Wednesday, July 8, 2020

मैं अभिव्यक्ति हूँ


जी हाँ मैं अभिव्यक्ति हूँ। अपने अन्दर छिपे हुए भावों को प्रत्यक्ष करने का माध्यम। न जाने कितने प्रकार हैं मेरे! कितने भावों से भरी हूँ मैं!
मैं प्रेम को बाहर निकालती हूँ, मैं आक्रोश को बाहर निकालती हूँ, मैं लोभ को बाहर धकेलती हूँ, मैं विरक्ति को बाहर प्रकट करती हूँ, मैं अहंकार को सार्वजनिक करती हूँ, मैं स्वाभिमान को फूलों की महक के साथ जिन्दा करती हूँ। मैं मेरे अन्दर की महक हूँ, मैं मेरे अन्दर की दुर्गन्ध हूँ, मैं कायरता हूँ, मैं ही साहस हूँ, मैं ही घृणा हूँ और मैं ही आसक्ति हूँ। न जाने मेरे कितने प्रकार है? 64 कलाओं की तरह मेरे 64 रूप हैं। कभी मैं शब्दों से प्रकट होती हूँ, कभी नृत्य से तो कभी गान से। कभी मैं रंगों से सजती हूँ और कभी बदरंग में भी दिखायी देती हूँ। कभी किसी वाद्य से झंकृत होती हूँ तो कभी मौन सी पसर जाती हूँ। कभी मुखर हो जाती हूँ तो कभी अपने ही अहसासों तले दबकर रह जाती हूँ। मेरी कल्पना लोग वर्तमान में करते हैं, कभी भूत में भी कर लेते हैं और कभी भविष्य में भी मुझे पा लेते हैं। मेरे पास न जाने कितनी उपमाएं हैं! मैं रोज ही नये की ओर कदम बढ़ाती हूँ।
एक कथा याद आ रही है – शंकराचार्य की कथा! शंकराचार्य बाल ब्रह्मचारी थे, उन्हें गृहस्थी का ज्ञान नहीं और ज्ञान नहीं तो अभिव्यक्ति भी नहीं! लेकिन यौन सम्बन्ध ज्ञान का विषय नहीं, यह तो शारीरिक गुण हैं, जो प्रत्येक प्राणी का आवश्यक गुण है। एक शास्त्रार्थ में उभय भारती ने प्रश्न कर लिया, पति-पत्नी के सम्बन्धों पर! बस फिर क्या था, शंकराचार्य से उत्तर देते नहीं बना। उनकी अभिव्यक्ति मौन हो गयी। शरीर के अन्दर सुगन्ध है लेकिन अभिव्यक्ति का मार्ग नहीं! क्योंकि हमने सात तालों में बन्द कर लिया है! शंकराचार्य हार की कगार पर खड़े थे लेकिन उभय भारती ने कहा कि मार्ग तलाशकर आओ। एक माह का समय मिला, शंकराचार्य ब्रह्मचारी ठहरे, मार्ग कैसे तलाशें, अनुभव कैसे लें! एक रूग्ण और मरणासन्न राजा की काया में प्रवेश किया और अभिव्यक्ति के मार्ग को प्रशस्त किया। कहने का तात्पर्य यह है कि यदि अभिव्यक्ति नहीं है तो आप ज्ञान शून्य ही कहलाएंगे और अभिव्यक्ति है तो ज्ञानवान! सृष्टि में न जाने कितने प्रकार के जीव हैं, कहते हैं कि कोई एकेन्द्रीय है तो कोई दो-इन्द्रीय तो कोई तीन, कोई चार और कोई पाँच। सभी में अभिवयक्ति की क्षमता है। मनुष्य  पाँच-इन्द्रीय वाला प्राणी है तो उसके पास नाना  प्रकार की अभिव्यक्ति के साधन हैं। लेकिन यदि मनुष्य भी अपनी अभिव्यक्ति ना कर सके तो उसमें और एकेन्द्रीय प्राणी में कोई अन्तर नहीं रह जाएगा। ऐसे प्राणी केवल भोग करते हैं, अभिव्यक्ति नहीं होते। इसलिये संसार में इन्हें भोगवादी कहा जाता है। मनुष्य चूंकि कर्म करता है, स्वयं को अभिव्यक्त करता है इसलिये वह कर्मवादी कहलाता है।
सभी कुछ अभिव्यक्ति में ही निहीत है। पर्वत ने स्वयं को अभिव्यक्त कर दिया तो रत्न निकल आते हैं, सागर ने अभिव्यक्त किया तो अमृत और विष दोनों ही निकल आते हैं। नदी ने अभिव्यक्त किया तो पृथ्वी के साथ मिलकर दुनिया क लिये धान पैदा कर देती है। मनुष्य अभिव्यक्त होने लगता है तब सारा ही ज्ञान-विज्ञान-कला प्रगट होने लगती है। कहाँ मनुष्य प्रकृति के बीच खड़ा था और कहाँ मनुष्य ज्ञान-विज्ञान-कला को अभिव्यक्त करने के बाद अपने ही बनाए स्वर्ग में खड़ा है! अब जन्नत की कल्पना की जरूरत नहीं, मनुष्य ने धरती पर ही जन्नत बना ली है, इसे चाहे जन्नत कह लो, इसे चाह स्वर्ग कह लो और इसे चाहे हैवन कह लो। बस सारा ही अभिव्यक्ति का खेल है। जितने हम अभिव्यक्त होते जाएंगे उतना ही नवीन संसार रचते जाएंगे। हमारी आँखों में उतने ही सपने बड़े होते जाएंगे, हमारी कल्पना की दुनिया विशाल होती जाएगी।
इसलिये हमेशा मन को कहते रहिए कि मैं अभिव्यक्ति हूँ, बिना अभिव्यक्ति मैं सूक्ष्म प्राणी समान हूँ। इस धरती पर ऐसे प्राणी भी हैं जो जन्म लेते हैं, जन्म लेते ही शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करते हैं, नवीन जीव को जन्म देते हैं और फिर उनका जीवन समाप्त हो जाता है। लेकिन हम मनुष्य हैं, हम में अपार ऊर्जा है, हम धरती पर परिवर्तन करने में सक्षम हैं और परिवर्तन के लिये निरन्तर अभिव्यक्ति करते रहिए। स्वयं को रिक्त करना फिर भरना ही कर्म है, जैसे कुआं खुद को जितना रिक्त करता है, उतना ही जल वापस भर लेता है। जिस के पास भी कला है, वह निरन्तर झरता रहता है, उसके अन्दर प्रवाह भरा है, वह मार्ग तलाशता है और जैसे ही उचित मार्ग मिलता है, वह निर्झरणी बन जाता है।


4 comments:

  1. बहुत ही उम्दा लिखावट , बहुत ही सुंदर और सटीक तरह से जानकारी दी है आपने ,उम्मीद है आगे भी इसी तरह से बेहतरीन article मिलते रहेंगे Best Whatsapp status 2020 (आप सभी के लिए बेहतरीन शायरी और Whatsapp स्टेटस संग्रह) Janvi Pathak

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