Monday, September 20, 2010

बिटिया क्या है? मन की धड़कन? मन की खुशबू या फिर हमारा नवीन रूप?


 बहुत दिनों से कोई कविता पोस्‍ट नहीं की थी, बस गद्य ही लिखती रही। संगीता स्‍वरूपजी ने कहा कि कोई कविता पोस्‍ट करें तो सोचने लगी कि कौन सी कविता पोस्‍ट करी जाए? पेज-मेकर खोला गया और सबसे पहले ही एक कविता पर नजर पड़ी और मैं उसमें खो गयी। मुझे लगा कि मैंने इसे शायद पहले पोस्‍ट भी नहीं किया है और यदि किया भी हो तो कौन सा आपको स्‍मरण ही होगा? आप दोबारा पढ़ लेना।
खुशदीपजी की आज पोस्‍ट पढ़ी, बेटियों को लेकर चिन्‍ता व्‍य‍क्‍त की गयी है। लेकिन मुझे तो लगता है कि बेटियां चिन्‍ता का विषय है हीं नहीं। वे तो हमारे मन की सारी ही चिन्‍ताओं को हम से दूर कर देती हैं। जब बेटी पहली बार गोद में आयी थी तब लगा था कि यह कैसा अहसास है? जैसे-जैसे वह बड़ी होती गयी, मुझे अपने बचपन में लेती गयी और मेरा बचपन साकार हो गया। जब बहु घर में आयी तब ऐसा लगा कि अरे यह तो अपना यौवन ही लौटकर आ गया है।
आज अदाजी की पोस्‍ट में तीन पीढ़ियों का चित्र है, तो बस यही कविता मुझे याद आयी और इसे आप सभी से बाँट रही हूँ। अच्‍छी लगे तो तालियां, नहीं, नहीं दाद जरूर दीजिएगा।

तुम ही मेरा रूप हो, तुम ही शेष गीत हो
बंसी में संगीत जैसे, मन की शेष प्रीत हो।

तुम में ही गुथी हूँ मैं, तुम ही आकार शेष
मैं तो जैसे हारती,, तुम ही नेक जीत हो।

पुष्प में पराग जैसे, गंध का संसार तुम
मैं तो पात पीत बनी, तुम ही शेष चिह्न हो।

अब तो शेष रंग गंध, बंसियों सी गूंज तुम
मैं तो रीती धड़कनें, तुम ही नेह रीत हो।

अब हवा संग घुल रही, घुल के भी समा रही
मैं तो जाता प्राण हूँ, तुम ही तो शरीर हो।

अब तो केवल शब्द हैं, पुस्तिका बनोगी तुम
मैं तो पृष्ठ-पृष्ठ हूँ, तुम ही मेरी जिल्द हो।

44 comments:

  1. भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति! वाकई दाद के लायक!!

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  2. पुष्प में पराग जैसे, गंध का संसार तुम
    मैं तो पात पीत बनी, तुम ही शेष चिह्न हो।

    अब तो केवल शब्द हैं, पुस्तिका बनोगी तुम
    मैं तो पृष्ठ-पृष्ठ हूँ, तुम ही मेरी जिल्द हो

    ये पंक्तियाँ बहुत बहुत खूबसूरत लगीं.

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  3. बेहद भावपूर्ण और ममता के रंगो से रंगी एक अनुपम कृति।

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  4. कविता के भाव बहुत सुन्दर हैं । दाद देने लायक ।

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  5. ममता के रंगो से रंगी एक अनुपम कृति।

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  6. बहुत भावपूर्ण प्रस्‍तुति !!

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  7. बेटियों के बारे में बहुत सही कहा आपने, रचना बहुत सुंदर और मधुर है. तालियां और दाद दोनों ही स्वीकार किजिये.

    रामराम.

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  8. बहुत ही सुंदर रचना.

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  9. अजीत जी ,

    जब से मैंने जाना है कि आपका काव्य संग्रह छप चुका है तब से ही ख्वाहिश थी कि आपकी कविता पढूं ...और यह मुझे नहीं मालूम था कि आपने ब्लॉग पर पोस्ट की हुई हैं ... किसी दिन फुर्सत से पढूंगी ..

    आज की कविता ..बस मन में बसने वाली कविता है ..हर पंक्ति ..हर शब्द एक मधुर झंकार बन कर गूंज रहा है ..

    अब हवा संग घुल रही, घुल के भी समा रहीमैं तो जाता प्राण हूँ, तुम ही तो शरीर हो।
    अब तो केवल शब्द हैं, पुस्तिका बनोगी तुममैं तो पृष्ठ-पृष्ठ हूँ, तुम ही मेरी जिल्द हो

    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ

    बेटियों पर मैंने भी कुछ लिखा था ..उसकी अंतिम पंक्तियाँ लिख रही हूँ ...

