जब पहाड़ों पर बर्फ गिरती है तब मन झूमने लगता
है, मन कह उठता है कि ठण्ड थोड़े दिन और ठहर जा। झुलसाने वाली गर्मी जितनी देर से
आए उतना ही अच्छा है लेकिन इस बार होली जा चुकी है लेकिन पहाड़ों पर बर्फ पड़ने की
खबरे आ रही हैं। मौसम सर्द बना हुआ है। लोग प्रार्थना करने लगे हैं कि गर्मी जल्दी
से आ जा! गर्मी आएगी तो कोरोना मरेगा, सर्दी रहेगी तो कोरोना फलेगा-फूलेगा!
सारा विश्व चुप हो गया है, प्रकृति की ताकत समझ
आने लगी है। पर्यटक स्थलों से बन्दर शहर की ओर भाग रहे हैं! क्यों भाग रहे हैं?
मनुष्य ने प्रकृति को कितना बर्बाद किया है, धीरे-धीरे समझ आ रहा है, एक-एक परते
खुल रही हैं। हम घूमने जाते हैं, साथ में बिस्किट, ब्रेड. रोटी, आटा आदि सामान भी
ले जाते हैं, कहीं बन्दरों को खिलाते हैं, कहीं कुत्तों को खिलाते हैं, कही
मछलियों को खिलाते हैं, बड़ी शान से कहते हैं कि पुण्य कर रहे हैं। लेकिन हमें पता
ही नहीं जिसे हम पुण्य कह रहे हैं, वह तो पाप है। जैसे जिहादियों को पता ही नहीं
कि वे लोगों को निर्ममता से मार रहे हैं कि वे पुण्य नहीं निरा पाप है! प्रकृति का
चक्र बिगाड़ रहे हैं लोग!
अब ये बन्दर घरों में उत्पात मचाएंगे क्योंकि वे
जंगल में जाना भूल गये हैं, हमने बिस्किट जो खिलाएं हैं, कुत्ते आदमी के पीछे लपक
रहे हैं क्योंकि हमने रोटी खिलायी है। मनुष्यों को भी हम मुफ्त की रोटी बांट रहे
हैं, अब कोरोना के कारण बन्द हो रही है मुफ्त की बन्दर-बाँट तो लोग चोरी करेंगे,
डाका डालेंगे, पेट तो भरेंगे ही ना! हमने आदत तो बिगाड़ दी है। अकेले अमेरिका के
न्यूयार्क शहर में ही 7 लाख बच्चे सरकार के भोजन पर आश्रित हैं और अब भोजन बनाने
और बाँटने का संकट पैदा हो गया है तो क्या होगा? हमारे मिड-डे-मील भी बन्द हो
जाएंगे तो क्या होगा?
होटल बन्द पड़े हैं, रेस्ट्रा बन्द हैं, प्रतिदिन
के वेतन भोगी कर्मचारी घर बैठ गये हैं। करोड़ों लोग बेराजगार हो रहे हैं। असली
बेराजगारी तो कोरोना के कारण आ रही है। फाइव-स्टार होटल विदेशी पर्यटकों की आवाजाही
बन्द होने से खाली हो रहे हैं, होटल मालिकों का करोड़ो का नुक्सान हो रहा है लेकिन कर्मचारी का हजारों
का नुक्सान भी उसे रोटी के लिये मोहताज कर देगा! हमने जो हमारे पैतृक धंधों को
छोड़कर नौकरी को अपनाया था, उसके दुष्परिणाम सामने अने लगे हैं।
हमारे देश में सब कुछ है, सारे ही खाद्य पदार्थ
उपलब्ध हैं लेकिन जिन देशों में कुछ नहीं होता, वे क्या करेंगे? उन देशों में लूट
मची है, जिसे जितना मिल रहा है, संग्रह कर रहा है। घर में यदि एक व्यक्ति को भी
कोरोना ने डस लिया तो उसे भोजन देने वाला कोई नहीं होगा! कौन रोटी देगा? क्योंकि
हमें काम आता नहीं! व्यक्ति दूसरे पर निर्भर हो गया है। प्रकृति के साथ जीना सीखना
होगा, स्वयं को सक्षम बनाना होगा और दूसरे जीवों को भी मुक्त रखना होगा। बन्दर को
बिस्किट खिलाना पुण्य नहीं पाप है, यह समझना होगा।
वर्तमान समय का सारा कच्चा चिट्ठा आपने बड़े ही बेबाक रूप से सामने रख दिया है , वास्तव में ही आज का समय बहुत कठिन गुजर रहा है
ReplyDeleteआभार अजय जी
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