मैं विगत एक सप्ताह से उदयपुर के बाहर थी अत: इस ब्लोग जगत से बाहर थी। क्या नया पोस्ट करूँ इसी उधेड़-बुन में एक कविता कुछ दिन पहले की लिखी दिखाई दे गयी। आज राजस्थान में स्थानीय निकायों के चुनाव हो रहे हैं। इन चुनावों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण है। तब लगा कि अब महिलाओं का राज आ गया है। आप भी आनन्द लीजिए इस कविता का।
जन-गण में होगा लोकतंत्र
मन-चाही बोली होगी।
घर-घर में होंगे घर-वाले
घर-वाली बाहर होगी।
पेड़ों पर कुहकेगी कोयल
सावन की बरखा होगी
जब-तब ना लुटेंगी कन्याएं
सिंह-वाली बाहर होगी।
घोड़ी न चढ़ेगी बारातें
तोरण-टंकार नहीं होगी
हँस-हँसकर बोलेंगे दूल्हे
रण-वाली दुल्हन होगी।
खाली कर राजा सिंहासन
संसद में रानी होगी
कुरसी-कुरसी पर अब तो
झाँसी-वाली बोली होगी।
मैना बुलबुल कोयल चिड़िया
बगिया-बगिया नाचेंगी
घर-घर में थाली बाजेगी
बेटी-वाली पूजित होगी।
12 comments:
मैना बुलबुल कोयल चिड़िया
बगिया-बगिया नाचेंगी
घर-घर में थाली बाजेगी
बेटी-वाली पूजित होगी।
सुन्दर और आशा पूर्ण सोच, डा० साहब !
काश ऐसा ही हो...बहुत अच्छी कल्पना है आपकी...क्या पता कल को सच हो ही जाए...
नीरज
खाली कर राजा सिंहासन
संसद में रानी होगी
कुरसी-कुरसी पर अब तो
झाँसी-वाली बोली होगी।
बहुत खूब ऐसा एक दिन जरूर होगा । ये कोरी कल्पना नहीं है बहुत कुछ बदल रहा है। आपने आने वाले समय की सही तस्वीर खींची है बहुत बहुत बधाई
मैना बुलबुल कोयल चिड़िया
बगिया-बगिया नाचेंगी
घर-घर में थाली बाजेगी
बेटी-वाली पूजित होगी।
sach aisa hi ho,amen,ek sunder rachana,badhai
जन-गण में होगा लोकतंत्र
मन-चाही बोली होगी।
घर-घर में होंगे घर-वाले
घर-वाली बाहर होगी।
बहुत आशावादी कविता। मन-चाही बोली का आज लोग गलत अर्थ लगा कर अलग भाषा ही बोल रहे है :)
waah !!
behtreen
काश ऐसा हो
BHAAREE-BHARKAM MAGAR
Bahut chhota sa comment.
NICE.
जी सचमुच अब यह सपना नहीं रहा
काश हकीकत में महिलाओं को सामान अधिकार मिल पाटा .... अभी तो बहुत दूर जाना है ........... आपकी रचना अच्छी है ...........
ऐसा हो रहा है . ऐसा होगा .क्योंकि ऐसा हम सोच रहे हैं .कविता नहीं, यह सच्चाई है.
खूबसूरत प्रस्तुति के लिए साधुवाद ! अर्थवाद की अंधदौड़ में उलझे समाज को आज इसी तरह के जीवन मूल्यों की आवश्यकता है !
रवि पुरोहित
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