    पर बेटियाँ
    मन में बसती हैं
    उनके रहने से
    न जाने कितनी
    कल्पनाएँ रचती हैं ।
    बेटियाँ माँ का
    ह्रदय होती हैं , सुकून होती हैं
    उसके जीवन के गीतों की
    प्यारी सी धुन होती हैं.

    आभार ...

    आपकी यह रचना कल मंगलवार को चर्चा मंच के साप्ताहिक मंच पर आएगी ..

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  10. बहुत सुंदर और नए एश्सास हैं जिनको आपने अपनी सशक्त शब्दावली से सजाया है. शुक्रिया आपने अपनी इस शैली से भी रु-ब-रु करवाया.

    सुंदर कविता.

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  11. बिटिया कोई एक नहीं, तीनो है। बहुत ही सुन्दर।

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  12. बिटिया की महिमा अनन्त है!
    इनसे ही घर में बसन्त है!

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  13. अब तो केवल शब्द हैं, पुस्तिका बनोगी तुम
    मैं तो पृष्ठ-पृष्ठ हूँ, तुम ही मेरी जिल्द हो।
    क्या भाव हैं

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  14. अब तो केवल शब्द हैं, पुस्तिका बनोगी तुम
    मैं तो पृष्ठ-पृष्ठ हूँ, तुम ही मेरी जिल्द हो।
    der se aane ke liye mafi chahti hoon bahar gayi rahi ,rachna ke bhav bahut bheene bheene hai jo man ko sparsh karte hai ,ati sundar ,

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  15. ज्यादा भावुक तो नहीं हुआ बस आपकी पोस्ट पढ़ कर अपनी बिटिया को गोद में बैठकर उसके गालों पर एक प्यार भरी एक पुच्ची करना चाहता था पर चूँकि आई फ्लू से ग्रसित हूँ अतः दूर से ही एक हवाई पुच्ची ले ली है.

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  16. काश हर बेटी को आप जैसी मां मिले और हर बहू को आप जैसी सास...

    जय हिंद...

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  17. बहुत अच्छा लगा। बहुत-बहुत धन्यवाद

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  18. बेटियां नया जीवन होती हैं ...हमारा ही अंश ...हमारी प्रतिकृति ...सबसे अच्छी दोस्त ...और कभी कभी तो हमारी मां भी ...:):)

    कविता की एक -एक पंक्ति अनमोल है ...अभी पिछले दिनों मैंने भी एक कविता लिखी थी ...
    " उसे लगा सीने से अपने ,मैं पूर्ण हुई ...सम्पूर्ण हुई "

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  19. वाणी जी, आपने सच लिखा है कि कभी-कभी हमारी माँ भी होती हैं बेटियां। मैं अक्‍सर यही कहती हूँ जब कोई मुझसे पूछता है आप अपनी बहु को क्‍या मानती हैं तब मैं कहती हूँ कि मैं उसमें माँ का रूप देखती हूँ। क्‍योंकि बचपन में हमारी सेवा माँ करती है और बुढापे में बहु, तो लड़कियां तो हमेशा ही माँ का स्‍वरूप होती हैं।

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  20. अब तो केवल शब्द हैं, पुस्तिका बनोगी तुम
    मैं तो पृष्ठ-पृष्ठ हूँ, तुम ही मेरी जिल्द हो

    iske bol anmol hain......:)
    bitiya ka itna pyara chitran...achchha laga!!

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  21. पुष्प में पराग जैसे, गंध का संसार तुम
    मैं तो पात पीत बनी, तुम ही शेष चिह्न हो।

    बहुत सुंदर...ममता में रची-बसी..भावनापूर्ण कविता

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  22. is khaas rachna ki pratiksha vatvriksh ko hai... bhej dijiye
    rasprabha@gmail.com per

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  23. पुष्प में पराग जैसे, गंध का संसार तुम
    मैं तो पात पीत बनी, तुम ही शेष चिह्न हो।
    वाह ! बहुत गहन अभिव्यक्ति ....आभार

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  24. तुम ही मेरा रूप हो, तुम ही शेष गीत हो
    बंसी में संगीत जैसे, मन की शेष प्रीत हो...


    ममतामई माँ का हृदय तो खोल कर रख दिया आपने ... पर पिता का दिल भी यही सन कहता है ... बेटियाँ दर असल पिता की भी होती हैं ... उसके दिल में रहती हैं .... बाद झूठे दंभ के कारण वो खुल कर बयान नही कर पता ....

