कभी आप किसी महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत हैं और आप अपने कार्य द्वारा मंजिल प्राप्त करना चाहते हैं। लेकिन देखते हैं कि कोई एक व्यक्ति आपके पीछे पड़ जाता है। सारी कुटिलता लिए वह आपके हर अच्छे फैसलों को भी बेकार सिद्ध करने पर उतारू हो जाता है। अधिकतर ऐसा राजनैतिक पदों में होता है। जब राजनैतिक दृष्टि से ही हर कार्य को देखा जाता है। उस समय आपका सारा ध्यान उस कुटिल व्यक्ति पर केन्द्रित हो जाता है। कितनी ही अन्य बाधाएं, कितने ही प्रलोभन आपके मार्ग में खड़े होते हैं लेकिन आपका उनपर ध्यान नहीं जाता। आपका सारा ध्यान उस कुटिल व्यक्ति से स्वयं को मुक्त करने में लग जाता है। अंत में आप देखते हैं कि जो काम बहुत ही दुरुह था, अनेक बाधाओं से भरा था, वो काम आप पूर्ण कर लेते हैं। क्योंकि आपका लक्ष्य उस कुटिल व्यक्ति ने निर्धारित कर दिया था। आप पूर्ण उर्जा के साथ उसके द्वारा उत्पन्न की गयी बाधाओं को दूर करने में जुट जाते हैं और तब अन्य बाधाओं को आप देखते भी नहीं। क्या आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ है? हम साहित्य से जुड़े लोग कुछ न कुछ समाज से प्रेरणा प्राप्त करके लिखते हैं। ऐसी ही प्रेरणा से एक लघुकथा का जन्म हुआ, आपके लिए यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ। आप बताएं लघुकथा उपयोगी है या निरर्थक? क्योंकि मैं शीघ्र ही एक लघुकथा-संग्रह प्रकाशित कराना चाहती हूँ तो कुछ लघुकथाओं के बारे में आप सब का विचार जानने के बाद ही इसे प्रकाशक के हाथों में दूंगी।
लघुकथा-गन्दी मक्खी
मुझे शाम तक पहाड़ी पर बने मन्दिर तक पहुँचना था। अभी कदम बढ़े ही थे कि एक गंदगी में बैठने वाली बड़ी मक्खी, सिर के पास आकर भिन-भिनाने लगी। मेरा सारा प्रयास उसे अपने शरीर से दूर रखना था। क्योंकि वो अपने साथ नाना प्रकार के किटाणु लेकर आयी थी। कभी चाल धीमी हो जाती और कभी तेज। आखिरकार मैं अपने गंतव्य तक समय रहते पहुँच ही गयी।
मन्दिर में एक मित्र ने पूछा कि रास्ते का आनन्द कितना आया?
मुझे तो एक मक्खी के कारण रास्ता दिखा ही नहीं, बस केवल मंजिल मेरे सामने थी और मैं यहाँ तक पहुँच ही गयी।
अर्थात् आपने रास्ते में कुछ नहीं देखा?
नहीं।
अच्छा हुआ, क्योंकि रास्ते में जगह-जगह कीचड़ भरे गड्डे भी थे। इस गन्दी मक्खी के कारण आप का ध्यान उस ओर गया ही नहीं और आप उसकी बदबू से बच गयीं।
बिल्कुल सही जब आप परेशान जो और परेशानी से मुक्ति चाहें तो फ़िर उसके अलावा कुछ और नही सूझता।
ReplyDeleteकथा पसन्द आयी जी
ReplyDeleteतभी तो कहा है - निंदक नियरे राखिये
प्रणाम
bahut hi sargarbhit.
ReplyDeleteइसी लिये कहा गया है ज्ञानी आदमी रास्ते मे आये अवरोधों को दुश्मन के बाज्ये दोस्त मानता है. लघुकथा बहुत सटीक है. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
सुन्दर सन्देश देती हुई सार्थक लघुकथा!
ReplyDeleteसिर्फ राजनीति ही नहीं ....आम जीवन में भी ऐसा होता है ...
ReplyDeleteमगर गन्दी मक्खी क्यों ...खुनी मच्छर क्यों नहीं ....
(हास्य भरहै ...अन्यथा नहीं लीजियेगा )
अच्छा सन्देश देती लघु कथा ...
बहुत बढ़िया!
ReplyDeleteअच्छा प्रेरक प्रसंग है!
