हमें आखिर इतनी जल्दी क्या है? दूध को समय दीजिये
तभी दही जमेगा। जल्दबाजी में या बार-बार अंगुली करने से दही नहीं जमने वाला! लेकिन
हमें हथेली पर सरसों बोने की आदत पड़ गयी है। समय देना तो हम भूल ही गये हैं! हमें
आखिर जल्दी किस बात की है? नहीं हमें जल्दी भी नहीं है, बस हम फालतू टाइप के लोग हैं।
समय बिताने के लिये गॉसिप करते हैं हम। मोदीजी के कहा कि मैं एक दिन के लिये रविवार
को सोशल मीडिया एकाउंट छोड़ूगा तो अटकलों का बाजार गर्म हो गया। जितनी सनसनी फैला
सकते थे, जितने कयास लगा सकते थे, सारे ही कयास और सनसनी फैलाकर देख ली। फिर आया
मोदी जी का जवाब कि एक दिन महिलाओं के नाम रहेगा उनका सोशल मीडिया! अब! चारों तरफ
निराशा! लोग कह रहे हैं कि खोदा पहाड़ और निकली चुहिया!
घर के चूल्हे पर दूध चढ़ा है, सड़क पर बारात निकल
रही है, बस कृष्ण की बांसुरी सुनकर जैसे गोपियाँ सुध-बुध खो जाती थी वैसे ही रसोई
से निकलकर गृहिणी दौड़ पड़ी बारात देखने और दूध उबल-उबल कर नीचे गिरता रहा, पतीला
जलता रहा लेकिन होश किसे! दुनिया में कितनी खबरे हैं, कितना कुछ हो रहा है, उधर
कोरोना वायरस ही कहर मचा रहा है लेकिन मीडिया को और सोशल मीडिया को मोदीजी की खबर
की अटकलें लगानी है! आज मोदी नाम सबसे बड़ी खबर की दुकान हो गया है! खिलाड़ी छूट
गये, अभिनेता छूट गये सारे ही सेलेब्रिटी छूट गये बस मोदी की खबर होनी चाहिये। मोदी
की खबर से शेयर बाजार उछलने लगता है या टूटने लगता है। हमारे पास मुद्दे ही नहीं
है, बस अटकलें ही शेष हैं। ऐसा होता तो कैसा होता और ऐसा नहीं होता तो कैसा होता?
सारा देश फालतू हुआ बैठा है, बस एक मोदी के सहारे सारे ही बैठे हैं। दिल्ली में बिल्ली
ने खूनी पंजे गड़ा दिये हैं लेकिन हम अटकलें-अटकलें खेल रहे हैं। कोई भी संगठन
समाज को बचाने के लिये आगे नहीं आ रहा है, किसी ने भी रक्षा दल नहीं बनाया है। हम
सदियों से अटकलों के सहारे जी रहे हैं, कभी गुलाम बन जाते हैं, लुट जाते हैं फिर
कोई मोदी जैसा आ जाता है, वापस स्वतंत्र हो जाते हैं और फिर अटकलों में जीने लगते
हैं। शायद हमारी जिन्दगी ही अटकलों की मोहताज
हो गयी है। जितनी जल्दी हम अटकलों से जूझते हैं उतनी ही जल्दी यदि हम
समस्या से जूझने लगे तो हम सुरक्षित हो सकेंगे। लेकिन हम नहीं कर सकेंगे! अटकलों
में हम माहिर है लेकिन समस्या का सामना करने में हम बहुत पीछे हैं। समाज को एकजुट
कर लो नहीं तो अटकलें लगाने के लायक भी नहीं रहोगे!
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 04 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसही कहा आपने। आजकल सभी को ऑयबॉल्स ग्रैब करना है और मोदी जी का नाम इसके लिए उपयुक्त है। यही कारण है कि उनकी हर बात पर सबकी नज़र होती है क्योंकि फिर वो उससे जुड़ी पोस्ट कर उन ऑयबॉल्स को अपने तरफ ला सकते हैं। सोशल मीडिया की दुनिया में यही महत्वपूर्ण रह गया है। अच्छी पोस्ट। हम जरूरी चीजें छोड़कर केवल अटकलें लगा रहे है। यह काफी नुकसानदायक हो सकता है।
ReplyDeleteयशेदा जी आभार।
ReplyDeleteविकास जी आभार।
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