#हिन्दी_ब्लागिंग
नेकनामी और बदनामी, दोनों का चोली-दामन का साथ
है। जैसे ही किसी व्यक्ति की कीर्ति फैलने लगती है, उसी के साथ उसको कलंकित करने
वाले उपाय भी प्रारम्भ हो जाते हैं। दोनो में संघर्ष चलता है लेकिन जीत सत्य की ही
होती है। आज 4 जुलाई को ऐसे ही सत्य का स्मरण हो रहा है। 11 सितम्बर 1893 को जब
विवेकानन्द जी को अपने शिकागो भाषण के कारण नेकनामी मिली तो कुछ लोगों ने उनके
प्रति दुष्प्रचार प्रारम्भ कर दिया। कलकत्ता के अखबार रंग दिये गये, उनका हर सम्भव
प्रकार से चरित्र हनन किया गया। नेकनामी और बदनामी का संधर्ष चलता रहा लेकिन अन्त
में सत्य सामने आ गया।
जब ऐतिहासिक नरेन्द्र को देखती हूँ तो वर्तमान
नरेन्द्र इतिहास बनाते दिखायी देने लगते हैं। एक सी परिस्थितियाँ दिखायी देती हैं,
एक से संघर्ष दिखायी देते हैं। अनेक लोग दिखायी दे रहे हैं इनके अपयश की कामना
लिये। लेकिन जैसे विवेकानन्द नहीं रूके थे वैसे ही अभी के नरेन्द्र नहीं रूक रहे
हैं। जितनी तेजी से वे आगे बढ़ते हैं लोग उतनी तेजी से प्रहार करना शुरू करते हैं,
मानो उनकी जीत सुनिश्चित करने में अपना योगदान दे रहे हों। सोने को निरापद किया जा
रहा है। जब हम धूप में चलते हैं तब हमारी काली छाया साथ चलती ही है। लेकिन जैसे ही
संघर्ष रूपी धूप थमती है तब काली छाया का अवसान हो जाता है। नरेन्द्र भारत के
भविष्य को उज्जवल बनाने के लिये अनथक चल रहे हैं, वे अमर बेल को जड़ से उखाड़ रहे
हैं। न जाने कितने पेड़ों को इन अमर बेलों ने अपना शिकार बनाया है, उन्हें चिह्नित
करते जा रहे हैं। पेड़ों की सुरक्षा कर रहे हैं।
विवेकानन्द जी का आज निर्वाण दिवस है। उन्होंने
सनातन धर्म रूपी सत्य की स्थापना की। उन्होंने व्यक्ति को अपना कर्तव्य पालन करने
का संदेश दिया, केवल अपना। वे कहते थे कि केवल आप अपना कर्म कीजिये, दूसरों को
बाध्य मत कीजिये। आपके कर्म से ही बदलाव आएगा। यदि दूसरों को बाध्य करेंगे तब केवल
संघर्ष होगा। वर्तमान नरेन्द्र भी यही कर रहे हैं, वे स्वयं को बदलने के लिये कह
रहे हैं, हम बदलेंगे तभी देश बदलेगा। हम यदि सुनिश्चित कर लें कि कोई भी अनैतिक
कार्य जो देश हित में ना हो, हम नहीं करेंगे तो हम सनातन धर्म को पुन: स्थापित कर
सकेंगे लेकिन यदि हम नहीं बदले और हमने दूसरों को बदलने के लिये ही शक्ति लगा दी
तब कुछ नहीं बदलेगा। अपनी शक्ति का दुरुपयोग मत कीजिये, दूसरे पर शक्ति लगाने से
वो और शक्तिशाली होता है, बस सनातन की बात
मानिये। इस देश ने हमें विवेकानन्द जैसे अनेक सन्त दिये हैं, हमारे पास सृष्टि का
सनातन ज्ञान है, उसे उपयोगी बनाइये और आज के दिन दोनों नरेन्द्र को स्मृति में
रखिये, एक ने विश्व के समक्ष भारत को कल दैदिप्यमान किया था और एक आज कर रहा है। हमने
कल के नरेन्द्र को तो नहीं देखा लेकिन हम आज के नरेन्द्र को देख रहे हैं। हमने कल
के संघर्ष के भागीदार नहीं बने लेकिन आज अवसर आया है तो भागीदार अवश्य बनेंगे। कल
का नरेन्द्र आज मूर्त रूप में उतर आया है, उनके संघर्ष में हम अपनी आहुति अवश्य
देंगे।
बहुत सही .लोग केवल स्वयं के स्वार्थ के वशीभूत में रहते हैं .खुद संघर्ष न कर केवल आलोचना में ही लगे रहते हैं .विवेकानंद जी को नमन
ReplyDeleteअतीत से वर्तमान को जोड़ती पोस्ट। बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (05-07-2017) को "गोल-गोल है दुनिया सारी" (चर्चा अंक-2656) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ही सार्थक और सामयिक लिखा आपने.
ReplyDeleteरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
कैप्चा हटा लिजीये प्लीज.
सादर
इतिहास का मूल्यांकन आने वाली पीढ़ियां करती हैं...
ReplyDeleteजय #हिन्दी_ब्लॉगिंग...