कोई किसी महिला से पूछे कि तेरा नाम क्या है?
तेरा उपनाम क्या है? तेरा देश क्या है? तो महिला सोचने का समय लेगी। क्यों लेगी!
इसलिये लेगी कि विवाह के बाद उसका कहीं नाम बदल जाता है, उपनाम तो बदल ही जाती है
और कभी देश भी बदल जाता है। इसलिये वह सोचती है कि कौन सा नाम बताऊँ, कौन सा उपनाम
बताऊँ और कौन सा देश बताऊँ! लेकिन कल अचानक ही एक पुरुष की बेबसी देखी, अरे पुरुष
होकर भी ऐसी बेबसी से गुजर रहा है! मन को थोड़ा सुकून भी मिला कि चलो, पुरुषों के
पास भी ऐसी बेबसी आ जाती है, हम तो सोचते थे कि मासिक धर्म की तरह यह समस्या केवल
हमारी ही है। सम्भ्रान्त राजपुरुष के सामने यह प्रश्न सुरसा के मुँह की तरह विकराल
रूप लेने लगा, बता तेरा नाम क्या है? बता तेरा उपनाम क्या है? बता तेरा देश क्या
है? पुरुष ने सीना चौड़ा नहीं किया अपितु सिकुड़ लिया, मिमियां कर बोला की दो दिन
दो, सोचकर बताता हूँ। अबे इसमें सोचना क्या है, तेरी शादी नहीं हुई जो कह दे कि घर
जमाई हूँ और नाम-उपनाम-देश सब बदल गया है! ना तो किसी के गोद गया है जैसे तेरे
दादा ने गोद का उपनाम ले लिया था! फिर समस्या क्या है?
समस्या भारी है, कौन देश का तू है, तेरा नाम भी
उसी देश का है, तेरी शिक्षा भी उसी देश की है लेकिन तू राजनीति धमाचौकड़ी इस देश
में कर रहा है! महिने में दस दिन इस देश में और बीस दिन अपने देश में रहता है
लेकिन तेरा सुरक्षा कवच इतना मजबूत है कि कोई तुझ से प्रश्न नहीं पूछता! जैसे ही
तुझसे किसी ने कुछ पूछा तेरे पालतू सारे कुत्ते एक साथ भौंकने लगते हैं और उस शोर में
प्रश्न दब जाता है। तू ने आजतक कई चुनाव भी लड़ लिये, अपनी शिक्षा का दस्तावेज भी
दिखाया ही होगा लेकिन किसी ने नहीं पूछा कि भारत में तेरा नाम और दस्तावेजों में तेरे
नाम में अन्तर क्यों हैं? हमारे बच्चे भी विदेश पढ़े हैं लेकिन उनका एक ही नाम है,
फिर क्या वे दूसरे नाम से यहाँ चुनाव लड़ सकते हैं। दोहरी नागरिकता से जब वोट तक
नहीं डाल सकते तो तू तो चुनाव लड़ भी रहा है और प्रधानमंत्री तक के सपने देख रहा
है। फिर चिल्ला-चिल्लाकर कह रहा है कि इस देश का प्रधानमंत्री चोर है। अपनी चोरी
छिपाने को तू देवता को चोर कह रहा है! जैसे एक लम्पट पति अपनी सती-सावित्री पत्नी
को कुल्टा कहता है वैसा ही आचरण तेरा है। तेरे पास भौंकने वाले कुत्ते हैं तो तू
कुछ भी करेगा! नहीं, अब ऐसे नहीं चलेगा। देश को बताना ही होगा कि तेरा नाम क्या
है? तेरी असलियत क्या है? यदि इस बार भी तू बच निकला तो समझ ले कि गेंद प्रकृति के
पास जाएगी और फिर प्रकृति का न्याय होगा। क्योंकि शाश्वत प्रकृति ही है, ना
संस्कृति शाश्वत है और ना ही विकृति शाश्वत है। किसी भी झंझावात में सबकुछ विनष्ट
हो जाएगा बस मूल स्वरूप में प्रकृति ही शेष रहेगी। बहुरूपिये का जीवन ज्यादा दिन
नहीं टिकता, फिर तूने तो ऐसे व्यक्ति पर कीचड़ उछाला है जो पूजनीय है। साध्वी का उदाहरण भी देख ले, किरकिरे की
कैसी किरकिरी हो रही है। दिग्गी की भी और तेरी भी ऐसी मिट्टी पलीद होगी की तू ने
सपने में भी नहीं सोचा होगा। जब कोई किसी एक व्यक्ति पर कीचड़ उछालता है तो
प्रकृति थोड़ा रुष्ट होती है लेकिन जब कोई किसी कौम को ही बदनाम करने की ठान लेता
है तब जलजला आने लगता है, अब जलजले का समय शुरू हो गया है। इस जलजले में तेरा
न्याय भी होगा और दिग्गी समेत तेरे सारे भौंकने वालों का न्याय होगा। आखिर समय कब
तक तेरा साथ देगा। तू ने पाप ही इतने कर डाले हैं कि अब न्याय होकर रहेगा। तू न्याय
का ठेकेदार बनना चाहता है ना, अब देख ना तेरा न्याय क्या होगा!
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 21/04/2019 की बुलेटिन, " जोकर, मुखौटा और लोग - ब्लॉग बुलेटिन“ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteशिवम् मिश्रा जी आभार।
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