मातृ दिवस पर माँ का स्मरण। जब माँ पास थी तब उसका देय स्वाभाविक लगता था लेकिन आज जब वह नहीं है तब लगता है कि विपरीत परिस्थितियों में देना कितना अस्वाभाविक होता है। उसने हमें जो भी दिया उसको नमन। काश हममें भी उसकी जितनी हिम्मत हो। उसी को समर्पित एक कविता -
तूफानी काली रातों में
जैसे जलता एक दिया
हाँ ऐसी थी मेरी अम्मा।
दुर्वासा के रौद्र रूप से
काली पीली आँधी आती
तिनके-तिनके घर को करती
आनन-फानन बिखरा जाती
उसकी आँखे हम से कहती
थमने दो, मत धीरज खोओ
वो टुकड़ों को बीन-बीन के
फिर वापस एक बना देती
शिव के नर्तन, रौद्ररूप में
जैसे स्थिर रहती हिमजा
हाँ ऐसी थी मेरी अम्मा।
घर में तूफान सुनामी सा
कुछ भी शान्त नहीं रहता
गर्जन-तर्जन कितना होता
आँखों से नीर नहीं बहता
लहरों के वापस जाने तक
आँचल उसका सिमटा रहता
मंथन से निकले गरलों को
फिर वह झट से बिसरा देती
सागर के ज्वारों में जैसे
स्थिर रहती पाषाण शिला
हाँ ऐसी थी मेरी अम्मा।
न माथे पर मोटी बिंदिया
न पाँवों में पायल, बिछियां
बस चूड़ी वाले से कहती
एक सुहाग की दे भइया
रही सुहागन मेरी अम्मा
सुन तो लो उसकी बतियां
मेरे श्रीराम गए कहकर
उसने बंद करी अँखियां
सतयुग जैसे कलिकाल में
कस्तूर बनी बापू की बा
हाँ वैसी थी मेरी अम्मा।
bahut achchhai aur kasawat bhari kavita hai. badhai.
ReplyDeleteडा.गुप्ताजी आपका ब्लोग आज ही नज़र मे आया है बहुत खुशी हुई आपको अक्सर अखबारों मे पढ्ती थीाज मातृ दिवस पर सुन्दर अभिव्यक्ती है
ReplyDeleteनिर्मलाजी
ReplyDeleteआपका आभार कि आपने मेरे ब्लाग पर टिप्पणी की। समालोचनाओं से ही लेखन चलता है उसके बिना तो ऐसा है जैसे आप ही लिखे और आप ही बांचे।
maa ke liye sundar bhavo ko ujagar krti sshakt post .badhai
ReplyDeleteHis mother was a great woman, no doubt.
ReplyDeleteI'm learning a little Hindi
and I liked your poem...at least if I've understand it correctly
Greetings.
शिव के नर्तन रोद्र रूप मे स्थिर रहती जेसे हिमजा
ReplyDeleteऐसी थी मेरी अम्मा
वस्त्विक चित्र है ये मा का बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति हैअपकी कलम को मेरा नमन है मधुमती पत्रिका के लिये कभी दो श्ब्द लिखना चाह्ती तो मुझे लगता मै सूरज को दीपक दिखाने जा रही हूँ ये सब आपके कठिन परिश्रम सहित्यिक परख का ही फल है अपका बहुत बहुत धन्य्वाद मेरी प्रतिक्रिया स्वीकार करने मे धन्य्वाद्
माँ का यह रूप मुझे बहुत भाता है और यही रूप परिवार को बड़े बड़े झंझावातों से बच्चा लेता है.एक सुन्दर कविता के लिए साधुवाद.
