सखी! चुनाव ऋतु आ गयी। अपने-अपने दरवाजे बन्द कर लो। आँधियां चलने वाली है, गुबार उड़ने वाले हैं। कहीं-कहीं रेत के भँवर बन जाएंगे, यदि इस भँवरजाल में फंस गये तो कठिनाई में फँस जाओंगे। पेड़ों से सूखे पत्ते अपने आप ही झड़ने लगेंगे। जिधर देखों उधर ही पेड़ पत्रविहीन हो जाएंगे। सड़के सूखे पत्तों से अटी रहेगी, चारों तरफ सांय-सांय की आवाजें आने लगेगी। पुष्प कहीं दिखायी नहीं देंगे, बस कांटों का ही साम्राज्य स्थापित होगा। इस ऋतु को देश में पतझड़ भी कहते हैं, लेकिन चुनाव की घोषणा के साथ ही देश में पतझड़ रूपी यह चुनाव-ऋतु सर्वत्र छाने लगती है। पेड़ रूपी राजनैतिक दल सारे ही पत्ते रूपी वस्त्र त्याग देते हैं, निर्वस्त्र हो जाते हैं। जिसने धारण कर रखे होते हैं, उनके भी दूसरे दल खींच लेते हैं। तू-तू, मैं-मैं का शोर हवाओं की सांय-सांय से भी तेज होने लगता है। आंधियों के वेग के कारण हवा किस ओर से बह रही है, भान ही नहीं होता। रेत के टीले उड़कर इधर से उधर चले जाते हैं, रातों-रात धरती का भूगोल बदल जाता है। लेकिन इस चुनाव ऋतु में मनुष्य घबराता नहीं है, उसे पता है कि पतझड़ के बाद ही नवीन कोपलें फूंटेंगी, बस वह उन्हीं का इंतजार करता है।
अपने-अपने पेड़ों पर सभी की दृष्टि टिकी होती है, सभी चाहते हैं कि हमारे पेड़ पर ज्यादा से ज्यादा पत्ते आएं और नवीन फूल खिलें। लेकिन आजकल का चलन विदेशी पेड़ लगाने का भी हो गया है, कुछ लोग बिना सुगन्ध के विदेशी फूल लगाने लगे हैं, उनकी पैरवी भी खूब करते हैं, उन्हें वे सुन्दर लगते हैं। अपने गुलाब को उखाड़कर विदेशी गुलाब लगाने का चलन हो गया है। लेकिन इस बार लोग सतर्क हो गये हैं। फूल लगेगा तो देशी ही लगेगा, लोग कहने लगे हैं। लेकिन देश में एक नहीं अनेक समस्याएं हैं। कोई कह रहा है कि गुलाब नहीं चमेली लगाओ, कोई कह रहा है कि मोगरा लगाओ, कोई रातरानी तो कोई सदाबहार के पक्ष में है। देश में जितनी गलियाँ हैं उतने ही फूल हैं। इस ऋतु में हर आदमी के पास अपना फूल है, कोई विदेशी फूल लिये खड़ा है तो कोई देशी। हम तो देख रहे हैं कि अपने आंगन में एक तुलसी की पौध ही लगा दें, बारह मास काम आएगा। पतझड़ में इसके पत्ते भी झड़ गये थे, हमने बीज बचाकर रख लिये थे, बस गमले में डाला और उगने लगे हैं अंकुर।
सखी! पतझड़ में अपना ध्यान रखना। किसी भँवरजाल में मत फंसना। यह पतझड़ बस कुछ दिन ही रहने वाली है, फिर तो चारों तरफ सारे ही रंग बिखरे होंगे। सखी! तुम यही भी पता नहीं कर पाओगी कि किस पेड़ पर कौन सा फल लगेगा, लोग कह देंगे कि मेरे पेड़ पर आम लगेगा, लेकिन तुम पूरी जानकारी रखना, इसके बाद ही विश्वास करना। मेरे घर के बाहर शहतूत का पेड़ है लेकिन उसमें बोगनवेलिया की बेल चढ़ जाती है, दूर से पता ही नहीं चलता कि पेड़ शहतूत का है। यहाँ बहुत सी बेलें अमरबेल बनकर चढ़ी दिखायी देंगी, उनसे भी सावधान रहना। चुन-चुनकर अपने बगीचे में सुगन्धित फूल ही लगाना। हमारे देश में खऱपतवार भी बहुत उग आयी है, इस ऋतु में लगे हाथ उन्हें भी उखाड़ बाहर करना। मैं तो निश्चिंत हूँ, मुझे पता है कि अभी देश का बागवां सशक्त है। उनका पेड़ बरगद का पेड़ बन चुका है, जहाँ बारहों मास हरियाली रहती है, फल लगते हैं और सारे ही पक्षी शरण पाते हैं। इसलिये मेरे घर के दरवाजे खुले हैं, मैं चैन की बंसी बजा रही हूँ, मुझे पता है कि कितना ही गुबार उठे लेकिन मेरा बागवां सब कुछ सम्भाल लेगा। मैं तो अभी से चिड़ियाओं की चहचहाट सुन रही हूँ, फूलों की अंगड़ाई देख रही हूँ और वातावरण में सर्वत्र फैल रही सुगन्ध को अपने अन्दर समेट रही हूँ। सखी! तुम भी निश्चिंत रहो, बस अपना कर्तव्य पूर्ण करते रहो। ये आंधियां तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगी।
