लो जी चुनाव निपट गये, एक्जिट पोल भी आने लगे
हैं। भाजपा के कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवीयों की नाराजगी फिर से उभरने लगी है। लोग
कहने लगे हैं कि इतना काम करने के बाद भी चुनाव में हार क्यों हो जाती है? चुनाव
में हार या जीत जनता से अधिक कार्यकर्ता या दल के समर्थक दिलाते हैं। इस मामले में
कांग्रेस की प्रशंसा करूंगी कि उन्होंने ऐसी व्यवस्था खड़ी की कि
कार्यकर्ता-समर्थक और नेता के बीच में खाई ना बने। नेता को यदि सत्ता के कारण
सम्मान मिलता है तो बुद्धिजीवी को भी विषय-विशेष के लिये समाज में सम्मान भी मिले
और स्थान भी मिले, तभी यह खाई पट सकेगी।
बस भाजपा और उनके प्रमुख संगठन संघ की यही बड़ी चूक है कि वह कार्यकर्ता को सम्मान
नहीं दे पाती। दो मित्र एक साथ राजनैतिक क्षेत्र में आते हैं, एक नेता बन जाता है
और दूसरा कार्यकर्ता रह जाता है। नेता बना मित्र, अपने ही मित्र से आशा रखता है कि
वह उसके दरबार में आए और उसके कदम चूमे। बस यही प्रबुद्ध कार्यकर्ता का सम्मान आहत
हो जाता है और वह ना देश देखता है, ना समाज देखता है, बस उसे यही दिखता है कि मैं
सबसे पहले इसे गद्दी से कैसे उतारूं! फेसबुक पर सैकड़ों ऐसे लोग थे जिनका सम्मान
आहत हुआ था, वे भी कांग्रेस के कार्यकर्ता की तरह समाज में अपना स्थान चाहते थे
लेकिन उन्हें नहीं मिला और वे अपमानित सा अनुभव करते हुए, विरोध में आकर खड़े हो
गये।
कांग्रेस जब से सत्ता में आयी है, तभी से उसने
कार्यकर्ता और प्रबुद्ध लोगों को समाज में स्थापित करने के लिये देश भर में लाखों
पद सृजित किये और हजारों पुरस्कार व सम्मानों का सृजन किया। एक पर्यावरणविद, समाज शास्त्री,
साहित्यकार आदि का नाम शहर में सम्मान से लिया जाता है, उन्हें हर बड़े समारोह में
विशिष्ट स्थान पर बैठाया जाता है। मंच पर राजनेता होता है और अग्रिम पंक्ति में
सम्मानित अतिथि। दोनों के सम्मान में समाज झुकता है, बस एक समर्थक को और क्या
चाहिये! मैंने संघ के निकटस्थ ऐसे प्रबुद्ध नागरिक भी देखें हैं, जिनने अद्भुत
कार्य किया लेकिन उन्हें सीढ़ी दर सीढ़ी उतारकर जमीन पर पटक दिया गया। ऐसे ही
हजारों नहीं लाखों कार्यकर्ताओं और समर्थकों की कहानी है। व्यक्ति देश की उन्नति
के लिये आकर जुड़ता है लेकिन जब उसे लगता है कि उसे सम्मान नहीं मिल रहा अपितु ऐसी
जाजम पर बैठना पड़ रहा है, जहाँ उसके साथ उसी के विभाग का चतुर्थ श्रेणी योग्यता
के लिये नहीं अपितु उस विभाग में है, के कारण बैठा है। तब उसे कोफ्त होती है, वह
नाराज होता है और अपमानित होकर घर बैठ जाता है। कुछ विरोध में खड़े हो जाते हैं और
कुछ मौन हो जाते हैं।
यहाँ सोशल मीडिया पर इन चुनावों को लेकर बहुत
रायता फैलाया गया था। सभी चाह रहे थे कि मुख्यमंत्री बदलें, क्योंकि उनका सम्मान
अधिक था लेकिन कार्यकर्ता को सम्मान नहीं था। वे कांग्रेस की तरह स्लीपर सेल जैसी
व्यवस्था चाहे ना चाहते हों लेकिन सम्मान अवश्य चाहते थे। एक्जिट पोल नतीजे नहीं
हैं और मुझे अभी भी लगता है कि जनता खुश
थी, नाराजी थी तो कार्यकर्ताओं की ही थी इसलिये चुनाव में जीत होगी, परन्तु जहाँ
भी हार होगी वहाँ केवल कार्यकर्ताओं के कारण होगी। 70 प्रतिशत से ज्यादा पोलिंग
भाजपा के पक्ष में है लेकिन इससे कम इनके विरोध में है। एक प्रतिशत का अन्तर ही
भाजपा को डुबा सकता है और यह एक प्रतिशत कार्यकर्ताओं का रौष ही है।
लेकिन यदि जीत जाते हैं तो संगठन को सम्मान के इस
मार्ग को भाजपा के लिये भी तैयार करना होगा। लोगों को उनकी पहचान देनी होगी, तभी
वे सम्मानित महसूस करेंगे और आपके साथ जुड़े रहेगे। बिना सम्मान गुलामी में जीने
के समान है और समर्थक ऐसे में परायों की गुलामी स्वीकार कर लेते हैं, अपनों के
खिलाफ। इसलिये संघ जैसे संगठनों को चाहिये कि कार्यकर्ता और समर्थकों की प्रबुद्धता
को सम्मान दे और उनकी और नेता की दूरी को कम करे। जितनी खाई बढ़ेगी उतनी ही
दिक्कतें बढ़ेंगी। यदि इस बार जीत भी गये तो क्या, अगली बार यही समस्या विकराल रूप
धारण कर लेगी। हर विषय-विशेषज्ञ की सूची होनी चाहिये और उन्हें उसी के अनुरूप
सम्मान मिलना चाहिये। सूची में गधे और घोड़ों को एक करने की प्रथा को समाप्त करना
होगा नहीं तो गधे ही चरते रह जाएंगे और घोड़े आपकी तरफ झांकेंगे भी नहीं।
www.sahityakar.com
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (10-12-2018) को "उभरेगी नई तस्वीर " (चर्चा अंक-3181) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
राधा तिवारी जी आभार।
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