Friday, February 9, 2018

कुछ नहीं होने का सुख

जिन्दगी भर लगे रहे कि कुछ बन जाए, अपना भी नाम हो, सम्मान हो। लेकिन अब पूरी शिद्दत से मन कर रहा है कि हम कुछ नहीं है का सुख भोगें। जितने पंख हमने अपने शरीर पर चिपका या उगा लिये हैं, उन्हें एक-एक कर उखाड़ने और कतरने का मन है। कभी पढ़ाई की, कभी नौकरी की, कभी सामाजिक कार्य किये, कभी लेखन किया और सभी से लेकर न जाने कितने पंख अपने शरीर में लगा लिये। हम यह है और वह हैं, हमारी पहुँच यहाँ तक है और वहाँ तक है! परत दर परत हम पर चढ़ती गयी और हम हमारे वास्तविक स्वरूप से दूर होते गये। हमारे अंदर का प्रेम न जाने कहाँ और कब रीत गया, बस हमें दूसरों से सम्मान मिले यही चाहत बसकर रह गयी। लेकिन अब समझ आने लगा है कि यह सम्मान कल्पना है जैसे हमने स्वर्ग और नरक की कल्पना कर ली है वैसे ही ये सम्मान भी होते हैं, बस एक छलावा और कुछ नहीं। हम खुद से दूर होते चले जाते हैं, हमारे अन्दर कितना कुछ है, खुद को देने के लिये यह भूल जाते हैं और बस दूसरों से पाना ही चाहत बन जाती है। मैं अपने आपको खोद रही हूँ और न जाने कितनी संवेदनाएं अन्दर छिपी हैं उनसे साक्षात्कार हो रहा है। कभी यूरोप में प्रतिदिन स्नान का चलन नहीं था, सर्दी जो थी लेकिन शरीर चाहिये था खुशबूदार तो वहाँ परफ्यूम का चलन बन गया। कितने परफ्यूम आए पेरिस से बनकर और हम सबने उपयोग किये लेकिन किसी ने अपने शरीर की वास्तविक गंध को नहीं जाना, मैं उसी वास्तविक गंध को पाने की कोशिश कर रही हूँ। कभी जेवर से कभी कपड़ों से शरीर को सुसज्जित करते हैं लेकिन शरीर की सुन्दरता कितनी है यह देखने का अवसर ही नहीं मिलता बस जेवर पहनकर आइने के सामने देखते हैं कि जेवर में हमारा शरीर कैसा लग रहा है!
हमारे मन में क्या है, इसे हमने लाख तालों में बन्द कर लिया है, ऊपर इतने आवरण है कि हम जान ही नहीं पा रहे हैं कि हमारे मन में क्या है? तालाब के पानी में इतना कचरा डाल दिया है कि अन्दर का निर्मल जल ऊपर से दिखायी ही नहीं दे रहा है। कभी कचरे को हटाने का मन होता भी है तो मुठ्ठीभर कचरा हटाते हैं और फिर प्रमाद आकर घेर लेता है। जब हमारे अन्दर की आत्मीयता कुन्द होने लगती है तब प्रेम की ज्योति कहीं बुझ जाती है और तब मन में संवेदना जन्म लेती है। यह संवेदना दिखती नहीं है लेकिन जैसे ही परिस्थिति या किसी दृश्य का निर्माण होता है, संवेदना जागृत होती है और आँखों के रास्ते  बह निकलती है। आपने देखा होगा कि कुछ लोग बात-बात में रो देते हैं, हम कहते हैं कि भावुक व्यक्ति है। लेकिन भावुकता के और अन्दर जाइए, कहीं न कहीं रिश्तों में आत्मीयता की कमी और मन के ऊपर आवरणों की  भरमार होगी। फिल्म या सीरीयल देखते हुए हमें किस बात पर रोना आता है, पड़ताल कीजिए, हमारा बिछोह वहीं है। जानिये उस दर्द को और उस आत्मीयता को वापस पाने की कोशिश कीजिए, अपार संतुष्टि मिलेगी लेकिन अक्सर यह सम्भव होता नहीं है। क्योंकि आत्मीयता अकेले से नहीं होती यह दोनों पक्षों का मामला है, लेकिन यदि हमें अपने मन का पता लग गया तो कहीं न कहीं रास्ते भी निकल ही आएंगे। एक रास्ता ना मिला तो दूसरा कोई मार्ग जरूर दिखायी देगा। इसलिये मन को जरूर उजला करने का प्रयास करना चाहिये।

हमारा मन किन तत्वों से बना है, हम क्या चाहते हैं, यह कभी जानने का प्रयास ही नहीं किया बस दुनिया में किसे सम्मान मिलता है, वही बनने का प्रयास करते रहे। अपने मन की चाहत को पीछे धकेल दिया और दुनिया की चाहत को आगे कर लिया। यदि मन की की होती तो आज मन को खोजना नहीं पड़ता, पहले तो मन को दूसरों की चाहत के नीचे दबा दिया और अब उसे खोजने का प्रयास कर रही हूँ। आप भी झांक लें, यदि मौका मिल जाए तो कि क्या बनना हमारे जीवन का सत्य था और हम क्या बन  गये हैं। एक खोखला जीवन जी रहे हैं, जिसमें कोई पैसे के पीछे भाग रहा है, कोई सत्ता के पीछे और कोई सम्मान के पीछे। काम कोई नहीं कर रहा है, बस खुद को काम की आड़ में कुछ पाने का जरिया बना लिया है। यदि कुछ पाने का नजरिया बदल जाएगा तो काम में आनन्द आ जाएगा, हर चीज में नफा-नुक्सान ढूंढने पर काम ही बोझ बन गया है। इसलिये मैं प्रयास कर रही हूँ कि मेरा अस्तित्व ही विलीन हो जाए और मैं अपने मन की थाह पा जाऊँ। बस कुछ नहीं होने का सुख पा जाऊँ। अपनी आत्मीयता वापस पा जाऊँ और अपनी संवेदना को जान पाऊँ। 

10 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (11-02-2018) को 'रेप प्रूफ पैंटी' (चर्चा अंक-2876) (चर्चा अंक-2875) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

रश्मि प्रभा... said...

http://bulletinofblog.blogspot.in/2018/02/blog-post_88.html

Udan Tashtari said...

दुनिया में किसे सम्मान मिलता है, वही बनने का प्रयास करते रहे। ...सही कहा आपने..सार्थक आलेख..

अजित गुप्ता का कोना said...

समीर जी आभार।

Jyoti Dehliwal said...

हम सब यहीं तो गलती कर रहें हैं कि अपने मन की चाहत को पीछे धकेल कर और दुनिया की चाहत को आगे कर देते हैं। बहुत विचारणीय पोस्ट गुप्ता जी!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

वाह ! बहुत खूब

Sanjay Grover said...

अच्छी कोशिश है। अच्छा लगा।

sadhana Pal said...

बहुत ही अच्छा लगा आपकी इस पोस्ट को पढकर.
Inspirational information in hindi

अजित गुप्ता का कोना said...

आप सभी का आभार।

suraj shukla said...

बहुत ही अच्छा लगा आपकी इस पोस्ट को पढकर. thanks sir ji