वाणी जी, मच्छर और मक्खी में अन्तर होता है। मक्खी और वो भी गन्दी को कोई मारता नहीं है, सिर्फ उड़ाता भर है। लेकिन मच्छर को मारने का प्रयास ही रहता है। ऐसे में मारने के चक्कर में हम दिशा ही भटक जाते हैं। और मच्छर के मरने के बाद खेल खत्म। फिर रास्ता कौन पार कराएगा? आपकी हँसी ने भी मुझे सोचने को मजबूर किया। आपका आभार।
ReplyDeleteअच्छी सारगर्भित कथा.
ReplyDeleteEkdam sarthak lekhan.. koi do ray nahin..
ReplyDeletepustak prakashan ke liye agrim badhai sweekaren.. vaise jaldi hi main bhi laghukatha ka ek... ahem ahem.. :)
सटीक कथा..अच्छा सार्थक ज्ञान!!
ReplyDeleteइन्तजार रहेगा आपकी अन्य लघुकथाओं का.
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ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा, हर एक द्रष्टान्त किसी किसी न किसी घटना से जुड़ा होता मिसेज गुप्ता, हर लेखन सफल है जब पाठक उसे आत्मसात करते हुए पढ़े ! आपकी लिखी हुई शुरुआत की लाइनें मेरे जीवनकाल के कुछ बेहद खराब समय का स्मरण करा गयी !
ReplyDeleteSo you are successful ma'm ! congratulation!
बहुत सुन्दर लघुकथा.
ReplyDeleteनकारात्मकता में भी कुछ सकारात्मकता के अवशेष तो होते ही हैं
इस लघुकथा के माध्यम से आप जो सन्देश देना चाहती थी, उसमें पूर्णत: सफल रही...मन और मस्तिष्क की एकाग्रता ही बाधारहित लक्ष्य प्राप्ति में सहायक सिद्ध होती है.......
ReplyDeleteyah baat bilkul satya hai ki jab aap ek dard se pareshan ho todusara dard uthane par pahale dard ki taraf dhyan hi nahi jaata hai.
ReplyDeletepoonam
लघुकथा अच्छी लगी.....बधाई
ReplyDeletebahut hi badhiya saargarbhit laghu katha...kabhi-kabhi chhoti pareshaani badi pareshaani se dhyan hata deti hai..
ReplyDeleteaacha laga padhna hamesha ki tarah...
छोटी छोटी घटनाएं कई बार बड़ा मायना दे जाती हैं ......और हम बड़ी बाधाओं को भी आसानी से पार कर जाते हैं ....हाँ ये घटना कुछ अलग सी है .....मंदिर तक पहुंचा ही दम लिया होगा शायद मक्खी ने ......!!
ReplyDeleteकभी का हमारे जीवन में ऐसी घटनाएँ घट जाती है जिसे हम बहुत बड़ा समझते है पर ये भी हो सकता है की उसके वजह से हमारे सामने दूसरी बड़ी समस्या भी आ सकती थी जो नही आ पाई....कहानी बिल्कुल सार्थक है आख़िर उस मक्खी के वजह से बड़ी मुसीबत मतलाब राह की गंदगी से बच गये ना...सुंदर भाव...बढ़िया लघुकथा माता जी....प्रस्तुति के लिए धन्यवाद जो इस बढ़िया भाव को पढ़ पाया..
ReplyDeleteलघुकथाए और क्षणिकाए मुझे हमेशा से पसंद है..कम शब्दों में गहरी बात कहने हुनर ये रचनाये खूब जानती है..खैर आपने बात बात में काफी गहरी बात कही है..
ReplyDeleteकम शब्दों में गहरी बात!
ReplyDeleteलघुकथा पसन्द आयी.
बहुत ही सुन्दर लघुकथा.....इसमें निहित सन्देश बखूबी पाठकों तक पहुँच गया..
ReplyDeleteनिन्दक नियरे राखिये, आंगन कुटी छवाय! :)
ReplyDeleteप्रबन्धन की जरूरत भी है कि पहले सभी कमजोरी के बिन्दु लिख-निपट लिये जायें!
सुन्दर पोस्ट!
हमारे साथ अक्सर ऐसा ही होता है, कुछ लोग दुखों को पकड़कर बैठ जाते हैं, और सुखों का अनुभव ही नहीं कर पाते, और कभी कभी छोटी सी खुशी को इतना कसकर पकड़ लेते हैं कि दुखों भरी दुनिया नजर ही नहीं आती। छोटे छोटे पल को महसूस करना चाहिए, पूरी उर्जा के साथ। छोटी कहानी बेहद अच्छी लगी।
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