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  25. इस कविता में आपकी भावनाओं को साफ़ समझा जा सकता है ! शुभकामनायें

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  26. अब तो केवल शब्द हैं, पुस्तिका बनोगी तुम
    मैं तो पृष्ठ-पृष्ठ हूँ, तुम ही मेरी जिल्द हो।

    बेहद ख़ूबसूरत लिखा है....बेटी बहुत खुशनसीब है...माँ ने इतने सुन्दर शब्दों में अपने भाव व्यक्त किए हैं....सुन्दर रचना

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  27. कविता आपके मन का दर्पण है।

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  28. ‘ बेटियां चिन्‍ता का विषय है हीं नहीं। वे तो हमारे मन की सारी ही चिन्‍ताओं को हम से दूर कर देती हैं।’

    लेकिन आज के अराजक माहौल में चिन्ता तो होती ही है मुझे अपनी पोती की :(

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  29. अब तो केवल शब्द हैं, पुस्तिका बनोगी तुम
    मैं तो पृष्ठ-पृष्ठ हूँ, तुम ही मेरी जिल्द हो।



    बेहद बेहद सुन्दर

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  30. Mann mehkaati kavita...shayad meri maa bhi aisa kuchh sochti ho aur keh naa pati ho...agli baar unse behas karne se pehle is kavita ki yaad taaza ho jayegi... :)

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  31. Men bhi kuchh Shabdon ko jodne ki koshish krta hoon...Aapke Bhav Aachchhe lage.

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  32. वात्सल्य-स्निग्ध हृदय के ये मधुर भाव दूरस्थ बेटी को स्मृति में साकार कर देते हैं,साधु!

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  33. अब तो केवल शब्द हैं, पुस्तिका बनोगी तुम
    मैं तो पृष्ठ-पृष्ठ हूँ, तुम ही मेरी जिल्द हो।....
    बहुत ही भावुक कर दिया आपकी कविता ने...बेटी वास्तव में एक वरदान है भगवान का.....बहुत सुन्दर.....

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  34. bahut sunder rachana hai
    तुम ही मेरा रूप हो, तुम ही शेष गीत हो
    बंसी में संगीत जैसे, मन की शेष प्रीत हो।

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  35. आप का ह्र्दय से बहुत बहुत
    धन्यवाद,
    ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
    मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए और बहुमूल्य टिपण्णी देने के लिए

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  36. अब तो केवल शब्द हैं, पुस्तिका बनोगी तुम
    मैं तो पृष्ठ-पृष्ठ हूँ, तुम ही मेरी जिल्द हो।

    बहुत ही सुन्‍दर, दिल को छूती पंक्तियां ।

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  37. बहुत ही बढ़िया कविता.. बेटियाँ नियामत है अगर इसे सब समझने लगें तो शायद लिंगानुपात अंतर ही ना रह जाए.

    मनोज खत्री

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  38. बहुत ही सुंदर रचना.......
    दिल को छूती पंक्तियां !!!

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  39. अब तो केवल शब्द हैं, पुस्तिका बनोगी तुम
    मैं तो पृष्ठ-पृष्ठ हूँ, तुम ही मेरी जिल्द हो।
    aअजित जी बहुत दिनों बाद आपकी कविता पढी शायद इस से पहले दोहता होने पर लिखी थी। बहुत सुन्दर कविता है। बेटियाँ तो माँ बाप को सुख देने के लिये ही होती हैं मगर फिर भी भ्रूण हत्यायें होती हैं कितनी विचित्र बात हओ। सुन्दर कविता के लिये बधाई।

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  40. भावभरी कविता पढवाने के लिये आभार...
    आपने इस कविता में "शेष" शब्द का प्रयोग किया है...

    तुम ही मेरा रूप हो, तुम ही शेष गीत हो
    बंसी में संगीत जैसे, मन की शेष प्रीत हो।

    प्रथम व द्वतीय पंक्ति में शेष गीत व शेष प्रीत से आपका क्या अभिप्राय है..
    शेष का आम पाठक " बचा खुचा " अर्थ निकाल सकता है. यदि आपका अभिप्राय विशेष से है तो अन्य बात है

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  41. बहुत सुन्दर भीनी खुशबू लिए महकती सी कविता |

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  42. "मैं बचपन को बुला रही थी,बोल उठी बिटिया मेरी.
    नंदन बन सी फूल उठी,यह छोटी सी कुटिया मेरी.
    पाया मैंने बचपन फिर से,बचपन बेटी बह आया.
    उसकी मंजुल मूर्ति देख कर,मुझमें नव जीवन आया.
    मैं भी उसके साथ खेलती,खाती हूं तुतलाती हूं.
    मिलकर उसके साथ स्वयं भी,मैं बच्ची बन जातीहूं.
    जिसे खोजती थी बरसों से अब जाकर उसको पाया.
    भाग गया था मुझे छोड़कर,वह बचपन फिरसे आया".

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