मुझे आज वह दिन स्मरण हो रहा है, जब मेरी पुत्र-वधु मेरे घर में आ रही थी। बेटे के चेहरे पर खुशी फूटी पड़ रही थी। घर की दीवारे भी जैसे चहक रही हों। खामोश से पड़े घर में चहचहाट होने लगी थी। उन क्षणों में एक कविता मेरे मन से निकलकर कागज में समा गयी। आज आपको समर्पित करती हूँ।
एक सुबह मेरे आँगन, एक चिरैया आ बैठी
नन्हें पंजों से चलकर, मेरी देहली जा पहुँची
मैं पूछू उस से कौन बता, क्यूं मेरे घर में आती
वह केवल चीं-चीं करती घर के अंदर जा पहुँची।
ओने-कोने में दुबकी घर की खुशियाँ निकल पड़ी
दीवारों पे पसरा सन्नाटा झट से बाहर भाग गया
मैं पूछू सबसे कौन बता, क्यूँ मेरे घर को भाती
वे कहते तेरा यौवन ले के, आज चिरैया आ पहुँची।
जो बीने थे पल कल से इक-इक कर निकल पड़े
रंगो हमको फिर से, हम बदरंग पड़े थे कब से
मैं पूछू रब से कौन बता, क्यूँ मेरे घर को रंगती
रब बोला तेरे कल को रंगने आज चिरैया आ पहुँची।
मैं सुध-बुध खोकर खुश होते आँगन को देख रही
उसकी चीं-चीं अंदर तक, मेरे मन में समा गयी
मैं पूछू मन से कौन बता, क्यूँ मुझको दस्तक देती
मन बोला तेरी दुनिया ले के आज चिरैया आ पहुँची।
28 comments:
बहू में समाया सास का संसार। उम्दा कविता। उम्दा सोच। सास बहू और साजिश के मुंह पर सास बहू प्रेम का करारा तमाचा।
BAHOOT ACHHEE SOCH SE UPJI RACHNA HAI .... SAKAARTMAK SOCH ... SUNDAR RACHNA ...
सास बहु में प्यार बना रहे और बढे
bahut pyara ahsas hai aapka didi.her bahu yahi sochegi use aap-si saas mile o use bahu nahi beti samjhe.good.meri new post aapka intezar kar rahi hai.
itni sunder bhavna hai to har saas dubara bahoo banana chahegi
ईश्वर करे कि आपकी भाँति ही प्रत्येक माता अपने पुत्रवधू के प्रति पुत्रीवत स्नेह रखे!
सांची कहे तोरे आवन से हमरे,
अंगना में आई बहार भौजी...
लक्ष्मी की सूरत, ममता की मूरत,
लाखों में एक हमार भौजी...
जय हिंद...
बहुत ही उम्दा ख्यालात ख़ास कर एक सास के बहु के प्रति आपने कविता में पिरो दिए !
ईश्वर करे यह चिरैया ही रहे और जीवन भर चहकती ही रहे।
प्यारी सी सुन्दर सरल रचना....दिल के तारों को छू लेने वाली.
बहुत खूबसूरत अहसास .. काश यही प्यार हर घर में मौजूद होता !!
मैं सुध-बुध खोकर खुश होते आँगन को देख रही
उसकी चीं-चीं अंदर तक, मेरे मन में समा गयी
मैं पूछू मन से कौन बता, क्यूँ मुझको दस्तक देती
मन बोला तेरी दुनिया ले के आज चिरैया आ पहुँची।
आपकी खुशी शब्दों से झलक रही है जैसे शब्द खुद चहक रहे हों । इन खुशियों के लिये बहुत बहुत मुबारकबाद आपके परिवार का स्नेह बना रहे । शुभकामनायें
मैं सुध-बुध खोकर खुश होते आँगन को देख रही
उसकी चीं-चीं अंदर तक, मेरे मन में समा गयी
बहुत खूबसूरत अहसास, इन खुशियों के लिये बहुत बहुत शुभकामनायें
अनुपम वात्सल्य भाव
भावप्रधान सकारात्मक सोच वाली एक बेहतरीन रचना
वाह....!
एक यादगार कविता!
सास हो तो ऐसी!
बहुत सुन्दर ...
यह कविता आपके विशिष्ट कवि-व्यक्तित्व का गहरा अहसास कराती है।
ek sas, jo kabhi khud bhi ek bahu thi,jo ek ma hi aapne beete kal ko apni chirayya me jeena chati hai. bahut hi sundar ehsas. abhinandan, kavita aapke komal vyaktitva ko darshati hai.
चिरैया का घोसला हमेशा आबाद रहे
पुत्र-वधू का आना है इक बहू का सासू बन जाना।
बेटी सा गले लगाना होता घर में ममता बरसाना॥
यह भाव फले-फूले घर-घर,गुंजायमान होवे यह स्वर।
हर बहू भाग्यशाली होवे जैसी इस घर में आ पहुँची॥
कोटिशः बधाई और शुभकामनाएं।
वाह बहुत सुन्दर ..बहुत सुन्दर तरीके से आपने अपन भावों को इस रचना में बांधा है ..यही प्रेम हर दिल में रहे इसी शुभकामना के साथ
यूँ कहते भी हैं कि बेटियां तो मुंडेर की चिरैया होती है जो किसी दिन उड जाती है. आज पता चला कि वो तो माँ के घर से उड सासू माँ की मुंडेर पर जा बैठती है.
आप अपनी बहू से सचमुच बहुत प्यार करती हैं... पहली बार देखा है किसी सासू मां को अपनी बहू के लिए कविता लिखते हुए.. चिरैया के रूप मे आपने बढ़िया तस्वीर उतारी है...
इतनी ममता,इतना स्वीकार. जैसे कोई खुद से ही करता हो प्यार . प्यारी रचना है .
kash aisa vatsalya har saas ka apni bahoo par ho.........bahut hi sundar nazm .........aapke har bhaav ko darshati.
बहुत ही सुंदर रचना एक सास की सारी भावनाओं को समेटे हुए । ये मां बेटी सा प्यार सदा रहे ।
जो बीने थे पल कल से इक-इक कर निकल पड़े
रंगो हमको फिर से, हम बदरंग पड़े थे कब से
मैं पूछू रब से कौन बता, क्यूँ मेरे घर को रंगती
रब बोला तेरे कल को रंगने आज चिरैया आ पहुँची।
.............................................बहू के आगमन की बधाई.....घर आगन यूँ ही चहकता रहे.......!बहुत सुन्दर रचना.....
एक कवियत्री माँ की भावनाएं दिल को छु गयीं
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