अपने-अपने पेड़ों पर सभी की दृष्टि टिकी होती है, सभी चाहते हैं कि हमारे पेड़ पर ज्यादा से ज्यादा पत्ते आएं और नवीन फूल खिलें। लेकिन आजकल का चलन विदेशी पेड़ लगाने का भी हो गया है, कुछ लोग बिना सुगन्ध के विदेशी फूल लगाने लगे हैं, उनकी पैरवी भी खूब करते हैं, उन्हें वे सुन्दर लगते हैं। अपने गुलाब को उखाड़कर विदेशी गुलाब लगाने का चलन हो गया है। लेकिन इस बार लोग सतर्क हो गये हैं। फूल लगेगा तो देशी ही लगेगा, लोग कहने लगे हैं। लेकिन देश में एक नहीं अनेक समस्याएं हैं। कोई कह रहा है कि गुलाब नहीं चमेली लगाओ, कोई कह रहा है कि मोगरा लगाओ, कोई रातरानी तो कोई सदाबहार के पक्ष में है। देश में जितनी गलियाँ हैं उतने ही फूल हैं। इस ऋतु में हर आदमी के पास अपना फूल है, कोई विदेशी फूल लिये खड़ा है तो कोई देशी। हम तो देख रहे हैं कि अपने आंगन में एक तुलसी की पौध ही लगा दें, बारह मास काम आएगा। पतझड़ में इसके पत्ते भी झड़ गये थे, हमने बीज बचाकर रख लिये थे, बस गमले में डाला और उगने लगे हैं अंकुर।
सखी! पतझड़ में अपना ध्यान रखना। किसी भँवरजाल में मत फंसना। यह पतझड़ बस कुछ दिन ही रहने वाली है, फिर तो चारों तरफ सारे ही रंग बिखरे होंगे। सखी! तुम यही भी पता नहीं कर पाओगी कि किस पेड़ पर कौन सा फल लगेगा, लोग कह देंगे कि मेरे पेड़ पर आम लगेगा, लेकिन तुम पूरी जानकारी रखना, इसके बाद ही विश्वास करना। मेरे घर के बाहर शहतूत का पेड़ है लेकिन उसमें बोगनवेलिया की बेल चढ़ जाती है, दूर से पता ही नहीं चलता कि पेड़ शहतूत का है। यहाँ बहुत सी बेलें अमरबेल बनकर चढ़ी दिखायी देंगी, उनसे भी सावधान रहना। चुन-चुनकर अपने बगीचे में सुगन्धित फूल ही लगाना। हमारे देश में खऱपतवार भी बहुत उग आयी है, इस ऋतु में लगे हाथ उन्हें भी उखाड़ बाहर करना। मैं तो निश्चिंत हूँ, मुझे पता है कि अभी देश का बागवां सशक्त है। उनका पेड़ बरगद का पेड़ बन चुका है, जहाँ बारहों मास हरियाली रहती है, फल लगते हैं और सारे ही पक्षी शरण पाते हैं। इसलिये मेरे घर के दरवाजे खुले हैं, मैं चैन की बंसी बजा रही हूँ, मुझे पता है कि कितना ही गुबार उठे लेकिन मेरा बागवां सब कुछ सम्भाल लेगा। मैं तो अभी से चिड़ियाओं की चहचहाट सुन रही हूँ, फूलों की अंगड़ाई देख रही हूँ और वातावरण में सर्वत्र फैल रही सुगन्ध को अपने अन्दर समेट रही हूँ। सखी! तुम भी निश्चिंत रहो, बस अपना कर्तव्य पूर्ण करते रहो। ये आंधियां तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगी।
शुभकामनाएं चुनावी होली की। सुन्दर ।
ReplyDeleteHoli ki shubhkamnayen
ReplyDelete____
I started writing in english at https://www.stronglyours.in/. I am trying to be honest, thoughtsful and sensitive.
Do visit my new blog Strongly Yours.
सुशील जी आभार।
ReplyDeleteनीरज जी बधाई।
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा अजित दी कि यदि इंसान अपना कर्तव्य बराबर निभाए तो कोई भी आंधी उसे नुकसान नहीं पहूँचा सकती।
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