े राम वो लोग हैं जो ताकत..तिकरम....कुकर्म..लूट और भ्रष्टाचार के सहारे सत्ता के उचाईयों पे पहुँच चुके हैं जैसे सोनिया गाँधी...राहुल गाँधी...शरद पवार....मनमोहन सिंह ...प्रतिभा पाटिल.....इनके लिए पद और सत्ता के सामने नैतिकता और ईमानदारी की कोई कीमत नहीं जिसकी वजह से इस देश में एक भी असल राम जिन्दा ही नहीं रह सकता और यही एक कटु सत्य है.....इसलिए अब राम नहीं बल्कि इन कुकर्मियों को मारने वाला नरशिंह अवतार की जरूरत है जो इनको जहाँ चाहे चिर फार दे इसके अलावे कोई चारा नहीं है असल राम को पैदा और जिन्दा रखने का ....
ReplyDelete..
ReplyDeleteभावुक कर दिया आपकी इस पोस्ट ने
अच्छी बातों की दोहरावट करते रहना चाहिए. रामकथा को नये सन्दर्भों से जोड़कर व्यर्थ के प्रपंचों में न पड़ने की सलाह आज की सबसे बड़ी ज़रुरत भी है.
हम वायु, आकाश, स्वास्थ्य, सभी को दूषित कर रहें हैं इन त्योहारों पर अपनाने वाली वस्तुओं से. हम सदभावों को अपनाना भूलते जा रहे हैं.
कहीं पढ़ा था "आत्म दीपो भवः" मतलब 'अपने पथदर्शक स्वयं बनो'. लेकिन यह बिना सद्भावों को अपनाए कैसे संभव है?
..
बहुत अच्छी विचारणीय पोस्ट
ReplyDelete..दीपावली की अग्रिम शुभकामनाएं॥
सुन्दर आलेख , मर्यादा पुरुषोतम राम के त्याग और कर्तव्य परायणता से ही दिवाली का महत्त्व है . प्रकाश पर्व की हार्दिक शुभकामनाये .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पोस्ट..राम के त्याग की कथा बड़े ही रोचक ढंग से प्रस्तुत की..पर कहाँ हैं वह त्याग की भावना आज?
ReplyDeleteसार्थक और सटीक पोस्ट है!
ReplyDeleteज्योति-पर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
Bahut hi rochak shabdo me aapne ek gahri tyaag ki bhawna ko samajhaya
ReplyDeleteआप सभी ने मेरे इस आलेख को पसन्द किया इसके लिए आभार। वस्तुत: ग्वालियर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र स्वदेश ने अपने दीपावली विशेषांक के लिए एक आलेख मांगा था तो यह आलेख मैंने वहाँ भेजा था। पाठकों की प्रतिक्रिया जानने के लिए इसे यहाँ भी पोस्ट किया अब लग रहा है कि पत्रिका में भी पसन्द किया जाएगा। आप सभी का पुन: आभार।
ReplyDeleteAaj pehli baar aapke blog par aaya...aur reh gaya wahi par der tak...
ReplyDeleteaapka Neelesh
Aaj pehli baar aapke blog par aaya...aur reh gaya wahi par der tak...
ReplyDeleteaapka Neelesh
बहुत खूब .. बातों ही बैटन में दिवाली का महत्त्व समझा दिया .... बहुत रोचक है ये अंदाज़ ......
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को दीपावली की शुभकामनाएं ....
Very interestingly described... Happy Diwali to u too.. :)
ReplyDeleteआपको समस्त परिवार सहित
ReplyDeleteदीपावली की बहुत बहुत हार्दिक शुभ-कामनाएं
धन्यवाद
संजय कुमार चौरसिया
अजित जी सुन्दर पोस्ट ..कल चर्चामंच पर होगी ये पोस्ट .. आपको भी दीपावली पर मंगलकामनाएं
ReplyDeleteाजित जी आलेख बहुत अच्छा लगा। प्रकाश तो हैरान होगा ही क्यों कि हम अपने मन मे तो उसे प्रवेश करने ही नही देते\ बस त्यौहार केवल दिल परचावे के लिये ही रह गये हैं। राम को याद करते हैं मगर राम के व्यक्तित्व से कुछ नही सीखते। आपको सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeleteअजित जी
ReplyDeleteमेरा ही प्रमाद रहा कि ब्लॉग पर नहीं आया
बहुत कुछ है
अभी पढ़ने में लगा हूँ
अच्छा लग रहा है
रमेश जोशी
दीपावली के इस शुभ बेला में माता महालक्ष्मी आप पर कृपा करें और आपके सुख-समृद्धि-धन-धान्य-मान-सम्मान में वृद्धि प्रदान करें!
ReplyDeleteदीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें...
ReplyDelete