ReplyDeleteDr. Smt. ajitji gupta
ReplyDeleteसतयुग जैसे कलिकाल में
कस्तूर बनी बापू की बा
हाँ वैसी थी मेरी अम्मा।
bahuta hi achhhi kavith * * * * *
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समन्दर का कही छोर नही होता
बच्चो की किलकारी शोर नही होता
प्यार के दिखवे बहुत है शोभनाजी
मॉ की ममता जैसा कुछ और नही होता।
हमारी कविताओ/ शब्दो का जोश इसलिए बढ पाता है कि मॉ का आर्शिवाद है।
आपने बहुत ही सरल भाषा मे "अम्मा" कि सुन्दर व्यख्या कि है-आभार
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हे प्रभु यह तेरापन्थ और
मुम्बई टाईगर
कि
और से
मगल भावना।
भुल सुधार
ReplyDeleteशोभनाजी की जगह डॉ,अजित गुप्ता पढे
भुल के लिऐ क्षमा
हे प्रभु
अजित जी,
ReplyDeleteपढ़ कर लगा के माँ ऐसी ही होती है,,,,,,
चाहे किसी ki भी हो,,,
माँ बस माँ ही है,,,भगवान् का दूसरा रूप,,,,,
धरती पर ,,,,,
जो उसके भक्त हैं उनके लिए भी और जो नहीं है उनके लिए भी,,,,
बस एक ममता ki मूरत,,,,
सतयुग जैसे कलिकाल में
ReplyDeleteकस्तूर बनी बापू की बा
हाँ वैसी थी मेरी अम्मा।
सुंदर भावाभिव्यक्ति,,
बधाई स्वीकारें.
चन्द्र मोहन गुप्त
वाहवा अच्छी कविता के लिये बधाई
ReplyDeleteअति अति अति सुन्दर...
ReplyDeleteमन सचनुच प्रसन्न और भावुक हो गया..
इतना सुन्दर वर्णन और लेखन देख कर..
मेरे ह्रदय की गहराइयों से आपको नमन..
(I really mean it.)
~जयंत
शिव के नर्तन, रौद्ररूप में
ReplyDeleteजैसे स्थिर रहती हिमजा
हाँ ऐसी थी मेरी अम्मा।
हौसलाअफ़जाई करती हुई खूबसूरत रचना
आभार !!!
आज हिन्दी में ब्लागों की संख्या दस हजार से भी आगे है लेकिन इनमंे सक्रिय ब्लाग केवल हजार से पन्द्रह सौ के बीच ही है। इन सभी ब्लागों की जानकारी आप चर्चित एग्रिगेटरों की मदद से ले सकती है वे डेली बेसेस तक पर संख्या बताते है। इसके अलावा यदी आप इन्हें पजींकृत कर रही है तो कही पर लिख लिजिए। एक से दूसरे लिंक, दूसरे से तीसरे लिंक के द्वारा भी आप सभी नये व पुराने ब्लागों तक पहुंच सकती हैं। लगभग छः हजार से ज्यादा ब्लागों का पता तो चिठठाजगत ही देता है, बाकी नारद और ब्लागवाणी आपको बता सकते है। इतने सब से आपका काम बन जाएगा।
ReplyDeleteइरशाद
ati sunder hai ,bhavpurn manohar hai ,maa si ,ye kavita,maa sab ki aisi hi to hoti hai,maa ,maa,jaisi hi hoti hai.
ReplyDeleteअम्मा जी के व्यक्तित्त्व को आपने जिन शब्दों में समेटा है वे उन्हें देख कर लगा आपने गगरी में समुद्र भर लिया है,मां को शब्दों में बता पाना मेरे लिये आज तक अनकहा ही है
ReplyDeleteआपने एक जगह पूछा था कि हिंदी के सभी ब्लाग्स को पढ़ने के लिये क्या विधि है तो बताना चाहता हूं कि हिंदी के कुछ एग्रीगेटर्स हैं जैसे कि चिट्ठाजगत और नारद जिन पर आप इन्हें देख सकती हैं लेकिन दुर्भाग्य है कि यहां पर लामबंदी जैसी स्थिति के कारण अनेक उत्त्मोत्तम ब्लाग्स को कई बार इन पर स्थान नहीं दिया जाता है। कदाचित हिंदी चिट्ठाजगत इन दुराग्रहों से मुक्त हो पाएगा इसमें कई सदियां लगेंगी तो बेहतर विकल्प गूगल के सर्च इंजन में "ब्लाग्स" विकल्प पर देवनागरी में इच्छित शब्द लिख कर तलाश कर पढ़े।
सादर
डा.रूपेश श्रीवास्तव