Thursday, December 27, 2018

पधारो म्हारा देश या?


आखिर हमारे छोटे शहर सैलानियों का बढ़ता आवागमन क्यों नहीं झेल पाते हैं? अब आप मेरे शहर उदयपुर को ही ले लीजिए, शहर में बीचों-बीच झीलें हैं तो झीलों से सटी पहाड़ियों पर भी बसावट है। पुराने शहर में सड़के संकरी भी हैं और पार्किंग की जगह ही नहीं है। उदयपुर के पैलेस तक जाना हो तो शहर के संकरे से रास्ते से गुजरना पड़ता है, झील तक जाने के लिये भी रास्ते संकरे ही हैं, ऐसे में सैलानियों की एक ही बस रास्ता जाम करने में काफी है। अभी दीवाली पर मैंने जैसलमेर के बारे में लिखा था कि वहाँ किले तक पहुँचना हमारे लिये नामुमकिन हो गया था और ऐसा ही नजारा उदयपुर का हो गया है। कल पैदल चलते हुए फतेहसागर जा पहुँचे, वहाँ फूलों की प्रदर्शनी लगी थी तो उसे भी देख लिया लेकिन अब लगा कि वापसी भी पैदल नहीं की जा सकती है तो उबर की सेवा लेने के लिये केब बुक की लेकिन भीड़ और शिल्पग्राम जाती गाड़ियों के कारण टेक्सी को आने में 45 मिनट लग गये। उदयपुर के लिये यह सैलानियों का मौसम है, दीवाली पर भी था और शायद फरवरी तक तो रहेगा ही। सारे रास्ते गाड़ियों, बसों से जाम रहेंगे, होटल की कीमते आसमान छूने लगेगी, दुकानदार भी आपको घास नहीं डालेंगे। यदि एक किलोमीटर के रास्ते को पार करने में आपको आधा घण्टा लगने लगे तो समझ सकते हैं कि रोजर्मरा के काम करने में कितनी कठिनाई का सामना करना पड़ता होगा।
मेरे जैसे ना जाने कितने लोग अब गाड़ी नहीं चला पाते, क्योंकि एक तो भीड़ और फिर पार्किंग की समस्या। केब लो और चल दो, लेकिन जब केब मिलना भी मुश्किल हो जाए तो खीज होने लगती है। झील के चारों तरफ बढ़ते जा रहे ठेले, फूड-ट्रक आदि भी पार्किंग की समस्या को बढ़ा रहे हैं। पैदल चलने वाले, घूमने वालों के लिये कोई पगडण्डी भी सुरक्षित नहीं है। या तो वहाँ कोई भुट्टे वाला आकर बैठ गया है या फिर किसी ने अपनी गाड़ी ही खड़ी कर दी है। सैलानी बढ़ रहे हैं लेकिन शहर का वासी घरों में कैद होकर रह गया है। प्रशासन भी सड़कों को विस्तार नहीं दे सकता है, क्योंकि जगह ही उतनी है। शहर के कुछ होटल बहुत प्रसिद्ध हैं, उनके रूफ-टॉप रेस्ट्रा से पिछोला झील का नजारा बेदह खूबसूरत होता है, लेकिन वहाँ तक पहुंचने के लिये 10 फीट की संकरी गली को पार करना होता है। इसका कोई इलाज प्रशासन के पास नहीं है, सिवाय इसके की पैदल जाओ और मस्त रहो। सैलानी तो पैदल चले जाएगा लेकिन जो बाशिन्दे उन गलियों में रह रहे हैं, उनके लिये तो मुसीबत आ जाती है। हम शहर के बाहर रहते हैं लेकिन हमारे चारों तरफ फाइव स्टार होटलों का जमावड़ा है, ऐसे में सारे रास्ते गाड़ियों और बसों की आवाजाही से जाम रहते हैं। सड़क पार करना तो भारी मशक्कत का काम है।
जहाँ भी कुछ चौड़े रास्ते हैं, वहाँ घरों के बाहर लोगों ने 6-6 फीट घेरकर रोक रखा है, इसे देखने वाला कोई नहीं है। यहाँ तक की फाइव स्टार होटलों तक ने पूरे रास्ते घेर रखे हैं। हमारे पास के एक होटल ने तो सड़क को आधी कर दिया है। चालीस फीट से चली सड़क, होटल आते-आते बीस फीट से भी कम रह गयी है। सैलानी भी परेशान होते हैं और शहर के बाशिंदे भी। सैलानी रोज बढ़ रहे हैं लेकिन शहर तो अपनी सीमा में ही रहेगा, इसलिये कम से कम गैरकानूनी कब्जों पर तो प्रशासन को अनदेखी नहीं करनी चाहिये। सारा व्यवसाय सड़क पर करने की छूट तो नहीं मिलनी चाहिये। एक दिन ऐसा आएगा जब शहर ही बदरंग होने लगेगा और फिर रात-दिन बढ़ते होटल खाली रहने पर मजबूर हो जाएंगे। कम से कम बसों को शहर में दौड़ने पर पाबन्दी तो लगानी ही होगी, उसके लिये वैकल्पिक व्यवस्था करनी होगी। उदयपुर जैसे शहरों को बचाना तो होगा ही नहीं तो पधारो म्हारा देश कहने की जगह पर कहना पड़ेगा कि मत पधारों म्हारा देश।   

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